Author Topic: Mahabharat & Ramayan - उत्तराखंड में महाभारत एव रामायण से जुड़े स्थान एव तथ्य  (Read 66319 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कर्णप्रयाग : महाभारत

कर्णप्रयाग का नाम कर्ण पर है जो महाभारत का एक केंद्रीय पात्र था। उसका जन्म कुंती के गर्भ से हुआ था और इस प्रकार वह पांडवों का बड़ा भाई था। यह महान योद्धा तथा दुखांत नायक कुरूक्षेत्र के युद्ध में कौरवों के पक्ष से लड़ा। एक किंबदंती के अनुसार आज जहां कर्ण को समर्पित मंदिर है, वह स्थान कभी जल के अंदर था और मात्र कर्णशिला नामक एक पत्थर की नोक जल के बाहर थी। कुरूक्षेत्र युद्ध के बाद भगवान कृष्ण ने कर्ण का दाह संस्कार कर्णशिला पर अपनी हथेली का संतुलन बनाये रखकर किया था। एक दूसरी कहावतानुसार कर्ण यहां अपने पिता सूर्य की आराधना किया करता था। यह भी कहा जाता है कि यहां देवी गंगा तथा भगवान शिव ने कर्ण को साक्षात दर्शन दिया था।

हेम पन्त

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नकुलेश्वर का यह मन्दिर आठगांव शिलिंग इलाके के "डाबरी" गांव में है. कहा जाता है कि अब भी यहां पर पाण्डवों के धनुष-बाण रखे हुये हैं.

पिथौरागढ़ का संबंध

पिथौरागढ़ का संबंध पांडवों से भी है जो अपने 14 वर्ष के वनवास के दौरान इस क्षेत्र में आये थे। पिथौरागढ़ में सबसे छोटे पांडव नकुल को समर्पित एक मंदिर भी है।


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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महाभारत -  श्रीनगर garwal.

महाभारत युग में श्रीनगर राजा सुबाहु के राज्य की राजधानी थी तथा वन पर्व के दौरान गंधमर्दन पर्वत के रास्ते पाण्डवों ने सुबाहु का आतिथ्य ग्रहण किया था।

महाभारत काल में, यह राजा सुबाहु के राज्य की राजधानी थी तथा माना जाता है कि अपने वाण पर्व के दौरान गंधमर्दन पर्वत के रास्ते पांडवों को सुबाहु का आतिथ्य मिला था। वर्तमान नाम श्रीनगर श्री यंत्र से विकसित हुआ हो सकता है जो एक विशाल पत्थर पर अंकित है जिसकी बलि वेदी पर देवों को प्रसन्न करने मानवों की बलि दी जाती होगी। वर्तमान 8वीं सदी के दौरान हिंदू धर्म के पुनरूद्धार के क्रम में आदि शंकराचार्य ने इस प्रक्रिया का विरोध कर इसे रोक दिया तथा और इस पत्थर के चट्टान को अलकनंदा में डाल दिया जो आज भी वहां हैं।

खीमसिंह रावत

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पिथोरागढ़ में हिदम्बा मन्दिर का भी सम्बन्ध महाभारत काल से है /
दूनागिरी पर्वत का सम्बन्ध रामायण काल से है  

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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श्रीनगर से संबद्ध एक और रूचिपूर्ण एवं जटिल रहस्य है जो नारद मुनि एवं उनके मायाजाल में फंसने से संबंधित है। माना जाता है कि भगवान शिव गोपेश्वर में समाधिस्थ थे तो उनकी समाधि में कामदेव द्वारा विघ्न डाला गया और क्रोधित होकर उन्होंने उसे भस्म कर दिया। अपनी पत्नी सती से बिछुड़ने के बाद समाधिस्थ भगवान शिव की समाधि को भंग करने के लिये कामदेव को सभी देवताओं ने मिलकर भेजा था क्योंकि भयंकर राक्षस ताड़कासूर को केवल भगवान शिव का पुत्र ही वध कर सकता था। देवताओं की इच्छा थी कि भगवान शिव फिर से विवाह करें ताकि वे पुत्र का सृजन कर सकें (इस बीच उमा के रूप में सती का पुनर्जन्म हो चुका था)। कामदेव को नष्ट करते हुए भगवान शिव ने उसे शापित किया कि गोपेश्वर में तप करने वाले को उसका हाव-भाव प्रभावित नहीं कर सकेगा। त्रेता युग में भगवान कृष्ण के पौत्र अनिरूद्ध के रूप में पुनर्जन्म लेकर कामदेव का अपनी पत्नी के साथ पुनर्मिलन हुआ।

इसे बिना जाने ही नारद मुनि ने गोपेश्वर में अपनी तपस्या पूरी की और घमंडी हो गये। उन्होंने भगवान विष्णु के सामने आत्म प्रशंसा की तो भगवान विष्णु ने उन्हें पाठ पढ़ाना चाहा क्योंकि उन्हें उस पृष्ठभूमि का ज्ञान था। आज जहां श्रीनगर अवस्थित है उस जगह भगवान विष्णु ने एक स्वर्ग रूपी नगर का सृजन किया तथा अपनी पत्नी को एक सुंदर स्त्री के रूप में अपना स्वयंवर आयोजित करने को राजी कर लिया। नारद मुनि ने पत्नी पाने का निश्चय कर किया। उन्होंने भगवान विष्णु से एक सुंदर शरीर उधार लिया और स्वयंवर में जा पहुंचे। जब लक्ष्मी ने उनकी ओर नहीं देखा तो वे परेशान हुए और तब उन्हें भान हुआ कि भगवान विष्णु ने उन्हें अपने एक अवतार बानर का चेहरा दे दिया था। वे क्रोधित होकर भगवान विष्णु को शाप दिया कि जैसे वे (नारद) दांपत्य सुख से वंचित हुए है, वैसे ही भगवान विष्णु भी हों (इसलिये भगवान राम ने अपनी पत्नी सीता के बिना ही काफी दिन व्यतीत किया) जब उन्हें गोपेश्वर तथा भगवान शिव के बारे में बताया गया तो वे पश्चाताप में डूब गये और भगवान शिव से कहा कि बानर ही उन्हें अपनी पत्नी से मिलायेंगे। बानर सेना ने ही सीता को फिर पाने एवं रावण से युद्ध करने में भगवान राम की सहायता की थी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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  बड़कोट LINK WITH MAHABHARATA

यह मत यह बताता है कि पांडव स्वर्ग जाते हुए स्वर्गारोहिणी यात्रा के दौरान यहां आये थे जो इस बात से प्रमाणित होता है कि यहां के लोगों की कल्पना में पांडवों, कौरवों एवं महाभारत का बड़ा महत्त्व है। वास्तव में, ऐसा माना जाता है कि पांडवों ने अपने शास्त्रास्त्र उसी जगह गाड़ दिए थे, जहां अब शहर को नया बनाया जा रहा है। गड़े शास्त्रास्त्रों की अनुमानित छोटी जगह को घेरने के बाद ही बस-पड़ाव की योजना बनायी गयी।

यह तथ्य मौजूद है कि रवाँई एवं बड़कोट के लोग अपनी वंश परंपरा पांडवों (महाभारत के नायक पांच भाई, जिन्होंने एक ही स्त्री द्रोपदी से विवाह रचाया था) से जोड़ते हैं उस क्षेत्र के गांवों में मूल रूप से निर्वाहित प्राचीन परंपराओं में से एक है बहुपतित्व की प्रथा जिसमें कई पतियों को रखने का रिवाज है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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  डीडीहाट


  डीडीहाट कैलाश-मानसरोवर यात्रा मार्ग पर है तथा इस क्षेत्र को हमेशा से देवों से आशीर्वाद प्राप्त माना गया है। प्राचीन बहुत से साधु एवं संत इस क्षेत्र से गुजरे होंगे।
यह भी कहा जाता है कि पांडव भी अपने 14 वर्ष के वनवास में यहां आये थे।

डीडीहाट का एक आकर्षक भाग, वास्तव में पंचाचूली हिमालय की पहाड़ी भूमि पर पांच चूल्हा के नाम पर आया है जहां स्वर्गारोहण यात्रा से पहले अंतिम बार पांडवों ने भोजन पकाने के लिये पांच चूल्हा जलाया था।
 

पंकज सिंह महर

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छियालेख (पिथौरागढ़)- यह स्थल अपनी बनावट और प्राकृतिक सुन्दरता के लिए विख्यात है। इसके चारों ओर भारत तता नेपाल की हिमाच्छादित पर्वत - श्रेणियाँ हैं। यह स्थल ऊँची पर्वत - श्रेणी के ऊपर एक समतल पठार है। इस क्षेत्र में एक किम्वदन्ति प्रसिद्ध है कि एक बार राम, लक्ष्मण और सीता इस स्थल पर पहुँचे थे। लोगों का यह भी मानना है कि कल्पवृक्ष यहीं था। युगों युगों से चले आये संस्कारों के कारण इस स्थल की मान्यता सम्पूर्ण क्षेत्र में है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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UTTARAKHAND - RAMAYANA

 Dwarahat is Doonagiri or the Dronanchal mountain. On top of it, stands a temple in honour of goddess Vaishnavi. The myth attached to Doonagiri is that this hill was originally a part of the 'parvat' (peak) picked up and carried by Lord Hanuman when he came to the Himalayas in search of the 'Sanjeevani Booti' to revive Laxman injured in the battle of Ramayana. That is how hill got its name 'Doonagiri', 'giri' meaning 'fell'.

Another legend says that instead, it was a small part of ‘Sanjeevani Booti’ that fell here when Hanuman was carrying the mountain which had the shrub to save Lakshman’s life. It is believed that the place where this shrub fell, the knife of the grass cutter turned into gold. The abundance of many medicinal herbs in this region is also attributed to the above incident.

पंकज सिंह महर

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द्रोणा सागर ताल, काशीपुर

चैती मेला स्थल से काशीपुर की ओर २ किलोमीटर आगे नगर से लगभग जुड़ा हुआ एक महत्वपूर्ण ताल द्रोण सागर है।  पांडवों से इस ताल का सम्बन्ध बताया जाता है कि गुरु द्रोण ने यहीं रहकर अपने शिष्यों को धनुर्विद्या की शिक्षा दी थी।  ताल के किनारे एक पक्के टीले पर गुरु द्रोण की एक प्रतिमा है, ऐतिहासिक व धार्मिक दृष्टिकोण से यह विशिष्ट पर्यटन स्थल है।

 

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