Author Topic: Kalika Mata Temple at Kanda (Bageshwar) कालिका माता मंदिर कांडा (बागेश्वर)  (Read 14790 times)

विनोद सिंह गढ़िया

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[justify]जैसा कि आप सभी जानते हैं उत्तराखण्ड राज्य की पहचान देवभूमि के रूप में विख्यात है। यहां वर्षभर धार्मिक अनुष्ठान,मेला आदि कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं। इन्हीं आयोजनों में बागेश्वर जनपद के काण्डा में स्थित  कालिका माता मंदिर और वहां लगने वाला  दशहरा मेला भी राज्य में मुख्य स्थान रखता है। काण्डा पड़ाव में स्थित माता कालिका के भव्य मंदिर में प्रतिवर्ष लगने वाला मेला न सिर्फ क्षेत्रवासियों अपितु दूरदराज के लोगों को भी अपनी भव्यता एवं आस्था से आकर्षित करता है।

 इस टॉपिक के माध्यम से हम कांडा क्षेत्र में स्थित कालिका माता मंदिर,वहां लगने वाला दशहरा मेला  और उसके आसपास विभिन्न  अविदित क्षेत्रों की जानकारी देने की कोशिश करेंगे जिसे  धार्मिक और पर्यटक स्थलों के रूप में विकसित किया जा सके।
 
 धन्यवाद
 विनोद सिंह गड़िया

विनोद सिंह गढ़िया

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[justify]काण्डा पड़ाव में स्थित माता कालिका के भव्य मंदिर में प्रतिवर्ष लगने वाला मेला न सिर्फ क्षेत्रवासियों अपितु दूरदराज के लोगों को भी अपनी भव्यता एवं आस्था से आकर्षित करता है। प्रचलित लोककथाओं के अनुसार माता कालिका की स्थापना आदि गुरू शंकराचार्य जी द्वारा करवायी गयी थी।



पौराणिक गाथाओं के अनुसार पहले इस क्षेत्र में कालसिण अथवा काल  का खौफ था। कहा जाता है कि प्रत्येक रात्रि को काल इस क्षेत्र में बसे आसपास के गांवों में किसी एक मनुष्य को पुकारता था जिस व्यक्ति का नाम पुकारता था उसकी मौत हो जाती थी। इससे समस्त क्षेत्रवासियों में भय व्याप्त हो गया था। इसी दौरान शंकराचार्य जी जब कैलाश माता से वापस आ रहे थे उन्होंने इस जगह पर विश्राम किया। इसी दौरान क्षेत्र के लोगों ने उन्हें इस विपत्ति  से निदान दिलाने के लिए विनती की। शंकराचार्य  ने क्षेत्रवासियों के अनुरोध पर स्थानीय लोहार से नौ कढ़ाई  मंगवाकर उस काल रूप का कीलन करके उसे शिला द्वारा दबा दिया तथा इस जगह पर माता कालिका की स्थापना की। आज भी वह शिला मंदिर प्रांगण में मौजूद है। कहते हैं तभी से यहां नरबलि की जगह पन्चबलि का विधान है। पन्चबलि में सर्वप्रथम विजयादशमी के दिन पूजा अर्चना के बाद प्रात: 4 बजे कुस्माण्डा फल की बलि दी जाती है। इसके उपरान्त प्रात: 8 बजे बलि में प्रयुक्त हथियारों की पूजा की जाती है। मंदिर परिसर में एक विशेष चक्र का निर्माण किया जाता है। फिर मंदिर में पूजा व भोग के बाद बकरों की बलि प्रारम्भ होती है। साथ ही छिपकली एवं सुअर का बलिदान होता है। अन्त में विशेष पूजा अनुष्ठान के बाद भैंसे की बलि दी जाती है। इस दौरान मंदिर परिसर के अलावा आसपास छतों में भी विशाल जनसमूह उमड़ा रहता है पूरे नवरात्र के  दौरान सायं भवन आरती के अलावा विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम भी इस मेले ही भव्यता को बढ़ाते हैं।

शंकराचार्य ने माता कालिका की स्थापना एक पेड़ की जड़ पर की थी 1947 में इस जगह पर मंदिर का निर्माण किया गया जिसे 1998 में क्षेत्रीय जनता के सहयोग से पूर्ण निर्मित मंदिर के बाहर एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है।




नोट : अब इस मंदिर में दसवीं सदी से चली आ रही पंचबली देने की प्रथा यहाँ के निवासियों द्वारा उच्च न्यायालय के आदेश का पालन करते हुए बंद कर दी है।

विनोद सिंह गढ़िया

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Maata Ji.. Good information Gariya Ji.. Maa Kali Bless you all.

Devbhoomi,Uttarakhand

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Jai Maa kalinka,Grate information Gadiya ji Keep it Up

विनोद सिंह गढ़िया

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वर्तमान में कालिका मंदिर में लगने वाले मेले का महत्व पौराणिक होने के साथ साथ व्यापारिक दृष्टि  से भी बढ़ रहा है। बाहर से भी व्यापारी इस मेले में शिरकत कर रहे हैं। क्षेत्रवासियों के अनुसार विजयादशमी को लगने वाला यह मेला न सिर्फ धार्मिक अपितु क्षेत्र को एक विशिष्ट पहचान दिलाने में भी सहायक सिद्ध हो रहा है। 


विनोद सिंह गढ़िया

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"Kalika Temple, Kanda Market (Kanda),Bageshwar, Uttarakhand"

विनोद सिंह गढ़िया

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[justify]आदि शंकराचार्य ने कांडा में की थी काली की स्थापना

कालिका मंदिर की स्थापना दसवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने की थी। कांडा क्षेत्र में काल का आतंक था, हर साल एक व्यक्ति की जान जाती थी। कैलाश यात्रा पर यहां पहुंचे जगद्गुरु शंकराचार्य ने लोगों की रक्षा के लिए मां काली को स्थापति किया। तभी से यहां नवरात्रों के समापन पर भव्य मेले का आयोजन जाता है।
कांडा के कालिका मंदिर में नवरात्र पर लगने वाले दशहरा मेले में हजारों लोग शिरकत करते हैं। आस्था की इस परंपरा का इतिहास दस सौ साल पुराना है। लोक मान्यता के अनुसार इस क्षेत्र में काल का आतंक था। वह हर साल एक नरबलि लेता था। वह अदृश्य काल जिसका भी नाम लेता, उसकी तत्काल मृत्यु हो जाती थी। लोग परेशान थे।
दसवीं सदी में जगद्गुरु शंकराचार्य कैलास यात्रा पर जा रहे थे। उन्होंने वर्तमान कांडा पड़ाव नामक स्थान पर विश्राम किया। परेशान लोगों ने काल से जुड़ी आपबीती उन्हें सुनाई। जगद्गुरु ने स्थानीय लोहारों के हाथों लोहे के नौ कड़ाहे बनवाए। लोक मान्यताओं के अनुसार उन्हाेंने अदृश्य काल को सात कड़ाहों के नीचे दबा दिया। इसके ऊपर एक विशाल शिला रख दी। उन्हाेंने यहां एक पेड़ की जड़ पर मां काली की स्थापना की। तब से काल का खौफ खत्म हो गया।
तभी से यहां प्रत्येक नवरात्र पर पूजा पाठ का आयोजन होता है। दशमी पर लगने वाले मेले में हजारों श्रद्धालु शरीक होते हैं। यह मेला व्यापारिक गतिविधि का भी केंद्र है। 1947 में स्थानीय लोगों ने यहां मंदिर का विधिवत निर्माण किया। 1998 में इसे भव्य रूप दिया गया।

साभार : अमर उजाला

विनोद सिंह गढ़िया

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अब कालिका मंदिर में भी पशुबलि बंद

कांडा के सुप्रसिद्ध कालिका मंदिर में सदियों से चली आ रही पंचबलि अब नहीं दी जाएगी। शनिवार को प्रशासन और क्षेत्र के जागरूक लोगों की बैठक में यह फैसला लिया गया।
कालिका मंदिर में दुर्गा अष्टमी पर दसवीं सदी से पंचबलि देने की प्रथा चली आ रही है। उच्च न्यायालय के पशु बलि रोकने के आदेश के बाद शनिवार को एसडीएम कैलाश टोलिया ने क्षेत्र के लोगों के साथ इस मुद्दे पर बैठक की। उन्होंने मंदिर के पुजारी समेत आसपास के क्षेत्रों के सभी लोगों से पंचबलि रोकने की अपील की। सभी ने कोर्ट के फैसले पर सहमति जताते हुए बलि न देने का संकल्प जताते हुए इस बार मेले को भव्य रूप देने निर्णय लिया। एसडीएम ने लोगों से क्षेत्र के अन्य मंदिरों में पशु बलि पर रोक लगाने के लिए आगे आने का आह्वान किया। निर्णय लिया गया कि इसके लिए पर्चे बांटकर लोगों को जागरूक किया जाएगा।

साभार : अमर उजाला

 

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