Author Topic: लाखामंडल का चमत्कारी शिवलिंग, लाखामंडल उत्तराखंड -Lakhamandal Uttarakhand  (Read 24538 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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लाखामंडल को देवताओं की राजधानी की राजधानी भी कहा जाता है,लाखामंडल का शिव  मंदिर दुनिया का एक ऐसा मंदिर है जिसमें सवा लाख देवताओं के लिंगों की  स्थापना की गयी है !और मंदिर यानी लाखामंडल सायद बनाया ही तबाह करने के  लिए !

ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र महाभारतकालीन  घटनाओं से भी जुड़ा रहा है। यहां स्थित दर्जनों पौराणिक लघु शिवालय,  ऐतिहासिक और प्राचीन मूर्तियां सैलानियों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करते  हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने लाखामंडल के प्राचीन शिव मंदिर  से दो सौ मीटर तक के क्षेत्र को अधिग्रहण करने की कवायद शुरू कर दी  है।लाखामंडल का संबंध महाभारत काल की उस घटना से बताया जाता है, जिसमें  कौरवों ने पांडवों और उनकी माता कुंती को मारने के लिए लाक्षा गृह का  निर्माण किया था।


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 बताते हैं कि लाखामंडल में वह ऐतिहासिक गुफा आज भी मौजूद  है, जिससे पांडव सकुशल जीवित बाहर निकले थे। लाक्षा गृह से सुरक्षित बाहर  निकलने के बाद पांडवों ने चक्रनगरी में एक माह तक निवास किया था, जिसे आज  चकराता कहते हैं। पांडव भगवान शिव को अपना आराध्य मानते थे। इस जनजाति  क्षेत्र के लाखामंडल, हनोल, थैना और मैंद्रथ में खुदाई में मिले पौराणिक  शिवलिंग और मूर्तियां इस बात को बयां करती हैं कि इस क्षेत्र में पांडवों  का वास रहा है।
      भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण  विभाग ने लाखामंडल और हनोल को ऐतिहासिक धरोहर घोषित कर इन प्राचीन मंदिरों  के संरक्षण की जिम्मेदारी ली हुई है। बताते चलें कि लाखामंडल में संन्यासी  अखाड़ा परमार्थ निकेतन आश्रम हरिद्वार ने विश्व शांति और सनातन धर्म की  रक्षा के लिए पिछले एक वर्ष से अखंड ज्योति जला रखी है। ग्रामीणों का कहना  है कि संन्यासी को स्वप्न आया था कि लाखामंडल में लघु शिवालयों की विशाल  श्रृंखला मौजूद है।

 इस दौरान स्थानीय निवासी गीताराम गौड़ ने 24 नंवबर से  चार दिसंबर 2006 तक यहां शिव महापुराण यज्ञ आयोजित किया। इस 11 दिवसीय  यज्ञ के दौरान एएसआई को मंदिर क्षेत्र के पास क्षतिग्रस्त दीवार की खुदाई  के वक्त पांच शिवालय मिले थे, जिन्हें विभाग ने संग्रहालय में रखा है।  काबिलेगौर है कि लाखामंडल में विभाग को खुदाई के दौरान भगवान विष्णु की एक  मूर्ति और तीन शिवलिंग मिले थे।

        एएसआई  के अधीक्षण पुरातत्वविद् डा. देवकीनंदन डिमरी ने बताया कि पुरातत्व विभाग  की ओर से अब तक की गई खुदाई से मिली प्राचीन मूर्तियों से यह प्रतीत होता  है कि वास्तविक रूप से लाखामंडल ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है।

 यहां पर छोटे-छोटे मंदिरों के समूह हैं। शोध के अनुसार लाखामंडल का शिव  मंदिर जालंधर के राजा ने अपनी पत्नी महारानी ईश्वरा की याद में बनवाया था,  क्योंकि ईश्वरा का मायका इसी क्षेत्र से था। मूर्तियां पांचवी से छठी  शताब्दी की प्रतीत होती हैं, क्योंकि इन्हीं शताब्दियों में मूर्ति कला  शुरू हुई थी। लाक्षा गृह के लिए विभाग अभी शोध कर रहा है।

M S jakhi


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लाखामंडल का चमत्कारी शिवलिंग

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लाखामंडल में बने इस शिवलिंग का जब भक्त जलाभिषेक करते हैं तो उन्हें  दिखता है सृष्टि का स्वरुप. यहां के लोगों का मानना है कि इस शिवलिंग पर  अपनी तस्वीर देखने मात्र से सारे पाप कट जाते हैं.  यहां जो भी भक्त आता  है वह कभी खाली हाथ नहीं लौटता.

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लाखामंडल समुद्रतल से लगभग तीन हजार पांच सौ फुट की ऊंचाई पर लाखामंडलगांव स्थित है जो चकराता से लगभग 40कि.मी. तथा पहाडों की रानी मसूरी से 80किलोमीटर दूर है। लाखामण्डलकी प्राचीनताको स्थानीय लोग कौरव-पांडवों से जोडते हुए यहां कौरवों द्वारा पांडवों को जान से मार डालने के लिए लाक्षागृहनिर्माण की कथा से संबंधित बताते हैं।

लेकिन अब इसके आठवीं शताब्दी में निर्मित होने के प्रमाण मिले है। यहां खुदाई में मिले छागलेशप्रशस्ति के अनुसार 8वींसदी के लगभग यहां सैहपुरके यादव राजवंश की राजकुमारी ईश्वराने कई सालों तक शासन किया था जिसने अपने पति की जालंधर नरेश के पुत्र चंद्रगुप्तके हाथी से गिरकर मौत हो जाने पर उसकी स्मृति में लाक्षेश्वरमंदिर बनवाया।लाक्षेश्वरशब्द ही कालांतर में लाखेश्वरबन गया।




 लाखेश्वरसे लाखा शब्द लिया गया तथा कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार उस समय जो प्रांत अथवा जिले कर की अदायगी करते थे उन्हें मंडल कहा जाता था इसीलिए इस क्षेत्र का नाम लाखामंडलपडा।

पौराणिक कथाओं एवं इतिहासकारों के अनुसार प्राचीनकाल से ही इस क्षेत्र की अन्य तीर्थो के समान महत्ता थी और यहां उत्सवों में लोग भारी संख्या में जुटते थे। विशेषकर लोग यहां पितरोंकी आत्मा की शांति के लिए आते थे। आज भी क्षेत्र के लोग अप्रैल में बिस्सूमेले में हर साल इकट्ठे होते हैं। पुराना लाखेश्वरमंदिर छत्र शैली में बना हुआ है जिसका बाहरी भाग 18फुट आठ इंच तथा भीतरी हिस्सा पांच फुट वर्गाकार है।

 इसके बाहरी भित्ति भाग में रथिकाओंमें गंगा, यमुना, महिषासुर मर्दिनीएवं कुबेर आदि की आकृतियां हैं। हथिकाओंके सुंदर तोरण अलंकरण में कार्तिकेय गणेश तथा कुबेर की मूर्तियां हैं। मंदिर के आमलक को ढकने के लिए चौकोरस्कंद के ऊपर लकडी की त्रिछत्रशिरोवैष्ठिनीहै जो उत्तराखंड के अन्य मंदिरों की कत्यूरीवैष्ठिनीसे मिलती जुलतीहै।

लाखा मंडल से प्राप्त उमा महेश्वर का मूर्ति पैनल, गणेश, कार्तिकेय और शिवगणोंकी मूर्तियां कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। यहां की शिव तांडव मूर्तियां देश के इस उत्तरी भाग को दक्षिण से जोडती हैं। प्रतीत होता है कि मध्यकाल की कला परंपरा पूरे देश में विकसित हो चुकी थी। तांडव की नृत्य मुद्रा में शिव एवं तपस्या में लीन पार्वती, गणेश और कार्तिकेय लाखामंडलकी मूर्तिकला में अभिव्यक्ति पा रहे हैं।

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