Author Topic: Kedarnath Dham Uttarakhand- कर लो दर्शन केदारनाथ धाम के  (Read 36662 times)

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श्रीकेदारनाथ के मुख्य मंदिर का निर्माण पांडवों ने किया था। यह यहां का प्राचीन मंदिर है। मंदिर के ऊपर बीस द्वार की चट्टी है। सबसे ऊपर सुनहरा कलश है। मंदिर के ठीक सामने श्री केदारनाथ जी की स्वयंभू मूर्ति है। उसी में भैंसे के पिछले धड़ की आकृति है।

 यात्री श्री केदारनाथ जी का स्पर्श करते हैं। श्री केदारनाथ जी का मंदिर आगे से पत्थर का बना हुआ है। यहां पर द्रोपदी सहित पांचों पाण्डवों की मूर्तियां हैं। इसके मध्य में पीतल का एक छोटा सा नन्दी और बाहर दक्षिण की ओर बड़ा नन्दी तथा छोटे बड़े कई घंटे लगे हुए हैं। मंदिर के द्वार के दोनों ओर दो द्वारपाल तथा अनेकों देवी देवताओं की मूर्तियां हैं।

 श्री केदारनाथ जी की श्रृंगार की पंचमुखी मूर्तियां हैं। इन्हें हमेशा वस्त्र तथा आभूषणों से विभूषित रखा जाता है। केदारनाथ का मंदिर काफी भव्य है। मंदिर के बाहरी प्रासाद में देवी पार्वती, पांडव, लक्ष्मी आदि की मूर्तियां विराजमान हैं। मंदिर के नजदीक हंसकुण्ड है जहां पर पितरों की मुक्ति के लिए श्रृद्धालु श्राद्ध व तर्पण आदि पितृ पूजा करते हैं। मंदिर के दरवाजे पर नन्दी जो कि बाबा भोलेनाथ का वाहन है उसकी उपस्थिति इस मंदिर को अनुपम छटा प्रदान करती है।

मंदिर के पीछे अमृत कुण्ड है उससे कुछ ही दूरी पर रेतस कुण्ड स्थित है कहा जाता है कि इस कुण्ड का जल पीने से प्राणी शिव तुल्य हो जाता है। इसके उत्तर में स्फटिक लिंग है जिसके पूर्व में सात पद व तीर्थ में बर्फ के बीच में तप्त जल है। इसी स्थान पर भीमसेन ने मुक्ताओं से श्री शंकर जी की पूजा की थी।

 इससे आगे महापथ है वहां जाने पर मनुष्य जीवन के बार-बार आवागमन से मुक्ति पा लेता है और मोक्ष को प्राप्त होता है। पुरी के दक्षिणी भाग में छोटी सी पहाड़ी पर मुकुण्ड भैरव हैं यहां विशाल हिमालय की आभा देखते ही बनती है। यहीं पास में ही बर्फानी जल की निर्मल झील है यहीं से मन्दाकिनी नदी का उद्गम होता है। श्री केदारनाथ मंदिर के पीछे दो-तीन हाथ लम्बा अमृत कुण्ड है जिसमें दो शिवलिंग स्थित हैं।

 पूरब उत्तर की ओर हंस कुण्ड तथा रेतस कुण्ड हैं। रेतस कुण्ड के बारे मंे कहा जाता है कि यहां पर जंघा टेककर तीन आचमन बांये हाथ से तीन आचमन दाहिने हाथ से लिये जाते हैं। यहीं पर ईशानेश्वर महादेव हैं तथा इसके पश्चिम में एक सुबलक कुण्ड है। श्री केदारनाथ मंदिर के सामने छोटे-छोटे कुण्ड तथा शिवलिंग हैं।



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                                       केदारनाथ धाम को भगवान शिव का पावन धाम भी कहते हैं
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हिमालय का केदारखण्ड क्षेत्र भगवान विष्णु व भगवान शिव के क्षेत्र के रूप में विख्यात है. शिव व विष्णु एक दूसरे के पूजक एवं पूरक हैं.
केदारनाथ भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. यह मंदाकिनी नदी के तट पर समुद्रतल से 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. हिन्दू धर्म में केदारनाथ सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है.

केदारनाथ एक अत्यंत पवित्र दर्शनीय स्थान है, जो चारों ओर से बर्फ की चादरों से ढ़की पहाड़ियों के केन्द्र में स्थित है. वर्तमान में मौजूद मंदिर 8वीं शती का है, जिसे जगद् गुरु शंकराचार्य ने बनवाया था, जो पाण्डवों द्वारा बनाये गए मंदिर के ठीक बगल में स्थित है.

 मंदिर के अंदर की दीवारों में कई ऐसी आकृतियां उकेरी गई हैं, जिनमें कई पौराणिक कथाएं छिपी हुई हैं. मंदिर के मुख्य द्वार के आगे भगवान शिव के वाहन नंदी की विशाल मूर्ति उनकी सुरक्षा का जिम्मा लिए हुए है. मंदिर का शिवलिंग प्राकृतिक है एवं मंदिर के पीछे आदि जगद्गुरु शंकराचार्य की समाधि है.


भगवान शिव का यह मंदिर 1000 साल से भी अधिक पुराना है. इसे बड़े भारी पत्थरों को तराशकर तैयार किया गया है. किस तरह इतने बड़े पत्थरों को तैयार किया गया होगा, यह अपने आप में एक अजूबा है. मंदिर में पूजा करने के लिए "गर्भगृह' और मंडप है, जहां पर श्रद्धालुजन पूजा-अर्चना करते हैं. मंदिर के अंदर भगवान शिव को सदाशिव के रूप में पूजा जाता है.



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                           केदारनाथ धाम की मार्ग दर्शिका
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मनोहर मंदाकिनी घाटी में स्थित, विशालकाय चोटियों में घिरा भव्य केदारनाथ मंदिर एक हिमनदी के बुर्ज पर खड़ा है, एक प्राचीन हिमनदी के अवशेष जो काफी पहले पिघल चुकी है।

 यह भगवान शिव का इलाका है – और यह इलाका उनके साहस कार्यों एवं उपलब्धियों का एक जीता-जागता प्रमाण है। यह माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने करवाया था, जो महाभारत के नायक थे और उन्होंने भ्रातृहत्या हेतु हिमालय की वादियों में रोमांचकारी पीछे के बाद भगवान शिव द्वारा क्षमा किए जाने पर उनके प्रति अपनी श्रद्धा के रूप में करवाया था।

 केदारनाथ की यात्रा – भारत के अलग-अलग भागों में स्थित 12 ज्योतिरलिंगों में सबसे महत्वपूर्ण – उन प्राचीन कथाओं एवं किंवदंतियों को पुनर्जीवित करना और भगवान के साथ एकाकार होना है।





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                                  केदारनाथ द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक हैं
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पर्वतराज हिमालय की केदार चोटी पर विराजमान हैं। केदारनाथ के पूर्वी ओर अलकनंदा तो पश्चिमी ओर मंदाकिनी नदी बहती है। मान्यता है कि नर-नारायण ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने प्रकट होकर यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करना स्वीकार किया। यहां सबसे पहले पांडवों ने मंदिर निर्माण करवाया।

बाद में आदिशंकराचार्य, नेपाल नरेश और ग्वालियर के राजा ने अलग-अलग समय पर इसका जीर्णाद्धार कराया। यहां महादेवजी की स्थापना शिवलिंग के रूप में नहीं बल्कि तिकोनी शिला के रूप में है। मुख्य मंदिर काफी प्राचीन है, इसके शिखर पर स्वर्ण कलश है। मंदिर में केदारनाथ की प्रतिमा को स्पर्श कर सकते हैं। श्रद्धालु पूजा करने के बाद केदारनाथ की पिंडी का आलिंगन करते भी देखे जाते हैं।

 इस शिला पर महिष के धड़ की आकृति बनी है। एक पौराणिक कथानक के अनुसार केदार (प्रथम केदार) शिव के महिष रूप का पिछला हिस्सा है। मदमहेश्वर (द्वितीय केदार) में नाभि, तुंगनाथ (तृतीय केदार) में बाहु, रुद्रनाथ (चतुर्थ केदार) में मुख और कल्पेश्वर (पंचम केदार) में शिव की जटाएं हैं। इन पांचों को ही पंचकेदार कहा जाता है।

केदारनाथ की श्र्ृंगारमूर्ति पंचमुखी है जो हर समय वस्त्र व आभूषणों से अलंकृत रहती है। जाड़े के दिनों में छह माह तक मंदिर बंद रहता है, उस दौरान केदारनाथ के चलविग्रह को यहां से 55 किलोमीटर दूर उषीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में ले जाते हैं, वहीं उनकी पूजा-अर्चना होती है।



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मुख्य मंदिर के गर्भ गृह के आगे जगमोहन है। जगमोहन में चारों ओर पांचों पांडवों सहित द्रोपदी, श्री कृष्ण, उषा-अनिरुद्ध की मूर्तियां हैं। बीचोंबीच पीतल का छोटा-सा नंदी है, जबकि मंदिर के बाहर खुले प्रांगण में बड़ा-सा पत्थर का नंदी है। द्वार पर दोनों ओर द्वारपाल बने हैं। मंदिर की परिक्रमा में अमृत-कुंड, तेजस-कुंड आदि तीर्थ हैं।

 धाम की महिमा है कि वहां पहुंचते ही भूख-प्यास, थकान और मौसमी असर नहीं सताते, यहां ऐसा ही अनुभव होता है। धवल पर्वत पंक्तियों के बीच खड़े हम भगवान की असीम व अनंत विभूति को देख-देखकर ठगे से रह जाते हैं।

प्रकृति के अनुपम सौंदर्य को निहार कर यहां स्वतः ही सत्वभाव उमड़ने लगता है। मन में शुद्ध और सात्विक भाव पैदा होना ही तो पुण्य फल का सबसे बड़ा लक्षण है।

केदारनाथ उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में 3598 मीटर की ऊंचाई पर है। रुद्रप्रयाग से बद्रीनाथ और केदारनाथ के लिए अलग-अलग रास्ते जाते हैं। केदारनाथ जाने के लिए ऋषिकेश से गौरी कुंड तक बस से जा सकते हैं।

यहां से 14 किलोमीटर पैदल चलकर केदारनाथ जाना होता है। आसपास के इलाके में रुद्रप्रयाग के अलावा देव प्रयाग, कर्णप्रयाग, नंद प्रयाग और विष्णु प्रयाग तीर्थ भी हैं, जिन्हें पंच-प्रयाग कहा जाता है।



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                                             केदारनाथ की बड़ी महिमा है।
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उत्तराखंड  में बदरीनाथ और केदार नाथ-ये २ प्रधान तीर्थ हैं, दोनों के दर्शनों का बड़ा माहात्म्य है। केदारनाथ के संबंध में लिखा है कि जो व्यक्ति केदारेश्र्वर के दर्शन किये बिना बदरीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल जाती है :

अकृत्वा दर्शनं बश्य! केदारस्याघनाशिनः। यो गच्छेद् बदरींतस्य यात्रा निष्फलतां ब्रजेत्‌॥

और केदारेश्वरसहित नर-नारायण मूर्ति के दर्शन का फल समस्त पापों के नाशपूर्वक जीवन्मुक्ति की प्राप्ति बतलाया गया है।

तस्यैव रूपं द्दष्ट्वा च सर्वपापैः प्रमुच्यते। जीवन्मुको भवेत्‌ सोऽपि यो गतो बदरीवने॥

दृष्ट्वा रूपं नरस्यैव तथा नारायणस्य च। केदारेश्र्वरनाम्नश्र्च मुक्तिभागी न संशयः॥

इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना का इतिहास संक्षेप में यह है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न हो कर भगवान्‌ शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में वहां सदा वास करने का वर प्रदान किया।



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केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित हैं। शिखर के पूर्व की ओर अलकनंदा के सुरम्य तट पर बदरीनारायण अवस्थित हैं और पश्चिम में मंदाकिनी के किनारे श्री केदारनाथ विराजमान हैं। अलकनंदा और मंदाकिनी-ये दोनों नदियां रुद्रप्रयाग में मिल जाती हैं और देवप्रयाग में इनकी संयुक्त धारा गंगोतरी से निकल कर आयी हुई भागीरथी गंगा का

आलिंगन करती है। इस प्रकार जब गंगा स्नान करते हैं, तब सीधा संबंध श्री बदरी और केदार के चरणों से हो जाता है। बदरीनाथ के यात्राी प्रायः केदारनाथ हो कर जाते हैं और जिस रास्ते से जाते हैं, उसी रास्ते से वापस न लौट कर रामनगर की ओर से लौटते हैं। यात्रा मार्ग में यात्रियों के सुविधार्थ बीच-बीच में चट्टियां बनी हुई हैं। यहां गरमी में भी सर्दी बहुत पड़ती है। कहीं-कहीं तो नदी जल तक जम जाता है।

श्री केदारेश्र्वर ३ दिशा में बर्फ से ढके रहते हैं और शीत काल में तो वहां रहना असंभव सा ही है। कार्तिकी पूर्णिमा के होते-होते पंडे लोग केदार जी की पंचमुखी मूर्ति ले कर नीचे ÷ऊखी मठ' में, जहां, रावल जी रहते हैं, चले आते हैं और फिर ६ मास के बाद मेष संक्राति लगने पर बर्फ को काट कर, रास्ता बना कर, पुनः जा कर मंदिर के पट खोलते हैं।

मंदिर मंदाकिनी के घाट पर पहाड़ी ढंग का बना हुआ है। भीतर घोर अंधकार रहता है और दीपक के सहारे ही शंकर जी के दर्शन होते हैं। दीपक में यात्री लोग घी डालते रहते हैं। शिव लिंग अनगढ़ टीले के समान है।

सम्मुख की ओर यात्री जल-पुष्पादि चढ़ाते हैं और दूसरी ओर भगवान्‌ के शरीर में घी लगाते हैं तथा उनसे बांह भर कर मिलते हैं। यह मूर्ति चार हाथ लंबी और डेढ़ हाथ मोटी है। मंदिर के जगमोहन में द्रौपदी सहित पंच पांडवों की विशाल मूर्तियां हैं। मंदिर के पीछे कई कुंड हैं, जिनमें आचमन तथा तर्पण किया जाता है।

केदारनाथ के निकट ÷भैरव झांप' पर्वत है। पहले यहां कोई-कोई लोग बर्फ में गल कर, अथवा ऊपर से कूद कर शरीरपात करते थे। पर १८२९ से सती एवं भृगुपतन की प्रथाओं की भांति सरकार ने इस प्रथा को भी बंद करा दिया।

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                                         जय बद्रीकेदारनाथ
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KEDARNATH KE DARSHAN ON MERAPAHAD

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यहां स्थापित प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ केदारनाथ मंदिर अति प्राचीन है। कहते हैं कि भारत की चार दिशाओं में चार धाम स्थापित करने के बाद जगद्गुरू शंकराचार्य ने ३२ वर्ष की आयु में यहीं श्री केदारनाथ धाम में समाधि ली थी। उन्हीं ने वर्तमान मंदिर बनवाया था। यहां एक झील है जिसमें बर्फ तैरती रहती है इस झील के बारे में प्रचलित है इसी झील से युधिष्ठिर स्वर्ग गये थे।

 श्री केदारनाथ धाम से छह किलोमीटर की दूरी चौखम्बा पर्वत पर वासुकी ताल है यहां ब्रह्म कमल काफी होते हैं तथा इस ताल का पानी काफी ठंडा होता है। यहां गौरी कुण्ड, सोन प्रयाग, त्रिजुगीनारायण, गुप्तकाशी, उखीमठ, अगस्तयमुनी, पंच केदार आदि दर्शनीय स्थल हैं।

केदारनाथ आने के लिए कोटद्वार जो कि केदारनाथ से २६० किलोमीटर तथा ऋर्षिकेश जो कि केदारनाथ से २२९ किलोमीटर दूर है तक रेल द्वारा आया जा सकता है। सड़क मार्ग द्वारा गौरीकुण्ड तक जाया जा सकता है जो कि केदारनाथ मंदिर से १४ किलोमीटर पहले है।

 यहां से पैदल मार्ग या खच्चर तथा पालकी से भी केदारनाथ जाया जा सकता है। नजदीक हवाई अड्डा जौली ग्रांट २४६ किलोमीटर दूरी पर स्थित है, यहां से केदारनाथ के लिए हवाई सेवा हाल ही में शुरू हुई है।

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                   केदारनाथ महात्म्य
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लिंग पुराण के मतानुसार जो मनुष्य संन्यास ग्रहण करके केदार कुण्ड में निवास करता है वह शिव समान हो जाता है। कर्मपुराण का वक्तव्य है कि महालय तीर्थ में स्नान करने और केदारनाथ का गरुड़ पुराणानुसार केदारनाथ की तीर्थ करने से समस्त पापों का क्षय हो जाता है।

 महाभारत ग्रंथ केदारनाथ की महिमा का उपदेश प्रदान करते हुए वर्णन करता है कि जगत में सात सरस्वती है जो कि सुप्रभा के नाम से पुष्कर में, कांचीनाक्षी के नाम से नैमिषारण में, विशाला के नाम से गया में, मनोरमा के नाम से अशेधया में, ओघवती के नाम से कुरुक्षेत्र में, सुरेश के नाम से गंगाद्वार में तथा बिमलोदकी के नाम से हिमालय पर स्थित है। जो व्यक्ति केदारांचल पर गमन करके ( प्राकृतिक) मृत्यु को प्राप्त होता है वह निश्चय शिवलोक पहुंचता है।

पह्म पुराण, इस महात्म्य में एक और विशेषता संलग्र करते हुए स्पष्ट करता है कि जब कुंभ राशि पर सूर्य तथा गुरू ग्रह स्थित हो तब केदारनाथ का दर्शन तथा स्पर्श मोक्ष प्रदान करता है। ( कुंभ राशि में सूर्य फरवरी मास के अंतर्गत भ्रमण करता है)।

 हमारे सनातन धर्म में एक विशेष महापुराण है जिसे स्कंद पुराण कहा जाता है। इसके अनेक अंश दुर्लभ हो चुके हैं। इसी पुराण में केदार महात्म्य भी स्पष्ट किया गया है।

 

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