Tourism in Uttarakhand > Religious Places Of Uttarakhand - देव भूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देव मन्दिर एवं धार्मिक कहानियां

Mahabharat & Ramayan - उत्तराखंड में महाभारत एव रामायण से जुड़े स्थान एव तथ्य

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Bheem Bridge

Bheem Bridge is a natural bridge situated near Mana in Chamoli District. The bridge is over the Saraswati River and is made of a huge boulder. Legend has it that Bhim, one of the Pandava brothers, put it here.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Karna Temple


Karna Temple is located in Deora Village in Uttarkashi District. The temple is dedicated to Karna, elder brother of Pandavas and one of main characters of the Mahabharat. It is a rectangular wooden temple. A wooden umbrella with brass finial is topped on its pent roof. The temple's wooden beams and columns are decorated with carvings and the doors are decorated with metal plates. The doors depict birds, animals, reptiles and scenes from the Ramayana. Six miniature temples, located in the compound, are dedicated to Karna and the five Pandavas. There is also a Shivling in the compound. Images of Parvati and Nandi are installed in the temple. The nearest airport and railway station are at Dehradun.

विनोद सिंह गढ़िया:
रामपादुका मंदिर




पन्याली के निकट रामपादुका मंदिर इतिहास की अनमोल धरोहर संजोए हुए है। त्रेता युग में रावण का वध करने के बाद भगवान राम ने इसी क्षेत्र में असुर राक्षस का वध करने के पश्चात यज्ञ किया था। यज्ञशाला सहित तमाम अवशेष और श्री राम के चरणों के निशान आज भी मौजूद हैं। चरणों के निशानों के कारण ही इस स्थान को रामपादुका कहा जाता है।
त्रेता युग में भगवान राम, रावण का वध करने के बाद चारधाम यात्रा के दौरान पन्याली (मासी) के निकट रामगंगा के पश्चिमी छोर पर रात्रि विश्राम के लिए रुके थे। इस स्थान पर उन्होंने असुर नामक राक्षक द्वारा लोगों पर किए जा रहे अत्याचार के बारे में सुना, तो उन्होंने उस राक्षस का वध कर दिया। राक्षस के वध के बाद उन्होंने हवन यज्ञ किया। इस यज्ञ में इंद्रदेव को भी बुलाया गया। रामगंगा के पूर्वी छोर पर उनको ठहराया गया था। इंद्रदेवता अपनी कपिला गाय को लेकर यज्ञ में पहुंचे थे। मंदिर परिसर के निकट यज्ञशाला, शिवलिंग, कपिला गाय के चिन्हों के अवशेष के अलावा पूर्वी छोर पर इंद्रेश्वर मंदिर भी मौजूद है। बताते हैं कि यज्ञ के दौरान रामगंगा में आए उफान को रोकने के लिए भगवान राम ने अपने चरणों से उसे रोका था। वही चरणों के निशान आज भी विद्यमान हैं। श्री राम के चरणों के चिन्ह मौजूद होने से ही इसका नाम रामपादुका पड़ा। राम के भक्त दूर-दूर से आकर राम के चरणों में मत्था टेक पूजा अर्चना करते हैं। कुछ जानकारों का कहना है कि रामगंगा नाम भी भगवान राम के कारण ही पड़ा। पहले इस नदी को रथ वाहिनी के नाम से भी जाना जाता था। जानकार बताते है कि रामपादुका के पूर्वी छोर में द्वापर युग में पांडवों ने भी प्रवास किया था। इधर मंदिर समिति के अध्यक्ष भगवत सिंह बिष्ट बताते हैं कि मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की हमेशा भीड़ रहती है परंतु सरकार की ओर से स्नानघाट निर्माण के अलावा और कोई सहयोग नहीं दिया गया है। इस पवित्र स्थल पर लोग अपने बच्चों का जनेऊ, यज्ञोपवीत, मुंडन तथा चूड़ाकर्म आदि के लिए भी आते हैं। वैशाखी तथा रामनवमी पर लोग स्नान कर पूजा पाठ करते हैं।

लेख : हेम कांडपाल / अमर उजाला

विनोद सिंह गढ़िया:
चूड़ाकर्ण महादेव में पांडव निर्मित मंदिर

सहस्त्रकोटि शिवलिंग में बनी हैं 1008 लिंग आकृतियां



चौखुटिया। पन्याली के निकट चूड़ाकर्ण महादेव मे स्थित सहस्त्रकोटि शिवलिंग में एक हजार आठ शक्तियां (लिंग) बनी हैं। श्रद्धालु इस दुर्लभ शिवलिंग को काल भैरव के रूप में पूजते हैं। इसी स्थान पर पांडवों द्वारा द्वापर में बनाए गए पौराणिक मंदिरों का समूह है। कहा जाता है पांडवों ने महज एक दिन के प्रवास के दौरान ही इस स्थान पर मंदिर बनाए थे।
द्वापर युग में पहले अज्ञातवास के दौरान तथा बाद में कौरवों से विजय हासिल करने के बाद पांडवों ने चौखुटिया घाटी के निकटवर्ती क्षेत्रों में प्रवास किया था। इतिहासकारों के अनुसार पांडवों ने क्षेत्र के तड़ागताल और इसी से लगे पांडुखोली और पंडुवाखाल में भी प्रवास किया था। जानकारी के अनुसार कौरवों पर विजय हासिल करने के बाद पांडव पन्याली के निकट चूड़ाकर्ण महादेव परिसर पहुंचे थे। इसी स्थान पर उन्होंने क्रमवार सात मंदिरों का निर्माण किया। जानकारी के अनुसार पांडवों ने एक ही दिन में उक्त मंदिरों का निर्माण किया था जबकि कुछ लोगों का कहना है कि इसके निर्माण में अनुमानित एक माह का समय लगा था। वर्तमान में अधिकांश मंदिरों में शिवलिंग स्थापित किए गए हैं। इसी परिसर में एक दुर्लभ सहस्त्रकाटि शिवलिंग (शिवशक्ति) है। यानि की एक बडे़ शिवलिंग में 1008 छोटे शिवलिंगों की आकृतियां बनी हैं जो नजदीक से देखने पर स्पष्ट दिखाई देती हैं। कहा जाता है कि सच्चे मन से इस शक्ति की पूजा करने पर मनोकामना पूरी होती है।

साभार : अमर उजाला

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
सितोनस्यूं  पौड़ी

हर्षि वाल्मीकि और सुमित्रा नंदन लक्ष्मण के पौराणिक मंदिर भी यहां हैं।

केदारखंड में वर्णित कथा के अनुरूप वनवास से वापस लौटने के बाद श्री राम ने जब माता सीता का त्याग किया तो वह भगवान वाल्मीकि के आश्रम में रही। कोट क्षेत्र में भगवान वाल्मीकि का पौराणिक मंदिर इस बात की तस्दीक करता है। कहा जाता है कि सीता माता की धरती होने से इस क्षेत्र का नाम सितोनस्यूं पड़ा। लक्ष्मण का भव्य मंदिर भी इसी सितोनस्यूं क्षेत्र में है। कोट में हर वर्ष सीता माता की याद में फलस्वाड़ी में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। कहा जाता है कि अगिभन परीक्षा के बाद माता सीता धरती की गोद में समा गई थी।

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