Author Topic: Kashi Of Uttarakhand: Uttarkashi - उत्तराखण्ड की काशी: उत्तरकाशी  (Read 36191 times)

पंकज सिंह महर

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शक्ति मंदिर

एक ही परिसर में विश्वनाथ मंदिर के ठीक विपरित शक्ति मंदिर देवी पार्वती के अवतार में, शक्ति की देवी को समर्पित है। इस मंदिर के गौरव स्थल पर, 8 मीटर ऊंचा एक त्रिशूल है जो 1 मीटर व्यास का है (जैसा एटकिंसन ने सुख का मंदिर के त्रिशूल को बताया है) जिसे शक्ति स्तंभ भी कहते हैं। त्रिशुल का प्रत्येक कांटा 2 मीटर लंबा है। इस पर सामान्य सहमति है कि उत्तराखण्ड में यह सबसे पुराना अवशेष है।

त्रिशूल के खंभे गाटे सजी चुनियों से ढंका हुआ है जो भक्तों की मन्नत का प्रतीक है।

स्तंभ के आधार पर (यहां पूजित देवी-देवता) भगवान शिव, देवी पार्वती एवं उनके पुत्र गणेश तथा कार्तिकेय की प्रस्तर प्रतिमा है।     

शक्ति स्तंभ से संबद्ध कई रहस्य तथा किंवदन्तियां हैं। एक मतानुसार जब देवों तथा असुरों में युद्ध छिड़ा तो इस त्रिशूल को स्वर्ग से असूरों की हत्या के लिये भेजा गया। तब से यह पाताल में शेषनाग (वह पौराणिक नाग जिसने अपने मस्तक पर पृथ्वी धारण किया हुआ है) के मस्तक पर संतुलित है। यही कारण है कि छूने पर हिलता-डुलता है क्योंकि यह भूमि पर स्थिर नहीं है। यह भी कहा जाता है कि स्तंभ  धातु से बना है इसकी पहचान अब तक नहीं हो सकी है यद्यपि इसका भूमंडलीय आधार अष्टधातु का हजारों वर्ष पहले से है।

शक्ति स्तंभ से संबद्ध एक अन्य किंवदन्ती यह है भगवान शिव ने विशाल त्रिशूल से वक्रासुर राक्षस का बध किया था और यह जो त्रिशूल आठ प्रमुख धातुओं से बना था।   

एक अन्य मतानुसार त्रिशूल पर खुदे संस्कृत लेखानुसार यह मंदिर राजा गोपेश्वर ने निर्मित कराया और उनके पुत्र महान योद्धा गुह ने त्रिशूल को बनवाया।

ऐसा भी विश्वास है कि उत्तरकाशी का पूर्व नाम बड़ाहाट शक्ति स्तंभ से आया है, जिसमें बारह शक्तियों का समावेश है। बड़ाहाट बारह शब्द का बिगड़ा रूप है।


आरती का समय
ग्रीष्म- 6 बजे सुबह से 8 बजे शाम
जाड़ा- 6 बजे सुबह से 6 बजे शाम

 
 

पंकज सिंह महर

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प्राचीन परशुराम मंदिर

यहां भगवान विष्णु एवं उनके 24वें अवतार परशुराम की पूजा होती है। यहां परशुराम की प्रतिमा इस मंदिर में 8वीं सदी से ही है। कहा जाता है कि परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा से अपनी माता का सिर काट दिया। जमदग्नि मुनि ने इस आज्ञाकारिता से प्रसन्न होकर उन्हें एक वरदान दिया। परशुराम ने वरदान स्वरूप अपनी माता के पुनर्जीवन की मांग की जो मिल गया। फिर भी, वे मातृ हत्या के अपराधी हुए तथा उनके पिता ने उन्हें उत्तरकाशी जाकर प्रायश्चित करने को कहा। इस प्रकार उत्तरकाशी उनकी तपोस्थली है।
     

परशुराम को समर्पित मंदिरों की संख्या भारत में बहुत कम है और यह मंदिर संपूर्ण देश के दो मंदिरों में से एक है।

पंकज सिंह महर

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नेहरु पर्वतारोहण संस्थान

उत्तरकाशी शहर का संस्थान भारत के प्रथम प्रधान मंत्री के नाम पर नामित नेहरु पर्वतारोहण संस्थान, संपूर्ण घाटी से अलग लदारी में स्थित है। सर्वप्रथम 14 नवंबर 1965 को भागीरथी के उत्तरी किनारे पर ग्यानसु में उसकी स्थापना हुई, जिसे वर्ष 1974 में वर्तमान परिसर में लाया गया जो चीड़ के पेड़ों के बीच 1,250 मीटर क्षेत्र में फैला है।

इस संस्थान का मुख्य उद्देश्य युवा-युवतियों तथा स्कूल के बच्चों को अपने विभिन्न पर्वतारोहण तथा साहसिक प्रशिक्षिण पाठ्यक्रमों द्वारा पर्वतों एवं प्रकृति से अवगत कराना है। पर्यावरण को हानि पहुंचाए बिना ही साहसिक खेल - कूदों की भावना पर विशेष जोर दिया जाता है। संस्थान, युवा व्यक्तियों को मूल (बेसिक) पर्वतारोहण प्रशिक्षण देता है तथा वर्षभर तकनिकी पर्वतारोहण एवं अन्य साहसिक पाठ्क्रमों को संचालित करता है।

एवरेस्ट की चोटी पर जाने वाली प्रथम महिला बछेद्रीपाल इसी संस्थान की छात्रा थीं। भारतीय पर्वतारोहण में इस संस्थान का भारी योगदान है तथा सभी प्रमुख भारतीय एवं संयुक्त अंतर्राष्ट्रीय अभियानों में यहां के कर्मचारियों तथा भूतपूर्व छात्रों ने अग्रणी भूमिका निभायी है।

यह संस्थान निम्नलिखित पाठ्यक्रम चलाता हैः मूल (बेसिक) पर्वतारोहण, उन्नत पर्वतारोहण, खोज एवं बचाव, शिक्षा का तरीका, पर्वत मार्गदर्शन, साहसिक कार्य तथा विशिष्ट कोर्स। यहां छात्रवृति एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम का भी प्रावधान है। सुविधाओं में बहुद्देशीय ज्ञान हॉल, एक बाहरी चढ़ाई दीवार, अंतर्राष्ट्रीय चढ़ाई दीवार तथा चीर परिसर शामिल है। हाल ही इसमें हिमालय फ्लोरा पार्क भी जोड़ा गया है।

पंकज सिंह महर

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भैंरो मंदिर-

इस मंदिर में भैरों की प्रतिमा स्वयंभू है अर्थात अपने आप उदित। केदार खंड में कहा गया है कि भगवान शिव से पहले भैरों की पूजा होती है क्योंकि वे भगवान शिव के रक्षक हैं। इसलिये यह मूर्ति विश्वनाथ मंदिर का संरक्षक है ठीक उसी प्रकार जैसे वाराणसी में विश्वनाथ मंदिर के निकट ही भैरव मंदिर है।



पंकज सिंह महर

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स्नान घाट

तीर्थयात्री घाटों पर उगते सूर्य की पूजा से पहले धार्मिक स्नान के लिये भीड़ लगाते हैं। दशाश्वमेघ घाट, नदी का मनोहर दृश्य दिखाता है। अन्य विशिष्ट घाट असी, बर्णासंगम, पंचगंगा तथा मणिकर्णिका हैं।



पंकज सिंह महर

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उत्तरकाशी में अन्य मंदिर  हैं - केदारनाथ मंदिर  हनुमान मंदिर, साक्षी गोपाल मंदिर, मार्कण्डेय ऋषि मंदिर, दण्डीराज मंदिर, कुतेती देवी मंदिर, गणेश मंदिर, गोपेश्वर महादेव मंदिर, गोपाल मंदिर, कोटेश्वर महादेव मंदिर, मां काली मंदिर, सीताराम मंदिर, केदारेश्वर महादेव मंदिर, जयपुर मंदिर, गंगा मंदिर, बाराणेश्वर महादेव मंदिर, ज्ञानवापीश्वर महादेव मंदिर, काली मंदिर, कालेश्वर महादेव मंदिर, गंगोत्री मंदिर, पुण्डीरनाग मंदिर, कांदार देवता, कांदार देवता मांडो, दत्तात्रेय मंदिर, ओंकारेश्वर मंदिर, दुर्गादेवी मंदिर, लाखेश्वर मंदिर।




पंकज सिंह महर

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ऊजाली

उत्तरकाशी से एक किलोमीटर दूर इस कालोनी में 500 साधुओं एवं संन्यासिनों का घर है। यहां कई विद्वान तथा प्रतिष्ठित विचारक भी रहते हैं।


पंकज सिंह महर

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प्राचीन अन्नपूर्णा माता मंदिर

भगवान शिव की पत्नी पार्वती को एक अन्य रूप अन्नदात्री देवी अन्नपूर्णा की यहां पूजा होती है। यहां सदियों से मूर्ति स्थापित है तथा मंदिर का निर्माण वर्तमान 8वीं सदी के आस-पास हुआ।

पंकज सिंह महर

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भैरों चौक

भैरों चौक को उत्तरकाशी का सबसे पुराने स्थलों में से एक माना जाता है। प्राचीन ग्रंथों में इसे चामला की चौड़ी कहा गया जो उत्तरकाशी के प्राचीन नाम बड़ाहाट से संबद्ध है। चामला की चौड़ी का नाम यहां लगे एक चंपा के पेड़ के नाम से है एवं इस चौक का उपयोग ग्रामीण सभा की बैठकों तथा तीर्थयात्रियों द्वारा एकत्र होकर प्रार्थना करने की जगह के लिये होता था जो वे गंगोत्री की कठिन पैदल यात्रा से पहले करते थे।

चौक के अंदर तीन महत्त्वपूर्ण मंदिर हैं और ये हैं प्राचीन अन्नपूर्णा माता मंदिर, प्राचीन परशुराम मंदिर एवं प्राचीन भैरों मंदिर।

पंकज सिंह महर

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कुटेती देवी (उत्तरकाशी से 1.5 किलोमीटर दूर)

भागीरथी के दूसरे किनारे कुटेती देवी कोट ग्राम खाई की प्रमुख देवी हैं। किंवदन्ती के अनुसार कुटेती देवी दुर्गा का अवतार हैं। यह मंदिर कोटा महाराज की पुत्री एवं दामाद द्वारा उसी जगह बनवाया गया, जहां उन्हें स्वर्णीय पहचान के तीन पत्थर मिले; जैसा कि स्वप्न में देवी ने उन्हें बताया था।



 

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