Author Topic: Kot Brahmari Devi Temple, District Bageshwar- कोट भ्रामरी देवी मंदिर, बागेश्वर  (Read 6370 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

This pious Land of Uttarakhand is also known as Devbhoomi. It means that the land where God & Goddess reside. There is temple at every -2 step in Uttarakhand.

We are posting here information about Kot brahmari temple which is located at the top of a mount enclosed by a fort in Kasauni. This temple is known popularly by  Bhramari Devi or Kote-ke-mai temple. Legendary stories relate this place Adi Guru Shankaracharya. It is believed that Guru had spent his some valuable time in this temple on his way to Garwal region.

 The unique feature of this temple is that the main deity, Goddess Bhramari is facing north and devotees offer prayers from the south direction of the temple. Devotees throng to this temple during a grand fair held annually during August. During this festival known as nanda raj jat, the idol is taken out in a procession adorned by celebrations all through the surrounding regions.

M S Mehta
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कोट की माई का मेला

कोट की माई का मंदिर अल्मोड़ा से ग्वालदम जानेवाले रास्ते पर बैजनाथ से ३ कि.मी. की दूरी पर ऊँची चोटी पर स्थित है । यहाँ पहुँचने के लिए १ से ११/२ कि.मी. की खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है । रणचूला नाम से विख्यात इस स्थान पर कभी कव्यूरी राजाओं ने अपना किला बनवाया था । गढ़वाल यात्रा के समय जगतगुरु शंकराचार्य भी इस स्थान पर कव्यूरी राजाओं के अतिथि बने थे । उन्होंने बैजनाथ मंदिर की शिला की यहाँ प्राणप्रतिष्ठा की और पूजन आरम्भ करवाया । बाद में वे ही कोटा की माई के नाम से पूजित हुई ।
 
source -http://www.ignca.nic.in/

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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एक कथा यह भी है कि एक समय यह समूची कव्यूर घाटी जल प्लावन के कारण पानी में डूबी हुई थी तथा जल के भीतर अरुण नामक दैव्य ने अपनी राजधानी बनाई हुई थी । इस दैव्य के आतंक से परेशान देवताओं को प्राण देने के लिए शक्ति रुपा देवी ने भ्रामरी रुप धारण कर दैव्य का अंत किया था । यह कथा दुर्गासप्तशती में भी मिलती है ।
 
 स्थानीय जनश्रुतियों के अनुसार भी एक समय में समूची कव्यूरी घाटी में जल प्लावन था । इस कारण गरुड़ के पास वर्तमान में अवस्थित अणां गाँव की भूमि भी पानी में डूबी हुई थी । पहाड़ में छीना उस स्थान को कहते हैं जहाँ दो पर्वत के पास चक्रवर्तवेश्वर नामक स्थान को अपनी राजधानी बनाया था । अरुण दैव्य का यह राजधानी जल के अंदर बनी थी । इन्द्र की प्रार्थना पर भगवती ने भ्रामरी रुप धारण कर हरछीना पर्वत को तोड़कर जल के निकास का आदेश दिया और जब पानी समाप्त होने पर अरुण अपनी राजधानी से बाहर आया तो उसकी जीवन लीला समाप्त कर दी । यह देवी तब से कोट की भ्रमरी के नाम से पूजित हुई ।
 
 चंद राजाओं के शासन काल में नंदादेवी, कोट मंदिर के नीचे झालामाली गाँव में स्थापित थीं । तब से मेलाडुंगरी के भन्डारी ठाकुर उनकी पूजा का कार्य सँभालते हैं । चंद राजाओं के शासनकाल में बकरों तथा भैंसे की बलि नीचे ही दी जाती थी । उस समय नंदादेवी का मेला हर तीसरे वर्ष नीचे ही लगता था । भ्रामरी के मंदिर में चेत्र की अष्टमी को प्रति वर्ष मेला लगता था । बाद में नंदा की स्थापना भी कोट में भ्रामरी के साथ की गयी । चंद वंशीय राजा जगतचंद ने ग्राम झालामाली तथा ग्राम डूंगरी मंदिर को गूँठ में चढ़ाया । रोज चंड़ी पाठ के लिए भेंटा ग्राम के लोहूमी ब्राह्मणों को नियुक्त किया । जखेड़ा के पड्यारों ने हर वर्ष मेला बनाने का निर्णय लिया और अब उनकी ओर से भंडारा होता है ।
 
 प्राय: मेला तीन दिन में सम्पन्न होता है । नौटी गाँव से आया हुआ नंदाराजजात का पूजा का सामान यहाँ पहले से ही मंगा लिया जाता है । मेला आरम्भ होने पर सबसे पहले नंदा की जागर लगाने वाले जगरिये न्योते जाते हैं, ये जगरियें भेटी ग्राम से आते हैं । चंद राजाओं ने जागर लगाने की एवज में इन जगरियों को भेटी ग्राम में जमीन दी थी । तब से परम्परा बनी हुई है कि जगरिये मेले में जागर लगाने के लिए न्योते जायेंगे । पंचमी को जगरिये न्योते जाते हैं तथा षष्ठी एवं सप्तमी को जागर लगती है । सप्तमी के दिन केले के स्तम्भ लाने से पहले केले के खामें का पूजन करने के बाद इनसे प्रतिमा का निर्माण किया जाता है । प्रतिमा निर्माण को देवी का डिकरा बनाना कहा जाता है । बताया जाता है कि प्रतिमा का श्रंगार चंद राजाओं के समय में एक लाख रुपये का व्यय होता था । अब इस धरोहर सुरक्षा की जिम्मेदारी द्योनाई के बोरा लोगों की है । वे ही देवी के श्रंगार का सामान उत्सव के मौके पर मंदिर में लाते हैं । जेवर को भी ढ़ोल-नगाड़ों के साथ ही लाया जाता है । अपराह्म ४ बजे तक देवी की प्रतिमा तैयार हो जाती है । पुजारी के ऊपर देवी अवतरित होती है । रात्रि में भैंसे का बलिदान होता है । महिष को मेला ड़ूँगरी के लोग आते हैं । दूसरा बलिदान अष्टमी के दिन अपराह्म डेढ़ बजे होता है । तब तक भारी सँख्या में दूर दराज के गाँवों से आये श्रद्धालु जमा हो जाते है । सायं डोला उठने से पहले देवी का भोग लगाया जाता है । यह भोग छत्तीस प्रकार के व्यंजनों से तैयार किया जाता है । व्यंजन बनाने के लिए रसोईया गाँव से विशेष रुप से आता है । देवी को भोग लगाने की जिम्मेदारी इसी रसोईये की है । सभी कार्य सम्पन्न हो जाने पर ही डोला उठता है । अवतरित देवी को जगह-जगह नचाया जाता है । अन्त में डोला झालामाली गाव होता हुआ देवीधारा नामक जल धाराओं के पास पहुँचता है । जहाँ देवी प्रतिमा का प्रतिष्ठापूर्वक विसर्जन किया जाता है ।http://www.ignca.nic.in

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कोट भ्रामरी मंदिर, कौसानी   कोट भ्रामरी मंदिर को भ्रामरी देवी मंदिर और कोट की माई नाम से भी जाना जाता है। यह कौसानी से 5 किमी दूर एक पहाड़ी पर स्थित है। एक प्रसिद्ध दंत कथा के अनुसार ऐसी मान्यता है कि महान भारतीय गुरु आदि गुरु शंकराचार्य गढ़वाल जाने के क्रम में इस जगह पर रुके थे। हर वर्ष अगस्त में यहां विशाल स्तर पर एक मेले का आयोजन किया जाता है, जिसे नंदा अष्ठमी या नंदा राज जाट नाम से जाना जाता है।


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“ऊँच डाण्डि मा रुणि वालि कोट भाँम्ररि भगवति मय्या”

“ऊँच डाण्डि मा रुणि वालि
 कोट भाँम्ररि भगवति मय्या”
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मि तेरो द्वार
 दुख विपदा मा घैरि घर परिवार
 भगवति मय्या मि तेरो द्वार
 ना चुनरी ना दीया-बाति
 गरीब छू मय्या दुख विपदा
 फुल-पात मा तेरो घर दरबार
 दुख विपदा मा आयो तेरो द्वार
 कर दे मेरो यु बेडा पार
 सुख सँम्पन्न घर परिवार
“ऊँच डाण्डि मा रुणि वालि
 कोट भाँम्ररि भगवति मय्या”
 अपना मेरो मेरो अपना
 छोड चलि यु घर परिवार
 राग-दोष मा उलझि मय्या
 उलझि मेरो घर परिवार
 ऊँच डाण्डि मा रुणि वालि
 भगवति मय्या मि तेरो द्वार
 तेरि महिमा सार लोक मा अपरम पार
 लगै दे मय्या दुख विपदा कु पार
 सबै कु दैछि माँ-ममता कु आँचल
 जो ले उछि तेरो शरण मे मय्या
 बिन माँगि भर दैछि यु अन्न भखाँर
तू शिव भक्तणि गौरि रुपणि
 तेरो घर परिवार
 यु आस लगै शरण मा तेरो
 ऊँच डाण्डि मा रुणि वालि
 कोट भाँम्ररि भगवति मय्या मेरी
 फुल-पात मा सँतुष्टि तेरी
 खाल हाथ मि तेरो द्वार
 तू जग जननी तू दुख हरणि
 अपणु छाया रख दे मय्या
 दुख विपदा मा मेरो घर परिवार
“ऊँच डाण्डि मा रुणि वालि
 कोट भाँम्ररि भगवति मय्या”
 जन समहु अपार यु देखि
 डगोलि मा तेरो कौतिक जे लागि
 उमड पडि यु जन समहु
 दर्शन कु अभिलाषी
 दुख विपदा सुख सँम्पन्न
 सबै तेरो थान भैटोणि
 थान मा देखि तेरो रुप निरालि
 सज्जी-धज्जी तू डोट नथुलि
 दीया-बाथि तेरो नौ मा जलणि
 मन मा यु अभिलाषी लैई
 जन समहु अपार यु देखी
सार लोक मा मय्या मेरी
 सबसे प्यारि
 “ऊँच डाण्डि मा रुणि वालि
 कोट भाँम्ररि भगवति मय्या मेरी”
लेख-सुन्दर कबडोला
 गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
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विनोद सिंह गढ़िया

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