Tourism in Uttarakhand > Religious Places Of Uttarakhand - देव भूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देव मन्दिर एवं धार्मिक कहानियां

Mahabharat & Ramayan - उत्तराखंड में महाभारत एव रामायण से जुड़े स्थान एव तथ्य

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
कर्णप्रयाग : महाभारत

कर्णप्रयाग का नाम कर्ण पर है जो महाभारत का एक केंद्रीय पात्र था। उसका जन्म कुंती के गर्भ से हुआ था और इस प्रकार वह पांडवों का बड़ा भाई था। यह महान योद्धा तथा दुखांत नायक कुरूक्षेत्र के युद्ध में कौरवों के पक्ष से लड़ा। एक किंबदंती के अनुसार आज जहां कर्ण को समर्पित मंदिर है, वह स्थान कभी जल के अंदर था और मात्र कर्णशिला नामक एक पत्थर की नोक जल के बाहर थी। कुरूक्षेत्र युद्ध के बाद भगवान कृष्ण ने कर्ण का दाह संस्कार कर्णशिला पर अपनी हथेली का संतुलन बनाये रखकर किया था। एक दूसरी कहावतानुसार कर्ण यहां अपने पिता सूर्य की आराधना किया करता था। यह भी कहा जाता है कि यहां देवी गंगा तथा भगवान शिव ने कर्ण को साक्षात दर्शन दिया था।

हेम पन्त:
नकुलेश्वर का यह मन्दिर आठगांव शिलिंग इलाके के "डाबरी" गांव में है. कहा जाता है कि अब भी यहां पर पाण्डवों के धनुष-बाण रखे हुये हैं.


--- Quote from: M S Mehta on July 08, 2008, 03:56:55 PM ---पिथौरागढ़ का संबंध

पिथौरागढ़ का संबंध पांडवों से भी है जो अपने 14 वर्ष के वनवास के दौरान इस क्षेत्र में आये थे। पिथौरागढ़ में सबसे छोटे पांडव नकुल को समर्पित एक मंदिर भी है।

--- End quote ---

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

महाभारत -  श्रीनगर garwal.

महाभारत युग में श्रीनगर राजा सुबाहु के राज्य की राजधानी थी तथा वन पर्व के दौरान गंधमर्दन पर्वत के रास्ते पाण्डवों ने सुबाहु का आतिथ्य ग्रहण किया था।

महाभारत काल में, यह राजा सुबाहु के राज्य की राजधानी थी तथा माना जाता है कि अपने वाण पर्व के दौरान गंधमर्दन पर्वत के रास्ते पांडवों को सुबाहु का आतिथ्य मिला था। वर्तमान नाम श्रीनगर श्री यंत्र से विकसित हुआ हो सकता है जो एक विशाल पत्थर पर अंकित है जिसकी बलि वेदी पर देवों को प्रसन्न करने मानवों की बलि दी जाती होगी। वर्तमान 8वीं सदी के दौरान हिंदू धर्म के पुनरूद्धार के क्रम में आदि शंकराचार्य ने इस प्रक्रिया का विरोध कर इसे रोक दिया तथा और इस पत्थर के चट्टान को अलकनंदा में डाल दिया जो आज भी वहां हैं।

खीमसिंह रावत:
पिथोरागढ़ में हिदम्बा मन्दिर का भी सम्बन्ध महाभारत काल से है /
दूनागिरी पर्वत का सम्बन्ध रामायण काल से है  

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
श्रीनगर से संबद्ध एक और रूचिपूर्ण एवं जटिल रहस्य है जो नारद मुनि एवं उनके मायाजाल में फंसने से संबंधित है। माना जाता है कि भगवान शिव गोपेश्वर में समाधिस्थ थे तो उनकी समाधि में कामदेव द्वारा विघ्न डाला गया और क्रोधित होकर उन्होंने उसे भस्म कर दिया। अपनी पत्नी सती से बिछुड़ने के बाद समाधिस्थ भगवान शिव की समाधि को भंग करने के लिये कामदेव को सभी देवताओं ने मिलकर भेजा था क्योंकि भयंकर राक्षस ताड़कासूर को केवल भगवान शिव का पुत्र ही वध कर सकता था। देवताओं की इच्छा थी कि भगवान शिव फिर से विवाह करें ताकि वे पुत्र का सृजन कर सकें (इस बीच उमा के रूप में सती का पुनर्जन्म हो चुका था)। कामदेव को नष्ट करते हुए भगवान शिव ने उसे शापित किया कि गोपेश्वर में तप करने वाले को उसका हाव-भाव प्रभावित नहीं कर सकेगा। त्रेता युग में भगवान कृष्ण के पौत्र अनिरूद्ध के रूप में पुनर्जन्म लेकर कामदेव का अपनी पत्नी के साथ पुनर्मिलन हुआ।

इसे बिना जाने ही नारद मुनि ने गोपेश्वर में अपनी तपस्या पूरी की और घमंडी हो गये। उन्होंने भगवान विष्णु के सामने आत्म प्रशंसा की तो भगवान विष्णु ने उन्हें पाठ पढ़ाना चाहा क्योंकि उन्हें उस पृष्ठभूमि का ज्ञान था। आज जहां श्रीनगर अवस्थित है उस जगह भगवान विष्णु ने एक स्वर्ग रूपी नगर का सृजन किया तथा अपनी पत्नी को एक सुंदर स्त्री के रूप में अपना स्वयंवर आयोजित करने को राजी कर लिया। नारद मुनि ने पत्नी पाने का निश्चय कर किया। उन्होंने भगवान विष्णु से एक सुंदर शरीर उधार लिया और स्वयंवर में जा पहुंचे। जब लक्ष्मी ने उनकी ओर नहीं देखा तो वे परेशान हुए और तब उन्हें भान हुआ कि भगवान विष्णु ने उन्हें अपने एक अवतार बानर का चेहरा दे दिया था। वे क्रोधित होकर भगवान विष्णु को शाप दिया कि जैसे वे (नारद) दांपत्य सुख से वंचित हुए है, वैसे ही भगवान विष्णु भी हों (इसलिये भगवान राम ने अपनी पत्नी सीता के बिना ही काफी दिन व्यतीत किया) जब उन्हें गोपेश्वर तथा भगवान शिव के बारे में बताया गया तो वे पश्चाताप में डूब गये और भगवान शिव से कहा कि बानर ही उन्हें अपनी पत्नी से मिलायेंगे। बानर सेना ने ही सीता को फिर पाने एवं रावण से युद्ध करने में भगवान राम की सहायता की थी।

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