Author Topic: Mahabharat & Ramayan - उत्तराखंड में महाभारत एव रामायण से जुड़े स्थान एव तथ्य  (Read 67753 times)

खीमसिंह रावत

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[size=12pt]                            SITABANI

Ramnagar ( Nainital) se lagbhag 20 km ki duri par SITABANI hai/ Ghane jangalo ke beech hone ke karan yahan kafi shailani log aate hai /[/size]

 

Pawan Pahari/पवन पहाडी

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वैसे तो उत्तराखंड मैं बहुत मंदिर है पर कुमाऊ की कासी कहे जाने वाले बागेश्वर मैं स्थित बागनाथ मंदिर की अनेक विशेषताएं है, जैसे- अर्ध्नारिस्वर मंदिर, दक्षिण मुखी, एक पत्थर पे बना ये मंदिर सरयू और गोमती नदी के संगम पे स्थित है. पर इक खास बात ये है कि यहाँ पे विलुप्त सरस्वती त्रिवेणी बनाती है जो बागनाथ जी के चरणों को धोकर जाती है.

Devbhoomi,Uttarakhand

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देहरादून जिले के अंतर्गत ऋषिकेश के बारे में भी स्कंदपुराण में उल्लेख है कि भगवान् विष्णु ने दैत्यों से पीड़ित ऋषियों की प्रार्थना पर मधु-कैटभ आदि राक्षसों का संहार कर यह भूमि ऋषियों को प्रदान की थी। पुराणों में इस क्षेत्र को लेकर एक विवरण इस प्रकार भी है कि राम के भाई भरत ने भी यहां तपस्या की थी। तपस्या वाले स्थान पर भरत मंदिर बनाया गया था। कालांतर में इसी मंदिर के चारों ओर ऋषिकेश नगर का विकास हुआ। पुरातत्व की दृष्टि से भरत मंदिर की स्थापना सैकड़ों साल पुरानी है। स्कंद पुराण में तमसा नदी के तट पर आचार्य द्रोण को भगवान शिव द्वारा दर्शन देकर शस्त्र विद्या का ज्ञान कराने का उल्लेख मिलता है। यह भी कहा जाता है कि आचार्य द्रोण के पुत्र अश्वात्थामा द्वारा दुग्धपान के आग्रह पर भगवान शिव ने तमसा तट पर स्थित गुफा में प्रकट हुए शिवलिंग पर दुग्ध गिराकर बालक की इच्छा पूरी की थी। यह स्थान गढ़ी छावनी क्षेत्र में स्थित टपकेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर बताया जाता है। महाभारत काल में देहरादून का पश्चिमी इलाका जिसमें वर्तमान कालसी सम्मिलित है का शासक राजा विराट था और उसकी राजधानी वैराटगढ़ थी। पांडव अज्ञातवास के दौरान भेष बदलकर राजा विराट के यहां रहे। इसी क्षेत्र में एक मंदिर है जिसके बारे में लोग कहते कि इसकी स्थापना पांडवों ने की थी। इसी क्षेत्र में एक पहाड़ी भी है जहां भीम ने द्रौपदी पर मोहित हुए कीचक को मारा था। जब कौरवों तथा त्रिगता के शासक ने राजा विराट पर हमला किया तो पांडवों ने उनकी सहायता की थी।

महाभारत की लड़ाई के बाद भी पांडवों का इस क्षेत्र पर प्रभाव रहा और हस्तिनापुर के शासकों के अधीनस्थ शासकों के रूप में सुबाहू के वंशजों ने यहां राज किया। पुराणों मे देहरादून जिले के जिन स्थानों का संबंध रामायण एवं महाभारत काल से जोड़ा गया है उन स्थानों पर प्राचीन मंदिर तथा मूर्तियां अथवा उनके भग्नावशेष प्राप्त हुए हैं। इन मंदिरों तथा मूर्तियों एवं भग्नावशेषों का काल प्राय: दो हजार वर्ष तथा उसके आसपास का है। क्षेत्र की स्थिति और प्राचीन काल से चली आ रही सामाजिक परंपराएं, लोकश्रुतियां तथा गीत और इनकी पुष्टि से खड़ा समकालीन साहित्य दर्शाते हैं कि यह क्षेत्र रामायण तथा महाभारत काल की अनेक घटनाओं का साक्षी रहा है। यमुना नदी के किनारे कालसी में अशोक के शिलालेख प्राप्त होने से इस बात की पुष्टि होती है कि यह क्षेत्र कभी काफी संपन्न रहा होगा। सातवीं सदी में इस क्षेत्र को सुधनगर के रूप में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी देखा था। यह सुधनगर ही बाद में कालसी के नाम से पहचाना जाने लगा। कालसी के समीपस्थ हरिपुर में राजा रसाल के समय के भग्नावशेष मिले हैं जो इस क्षेत्र की संपन्नता को दर्शाते हैं। लगभग आठ सौ साल पहले दून क्षेत्र में बंजारे लोग आ बसे थे। उनके बस जाने के बाद यह क्षेत्र गढ़वाल के राजा को कर देने लगा। कुछ समय बाद इस ओर इब्राहिम बिन महमूद गजनवी का हमला हुआ।

इससे भी भयानक हमला तैमूर का था। सन् 1368 में तैमूर ने हरिद्वार के पास राजा ब्रह्मदत्त से लड़ाई की। ब्रह्मदत्त का राज्य गंगा और यमुना के बीच था। बिजनौर जिले से गंगा को पार कर के मोहन्ड दर्रे से तैमूर ने देहरादून में प्रवेश किया था। हार जाने पर तैमूर ने बड़ी निर्दयता से मारकाट करवाई, उसे लूट में बहुत-सा धन भी मिला था। इसके बाद फिर कई सदियों तक इधर कोई लुटेरा नहीं आया। शाहजहां के समय में फिर एक मुगल सेना इधर आई थी। उस समय गढ़वाल में पृथ्वी शाह का राज्य था। इस राजा के प्रपौत्र फतेह शाह ने अपने राज्य की सीमा बढ़ाने के उद्देश्य से तिब्बत और सहारनपुर पर एक साथ चढ़ाई कर दी थी, लेकिन इतिहास के दस्तावेजों के अनुसार उसको युद्ध में हार का मुंह देखना पड़ा था। सन् 1756 के आसपास श्री गुरु राम राय ने दून क्षेत्र में अपनी सेना तथा शिष्यों के साथ प्रवेश किया और दरबार साहिब की नींव रखकर स्थायी रूप से यहीं बस गए।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्राचीन आदि बद्रीनारायण शत्रुघ्न मंदिर = Shatrughan was the youngest Brother Lord Ram Chandra Ji during the Ramayana period, whose temple is in Uttarkahand
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प्राचीन मंदिर पौराणिक एवं ऐतिहासिक रुप से मुनि की रेती के लिए एक प्रमुख स्थल है। यह दो मंजिला पार्किंग के नजदीक नव घाट के पास स्थित है। यही वह स्थान है जहां से प्राचीनकाल में कठिन पैदल चार धाम तीर्थ यात्रा शुरु होती थी।

प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान राम एवं उनके भाई लंका में रावण के साथ युद्ध में हुई कई मृत्यु के पश्चाताप के लिए उत्तराखंड आए तो भरत ने ऋषिकेश में, लक्ष्मण ने लक्ष्मण झुला के पास, शत्रुघ्न ने मुनि की रेती में तथा भगवान राम ने देव प्रयाग में तपस्या की। यह माना जाता है कि मंदिर के स्थल पर ही शत्रुघ्न ने तपस्या की।

ऐसा माना जाता है कि उत्तराखंड में स्थित चारों में से एक इस मंदिर की स्थापना नौवीं सदी में आदि शंकराचार्य ने की। इस मंदिर की स्थापत्य उस समय के अन्य मंदिरों से मिलती है। मंदिर का मुख्य मूर्तियाँ आदि बद्री तथा शत्रुघ्न काले पत्थर से नक्काशी युक्त है। उनके बगल में भगवान राम, सीता तथा लक्ष्मण की मूर्ति के साथ गुरु वशिष्ठ की एक छोटी मूर्ति सफेद संगेमरमर से बनी है। चारों धामों की तीर्थयात्रा सुगमता पूर्ण तथा कठिनाई रहित पूर्ण हो, इसलिए आदि बद्री तथा भगवान शत्रुघ्न की मूर्ति एक साथ स्थापित की गई है, ऐसा माना जाता है। इस मंदिर परिसर के बाहर हनुमान की प्रतिमा इन्हें सुरक्षा प्रदान करती है और भगवान हनुमान इस क्षेत्र में लोगों द्वारा पूजा-अर्चना का उत्तर देने के लिए जिम्मेवार हैं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गुप्‍तकाशी-
गुप्‍तकाशी का वहीं महत्‍व है जो महत्‍व काशी का है। यहां गंगा और यमुना नदियां आपस में मिलती है। ऐसा माना जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांण्‍डव भगवान शिव से मिलना चाहते थे और उनसे आर्शीवाद प्राप्‍त करना चाहते हैं। लेकिन भगवान शिव पांडवों से मिलना नहीं चाहते थे इसलिए वह गुप्‍ताकाशी से केदारनाथ चले गए। गुप्‍तकाशी समुद्र तल से 1319 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह एक स्‍तूप नाला पर स्थित है जो कि ऊखीमठ के समीप स्थित है। कुछ स्‍थानीय निवासी इसे राणा नल के नाम से बुलाते हैं। इसके अलावा पुराना विश्‍वनाथ मंदिर, अराधनेश्रवर मंदिर और मणिकारनिक कुंड गुप्‍तकाशी के प्रमुख आकर्षण केन्‍द्र है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बुदा केदार मंदिर

इस स्थान पर बाल गंगा और धर्म गंगा नदियां आपस में मिलती है। टिहरी से इस जगह की दूरी 59 किलोमीटर है। ऐसा माना जाता है कि दुर्योधन ने इसी जगह पर तर्पण किया था। पौराणिक कथा के अनुसार, भिरगू पर्वत पर पंडावों और ऋषि बालखिली के बीच लड़ाई हुई थी।

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सेम मुखेम

यह जगह समुद्र तल से 2903 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर नाग राज का है। यह मंदिर पर्वत के सबसे ऊपरी भाग में स्थित है। मुखेम गांव से इस मंदिर की दूरी दो किलोमी.है। माना जाता है कि मुखेम गांव की स्थापना पंड़ावों द्वारा की गई थी।

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देवप्रयाग

देवप्रयाग

देवप्रयाग एक प्राचीन शहर है।यह भारत के सर्वाधिक धार्मिक शहरों में से एक है। इस स्थान पर अलखनंदा और भागीरथी नदियां आपस में मिलती है। देवप्रयाग शहर समुद्र तल से 472 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। देवप्रयाग जिस पहाड़ी पर स्थित है उसे गृद्धाचल के नाम से जाना जाता है। यह जगह गिद्ध वंश के जटायु की तपोभूमि के रूप में भी जानी जाती है। माना जाता है कि इस स्थान पर ही भगवान राम ने किन्नर को मुक्त किया था। इसे ब्रह्माजी ने शाप दिया था जिस कारण वह मकड़ी बन गई थी।


देवप्रयाग एक प्राचीन शहर है।यह भारत के सर्वाधिक धार्मिक शहरों में से एक है। इस स्थान पर अलखनंदा और भागीरथी नदियां आपस में मिलती है। देवप्रयाग शहर समुद्र तल से 472 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। देवप्रयाग जिस पहाड़ी पर स्थित है उसे गृद्धाचल के नाम से जाना जाता है। यह जगह गिद्ध वंश के जटायु की तपोभूमि के रूप में भी जानी जाती है। माना जाता है कि इस स्थान पर ही भगवान राम ने किन्नर को मुक्त किया था। इसे ब्रह्माजी ने शाप दिया था जिस कारण वह मकड़ी बन गई थी।
एक प्राचीन शहर है।यह भारत के सर्वाधिक धार्मिक शहरों में से एक है। इस स्थान पर अलखनंदा और भागीरथी नदियां आपस में मिलती है। देवप्रयाग शहर समुद्र तल से 472 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। देवप्रयाग जिस पहाड़ी पर स्थित है उसे गृद्धाचल के नाम से जाना जाता है। यह जगह गिद्ध वंश के जटायु की तपोभूमि के रूप में भी जानी जाती है। माना जाता है कि इस स्थान पर ही भगवान राम ने किन्नर को मुक्त किया था। इसे ब्रह्माजी ने शाप दिया था जिस कारण वह मकड़ी बन गई थी।

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DRONA NAGAR, KASHIPUR
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Drona Sagar is believed to be associated with Guru Dronacharya, the legendary warrior and teacher in the Mahabharata. This place was once very auspicious and revered as the last pilgrimage spot after the Gangotri, Yamunotri, Badrinath and Kedarnath Dhams. The ‘Skand Puran’ states that the water of this place is as holy as that of the sacred river Ganga.

At present a huge pond with lotus flowers is situated here. The pond is surrounded by temples of various deities. Earlier, there were 32 temples around the periphery of this pond. The chimes of bells from nearby temples and chanting of sacred hymns create a divine atmosphere around the Drona Sagar in the mornings and evenings.

Swami Dayanand, the founder of Arya Samaj, visited this placed in the 19th century during one of the various journeys he undertook to propagate the message of God. He stayed in Kashipur near the holy Drona sagar for some time.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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vikas nagar Dehradoon.
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The Kaurava crown prince of the Mahabharata era, Duryodhana, is highly revered in the region of ‘Jaunsar-Bawar’. Beautiful, wooden-carved temples dedicated to him adorn the Jaunsar area.

A similar stature also seems to have been accorded to Karna, Duryodhana’s most favourite ally. Temples dedicated to Karna are found in Tons valley at Newar and Deora.
   
According to the local folklore, after travelling across the Kashmir and Kullu valleys, Duryodhana came to Hanol in the Jaunsar area. Mesmerised by its beauty, he appealed to the then reigning deity of the area, Lord Mahasu, to grant him a piece of land in the lap of mighty Himalayas.

Lord Mahasu is said to have bestowed the region of Jaunsar as a boon upon Duryodhana – on the condition that he would take care of the inhabitants.
 

 

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