राजा भागीरथ की कथा - मुनि अष्टवक्र से जुडी
राजा दिलीप निःसंतान थे। उनकी दो रानियां थी। वंश ही न खत्म हो जाए इस भय से दोनों रानियों ने ऋषि और्व के यहां शरण ले ली। ऋषि के आदेश से दोनों रानियों ने आपस में संयोग किया जिसके परिणामस्वरूप एक रानी गर्भवती हुई।
प्रसव के बाद एक मांसपिण्ड का जन्म हुआ। इस मांसपिण्ड का कोई निश्चित आकार नहीं था। रानी ने ऋषि और्व को सारी बात बताई। ऋषि ने आदेश दिया कि मांसपिण्ड को राजपथ पर रख दिया जाए। ऐसा ही किया गया।
अष्टवक्र मुनि स्नान करके अपने आश्रम लौट रहे थे। राजपथ पर उन्होंने मांसपिण्ड को फड़कते देखा। उन्हें लगा कि यह मांसपिण्ड उन्हें चिढ़ा रहा है। उन्होंने शाप दिया, “यदि तुम्हारा आचारण, स्वाभाव सिद्ध हो, तो तुम सर्वांग सुन्दर होओ और यदि मेरा उपहास कर रहे हो तो मृत्यु को प्राप्त हो।”
ऋषि का वचन सुनते ही मांसपिण्ड सर्वांग सुन्दर युवक में बदल गया। वह युवक चूंकि दोनों रानियों के संयोग से जन्म लिया था इसलिए उसका नाम हुआ भागीरथ।