Author Topic: Kalimath Temple, Rudraprayag Uttarakhand-कालीमठ मंदिर, रुद्रप्रयाग उत्तराखंड  (Read 46848 times)


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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    photo height=480  Kalimath temple, visit on aasthmi day to see the yantra which is worshiped here.(Flicker photo)

 

Devbhoomi,Uttarakhand

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               कालीमठ में होती है महाकाली की पूजा
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दस महाविद्याओं में तीसरी महाविद्या षोढ़षी माता श्री राजराजेश्वरी का विशेष महात्म्य पाने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु नवरात्रों के समय देवलगढ़ पहुंचते हैं। मान्यता है कि राजराजेश्वरी              के श्रीयंत्र के पूजन से ऐश्वर्य, योग एवं मोक्ष को एक साथ प्राप्त किया जा सकता है।

किवदंती है कि जब भगवान विष्णु के पीछे राक्षस पड़े, तो उन्होंने भगवती को स्मरण किया। तब महादुर्गा के रूप में राजराजेश्वरी प्रकट हुई और उन्होंने भगवान विष्णु की रक्षा की।

 वेदों में वर्णित है कि अन्य देवी देवताओं की अर्चना से ऐश्वर्य, योग एवं मोक्ष किसी एक की ही प्राप्ति हो सकती है, लेकिन श्रीयंत्र की अधिष्ठात्री देवी भगवती राजराजेश्वरी की पूजा अर्चना और उपासना से ऐश्वर्य, योग एवं मोक्ष तीनों एक ही साथ प्राप्त हो जाते हैं। 
राजा की कुलदेवी रहीं राजराजेश्वरी

हिंदू सनातनी राजाओं और             उनके अनुयायियों पंवार, परमार, बिष्ट, कुंवर, भंडारी, कंडारी, रौथाण, रौतेला, रावत, फर्स्वाण के अलावा उनियाल, जुयाल, सकलानी, रतूड़ी, खंडूड़ी               आदि जातियों के लोग राजराजेश्वरी को अपनी कुलदेवी के रूप में पूजन करते हैं।कालीमठ में होती है महाकाली की पूजा

रुद्रप्रयाग। शारदीय नवरात्राें को लेकर शक्तिपीठ कालीमठ मंदिर में भी सभी तैयारियां पूरी हो गई हैं।  मठापति अब्बल सिंह राणा, पुजारी सुरेशानंद गौड़ और दिलबर रावत बताते हैं कि मान्यता है कि नवरात्राें में मां काली कुंड से बाहर आती हैं। इस मौके पर कुछ लोग जलती मशाल लेकर मंदिर की सात परिक्रमा कर दैत्याें को भगाने की परंपरा का निवर्हन करते हैं। यहीं किया था रक्तबीज का वध

मान्यता है कि मां काली ने कालीमठ मंदिर के समीप रक्तबीज का वध किया था। उसका रक्त जमीन पर न पडे़, इसलिए  महाकाली ने मुंह फैलाकर उसके रक्त को चाटना शुरू किया। बताया जाता है कि रक्तबीज शिला नदी किनारे आज भी स्थित है। कुंड में समाई थीं महाकाली

कालीमठ मंदिर में एक कुंड है, जो रजत पट से ढका रहता है। अष्टमी को इसे खोलते हैं। नवमी को महाकाली पश्वा में अवरित होकर दर्शन देती है। अब नहीं होती पशुबलि

कालीमठ में पहले नवरात्राें में पशुबलि दी जाती थी। अब पशुबलि विरोधी आंदोलन चलाने वाले गबर सिंह राणा सत्यवर्ती  और क्षेत्र के अन्य लोगाें के प्रयास से यह परंपरा बंद हो चुकी है।


Source Amarujala

Devbhoomi,Uttarakhand

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पांडवों ने किया महाराजा पांडू का श्राद्ध

December 5, 2012


रुद्रप्रयाग। कालीमठ में चल रही पांडव लीला में अर्जुन द्वारा गैंडा वध (गैंडा कौथिग), अर्जुन-नागार्जुन युद्ध और पांडवों द्वारा महाराजा पांडू का श्राद्ध कर्म का मंचन किया गया।
कथाक्रम के अनुसार, पांडू की आत्मा धरती पर भटकती रहती है। वह माता कुंती के सपने में आकर श्राद्ध की बात कहते हैं। कुंती यह बात पुत्रों को बताती है। महर्षि वेद व्यास शर्त रखते हैं कि श्राद्ध-तर्पण के लिए गैंडे के सींग का होना जरूरी है।
माता की आज्ञा पाकर वीर अर्जुन भारत वर्ष में गैंडे की खोज में निकल जाते हैं। भटकते हुए अर्जुन को गैंडा नागलोक में मिल जाता है और वह उसका वध कर देते हैं। यह देखकर नागलोक का राजा नागार्जुन क्रोधित हो जाता है। वह लड़ाई में अर्जुन को पराजित कर उनको मूर्च्छित कर देता है।
लड़ाई से वापस लौट नागार्जुन यह बात माता वासदंता को सुनाता है। वासदंता अर्जुन को देख नागार्जुन को बताती है, वह नागार्जुन के पिता हैं। नागार्जुन इंद्रलोक से अमृत लाकर अर्जुन को पुनर्जीवित कर देता है। अर्जुन सपरिवार सींग के साथ अपने घर लौट आते हैं, जिसके बाद महाराजा पांडू का श्राद्ध किया जाता है।

(source amar ujala)

Pawan Pathak

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माँ कालिका मंदिर कालीमठ रुद्रप्रयाग
स्कंद पुराण के अंतर्गत केदारखंड के बासठवें अध्याय में मंदिर का वर्णन है। साथ यहां शिलालेखों में पूरा वर्णन है। इस मंदिर की स्थापना शंकराचार्य की ओर से की गई थी। रुद्रशूल नामक राजा की ओर से यहां शिलालेख स्थापित किए गए हैं जो बाह्मीलिपी में लिखे गए हैं। यहां मां काली ने रक्तबीज राक्षस का संहार किया था, जिसके देवी मां इसी जगह पर अंर्तध्यान हो गई थीं। आज भी यहां पर रक्तशिला, मातंगशिला व चंद्रशिला स्थित है।
नवरात्र के समय महाअष्टमी को रात्रि में यहां महानिशा की पूजा होती है। रात्रि के चारों पहर लोग उपवास रखकर पूजा करते हैं। इस पूजा का सबसे अधिक महत्व है। इस सिद्धपीठ में पूजा-अर्चना के लिए श्रद्धालु मां को कच्चा नारियल व देवी के श्रृंगार से जुड़ी सामग्री जिसमें चूड़ी, बिंदी, छोटा दर्पण, कंघी, रिबन, चुनरिया अर्पित करते हैं।
sorce
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