Author Topic: Mahabharat & Ramayan - उत्तराखंड में महाभारत एव रामायण से जुड़े स्थान एव तथ्य  (Read 66317 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कीर्तिनगर

एक प्राचीन किंवदन्ती के अनुसार जब पांडव इस क्षेत्र में थे तब उनके कुछ मवेशी सुदूर चले गये। पांडव भाइयों में से एक भीम को उन मवेशियों को वापस लाने का कार्य सौंपा गया। माना जाता है कि नीचे प्रवाहित नदियों के शोर के कारण पशुओं को आवाज लगाना असंभव हो गया अत: भीम ने अपनी गदा से घाटियों की गहराई बढ़ा दी ताकि वे शांत रूप से प्रवाहित हों। नदी की शोर शांत करने के बाद उन्होंने मवेशियों को हांक लगाया। इस प्रकार इसका नाम ढूढ़प्रयाग पड़ा। ढूढ़- खोज करना तथा प्रयाग यानि संगम– ढूढ़प्रयाग।

पंकज सिंह महर

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रामायण और महाभारत का देहरादून से संबंध

रामायण काल से देहरादून के बारे में विवरण आता है कि रावण के साथ युद्ध के बाद भगवान राम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण इस क्षेत्र में आए थे। द्रोणाचार्य से भी इस स्थान का संबंध जोड़ा जाता है।  पुराणों मे देहरादून जिले के जिन स्थानों का संबंध रामायण एवं महाभारत काल से जोड़ा गया है उन स्थानों पर प्राचीन मंदिर तथा मूर्तियाँ अथवा उनके भग्नावशेष प्राप्त हुए हैं। इन मंदिरों तथा मूर्तियों एवं भग्नावशेषों का काल प्राय: दो हजार वर्ष तथा उसके आसपास का है। क्षेत्र की स्थिति और प्राचीन काल से चली आ रही सामाजिक परंपराएँ, लोकश्रुतियाँ तथा गीत और इनकी पुष्टि से खड़ा समकालीन साहित्य दर्शाते हैं कि यह क्षेत्र रामायण तथा महाभारत काल की अनेक घटनाओं का साक्षी रहा है। महाभारत की लड़ाई के बाद भी पांडवों का इस क्षेत्र पर प्रभाव रहा और हस्तिनापुर के शासकों के अधीनस्थ शासकों के रूप में सुबाहू के वंशजों ने यहां राज किया। यमुना नदी के किनारे कालसी में अशोक के शिलालेख प्राप्त होने से इस बात की पुष्टि होती है कि यह क्षेत्र कभी काफी संपन्न रहा होगा।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर : बड़कोट




माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण हिमालय के स्वर्गारोहिणी पथ पर जाते हुए पांडवों द्वारा किया गया। ऐसा भी कहा जाता है कि 8वीं सदी में आदी शंकराचार्य नें इस मंदिर का पुनरूद्धार किया तथा दक्षिण भारतीय शैली में निर्मित कुछ विष्णु की प्रतिमाओं को यहां स्थापित किया। स्वयं मंदिर का मूल ढांचा ध्वस्त हो चुका है तथा इनका पुनर्निर्माण कई बार किया गया पर, अंदर की मूर्तियां प्राचीन काल से ही स्थापित है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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महाकाव्य महाभारत के नायक पांडवों LINK WITH GANGOTRI DHAM

माना जाता है कि महाकाव्य महाभारत के नायक पांडवों ने कुरूक्षेत्र में अपने सगे संबंधियों की मृत्यु पर प्रायश्चित करने के लिये देव यज्ञ गंगोत्री में ही किया था।

गंगा को प्रायः शिव की जटाओं में रहने के कारण भी आदर पाती है।
एक दूसरी किंबदन्ती यह है कि गंगा मानव रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुई और उन्होंने पांडवों के पूर्वज राजा शान्तनु से विवाह किया जहां उन्होंने सात बच्चों को जन्म देकर बिना कोई कारण बताये नदी में बहा दिया। राजा शांतनु के हस्तक्षेप करने पर आठवें पुत्र भीष्म को रहने दिया गया। पर तब गंगा उन्हें छोड़कर चली गयी। महाकाव्य महाभारत में भीष्म ने प्रमुख भूमिका निभायी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पांडु गुफा IN GANGOTRI DHAM.

प्रमुख मंदिर परिसर तथा बाजार से दूर, यह इस पैदल यात्रा निश्चित रूप से आपको एकांत देगा, जो आप चाहते हों। हरे-भरे पेड़ों पर्वतीय क्षेत्र एवं चट्टानों का यह सिलसिला एक सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है। यह एक छोटे हवेलीनुमा घर की ओर ले जाता है जहां, कहा जाता है कि पांडवों ने अपनी पत्नी द्रोपदी के साथ कुछ समय के लिये प्रवास किया था।

इसके निकट पॉडवों से संबद्ध जगह पेंरागन हैं जहां स्वर्गारोहिणी चोटी से स्वर्ग जाने के पहले पॉडवों ने 12 वर्षों तक वास किया था।

रामपादुका मन्दिर, तल्ला गेवाड़, अल्मोड़ा,
कहा जाता है कि एक बार यहाँ भगवान राम आए थे. इस मन्दिर में एक शिला पर उनके पैरों के निशान है.  यह मन्दिर रामगंगा नदी के तट पर पट्टी तल्ला गेवाड़, अल्मोड़ा जिला में है. इस मन्दिर से पहले इस नदी का नाम गढ़ गंगा है तथा इस मन्दिर के बाद इसे राम गंगा कहते हैं. यह नदी बाद में भिकियासैन के पास से कालागढ़ की तरफ़ जाती है जहाँ इस पर एक बाँध बना है.


Pooran Chandra Kandpal

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मेह्ताज्यु  तुमार पहाड़क बारंमाँ लोगों कें अवगत करूनक प्रयास का जतुले तारीफ करिजो ऊ कम छ .

Pooran Chandra Kandpal

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मेह्ताज्यु  तुमार पहाड़क बारंमाँ लोगों कें अवगत करूनक प्रयास का जतुले तारीफ करिजो ऊ कम छ .
रानीखेत के नजदीक जिला अल्मोरा में पट्टी चौगाऊ में गाव खग्यार के पास आज भी भीम के पावों के निशान
एक बारे पत्थर में दिखाई देते हें . मेने ख़ुद इन निशानों को देखा . यह पत्थर शिला जेसा दिखाई देता है. यदि कोई वहां जाना चाहे तो खेरना से १२ किलोमीटर रानीखेत की तरफ़ पिलखोली तक बस में जाएगा . फ़िर उसे ४ या ५ किलोमीटर पैदल चलना पड़ेगा. रास्ता उबड़ खाबड़ है.और उतराई चडाई भी है . दुःख की बात तो यह है की
आजादी के ६१ बरसों के बाद भी वहां सड़क नहीं बनी. प्रतेक चुनाव में लोग वोट मागने आए , वादा भी कर गए
परन्तु फ़िर दुबारा नहीं आए.

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Dhanyavaad Sir is amulya jaankaari ke liye.

मेह्ताज्यु  तुमार पहाड़क बारंमाँ लोगों कें अवगत करूनक प्रयास का जतुले तारीफ करिजो ऊ कम छ .
रानीखेत के नजदीक जिला अल्मोरा में पट्टी चौगाऊ में गाव खग्यार के पास आज भी भीम के पावों के निशान
एक बारे पत्थर में दिखाई देते हें . मेने ख़ुद इन निशानों को देखा . यह पत्थर शिला जेसा दिखाई देता है. यदि कोई वहां जाना चाहे तो खेरना से १२ किलोमीटर रानीखेत की तरफ़ पिलखोली तक बस में जाएगा . फ़िर उसे ४ या ५ किलोमीटर पैदल चलना पड़ेगा. रास्ता उबड़ खाबड़ है.और उतराई चडाई भी है . दुःख की बात तो यह है की
आजादी के ६१ बरसों के बाद भी वहां सड़क नहीं बनी. प्रतेक चुनाव में लोग वोट मागने आए , वादा भी कर गए
परन्तु फ़िर दुबारा नहीं आए.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Mahraj Kandpal Jew.

Thanx a lot for sharing this information with us.

मेह्ताज्यु  तुमार पहाड़क बारंमाँ लोगों कें अवगत करूनक प्रयास का जतुले तारीफ करिजो ऊ कम छ .
रानीखेत के नजदीक जिला अल्मोरा में पट्टी चौगाऊ में गाव खग्यार के पास आज भी भीम के पावों के निशान
एक बारे पत्थर में दिखाई देते हें . मेने ख़ुद इन निशानों को देखा . यह पत्थर शिला जेसा दिखाई देता है. यदि कोई वहां जाना चाहे तो खेरना से १२ किलोमीटर रानीखेत की तरफ़ पिलखोली तक बस में जाएगा . फ़िर उसे ४ या ५ किलोमीटर पैदल चलना पड़ेगा. रास्ता उबड़ खाबड़ है.और उतराई चडाई भी है . दुःख की बात तो यह है की
आजादी के ६१ बरसों के बाद भी वहां सड़क नहीं बनी. प्रतेक चुनाव में लोग वोट मागने आए , वादा भी कर गए
परन्तु फ़िर दुबारा नहीं आए.

 

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