Author Topic: Kailash Mansarovar - कैलाश मानसरोवर यात्रा:उत्तराखण्ड की प्रसिद्ध धार्मिक यात्रा  (Read 71869 times)

पंकज सिंह महर

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कुमाऊं मण्ड्ल विकास निगम द्वारा कराई जाने वाली यात्रा का मार्ग


पंकज सिंह महर

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कैलाश मानसरोवर यात्रा 2008 में होंगे कई बदलाव

पिथौरागढ़। कैलाश मानसरोवर यात्रा में इस बार कई महत्वपूर्ण बदलाव किये गये है। जून में शुरू होने वाली यात्रा इस वर्ष मई में ही शुरू हो जायेगी साथ ही यात्रा रूट भी बदला गया है। इस वर्ष यात्रा पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से होकर गुजरेगी। चीन क्षेत्र में मिलने वाली घटिया स्वास्थ्य सेवाओं को देखते हुए इस वर्ष चीनी क्षेत्र भारतीय स्वास्थ्य कर्मियों की तैनाती पर विचार किया जा रहा है।

कैलाश मानसरोवर यात्रा की तैयारियों को लेकर मंगलवार को पिथौरागढ़ के जिलाधिकारी डी.सैंथिल पांडियन की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में यात्रा आयोजक संस्था कुमाऊं मण्डल विकास निगम के प्रबंध निदेशक अमित नेगी ने बताया कि इस वर्ष कैलाश मानसरोवर यात्रा 29 मई से शुरू होगी। यात्रा में 16 बैच जायेंगे, जिसमें 40 से लेकर 60 तक यात्री होंगे। इस वर्ष यात्रा पथ में बदलाव किया गया है। अभी तक यात्रा बेरीनाग होते हुए बेस कैम्प धारचूला जाती थी,लेकिन इस वर्ष यात्रियों को जागेश्वर में रात्रि विश्राम कराने के बाद पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से होकर बेस कैम्प धारचूला ले जाया जायेगा। उन्होंने बताया कि यात्रा पथ में पड़ने वाले पैदल पड़ावों की व्यवस्था बेहतर करने के लिए निगम की एक टीम पैदल पड़ावों के लिए भेज दी गयी है।

पैदल पड़ावों पर संचार व्यवस्था की जानकारी देते हुए आईटीबीपी के अधिकारियों ने बताया कि गुंजी से अंतिम सीमा लीपूपास तक संचार की व्यवस्था आईटीबीपी करेगी। गाला, बूंदी, गुंजी में भारत संचार निगम लिमिटेड सैटेलाइट फोन की व्यवस्था करेगा। इस क्षेत्र के सभी थानों, चौकियों और बेस कैम्प में भी संचार की व्यवस्था रहेगी। यात्रा दलों के साथ चलने वाले सुरक्षा कर्मियों के पास वायरलेस सेट रहेंगे।

यात्रा पथ पर खाद्यान्न की कोई समस्या न हो इसके लिए सभी खाद्यान्न गोदामों में पर्याप्त खाद्यान्न रखे जाने के निर्देश जिलाधिकारी ने जिला पूर्ति अधिकारी को दिये। हर यात्रा दल के साथ एक चिकित्सक और एक फार्मेसिस्ट की तैनाती सुनिश्चित करने के लिए मुख्य चिकित्साधिकारी को निर्देशित किया गया। बैठक में चीन में घटिया चिकित्सा सुविधा मिलने की कैलाश यात्रियों की शिकायत को देखते हुए चीनी क्षेत्र तकलाकोट में भारतीय चिकित्सा कर्मियों की तैनाती पर भी विचार किया गया। बैठक में इसका प्रस्ताव भारत सरकार को भेजने का निर्णय लिया गया।

यात्रा कुलियों की मजदूरी तय करने को लेकर हुई चर्चा के बाद जिलाधिकारी ने शीघ्र ही मजदूरी निर्धारण कर लेने के निर्देश धारचूला के उपजिलाधिकारी को दिये। यात्रा के दौरान मार्ग बंद होने की समस्या से निपटने के लिए पर्याप्त संख्या में डोजर तैनात करने के निर्देश सीमा सड़क संगठन के अधिकारियों को दिये। यात्रा तैयारियों को लेकर दस मई को धारचूला के उपजिलाधिकारी और बीस मई को जिलाधिकारी द्वारा पैदल पड़ावों का निरीक्षण करने का निर्णय भी बैठक में लिया गया। बैठक में भारत चीन व्यापार को लेकर भी चर्चा की गयी।

पंकज सिंह महर

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कैलाश-मानसरोवर यात्रा का आयोजन भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा किया जाता है जिसमें उत्तराखण्ड राज्य की सरकार के कुमाऊँ मंडल विकास निगम तथा भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल का महत्वपूर्ण सहयोग होता है। क्योंकि कैलाश-मानसरोवर क्षेत्र का मौसम बहुत विषम है जहाँ सर्दियों में तापमान -450 तक पहुँच जाता है अत: साल के कुछ महीनों में ही यह यात्रा संभव है। यह यात्रा प्राय: मई-जून से लेकर सितंबर तक ही आयोजित की जाती है जिसमें छ:-छ: दिन के अंतराल से यात्रियों के सोलह जत्थे जाते हैं तथा प्रत्येक जत्थे में यात्रियों की अधिकतम संख्या पहले चवालीस होती थी जो वर्ष 2006 से बढ़ाकर साठ कर दी गई है। इस प्रकार प्रत्येक वर्ष इस यात्रा में अब 960 यात्री भाग ले सकते हैं। इस यात्रा में सम्मिलित होने के लिए विदेश मंत्रालय में आवेदन करना पड़ता है। ;जो लोग नेपाल के रास्ते यात्रा करते हैं उन्हें भारत सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है लेकिन पासपोर्ट व वीजा जैसी औपचारिकताएँ अनिवार्य हैं.

पंकज सिंह महर

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 आवेदन का तरीका

भारत सरकार का विदेश मंत्रालय कैलाश-मानसरोवर यात्रा पर जाने के इच्छुक लोगों से आवेदन आमंत्रित करता है। विदेश मंत्रालय प्राय: हर वर्ष जनवरी-फरवरी में देश के प्रमुख समाचार पत्रों में इस आशय का विज्ञापन प्रकाशित करवाता है। विज्ञापन में यात्रा-संबंधी सूचना के अतिरिक्त आवेदन पत्र का प्रारूप भी दिया जाता है जिसे पूरी तरह भरकर निम्न पते पर भेजना होता है:

अवर सचिव ;चीन, कमरा संख्या : 271 ;ए,

साउथ ब्लॉक, विदेश मंत्रालय, नई दिल्ली-110011.

विज्ञापन में दी गई अंतिम तिथि से पूर्व अपना आवेदन-पत्र अपेक्षित दस्तावेजों की प्रतिलिपियों तथा फ़ोटोग्राप्फस के साथ भेज देना जरूरी है। बाद में प्राप्त होने वाले तथा अधूरे आवेदन पत्रों पर विचार नहीं किया जाता। किसी भी प्रकार की अतिरिक्त जानकारी के लिए उपरोक्त पते पर पत्र-व्यवहार किया जा सकता है अथवा व्यक्तिगत रूप से संपर्क किया जा सकता है।

हलिया

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पंकज सिंह महर

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कैलाश-मानसरोवर यात्रा के लिए कई बार बहुत अधिक संख्या में आवेदन-पत्र आ जाते हैं अत: कम्प्यूटर द्वारा ड्रॉ करके यात्रियों का चयन किया जाता है जिसमें महिलाओं को भी उनके आवेदन के अनुपात में यात्रा का अवसर दिया जाता है। यात्रा के लिए चयन हो जाने के पश्चात प्रत्येक बैच के आवेदकों को यात्रा के प्रस्थान से पर्याप्त समय पहले तार अथवा अन्य उचित माध्यम से सूचना भेज दी जाती है। चुनाव की सूचना प्राप्त होने के फौरन बाद आवेदक को अपनी लिखित स्वीकृति तथा कुमाउँ मण्डल विकास निगम के नाम 5000/- रुपये का ड्राफ्ट भेजना पड़ता है। यदि किन्हीं कारणों से आप यात्रा में भाग नहीं ले सकते अथवा मेडिकल चैकअप में यात्रा के लिए फिट नहीं पाए जाते तो ये राशि आपको वापस नहीं की जाती। आपकी स्वीकृति और अपेक्षित राशि प्राप्त होने के बाद विदेश मंत्रालय आपको यात्रा संबंधी निर्देश-पुस्तिका भेज देता है जिसमें यात्रा की तैयारी तथा व्यय संबंधी विस्तृत जानकारी के साथ-साथ यात्रा-मार्ग की भी पूरी जानकारी होती है। कैलाश-मानसरोवर यात्रा का प्रारंभ दिल्ली से होता है अत: सभी संभावित यात्रियों को वास्तविक यात्रा प्रारंभ होने से ठीक चार दिन पहले दिल्ली पहुँचना पड़ता है। दिल्ली से बाहर के यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था प्राय: ''गुजराती समाज सदन'' 2, राजनिवास मार्ग, दिल्ली-110054 में की जाती है। इन चार दिनों में यात्रियों का मेडिकल चैकअप तथा विदेश यात्रा संबंधी अन्य सभी औपचारिकताएँ पूरी की जाती हैं। ठहरने के स्थान से कहीं भी अपेक्षित स्थान पर जाने-आने के लिए कुमाऊँ मण्डल विकास निगम बस उपलब्ध कराता है। यात्रियों को व्यक्तिगत रूप से कोई कार्य नहीं करना पड़ता।

हेम पन्त

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उत्तराखण्ड से होकर जाने वाला मार्ग प्राचीन समय से ही कैलाश मानसरोवर को जाने का सबसे ज्यादा प्रचलित मार्ग रहा है. चीन के साथ हुये युद्धों के बाद यद्यपि इस यात्रा पर कुछ समय के लिये रोक लग गयी थी लेकिन 1981 के बाद इसे फिर शुरू किया गया.

मानसरोवर के इलाके पर चीन का अधिकार विवादास्पद है. हम लोग बचपन में 26 जनवरी और 15 अगस्त को नारे भी लगाते थे -"मानसरोवर की झीलों तक हिन्दुस्तान हमारा है".

पंकज सिंह महर

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कैलाश मानसरोवर यात्रा में बाधक बन सकता है कूलागाड़ पुल

पिथौरागढ़। कैलाश मानसरोवर यात्रा पथ पर पड़ने वाला सबसे महत्वपूर्ण कूलागाड़ पुल खतरे में है। नेपाल में हुए भू-स्खलन के कारण बड़े-बडे़ बोल्डर नदी में एकत्र हो गये है। जिनसे पानी का कटाव पुल की और हो गया है। जिससे पुल को नुकसान हो रहा है। भारत-सरकार पिछले चार माह से इन बोल्डरों को हटाने के लिए नेपाल सरकार से अनुमति मांग रही है,लेकिन अभी तक नेपाल ने इसके लिए अनुमति नहीं दी है।

पिथौरागढ़ जिले की सीमांत तहसील धारचूला से लगभग बारह किलोमीटर दूर स्थित कूलागाड़ नामक स्थान पर मोटर पुल बना हुआ है। यह पुल कैलाश मानसरोवर यात्रा पथ का सबसे महत्वपूर्ण पुल है। क्योंकि इस स्थान पर किसी तरह का व्यवधान पैदा होने की स्थिति में यात्रियों के पास आगे जाने के लिए और कोई विकल्प नहीं है। कूलागाड़ में ही भारतीय नाला भारत-नेपाल के बीच सीमा बनाने वाली काली नदी में मिलता है। कुछ समय पूर्व नेपाल की तरफ हुए भू-स्खलन से काली नदी में बड़े-बड़े बोल्डर एकत्र हो गये। इन बोल्डरों के कारण काली नदी के पानी का बहाव भारतीय क्षेत्र की ओर अधिक हो गया है। जिससे कूलागाड़ पुल के लिए खतरा पैदा हो गया है। इसे देखते हुए पिथौरागढ़ जिला प्रशासन काली नदी में एकत्र हुए बोल्डरों को विस्फोटकों से तोड़ने की अनुमति नेपाल सरकार से मांग रहा है,लेकिन तीन माह से अधिक समय बीत जाने के बाद भी यह अनुमति नहीं मिल पायी है। भारत-नेपाल के बीच होने वाली समन्वय समिति की बैठक में यह मुद्दा कई बार उठ चुका है।

इधर वर्षा काल में काली नदी में पानी बढ़ने के साथ ही पुल के लिए पैदा हुए खतरे के और गहरा जाने की आशंका है। कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान यदि पुल को किसी प्रकार की क्षति पहुंचती है तो यात्रा में व्यवधान आना तय है।

पंकज सिंह महर

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नई दिल्ली। कैलाश मानसरोवर यात्रा इस वर्ष एक जून से शुरू होने जा रही है, जिसके तहत तिब्बत में कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील की परिक्रमा की जाती है।

यह यात्रा 26 दिन में पूरी होगी जिसमें से 13 दिन तिब्बत में बिताए जाएंगे जो पिछले दिनों चीन विरोधी प्रदर्शनों के चलते चर्चाओं में रहा है। यह तीर्थयात्रा काफी दुर्गम मानी जाती है और इसमें कठिन परिस्थितियों में 19,500 फुट तक की यात्रा करनी पड़ती है। हर साल यात्रियों का मार्गदर्शन करने वाली भारत तिब्बत सीमा पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि यात्रा एक जून से शुरू होगी और इसके 16 जत्थे होंगे तथा अंतिम जत्था 24 सितंबर तक दिल्ली लौट आएगा। प्रत्येक जत्थे में 40-45 यात्री होंगे। अधिकारियों ने बताया कि दिल्ली से यात्रा शुरू होने से कुछ ही दिन पूर्व प्रत्येक जत्थे के यात्रियों की सही संख्या को अंतिम रूप दिया जाता है। अंतिम क्षणों में हो सकता है कुछ लोग न आएं।

आईटीबीपी के कमान मुख्यालय में यहां एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बल के जवान सेटेलाइट फोन के जरिए दूरसंचार सेवा उपलब्ध कराकर यात्रियों की मदद करते हैं। इसके अलावा अधिक ऊंचाई पर चिकित्सा चैकअप तथा यात्रियों की सभी प्रकार की सुरक्षा का जिम्मा भी आईटीबीपी जवानों पर रहता है।

यात्रा के तौर तरीके तय करने के लिए विदेश मंत्रालय तथा आईटीबीपी के अधिकारियों ने पिछले दिनों एक महत्वपूर्ण बैठक की थी। अधिकारियों ने बताया कि पूरे कार्यक्रम पर चर्चा की गई जिसमें खच्चरों का इंतजाम, कुलियों, सहायक स्टाफ तथा अन्य सेवाओं पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया गया। मंत्रालय के अनुसार, यात्रा के लिए वीजा हासिल करने के मकसद से यात्रियों को दिल्ली में भी चार दिन बिताने होंगे। इसके लिए व्यापक मेडिकल जांच तथा वित्तीय औपचारिकताओं को भी पूरा करना होगा।

पंकज सिंह महर

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"There are no mountains like the
Himalaya, for in them are Kailas
and Mansarovar. As the dew is
dried up by the morning Sun, so
are the sins of mankind dried up
by the sight of the Himalaya."
           SKAND PURAN 


Mount Kailash is situated in Tibet where it is given the dignified title of  'Kang Rampoche' meaning 'Precious Jewel'. Near Mount Kailash, during the geological shift in the initial statges of the formation of the Himalayan mountain chain four rivers arose from the area, flowing in four different directions : the Indus flowed north, the Karnali south, the Yarlung Tsangpo flowed east and Sutlej travelled west.

To the Hindus, the Himalayas are central to their cosmology. The peaks  are the petals of the Golden Lotus which lord Vishnu created as a first step in the formation of the universe. On one of these peaks - Mount Kailash, sits Shiva in a state of perpetual meditation, generating the spiritaul force that sustains the cosmos.

The ancient text, Rigveda has a mention of the Himalayas, their formation and sacredness. The most sacred peak in the Himalayan range, Mount Kailash, is said to have been formed 30 million years ago during the early stages of the formation of the Himalayan chain.

 

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