बदरा घिरते ही कांप उठता है मन
उत्तरकाशी। सावन का महीना शुरू होते ही आसमान में काले-काले बदरा उमड़ने लगते हैं। दूसरी जगहों के लिए भले ही आकाश में घिरे ये बादल रिमझिम फुहारें बरसाकर आनंद और उल्लास का जरिया माने जाते हों, लेकिन उत्तरकाशी के बाशिंदों के लिए तो बरसात का मौसम डर का सबब बना रहता है। आपदा की दृष्टि से पांचवें जोन में आने वाले इस जिले ने बारिश की वजह से कई त्रासदियां झेली हैं। यही वजह है कि अब बादलों के घिरते ही यहां के लोग भगवान से फिर किसी आपदा को न आने देने की कामना करने लगते हैं।
गंगा और यमुना घाटी में बसे सीमांत जनपद उत्तरकाशी का आपदाओं से पुराना रिश्ता रहा है। वर्ष 1991 में सबसे बड़ी त्रासदी भूकंप के रूप में आई। इस जलजले में 652 लोगों की जान गई और बड़ी संख्या में लोग घायल हुए। भूकंप से थर्राए कच्चे पहाड़ अब लगातार टूट कर तबाही मचा रहे हैं। वरुणावत, गणेशपुर, डीएम स्लिप जोन, डबरानी, ताम्बाखाणी, समेत अन्य क्षेत्रों में भूकंप के बाद शुरू हुआ भूस्खलन लगातार जारी है। वर्ष 2003 में वरुणावत पर्वत ने बारिश के दौरान पत्थर, मलबा और चट्टानें बरसाकर उत्तरकाशी शहर के दर्जनों घर तबाह कर दिए थे। इसके बाद शहर का करीब दो किमी क्षेत्र बफर जोन में शामिल किया गया। सरकार, भू-वैज्ञानिक व प्रशासन मानते हैं कि यह इलाका मानवीय आवास के लिहाज से पूरी तरह असुरक्षित है, लेकिन विस्थापन की व्यवस्था न होने के कारण अब भी यहां करीब पांच हजार लोग रह रहे हैं। अन्य खतरों में इंद्रावती नदी हर साल बारिश के मौसम में कहर बरपाती है। गत दस वर्ष में नदी ने अलेथ, किशनपुर, मानपुर, धनपुर, साड़ा, थलन, कुरोली, बौंगा, भैलुड़ा, दिलसौड़, लदाड़ी, कंकराड़ी, कोटी, गिंडा गांवों की करीब 32 एकड़ कृषि भूमि को खत्म कर दिया है और अब इसका रुख बाडागड्डी क्षेत्र के दर्जनों गांवों की ओर हो गया है।
इसके अलावा जनपद की छह तहसीलों में करीब 72 गांव ऐसे हैं, जो भूस्खलन व अन्य आपदाओं से धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं। अगस्त 2004 को ब्लाक मोरी में बादल फटने से 23 गांवों की खेती और संपर्क मार्ग ध्वस्त हो गए। आज तक यहां स्थिति सुधारी नहीं जा सकी है। प्रशासन के इंतजाम आपदा में नाकाफी साबित हुए हैं। विश्व बैंक सहायतित जिला आपदा प्रबध्ान सेल और एसबीएमए जैसी संस्थाएं आपदा के क्षेत्र में कार्य कर रही है, लेकिन आपदा में ये भी मूक दर्शक बने रहते हैं। जिपं सदस्य सुरेश चौहान, घनानंद नौटियाल, रामसुदंर नौटियाल, गंगोत्री विधायक गोपाल रावत, यमुनोत्री विधायक केदार सिंह रावत व पुरोला के विधायक राजेश जुवांठा का कहना है कि आपदा प्रभावित गांवों को राहत के लिए विशेष प्रयास किए जाते हैं, लेकिन नुकसान अधिक होने से इसमें दिक्कतें आती हैं।