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Kailash Mansarovar - कैलाश मानसरोवर यात्रा:उत्तराखण्ड की प्रसिद्ध धार्मिक यात्रा

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Pawan Pathak:
अद्भुत : आपस में जुड़ हैं दो पेड़ं की टहनियां
पांच सौ साल से होती है पूजा, मानसरोवर जाने वाले यात्री भी करते हैं दीदार
धारचूला (पिथौरागढ़)। पेड़ दो लेकिन दोनों की टहनियां आपस में जुड़ हुईं। कुदरत का यह करिश्मा सीमांत तहसील धारचूला के छिंदू गांव में दिखाई देता है। यहां चीड़ के दो पेड़ दो टहनियों से आपस में जुड़ हुए हैं। वनस्पति शास्त्रियों के लिए शोध का विषय इन वृक्षों की स्थानीय लोग पूजा करते हैं। इन्हें लला तिति (आमा- बुबू अर्थात दादी-दादा) के नाम से पुकारते हैं। कैलास मानसरोवर, छोटा कैलास के साथ ही ऊँ पर्वत के दर्शनों को जाने वाले लोग इन पेड़ं को देख आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रहते।
गर्व्यांग गांव से डेढ़ किलोमीटर आगे छिंदू गांव में स्थित इन पेड़ं की खासियत यह भी है कि इनके पत्ते भी नहीं सूखते। स्थानीय लोगों के अनुसार लगभग पांच सौ साल से ये पेड़ जस के तस हैं। किंवदंती है कि पांच सौ साल पहले छिंदू गांव के दो लोग तड़के कैलास मानसरोवर की यात्रा पर निकले।
मान्यता के अनुसार इन लोगों को ब्रह्म मुहूर्त में ही बिनकू (पहाड़ का टाप) पार करना होता था लेकिन ये लोग ऐसा नहीं कर सके। तब अनिष्ट की आशंका पर उन्होंने अपनी सुरक्षा के लिए देवता का आह्वान किया।
ऐसा करते वक्त दोनों एक-दूसरे के हाथ पकड़ हुए थे और उसी स्थिति में चीड़ के वृक्ष में तब्दील हो गए। गर्व्यांग के प्रधान अरुण सिंह बताते हैं तब से इन वृक्षों की आमा-बुबू के रूप में पूजा की जाती है। राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्राध्यापक डा. सीएस नेगी का कहना है कि ऐसे वृक्ष कौतूहल का विषय हैं। चीड़ का पेड़ एवरग्रीन होता है। उसमें पतझड़ नहीं होता। इन पेड़ं की लंबाई और उम्र भी बहुत ज्यादा होती है। उधर मुख्य वन संरक्षण पर्यावरण एआर सिंहा कहते हैं कि इस तरह के उदाहरण सामने आते रहते हैं। यह एक प्राकृतिक क्रिया का हिस्सा है।

Source-http://earchive.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20090725a_006115006&ileft=401&itop=379&zoomRatio=156&AN=20090725a_006115006

Pawan Pathak:
स्कंदपुराण में है कैलास मानसरोवर यात्रा पथ का जिक्र

कभी चंपावत से गुजरती थी यात्रा
चंपावत। कैलास मानसरोवर यात्रा कभी चंपावत से होकर गुजरती थी लेकिन वर्ष 1962 के बाद से इसका रूट बदल गया।
चंद राजाओं की राजधानी रहा चंपावत मानसरोवर यात्रा का अहम पड़ाव था। हालांकि वर्ष 2002 में विदेश मंत्रालय ने यात्रा की वापसी यहीं से तय की लेकिन एक वर्ष बाद ही वापसी का रूट भी हटा दिया गया। इतिहासकार एवं महाविद्यालय के रिटायर्ड प्राचार्य मदन चंद्र भट्ट का कहना है कि कैलास मानसरोवर यात्रा का चंपावत से गहरा संबंध रहा है। यात्री यहां बालेश्वर एवं मानेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन करते थे। वे इसके लिए स्कंद पुराण के मानसखंड के ग्यारहवें अध्याय का हवाला भी देते हैं। जिसमें मानस यात्रा प्रवेश निर्गम में चंपावत का उल्लेख है। मानसरोवर का मुख्य मार्ग चंपावत के बालेश्वर व रामेश्वर के मंदिरों से होकर गुजरना बताया गया है।
चीन युद्ध से पूर्व तक इस यात्रा का रूट चंपावत से होकर गुजरता था। युद्ध के बाद दो दशक तक यात्रा बंद रही। वर्ष 1981 में यात्रा की दोबारा शुरुआत के बाद इसका जिम्मा कुमाऊं मंडल विकास निगम को सौंपा गया। साथ ही यात्रा मार्ग बदल कर अल्मोड़ा होते हुए कर दिया गया। मानसरोवर यात्रा में एक दर्जन से ज्यादा बार ड्यूटी कर चुके निगम के पिथौरागढ़ में साहसिक पर्यटन प्रभारी दिनेश गुरुरानी बताते हैं कि वर्ष 1958 तक इस यात्रा का रूट टनकपुर-चंपावत से गुजरता था। आयोजक रूट बदलने की वजह बरसात में रोड बंद होना बताते हैं। लेकिन अब बेहतर हो चुकी रोड के बाद उनकी यह दलील भी गले नहीं उतरती।
पर्यटन और कारोबार पर भी लग रही है चपत
चंपावत। यात्रा रूट यहां से न रखे जाने का इस क्षेत्र पर व्यापक असर पड़ा है। व्यापारिक गतिविधियों से वंचित इस जिले के कारोबार के साथ ही इससे यहां के महत्वपूर्ण स्थल पर्यटन मानचित्र में आने से से भी वंचित हैं। पर्यटन की अपार संभावनाओं वाले इस इलाके के विकास में अवरोध आने के अंदेशे से नागरिकों ने चिंता जताई और कई बार इस पौराणिक रूट को बनाए रखने की मांग भी की। यात्रा रूट मानसखंड के मुताबिक ना किए जाने को धार्मिक मान्यता का मखौल बताया है। हिंदू जागरण मंच के प्रदेश उपाध्यक्ष राजेंद्र भंडारी राजू का कहना है कि इस धार्मिक यात्रा के रूट को पौराणिक ग्रंथ मानसखंड के अनुरूप कराने के लिए हिंदूवादी संगठन सामूहिक पहल करेंगे।
वर्ष 1962 से पूर्व तक चंपावत से आगे बढ़ते थे यात्री



Source- http://earchive.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20100707a_002115008&ileft=-5&itop=1112&zoomRatio=181&AN=20100707a_002115008

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