लाटू देवता को मां नंदा का भाई माना जाता है और श्रीनंदा देवी राजजात यात्रा के दौरान वाण से लेकर होमकुंड तक राजजात की अगुवाई भी लाटू करता है। 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित 350 परिवारों वाले वाण गांववासी लाटू देवता को अपना ईष्ट मानते हैं। कुल पुरोहित रमेश कुनियाल कहते हैं कि यह मंदिर संभवत राज्य का पहला मंदिर जिसके भीतर श्रद्धालु प्रवेश नहीं करते हैं। किवदंतियों के अनुसार लाटू कनौज का गौड़ ब्राह्मण था, जो परम शिवभक्त था। शिव के दर्शनों के लिए कैलाश जाते हुए वाण गांव में उसने विश्राम किया था। इस दौरान प्यास लगने एक महिला से उसने पानी मांग लेकिन भूलवश जाम पी लिया। कुपित होकर लाटू ने अपनी जीभ काट ली और मूर्छित हो गया। बाद में भगवती (लाटू की धर्म बहन) की कृपा से लाटू को होश आया, जिसके बाद यहां लाटू की पूजा की जाती है। लाटू देवता के मंदिर में बारह महीने श्रद्धालु पहुंचते हैं, जो मंदिर के बाहर से पूजा अर्चना कर ही लौटते हैं। (amar ujala)