Author Topic: Mahabharat & Ramayan - उत्तराखंड में महाभारत एव रामायण से जुड़े स्थान एव तथ्य  (Read 67441 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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VIRAT NAGARI OF MAHABHARAT TIME IN RAM NAGAR
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 रामनगर कुमाऊं व गढ़वाल के प्रवेश द्वार रामनगर से महज आठ किमी दूरी पर स्थित ग्राम ढिकुली कभी महाभारत काल की विराट नगरी के नाम से जाना जाता था। लेकिन समय के बदलते परिवेश में ऐतिहासिक विराट नगरी ने एक तरह से अपनी पहचान ही खो दी है। पांडव काल के इस खूबसूरत गांव में आज चार दर्जन से अधिक रिसोर्ट बन चुके है। लेकिन यहां पांडव काल का प्राचीन शिव मंदिर आज भी मौजूद है। मगर अफसोस कि रिसोर्ट स्वामियों ने कभी इस गांव के एतिहासिक महत्व को यहां आने वाले पर्यटकों के लिए बताने की जहमत नहीं उठाई। किवंदती है कि वर्तमान ढिकुली वही विराट नगरी है जहां कुरूवंश के राजा राज्य किया करते थे। यह कुरू राजा प्राचीन इंद्रप्रस्थ (आधुनिक दिल्ली)के साम्राज्य की छत्र छाया में राज्य करते थे। यहीं पर पांडवों ने कौरवों से छिपते हुए एक साल का अज्ञातवास का समय बिताया था। वर्तमान ढिकुली के पश्चिम की ओर पहाडि़यों पर पांडवों द्वार बनाया गया प्राचीन शिव मंदिर आज भी विराजमान है। इस शिवमंदिर में शिवलिंग की स्थापना पांडव पुत्र भीम ने की थी। मान्यता है कि मंदिर में स्थित शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही भक्तों की मुराद पूरी हो जाती है। मंदिर के आसपास खुदाई के दौरान क्षेत्रीय ग्रामीणों को कई बार पांडव काल की आकर्षक कलाकृतियां मिली। जिन्हें कुछ लोगोंे द्वारा सहेज कर अपने घरों में रखा गया है। पुरातत्व विभाग की उपेक्षा के कारण पर्यटन के मानचित्र में इस प्राचीन शिव मंदिर का उल्लेख नहीं हो पाने से यह मंदिर आज भी उत्तराखंड की यात्रा में आने वाले श्रद्धालुओं की नजरों में नहीं आ पाया। अन्यथा यह मंदिर लोकप्रियता के नये आयाम स्थापित कर सकता था। हैरत इस बात की भी है यहां स्थापित हो चुके दर्जनों रिसोर्ट पर्यटन के नाम पर कार्बेट पार्क में सैलानियों को भ्रमण तो कराते हैं लेकिन जिस जमीं पर वह अपना व्यवसाय कर रहे है। उसके ऐतिहासिक महत्व को पर्यटकों को बताने की दिशा में पूरी तरह उदासीन है। यदि इस क्षेत्र में बने रिसोर्ट और पर्यटन विभाग ढि़कुली गांव के एतिहासिक महत्व की जानकारी पर्यटकों को दे तो कम से कम एक धरोहर के रूप में पंाडव काल का यह प्राचीन मंदिर भी अपनी ख्याति के नए आयाम स्थापित तो कर ही सकता है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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  माँ नंदा माई भगवती का पवित्र धाम : गाँव पोथिंग                     
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पोथिंग बागेश्वर जनपद के कपकोट
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सुकुंडा ताल  नाम का Yahan एक झील है , जोकि वर्षभर पानी से भरा रहता है! यह ताल (झील) एक पहाड़ की चोटी पर बना हुआ है, कहते हैं कि जब पांडव अपने एक वर्ष के अज्जातवास  पर थे , तब वे इसी पहाड़ी को पार करते हुए गए थे, उन्हें यहाँ पर प्यास लगी,  प्यास बुझाने के लिए शक्तिशाली भीम के अपनी गदा से पहाड़ पर जोर से प्रहार किया और यहाँ पर एक झील का निर्माण कर दिया, जिसे आज हम सुकुंडा ताल के नाम  से जानते हैं! यह ताल एक जीवनदायनी है , क्योंकि यह झील (ताल) एक पहाड़ी के चोटी पर है , जो चारों ओर से जंगलों से घिरा हुआ है यहाँ दूर- दूर तक पानी का नामोनिशान कहीं तक नहीं है और यह झील  जंगल में रहने वाले पशु- पक्सियों  को उनके पीने के लिए जल उपलब्ध करता है ! यह झील इन पशु- पक्सियों  को ही नहीं बल्कि हमारे पहाड़ के लोग जो अपना व्यसाय पशु पालन में करते हैं वे भी इन पहाड़ों में छोटे-छोटे छप्पर बना के रहते है उनको और उनके पशुओं को पीने के लिए पानी उपलब्ध करवाती है! 

Information : provided by Vinod Singh Garia

 

हेम पन्त

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उपेक्षा का दंश झेल रहा है पौराणिक मंदिर ऐड़द्यो    साभार - दैनिक जागरण
 
जैंती (अल्मोड़ा) : बांज, बुरांश व देवदार के घने जंगल के मध्य पांडवों का पड़ाव रहा पौराणिक ऐड़द्यो रोड, पानी, बिजली के अभाव से सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहा है। सात हजार फिट से अधिक ऊंचे इस धाम में शिवजी द्वारा दिया गया पाशुपत अस्त्र आज भी सुरक्षित है।
 
यही कारण है कि समस्त कुमाऊं के सैकड़ों श्रद्धालुओं का यहां वर्षभर तांता लगा रहता है। बावजूद इसके यहां बुनियादी सुविधाओं के अभाव में दर्शनार्थियों को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। मान्यता है कि अपने अंतिम समय में पांडव कुछ काल तक यहां रहे। अपने अस्त्र-शस्त्र सहित धनुष, शंख, घंट, डमरु यहां गड़ गए। बाद में यहां एक मंदिर की स्थापना कर इन्हें पूजा जाने लगा। अर्जुन का स्थानीय नाम ऐड़ज्यू के के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
 
यहां के लोक देवता के पुजारी रमेश चन्द्र भट्ट के अनुसार यहां स्थित काला लिंग एवं बरसीगाजा से मन्नतें मांगने तल्ला सालम, उच्यूर, बिशौद सहित चंपावत जनपद के चालसी पट्टी एवं नैनीताल के भीड़ापानी क्षेत्र से वर्षभर लोग आते रहते हैं। इसके अलावा सावन के महीने एवं नवरात्रियों में यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। लेकिन दूर-दूर तक जलस्रोत न होने से यहां श्रद्धालुओं को भारी दिक्कत होती है। इसी तरह मोटर मार्ग से दूरी भी भक्तजनों की दुश्वारियां बढ़ाती है।
 
बहरहाल इस बात में कोई शक नहीं कि मध्य हिमालयी यह क्षेत्र पांडवों का आश्रय स्थल रहा। द्रोणागिरि, देवीधूरा, भीमा देवी, चित्रेश्वर सहित ऐड़द्यो धाम में पांडवों के स्मृति चिह्न इस बात के गवाह हैं। जरूरत है इनको सहेजकर रखने की। जिसके लिए सरकारों को जनभावना को ध्यान में रखते हुए अतिशीघ्र कदम उठाने की जरूरत है।

Devbhoomi,Uttarakhand

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एक बार सभी देवगण गंगा में स्नान करने के लिए गये तो उन्होंने गंगा में बहता एक कमल का फूल देखा। इन्द्र उसका कारण खोजने गंगा के मूलस्थान की ओर बढ़े।

 गंगोत्री के पास एक सुंदरी रो रही थी। उसका प्रत्येक आंसू गंगाजल में गिरकर स्वर्णकमल बन जाता था। इन्द्र ने उसके दु:ख का कारण जानना चाहा तो वह इन्द्र को लेकर हिमालय पर्वत के शिखर पर पहुंची। वहां एक देव तरूण एक सुंदरी के साथ क्रीड़ारत था। इन्द्र ने उसकी अपमानजनक भर्त्सना की तथा दुराभिमान के साथ बताया कि वह सारा स्थान उसके अधीन है।

 उस देव पुरुष के दृष्टिपात मात्र से इन्द्र चेतनाहीन जड़वत हो गये। देव पुरुष ने इन्द्र को बताया कि वह रुद्र है तथा इन्द्र को एक पर्वत हटाकर गुफ़ा का मुंह खोलने का आदेश दिया।
 ऐसा करने पर इन्द्र ने देखा कि गुफ़ा के अंदर चार अन्य तेजस्वी इन्द्र विद्यमान थे। रुद्र के आदेश पर इन्द्र ने भी वहां प्रवेश किया।
 रुद्र ने कहा-'तुमने दुराभिमान के कारण मेरा अपमान किया है, अत: तुम पांचों पृथ्वी पर मानव-रूप में जन्म लोगे। तुम पांचों का विवाह इस सुंदरी के साथ होगा जो कि लक्ष्मी है। तुम सब सत्कर्मों का संपादन करके पुन: इन्द्रलोक की प्राप्ति कर पाओगे।' अत: पांचों पांडव तथा द्रौपदी का जन्म हुआ। पंचम इन्द्र ही पांडवों में अर्जुन हुए।

Devbhoomi,Uttarakhand

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हिडंबा देवी जसपुर,udham singh nagar
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इस मंदिर के बारें में  मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव गौरा फार्म आकर रुके थे। यहीं पर भीम ने हिडंब राक्षस का वध कर उसकी बहन से गंधर्व विवाह किया था। श्रीकृष्ण के वरदान के कारण कलियुग में हिडंबा की पूजा की जाती है। उन्होंने बताया कि हिडंबा का नाम गौरा भी था। इसी कारण गांव का नाम गौरा पड़ा। यहां पर गाजियाबाद, मुरादाबाद, बिजनौर समेत अनेक स्थानों से भक्त आते हैं।

Devbhoomi,Uttarakhand

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पांडवों का इतिहास आईजीएनसीए में दर्ज



   पौड़ी गढ़वाल,  मध्य व उच्च हिमालय क्षेत्र से पांडवों का गहरा रिश्ता रहा है और इतिहास पांडवों को इस क्षेत्र का पूर्वज मानते है। इंदिरा गाधी राष्ट्रीय कला केन्द्र दिल्ली के जय महोत्सव में पांडवों की स्मृतियों को संजोकर राज्य के कलाकार व छायाकारों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रखा।
राष्ट्रीय कला केंद्र दिल्ली में 10 फरवरी से आयोजित जय महोत्सव में देवभूमि उत्तराखंड से पांडवों नृत्य, गीत के साथ ही पांडवों से जुड़े स्थलों और मंदिरों को फोटो प्रदर्शनी के माध्यम से बताया गया। महोत्सव के लिए राज्य से अरविन्द मुदगल को समन्वयक की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
मुदगल बताते है कि चमोली के मलारी गांव में एक बट वृक्ष है और कहा जाता है कि यहां पांडवों ने यहां अज्ञात वास में अपने हथियार छुपाए थे। पांडवों की अंतिम स्वर्गारोहिणी यात्रा पथ को भी तस्वीरों के माध्यम से प्रदर्शनी तक पहुंचाया गया। हरकीदून घाटी में जहां कर्ण समेत पांडवों के मंदिर हैं वह भी प्रदर्शनी के हिस्सा बने।
पहाड़ के ढोल-दमाऊ की धमक और रणसिंघा की गूंज भी होत्सव में सुनाई दी। पहाड़ के हर गांव में पांडव नृत्य होते हैं डॉ.डीआर पुरोहित व डॉ. सुवर्ण रावत को पांडव लीला के नृत्य व लोक गीतों के प्रस्तुति करण की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
डॉ. पुरोहित ने बताया कि इंदिरा गांधी कला केन्द्र में उत्तराखंड का नाम दर्ज होने के बाद अब अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पहाड़ को मौके मिलेंगे। पांडव पहाड़ के अभिन्न अंग है और इनसे पहाड़ के हर गांव का जुडाव है यह भी स्वीकार किया गया। अरविंद बताते हैं पहाड़ के कई गांवों में पांडवों का श्राद्ध तक किया जाता है और यह परंपरा किसी अन्य राज्य में नहीं है।
   
dainik jagran news

Devbhoomi,Uttarakhand

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पिथौरागढ़ में मौजूद हैं भीम के निशान

पांच पांडवों में से सबसे शक्तिशाली पांडव भीम का अभिमान थी उनकी गदा जिससे वो तोड़ देते थे अच्छे अच्छों का घमंड. उनकी गदा आज भी मौजूद है. पिथौरागढ़ की भीम के भोलेश्वर गुफा में मौजूद इस गुफा में छिपी हुई हैं पांडवों की खासकर भीम की निशानियां औऱ ये गदा उन्हीं निशानियों में से एक है.


http://s998.photobucket.com/albums/af103/merapahad_2010/Uttarakhandi%20videos/?action=view&current=AAJTAKDharma.mp4

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Devprayag: Related to Ramayana.
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रामायण में लंका विजय उपरांत भगवान राम के वापस लौटने पर जब एक धोबी ने माता सीता की पवित्रता पर संदेह किया, तो उन्होंने सीताजी का त्याग करने का मन बनाया और लक्ष्मण जी को सीताजी को वन में छोड़ आने को कहा। तब लक्ष्मण जी सीता जी को उत्तराखण्ड देवभूमि के ऋर्षिकेश से आगे तपोवन में छोड़कर चले गये। जिस स्थान पर लक्ष्मण जी ने सीता को विदा किया था वह स्थान देव प्रयाग के निकट ही ४ किलोमीटर आगे पुराने बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित है। तब से इस गांव का नाम सीता विदा पड़ गया और निकट ही सीताजी ने अपने आवास हेतु कुटिया बनायी थी, जिसे अब सीता कुटी या सीता सैंण भी कहा जाता है। यहां के लोग कालान्तर में इस स्थान को छोड़कर यहां से काफी ऊपर जाकर बस गये और यहां के बावुलकर लोग सीता जी की मूर्ति को अपने गांव मुछियाली ले गये। वहां पर सीता जी का मंदिर बनाकर आज भी पूजा पाठ होता है। बास में सीता जी यहाम से बाल्मीकि ऋर्षि के आश्रम आधुनिक कोट महादेव चली गईं। त्रेता युग में रावण भ्राताओं का वध करने के पश्चात कुछ वर्ष अयोध्या में राज्य करके राम ब्रह्म हत्या के दोष निवारणार्थ सीता जी, लक्ष्मण जी सहित देवप्रयाग में अलकनन्दा भागीरथी के संगम पर तपस्या करने आये थे। इसका उल्लेख केदारखण्ड में आता है।[क] उसके अनुसार जहां गंगा जी का अलकनन्दा से संगम हुआ है और सीता-लक्ष्मण सहित श्री रामचन्द्र जी निवास करते हैं। देवप्रयाग के उस तीर्थ के समान न तो कोई तीर्थ हुआ और न होगा।[ख] इसमें दशरथात्मज रामचन्द्र जी का लक्ष्मण सहित देवप्रयाग आने का उल्लेख भी मिलता है[३] तथा रामचन्द्र जी के देवप्रयाग आने और विश्वेश्वर लिंग की स्थापना करने का उल्लेख है।[४][ग]

देवप्रयाग से आगे श्रीनगर में रामचन्द्र जी द्वारा प्रतिदिन सहस्त्र कमल पुष्पों से कमलेश्वर महादेव जी की पूजा करने का वर्णन आता है। रामायण में सीता जी के दूसरे वनवास के समय में रामचन्द्र जी के आदेशानुसार लक्ष्मण द्वारा सीता जी को ऋषियों के तपोवन में छोड़ आने का वर्णन मिलता है। गढ़वाल में आज भी दो स्थानों का नाम तपोवन है एक जोशीमठ से सात मील उत्तर में नीति मार्ग पर तथा दूसरा ऋषिकेश के निकट तपोवन है। केदारखण्ड में रामचन्द्र जी का सीता और लक्ष्मण जी सहित देवप्रयाग पधारने का वर्णन मिलता है।[५][घ]


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्राचीन आदि बद्रीनारायण शत्रुघ्न मंदिर

प्राचीन मंदिर पौराणिक एवं ऐतिहासिक रुप से मुनि की रेती के लिए एक प्रमुख स्थल है। यह दो मंजिला पार्किंग के नजदीक नव घाट के पास स्थित है। यही वह स्थान है जहां से प्राचीनकाल में कठिन पैदल चार धाम तीर्थ यात्रा शुरु होती थी।

प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान राम एवं उनके भाई लंका में रावण के साथ युद्ध में हुई कई मृत्यु के पश्चाताप के लिए उत्तराखंड आए तो भरत ने ऋषिकेश में, लक्ष्मण ने लक्ष्मण झुला के पास, शत्रुघ्न ने मुनि की रेती में तथा भगवान राम ने देव प्रयाग में तपस्या की। यह माना जाता है कि मंदिर के स्थल पर ही शत्रुघ्न ने तपस्या की।

ऐसा माना जाता है कि उत्तराखंड में स्थित चारों में से एक इस मंदिर की स्थापना नौवीं सदी में आदि शंकराचार्य ने की। इस मंदिर की स्थापत्य उस समय के अन्य मंदिरों से मिलती है। मंदिर का मुख्य मूर्तियाँ आदि बद्री तथा शत्रुघ्न काले पत्थर से नक्काशी युक्त है। उनके बगल में भगवान राम, सीता तथा लक्ष्मण की मूर्ति के साथ गुरु वशिष्ठ की एक छोटी मूर्ति सफेद संगेमरमर से बनी है। चारों धामों की तीर्थयात्रा सुगमता पूर्ण तथा कठिनाई रहित पूर्ण हो, इसलिए आदि बद्री तथा भगवान शत्रुघ्न की मूर्ति एक साथ स्थापित की गई है, ऐसा माना जाता है। इस मंदिर परिसर के बाहर हनुमान की प्रतिमा इन्हें सुरक्षा प्रदान करती है और भगवान हनुमान इस क्षेत्र में लोगों द्वारा पूजा-अर्चना का उत्तर देने के लिए जिम्मेवार हैं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Khati -Village Bageshwar - Where Pandava's stayed.

Khati Village is situated 18 km from Loharkhet in Bageshwar District. It lies at the confluence of Pindari and Sundardunga Rivers. It is believed that the villagers of Khati are the direct descendants of those who had sheltered the Pandavas during their exile. The place provides an enchanting view of snowy peaks of Himalayas. Dwali Village - where Kafni River merges with Pindari River - is only 11 km from here. Khati also serves as the base for a trek to Pindari Glacier.

 

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