Author Topic: Joshimath,one of the four cardinal institutions, Adi Shankarachary,जोशीमठ  (Read 24726 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
जोशीमठ के पहाड़,BY SHIVPRSAAD JOSHI

इतने सीधे खड़े रहते हैं
कि अब गिरे कि तब
गिरते नहीं बर्फ़ गिरती है उन पर
अंधेरे मे ये बर्फ़ नहीं दिखती
पहाड़ अपने से ऊँचे लगते हैं
डराते हैं अपने पास बुलाते हैं

दिन में ऐसे दिखते हैं
कोई सफ़ेद दाढ़ी वाला बाबा
ध्यान में अचल बैठा है
कभी एक हाथी दिखता है
खड़ा हुआ रास्ता भूला हो जैसे
जोशीमठ में आकर अटक गया है
बर्फ़ के कपड़े पहने
सुंदरी दिखती है पहाड़ों की नोकों पर
सुध-बुध खोकर चित्त लेटी हुई
कहीं गिर गई अगर

लोग कहते हैं
दुनिया का अंत इस तरह होगा कि
नीति और माणा के पहाड़ चिपक जाएंगे
अलकनंदा गुम हो जाएगी बर्फ़ उड़ जाएगी
हड़बड़ा कर उठेगी सुंदरी
साधु का ध्यान टूट जाएगा
हाथी सहसा चल देगा अपने रास्ते

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
जोशीमठ के सेब

जोशीमठ के डिलिसियस सेब की मिठास हर किसी के मन को मोह लेती है। इस बार सेब का सीजन तो आया, लेकिन जोशीमठ का सेब बाजार में पूरी तरह से गायब नजर आ रहा है।



गौरतलब है कि इस वर्ष पूरे जिले में समय पर वर्षा व बर्फबारी न होने के कारण शुरूआत से ही सेब व्यवसायियों के चेहरों पर शिकन आ गई थी। पिछले वर्षो तक क्षेत्र के अधिसंख्य उत्पादक 80 हजार से एक लाख तक का मुनाफा सेब की फसल से कमा लेते थे। वहीं इस बार सेब उत्पादकों को घोर निराशा हाथ लगी है।

अब अगले वर्ष की चिंता भी उन्हें सताने लगी है। उनका कहना है कि यदि अगले वर्ष भी मौसम की मार कुछ ऐसे ही रही तो वह पूरी तरह से बर्बाद हो जाएंगे। सीमांत जनपद के जोशीमठ ब्लाक में बड़ागांव, मेरंग, औली, सलुड़डुग्रा, उर्गम, भविष्य बदरी, सुभांई, परसारी, जेलम, फाख्ती व मलारी में सेब की वर्षो से बेहतरीन फसलें होती आ रही हैं। यहां पर मुख्य रूप से डिलिसियस, मक्खन टोस, कद्दू व ग्रीन सेब खासा प्रचलन में है।

यह उत्पादन जोशीमठ ब्लाक के दर्जनभर से अधिक गांवों में पिछले काफी समय से होता आ रहा है। शुरूआत में कुछेक किसानों ने इस ओर ध्यान दिया और जब सेब की क्वालिटी के मुताबिक सेब उत्पादकों को ठीक-ठाक दाम मिले तो इसके बाद कई लोगों ने इसे अपना मुख्य व्यवसाय बना दिया।

इस वर्ष मौसम की मार के कारण सेब उत्पादकों को खासी निराशा हाथ लगी है। क्षेत्र में जहां समय पर वर्षा व बर्फबारी नहीं हुई, वहीं सूखे के कारण सेब की फसल चौपट हो गई। बड़ागांव निवासी सेब उत्पादक गोविन्द सगोई, जवाहर सिंह राणा ने बताया कि पिछले सालों तक वह सेब की फसल से करीब 75 से एक लाख रुपए मुनाफा कमा लेते थे,

 लेकिन इस बार सूखे के कारण दस फीसदी फसल भी नहीं बच पाई। गांव के जवाहर भंडारी, हरीश भंडारी और गोपाल लाल ने बताया कि समय पर वर्षा न होने और कम वर्फबारी के चलते सेब की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
ईसा से 2500 वर्ष पहले पश्चिमोत्तर भू-भाग में कत्यूरी वंश के शासकों का आधिपत्य था। प्रारंभ में इनकी राजधानी जोशीमठ थी जो कि आज चमोली जनपद में है, बाद में कार्तिकेयपुर हो गई। कत्यूरी राजाओं का राज्य सिक्किम से लेकर काबुल तक था। उनके राज्य में दिल्ली व रोहेलखंड भी थे।

 पुरातत्ववेत्ता कनिंघम ने भी अपनी किताब में इस तथ्य का उल्लेख किया है। ताम्रपत्रों और शिलालेखों के अध्ययन से कत्यूरी राजा सूर्यवंशी ठहरते हैं इसीलिए कुछ शोधकर्त्ताओं के विचार से अयोध्या के सूर्यवंशी राजाओं का विस्तार कदाचित यहां तक हो। यह निर्विवाद है कि कत्यूरी शासक प्रभावशाली थे। उन्होंने खस राजाओं पर विजय पाकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया।

आज दो राजस्व मण्डलों (कुमायूं, गढ़वाल) के 13 जिलों सिमट कर रह गया है किंतु यह कत्यूरी तथा चन्द राजवंशों, गोरखाराज और अंग्रेजों के शासनाधीन रहा। ईपू 2500 वर्ष से 770 तक कत्यूरी वंश, सन् 770-1790 तक चन्द वंश, सन् 1790 से 1815 तक गोरखा शासकों और सन् 1815 से भारत को आजादी मिलने तक अंग्रेज शासकों के अधीन रहा। कुमायूं और गढ़वाल मण्डल, शासन-प्रशासन, राजस्व वसूलने की सुविधा की दृष्टि से अंग्रेज शासकों ने बनाये थे।

कत्यूरी शासकों की अवनति का कारण शक व हूण थे। वे यहां के शासक तो रहे लेकिन अधिक समय नहीं। कत्यूरी राजवंश के छिन्न-भिन्न भू-भाग को समेट कर बाद में चन्द्रवंश के चंदेले राजपूत लगभग 1000 वर्ष यहां के शासक रहे। बीच में खस राजा भी 200 वर्ष तक राज्य करते रहे। इस प्रकार उत्तराखंड का यह भू-भाग दो राजवंशों के बाद अनिश्चिय का शिकार बना रहा।

कत्यूरी शासकों के मूल पुरुष शालिवाहन थे जो कुमायूं में पहले आए। उन्होंने ही जोशीमठ में राजधानी बनाई। कहा जाता है कि वह अयोध्या के सूर्यवंशी राजाओं में थे। अस्कोट (पिथौरागढ़ जनपद का एक कस्बा) रियासत के रजबार स्वयं को इसी वंश का बताते हैं। हां, यह शालिवाहन इतिहास प्रसिद्ध शालिवाहन सम्राट नहीं थे। ऐसा अवश्य हो सकता है कि अयोध्या का कोई सूर्यवंशी शासक यहां आया हो और जोशीमठ में रहकर अपने प्रभाव से शासन किया हो।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
ज्योतेश्वर महादेव मंदिर,जोशीमठ



यह मंदिर कल्पवृक्ष के एक ओर स्थित है। यहां के गर्भगृह में पीढ़ियों से एक दीया (दीप) प्रज्वलित है।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
नरसिंह मंदिर,जोशीमठ



राजतरंगिणी के अनुसार 8वीं सदी में कश्मीर के राजा ललितादित्य मुक्तापीड़ द्वारा अपनी दिग्विजय यात्रा के दौरान प्राचीन नरसिंह मंदिर का निर्माण उग्र नरसिंह की पूजा के लिये हुआ जो विष्णु का नरसिंहावतार है।

इस मंदिर की वास्तुकला में वह नागर शैली या कत्यूरी शैली का इस्तेमाल नहीं दिखता है जो गढ़वाल एवं कुमाऊं में आम बात है। यह एक आवासीय परिसर की तरह ही दिखता है जहां पत्थरों के दो-मंजिले भवन हैं, जिनके ऊपर परंपरागत गढ़वाली शैली में एक आंगन के चारों ओर स्लेटों की छतें हैं।

 यहां के पुजारी मदन मोहन डिमरी के अनुसार संभवत: इसी जगह शंकराचार्य के शिष्य रहा करते थे तथा भवन का निर्माण ट्रोटकाचार्य ने किया जो ज्योतिर्मठ के प्रथम शंकराचार्य थे। परिसर का प्रवेश द्वार यद्यपि थोड़ा नीचे है, पर लकड़ी के दरवाजों पर प्रभावी नक्काशी है जिसे चमकीले लाल एवं पीले रंगों से रंगा गया है।

परिसर के भीतर एक भवन में एक कलात्मक स्वरूप प्राचीन नरसिंह रूपी शालीग्राम को रखा गया है। ईटी. एटकिंस वर्ष 1882 के दी हिमालयन गजेटियर में इस मंदिर का उज्ज्वल वर्णन किया है। एक अत्युत्तम कारीगरी के नमूने की तरह विष्णु की प्रस्तर प्रतिमा गढ़ित है। यह लगभग 7 फीट ऊंची है जो चार महिला आकृतियों द्वारा उठाया हुआ है।

 पंख सहित एक पीतल की एक अन्य प्रतिमा भी है जो ब्राह्मणों का जनेऊ धारण किये हुए है, जिसे कुछ लोग बैक्ट्रीयाई ग्रीक कारगरी होना मानते हैं। 2 फीट ऊंची गणेश की प्रतिमा अच्छी तरह गढ़ी एवं चमकीली है। मंदिर में लक्ष्मी, भगवान राम, लक्ष्मण, जानकी, कुबेर, गरूड़ और श्री बद्रीनाथ की मूर्तियां भी हैं।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1


वासुदेव एवं नवदूर्गा मंदिर,जोशीमठ



नरसिंह मंदिर के सामने एक इतना ही प्राचीन एवं पवित्र मंदिर भगवान विष्णु के एक अवतार वासुदेव या भगवान कृष्ण को समर्पित है। मंदिर के पुजारी रघुनंद प्रसाद डिमरी के अनुसार मंदिर की मौखिक परंपरा 2200 वर्षों की है। पुरातात्विक स्रोत के अनुसार मंदिर का निर्माण 7-8वीं सदी के दौरान कत्यूरी राजाओं द्वारा किया गया।

 संभवत: मंदिर आज की बजाय अधिक ऊंचा रहा होगा, जिसे अब वर्तमान ऊंचाई में हाल ही में पुनर्निर्मित किया गया है। परिसर के चारों कोनों में स्थित चार मंदिर इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि मंदिर का ढांचा अधिक ऊंचा रहा होगा।

प्रधान मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति उद्धव की मूर्ति कहलाती है, क्योंकि भगवान कृष्ण के मित्र उद्धव ने इसकी पूजा की थी। चतुर्भुज स्वरूप की यह सुंदर मूर्ति कला स्पष्टत: एक महान धरोहर है जो शंख, चक्र, गदा एवं पद्म धारण किये हुए है, पर उस परंपरागत क्रम में नहीं, जैसा वे होते हैं।

 गदा एवं चक्र का स्थान एक-दूसरे से बदल गया है। कहा जाता है कि ऐसा इसलिये किया गया है कि राजा को यह सूक्ष्म संदेश मिले कि ये चार तत्व के उद्देश्यों का अनुगमन करें तो, अपनी प्रजा उसे भगवान विष्णु की तरह मानेगी।

इसके थोड़ा पीछे बगल में भगवान कृष्ण के भाई बलराम की प्रतिमा है। समान रूप से गढ़ी मूर्ति के एक कंधे पर हल है तथा आधार पर गंधर्व एवं अप्सराएं हैं। गर्भगृह में बाद की प्रतिमाओं में लक्ष्मी-नारायण तथा राधा-कृष्ण शामिल हैं।

मंदिर की सीमा दीवार के साथ परिक्रमा मार्ग पर छोटे-छोटे मंदिर हैं जो गणेश, सूर्य, काली, भगवान शिव, भैरव, नवदुर्गा एवं गौरी-शंकर को समर्पित हैं। नवदुर्गा मंदिर का खास महत्व है। यह भारत के कुछ मंदिरों में से एक है, जहां देवी दुर्गा के नौ रूपों की प्रतिमाएं हैं।

 ये हैं, ब्राह्मणी, कमलेदुं, माधेश्वरी, कुमारी, वैष्णवी, वाराही, चैंद्री, चामुंडा तथा रूद्राणी। प्रतिमाएं मूर्तिगढ़न के सुंदर नमूने हैं तथा इस छोटे मंदिर में पीढ़ियों से प्रज्जवलित एक अखंड ज्योति है।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
जोशीमठ के ऊपर 10,000 फीट ऊँचे ऑली में जो 200 करोड़ रुपए से अधिक का काम दक्षिण एशिया के शीत खेलों के लिये केन्द्र तथा उत्तराखंड सरकार ने किया था, उसका काफी कुछ भाग इस साल की पहली ही वर्षा में बह कर जोशीमठ शहर तथा उसके आसपास के गाँवों में आ गया।

 ये खेल पिछले शीत काल में होने थे, किंतु तब तक तैयारियाँ न होने के कारण इन्हें दिसंबर 2009 तक के लिये आगे बढ़ा दिया गया। काम न पूरा होते देख अब इसे जनवरी 2010 तक फिर बढ़ा दिया गया है। मगर जनवरी 2010 तक भी इसकी सारी तैयारियाँ पूरी हो पायेंगी, संभव नहीं लगता।

ऑली में खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने विदेशों से आने वाले प्रतिभागियों के लिए जो बड़ा होटल बन रहा है, वह भी अभी पूरा नहीं हुआ है।

सबसे बड़ी समस्या आ रही है बर्फ पर तेजी से फिसलने स्की की प्रतियगिता के लिए बने 20 मीटर चौड़े तथा सवा किलोमीटर लम्बे रास्ते डबल स्की स्लोप की। यह ऑली के सबसे ऊपर जंगल से आरंभ होकर नीचे जाने वाली मोटर सड़क तक आता है। जिस ढलान पर वह बना है, उस पर हरी घास उगी रहती थी।

 उसे मशीनों से उखाड़ कर यह प्रतियोगिता मार्ग बनाया गया है। यह घासवाली भूमि, जिसे हम पहाड़ के लोग बुग्याल कहते हैं, अत्यंत संवेदनशील है। इसकी घास को कहीं भी जरा सा भी छीलें-उखाड़ें तो उसके नीचे की मिट्टी झर कर बहने लगती है। मिट्टी का यह घाव तब तक फैल कर बढ़ता रहता है, जब तक उसमें फिर से घास नहीं उग जाती।


Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
पिछले साल इस रास्ते पर स्की स्लोप के खोदने का असर यह हुआ कि भारी वर्षा उस घास-उखाडे़ रास्ते की मिट्टी बहाकर नीचे 15 किलो मीटर की ढलान पर बसे डाँडों गाँव, जोशीमठ शहर तथा नरसिंह मंदिर के घरों में ले आई। बह कर आई मिट्टी घरों में भर गई। इस मिट्टी को निकालने व घरों को साफ करने में बहुत मेहनत तथा धन लगा। बाद में जोशीमठ नगरपालिका ने कुछ नागरिकों को इससे हुई हानि का मुवावजा भी दिया।

यह फिसनले वाला रास्ता मध्य योरोप की एक कंपनी ने बनाया था। उसके इंजीनियर और कर्मचारी अपना काम पूरा करके वापस चले गए। यह ऊँचा पर खुदा लंबा-चौड़ा रास्ता अभी भी बिना घास के वैसे ही नंगा ही है, जैसे पिछली वर्षा में था। इस महीने की पहली वर्षा फिर से वहाँ की बहुत सी मिट्टी बहा कर खेतों, सड़कों तथा घरों में ले आई। अभी यहाँ वर्षा काल आरंभ ही हुआ है और पानी अधिक नहीं पड़ा है।

 जब तेज वर्षा होगी तो उस रास्ते की और मिट्टी बहकर नीचे फिर से घरों में भर जाएगी। आशंका है कि अब वह घरों को ढहा न दे! इस खतरे से लोग बहुत डरे हैं। यह खेल न हुए, विपदा हो गये।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
Looking towards Badrinath From Joshimath


 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22