[justify]दसवीं शताब्दी के पहले तक इस क्षेत्र में अदृश्य काल हर साल एक नर बलि लेता था। इसी बीच आदि शंकराचार्य यहां से गुजरे तो उन्होंने लोगोें को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए कांडा में मां काली को स्थापित किया। तब काली मां ने लोगों को इससे मुक्ति दिलाई। आज भी काली के प्रति लोगों की अगाध आस्था है।
शक्ति स्वरूपा देवी के प्राचीन मंदिरों में कांडा के काली मंदिर का महत्वपूर्ण स्थान है। नवरात्र के बाद दशमी के दिन यहां मेला लगता है। यह मेला व्यापारिक गतिविधियों की दृष्टि से भी खास स्थान रखता है। यहां काली मंदिर की स्थापना के पीछे काफी रोचक मान्यता जुड़ी है। कहा जाता है कि कांडा क्षेत्र में काल हर साल एक व्यक्ति की जान लेता था। अदृश्य शक्ति किसी एक व्यक्ति को पुकारती और उसकी मौत हो जाती थी। इसके बाद साल भर तक हर व्यक्ति मौत से आशंकित रहता था। दसवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य बागेश्वर कांडा होते हुए कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर गए। उन्होंने यहां रात्रि विश्राम किया। लोगों ने काल की समस्या बताई। शंकराचार्य ने कांडा पड़ाव में एक पेड़ की जड़ पर काली मंदिर की स्थापना की। वहां लोहार से लोहे के नौ कड़ाहे बनवाकर अदृश्य काल को उनके नीचे दबा दिया। ऊपर से विशाल शिला रख दी। तब से काल का खौफ खत्म हो गया। 1948 में यहां भव्य मंदिर बनाया गया।
साभार : अमर उजाला