Author Topic: Kashi Of Uttarakhand: Uttarkashi - उत्तराखण्ड की काशी: उत्तरकाशी  (Read 36189 times)

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0


उत्तरकाशी से १४ कि०मी० दूर यह ढोडीताल है, इसे गणेश भगवान का जन्म स्थान माना जाता है।

दिनेश मन्द्रवाल

  • Jr. Member
  • **
  • Posts: 66
  • Karma: +1/-0
उत्तरकाशी मेरा जन्म स्थान रहा है और मेरी पूरी पढ़ाई भी वहीं हुई है। शक्ति मंदिर में जो त्रिशूल स्थापित है, वह दोनों हाथों से हिलाने पर भी नहीं हिलता लेकिन भक्ति भाव से अनामिका(ring finger) से स्पर्श करते ही इसका शीर्ष भाग हिलने लगता है। कहते हैं कि यहां पर शक्ति आसमान से गिरी थी और गोरखा लोग इसे खोदकर अपने साथ ले जाना चाहते थे, परन्तु महीनों की खुदाई के बाद भी वह इस त्रिशुल का अंत नही पा सके। यह त्रिशुळ २६ फीट ऊंचा है

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
ढोल-नगाड़ों की थाप के साथ गंगा घाटी में मेले शुरू

उत्तरकाशी। गंगा घाटी में बैशाख आते ही मेले शुरू हो जाते हैं। बुधवार को गणेशपुर की पंचायती चौपाल पर नाचती डोलियों के साथ रासौं में नृत्य में झूमते महिला व पुरुष खुशहाली का पैगाम दे गए।

गणेशपुर गांव की पंचायती चौपाल पर गांव का मेला उमड़ा। गांव के देवता की पूजा-अर्चना के बाद देव डोलियां दुखियों को सुख का आशीर्वाद देती रही। कई देर तक देवताओं को मनाने के बाद गांव के लोग भी रासौं नृत्य में झूमने लगे। यह मेला गणेशपुर के बाद नेताला और हीना में आयोजित होता है। गांव के नागदत्त जाट बताते हैं कि करीब 14 साल पहले तक मेले में वीरता का भी प्रदर्शन होता था। मेला आयोजन से पहले चयनित एक स्थान पर तीन गांवों को संघर्ष के बाद ध्वज फहरानी होती थी और जो गांव ध्वज फहराने में कामयाब रहता था उसके गांव में पहले मेला आयोजित होता था। समय बदलने के साथ ही अब मेले के स्वरूप में अंतर आ गया है और गणेशपुर के बाद नेताला व हीना में मेला आयोजित होने लगा है। छात्र संघ अध्यक्ष प्रदीप भट्ट अतिथि मेले में शामिल हुए। गांव के प्रेम सिंह मखलोगा, अमर सिंह पंवार, शक्ति प्रसाद बधानी, धर्म सिंह चौहान, सर्वेश्वर, बलवीर, अमर सिंह आदि मौजूद रहे। ब्लाक भटवाड़ी के ग्राम वार्सू में खुद्यारू पर्यटन महोत्सव का शुभारंभ सिंचाई मंत्री मातवर सिंह कंडारी ने किया। इस मौके पर गंगोत्री विधायक गोपाल रावत, ब्लाक प्रमुख भटवाड़ी विनीता रावत, चारधाम विकास परिषद के उपाध्यक्ष सूरत राम नौटियाल समेत अन्य मौजूद रहे।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
बदरा घिरते ही कांप उठता है मन

उत्तरकाशी। सावन का महीना शुरू होते ही आसमान में काले-काले बदरा उमड़ने लगते हैं। दूसरी जगहों के लिए भले ही आकाश में घिरे ये बादल रिमझिम फुहारें बरसाकर आनंद और उल्लास का जरिया माने जाते हों, लेकिन उत्तरकाशी के बाशिंदों के लिए तो बरसात का मौसम डर का सबब बना रहता है। आपदा की दृष्टि से पांचवें जोन में आने वाले इस जिले ने बारिश की वजह से कई त्रासदियां झेली हैं। यही वजह है कि अब बादलों के घिरते ही यहां के लोग भगवान से फिर किसी आपदा को न आने देने की कामना करने लगते हैं।

गंगा और यमुना घाटी में बसे सीमांत जनपद उत्तरकाशी का आपदाओं से पुराना रिश्ता रहा है। वर्ष 1991 में सबसे बड़ी त्रासदी भूकंप के रूप में आई। इस जलजले में 652 लोगों की जान गई और बड़ी संख्या में लोग घायल हुए। भूकंप से थर्राए कच्चे पहाड़ अब लगातार टूट कर तबाही मचा रहे हैं। वरुणावत, गणेशपुर, डीएम स्लिप जोन, डबरानी, ताम्बाखाणी, समेत अन्य क्षेत्रों में भूकंप के बाद शुरू हुआ भूस्खलन लगातार जारी है। वर्ष 2003 में वरुणावत पर्वत ने बारिश के दौरान पत्थर, मलबा और चट्टानें बरसाकर उत्तरकाशी शहर के दर्जनों घर तबाह कर दिए थे। इसके बाद शहर का करीब दो किमी क्षेत्र बफर जोन में शामिल किया गया। सरकार, भू-वैज्ञानिक व प्रशासन मानते हैं कि यह इलाका मानवीय आवास के लिहाज से पूरी तरह असुरक्षित है, लेकिन विस्थापन की व्यवस्था न होने के कारण अब भी यहां करीब पांच हजार लोग रह रहे हैं। अन्य खतरों में इंद्रावती नदी हर साल बारिश के मौसम में कहर बरपाती है। गत दस वर्ष में नदी ने अलेथ, किशनपुर, मानपुर, धनपुर, साड़ा, थलन, कुरोली, बौंगा, भैलुड़ा, दिलसौड़, लदाड़ी, कंकराड़ी, कोटी, गिंडा गांवों की करीब 32 एकड़ कृषि भूमि को खत्म कर दिया है और अब इसका रुख बाडागड्डी क्षेत्र के दर्जनों गांवों की ओर हो गया है।

इसके अलावा जनपद की छह तहसीलों में करीब 72 गांव ऐसे हैं, जो भूस्खलन व अन्य आपदाओं से धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं। अगस्त 2004 को ब्लाक मोरी में बादल फटने से 23 गांवों की खेती और संपर्क मार्ग ध्वस्त हो गए। आज तक यहां स्थिति सुधारी नहीं जा सकी है। प्रशासन के इंतजाम आपदा में नाकाफी साबित हुए हैं। विश्व बैंक सहायतित जिला आपदा प्रबध्ान सेल और एसबीएमए जैसी संस्थाएं आपदा के क्षेत्र में कार्य कर रही है, लेकिन आपदा में ये भी मूक दर्शक बने रहते हैं। जिपं सदस्य सुरेश चौहान, घनानंद नौटियाल, रामसुदंर नौटियाल, गंगोत्री विधायक गोपाल रावत, यमुनोत्री विधायक केदार सिंह रावत व पुरोला के विधायक राजेश जुवांठा का कहना है कि आपदा प्रभावित गांवों को राहत के लिए विशेष प्रयास किए जाते हैं, लेकिन नुकसान अधिक होने से इसमें दिक्कतें आती हैं।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
यही हाल रहा तो बिखर जाएंगे मंदिर

गंगा के पवित्र तट पर बसी शिवनगरी उत्तरकाशी में कभी चारों पहर भगवान के भजनों के साथ शंखनाद और मंदिरों की घंटियों की टंकार गूंजा करती थी। वक्त के साथ मंदिर ध्वस्त होते गए और आज यहां कुछ ही मंदिर शेष रह गए हैं। इनमें से अधिकांश मंदिर सदियों पुराने हैं,
 लेकिन सरकारी संरक्षण व देखरेख के अभाव में ये भी बदहाली के दौर से गुजर रहे हैं। आलम यह है कि कई मंदिर तो मरम्मत न होने के कारण ध्वस्त होने की कगार तक जा पहुंचे हैं। ऐसे में धर्मप्रेमियों को यह चिंता सताने लगी है कि अगर यही हाल रहा, तो आने वाले दिनों में ये पौराणिक मंदिर भी कहीं इतिहास बनकर न रह जाएं।

तपस्वी और साधुओं की पवित्र उत्तरकाशी नगरी को पुराणों में सौम्यकाशी का नाम दिया गया है। केदारखंड के अनुसार यह शिव की प्रिय नगरी है। यहां मां दुर्गा व उसके अन्य रूपों के कई मंदिर स्थापित है। बाबा विश्वनाथ मंदिर में गणेश की 12वीं-13वीं सदी की प्रतिमाएं व शक्ति माता के विशाल त्रिशूल का शीर्ष नजर आते हैं। कहते हैं कि दक्ष प्रजापति के यज्ञ विध्वंस के बाद क्रोधित भैरव को शिव ने सौम्यकाशी में स्थापित होने का आदेश दिया और यहां भैरव आनंद रूप में निवास करते हैं।
भैरव चौक पर परशुराम की दुलर्भ मूर्ति के दर्शन ही परम सौभाग्य देने वाले हैं। कंडार भैरव, दक्षिणेश्वर काली, नर्मदेश्वर, केदारनाथ, गोपेश्वर समेत अन्य शिवलिंगों के दर्शन भी मात्र उत्तरकाशी में ही हो सकते हैं।
 पौराणिक उल्लेख के मुताबिक यहां कभी आठ सौ से अधिक मंदिर अस्तित्व में थे, लेकिन बाढ़, भूकंप और भूस्खलन जैसी आपदाओं में कई मंदिरों का अस्तित्व ही मिट गया। रैथल सूर्य मंदिर समूह की दुर्लभ मूतियां अब गायब हो चुकी हैं, जबकि गत चार वर्ष पहले एक टूटे हुए मंदिर ये प्रतिमाएं बिखरी हुई थी। इसी तरह भैरव चौक पर दत्तात्रेय मंदिर में कभी विशाल विष्णु मूर्ति और आंगन में चार कुत्तों और एक गाय की प्रतिमा कुछ वर्ष पहले चोरी कर ली गई।
अब मंदिर जीर्णशीर्ण स्थिति में है। पुलिस ने चोरों की तलाश में नाकाम रहने के बाद अब फाइल ही बंद कर दी है। जड़भरत घाट पर कभी जड़भरत का विशाल मंदिर बहने के साथ ही इस मंदिर की मूर्तियां भी गायब हैं। इसी तरह जोशियाड़ा गंगा तट पर मां काली और भैरव की मूर्तियां स्थापित हैं किन्तु यहां मंदिर के ऊपर छत ही न होने से मूर्तियां धीरे-धीरे समाप्त हो रही हैं।
 इस बाबत, गंगोत्री के विधायक गोपाल रावत कहते हैं कि जीर्णशीर्ण मंदिरों के सरंक्षण को लेकर पर्यटन विभाग से मिलकर योजना तैयार की जाएगी और इससे पहले शहर के तमाम मंदिरों के पुजारियों के साथ वार्ता की जाएगी। उन्होंने कहा कि मंदिरों की सुरक्षा आम आदमी की भी जिम्मेदारी है और इसे लेकर नागरिकों को सामूहिक प्रयास करने चाहिए।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
पहली बार शिवनगरी में होगा अतिरुद्र महायज्ञ

शिव की नगरी काशी अप्रैल माह में सदी के सबसे बड़े धार्मिक अनुष्ठानों की तैयारी में जुटी है। उत्तराखंड में यह पहला महायज्ञ होगा, जिसमें 1001 से अधिक ढोलों की घमक और 501 पंडितों के वेद मंत्रों की ध्वनि शिवनगरी को आध्यात्म की ऊंचाइयों पर पहुंचा देंगे।

गंगा तट पर बसी पवित्र शिवनगरी उत्तरकाशी ज्ञान के महाकुंभ की तैयारी में जुटी हुई है। जन कल्याण और शंकर की उपासक धरती में शिव को मनाने के लिए अप्रैल माह में अतिरुद्र महायज्ञ की तैयारी है।

 इस यज्ञ की विशेषता होती है कि यज्ञ में 11 हवन कुंडों की अग्नि 11 दिन तक लगातार तपती है। अग्नि के इन कुंडों में 28 लाख आहुतियों से शिव वंदना होगी। अतिरुद्र के साथ ही सप्त लक्ष्य चंडी, 18 पुराणो का व्याख्यान, रुद्र महायज्ञ का आयोजन होगा। 11 हवन कुंडों के 11 यजमान और 31 व्यास पुराणों का वाचन करेंगे।

दो सौ मीटर लम्बे और करीब डेढ़ सौ मीटर रामलीला मैदान के हर कोने में यज्ञ की वेदियां सजी होंगी। मैदान में प्रवचन के लिए के लिए भी भिन्न स्थान बनाए जाएंगे। उम्र के 75 वर्ष पूरे कर चुके हरि सिंह राणा इस यज्ञ समिति के अध्यक्ष हैं।

वे बताते हैं कि अभी तक इस प्रकार का उत्तरकाशी में कोई यज्ञ नहीं हुआ। उन्होंने बताया कि 1989 व 92 में अष्टादश महापुराण, 1999 में महारुद्र व सप्त चंडी यज्ञ हुआ था, लेकिन अतिरुद्र जैसा आयोजन पहली बार हो रहा है। अतिरुद्र महायज्ञ न विशुद्ध धार्मिक अनुष्ठान है और इस यज्ञ में पूरे जनपद से सैकड़ों देव डोलियां व पूरे जिले की संस्कृति का भी उत्तरकाशी में अनूठा संगम होगा। ज्ञान के इस महाकुंभ को लेकर अब तक चार बैठक हो चुकी हैं।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
द्रैपदी का डंडा, उत्तरकाशी की एक चोटी,उत्तरकाशी



Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
बड़कोट


यमुना नदी के किनारे उत्तरकाशी जिले के रवाँई घाटी में बड़कोट का सुंदर शहर अवस्थित है। अपनी निर्जनता के कारण शेष गढ़वाल से कटे रवाँई के लोग ऐसी संस्कृति में पले हैं जो शेष गढ़वाल की संस्कृति के समान होते हुए भी भिन्न है तथा यही कारण है कि यह क्षेत्र अत्याधिक रूचि पूर्ण है। बड़कोट बंदरपूँछ श्रृंखला के अद्भुत दृश्य को गौरवांवित भी करता है जो प्राकृतिक सौंदर्य की संपदा से परिपूर्ण है। यमुनोत्री धाम के रास्ते पर अवस्थिति के कारण इसका महत्त्व और भी बढ़ जाता है।


Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22