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Mahakumbh-2010, Haridwar : महाकुम्भ-२०१०, हरिद्वार

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हेम पन्त:
निवेदन- महाकुम्भ २०१० की अद्यतन चित्र देखने के लिये कृपया आखिरी के पेज देखें।
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आने वाली मकर संक्रन्ति से उत्तराखण्ड के प्रमुख तीर्थस्थल हरिद्वार में 12 वर्ष के बाद एक बार फिर "महाकुम्भ" का आयोजन होना है. प्रशासन इस बड़े आयोजन को शान्तिपूर्वक आयोजित करने के लिये प्रयासों में जुट चुका है.

इस टापिक के अन्तर्गत हम कुम्भ के आध्यात्मिक महत्व व कुम्भ से सम्बन्धित समाचारों को आपस में बाटेंगे.



हेम पन्त:
कुम्भ मेले का आयोजन इलाहाबाद(प्रयाग) में गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम-स्थल पर, उज्जैन में क्षिपरा-तीरे, नासिक में गोदावरी के तट पर और हरिद्वार में गंगा-किनारे किया जाता है। चारों स्थानों पर यह मेला तीन साल के अन्तराल पर बारी-बारी लगता है. अर्थात एक स्थान विशेष पर इसका आयोजन बारह वर्ष में एक बार होता है। प्राचीन समय में साधु समाज को आपसी विचार-विमर्श के लिए यह अन्तराल बेहद लम्बा लगता था, अत: 1837 में पहली बार हरिद्वार में छ: साल बाद होने वाले अर्द्ध-कुम्भ की शुरूवात की गई। प्रयाग में इसका आयोजन पहली बार 1940 हुया।

कुम्भ-मेला किस स्थान पर, किस माह में, किस तिथी से आरम्भ होगा, इसका निर्णय सूर्य, चन्द्रमा और गुरू का विभिन्न राशियों में आवागमन के आधार पर किया जाता है। इन्हीं तीन ग्रहों की स्थिती विशेष के कारण इलाहाबाद में यह मेला माघ (Jan-Feb), हरिद्वार में फागुन और चैत्र (Feb-March-April), उज्जैन में बैसाख (May) और नासिक में श्रावण अर्थात जुलाई में लगता है।

केवल इन्हीं नगरों में कुम्भ का आयोजन क्यों होता है, इस तथ्य के पीछे एक पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि एक बार देवों और दानवों ने मिल कर अमृत प्राप्ति के लिए क्षीर सागर का मंथन किया। अनेकों अमुल्य व अतुल्य पदार्थों की प्राप्ति के पश्चात जब अमृत-कुम्भ प्रगट हुया तो उस पर अधिकार जमाने के लिए देवों और दानवों में बारह वर्ष तक युद्ध चला। कुम्भ की छीन झपट के दौरान अमृत की कुछ बूंदे इन चार स्थलों पर गिरी। इसी अमृत की चाह में असंख्य लोग इन स्थलों की ओर खींचे चले आते है।

एक अन्य कथा यह भी है कि शंखासुर नामक एक राक्षस ने सागर की तलहटी से मिट्टी में रहने वाले जीवों ( दीमक) की सेना को वेदों को नष्ट करने भेजा। ज्ञान एंव शक्तिशाली मंत्रों के भंडार वेदों के नष्ट होते ही देवों की शक्ति क्षीण हो गई और असुरों से हार कर वे कैलास पर्वत पर जा छुपे। देवों के हारने से चारों ओर अराजकता छा गई । नैतिकता का नाश हो गया,अनाचार फैल गया और धरती पर हाहाकार होने लगी। इस स्थिती से व्यथित हो ऋृषियों और मुनियों ने भगवान् विष्णु से उद्धार करने की गुहार लगाई। विष्णु जी ने मुनि-जगत् को कहा–” आप सब मिलकर अपनी शक्तियों को केन्द्रित करें और ध्यान पूर्वक एक-चित्त हो कर वेदों का पुन: निर्माण करें। जब आपका कार्य समाप्त हो जाए तो प्रयाग जाकर संगम-तट पर मेरा इंतज़ार करें। मैं समस्त देवों को लेकर आप से वहीं मिलूंगा।“

मुनिगण विष्णू जी के आदेश के पालन में जुट गए। इस दौरान विष्णु जी ने एक बड़ी मछली का रूप धारण कर शंखासुर को मार डाला और देवों की मदद से असुरों की सेना को हरा दिया। तदोपरांत वे ब्रह्मा, शिव और सभी देवों को लेकर प्रयाग पहुँचे। यहां पर पुन:निर्मित हुए वेदों के ज्ञान को सम्पूर्ण जगत् के हित में प्रयोग करने केलिए उन्होंने ‘अश्वमेघ यज्ञ‘ किया जो बारह वर्ष तक चलता रहा। यज्ञ समाप्ति पर मुनियों ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे भविष्य में हर बारहवें वर्ष एक माह के लिए प्रयाग में सभी देवों सहित अवतरित हो। विष्णु जी ने प्रार्थना स्वीकार की और प्रयाग को तीरथ-राज की उपाधि दी तथा कहा कि संगम तट पर ध्यान-अर्चना में बिताया गया एक दिन अन्य स्थानों पर कमाए गए दस सालों के पुण्य के समान होगा।


Source : http://soniratna.wordpress.com

हेम पन्त:
महाकुंभ हरिद्वार: जनवरी से अप्रैल 2010

14 January 2010 मकर संक्रांति स्नान - पहला स्नान
15 January 2010 मौनी अमावस्या एवं सूर्य ग्रहण - दूसरा स्नान
20 January 2010 बसंत पंचमी स्नान - तीसरा स्नान
30 January 2010 माघ पूर्णिमा स्नान- चौथा स्नान
12 February 2010 महा शिवरात्रि - प्रथम शाही स्नान
15 March 2010 सोमवती अमावस्या - द्वीतिय शाही स्नान
16 March 2010 नव संवत्सर - सातवा स्नान
24 March 2010 राम नवमी-आठवाँ स्नान
30 March 2010 चैत्र पूर्णिमा स्नान - नौवा स्नान
14 April 2010 बैसाखी- प्रमुख शाही स्नान
28 April 2010 बैसाख पूर्णिमा- ग्यारहवाँ स्नान

हेम पन्त:
पह्मिनीनायके मेषे कुम्भराशिगते गुरौ।
गंगाद्वारे भवेद्योगः कुम्भनामा तदोत्तमः॥
(स्कन्दपुराण)

भावार्थ- 'जिस समय बुहस्पति कुम्भ राशि पर स्थित हो और सूर्य मेष राशि पर रहे, उस समय गंगाद्वार (हरिद्वार) में कुम्भ-योग होता है।'

अथवा
वसन्ते विषुवे चैव घटे देवपुरोहिते।
गंगाद्वारे च कुम्भाख्यः सुधामेति नरो यतः॥

भावार्थ- हरिद्वार में कुम्भ के तीन स्नान होते हैं। यहाँ कुम्भ का प्रथम स्नान शिवरात्रि से प्रारम्भ होता है। द्वितीय स्नान चैत्र की अमावास्या को होता है। तृतीय स्नान (प्रधान स्नान) चैत्र के अन्त में अथवा वैशाख के प्रथम दिन में अर्थात्‌ जिस दिन बृहस्पति कुम्भ राशि पर और सूर्य मेष राशि पर हो उस दिन कुम्भ स्नान होता है।

Source : www.haridwarmahakumbh.org

हेम पन्त:
पौराणिक संदर्भ
एक कथा है कि बार-बार सुर असुरो में संघर्ष हुआ जिसमें उन्होने विराट मद्रांचल को मथनी और नागराज वासुकी को रस्सी बनाकर सागर का मन्थन किया । सागर में से एक-एक कर चौदह रत्न निकले, विष, वारूणि, पुष्पक विमान, ऐरावत हाथी, उच्चेःश्रेवा अश्व, लक्ष्मी, रम्भा, चन्द्रमा, कौस्तुभ मणि, कामधेनु गाय, विश्वकर्मा, धन्वन्तरि और अमृत कुम्भ । जब धन्वन्तरि अमृत का कुम्भ लेकर निकले तो देव और दानव दोनों ही अमृत की प्राप्ति को साकार देखकर उसे प्राप्त करने के लिये उद्यत हो गये लेकिन इसी बीच इन्द्र पुत्र जयन्त ने धन्वन्तरि के हाथों से अमृत कुम्भ छीना और भाग खडा हुआ, अन्य देवगण भी कुम्भ की रक्षा के लिये अविलम्ब सक्रिय हो गये । इससे बौखलाकर दैत्य भी जयन्त का पीछा करने के लिये भागे । जयन्त 12 वर्षो तक कुम्भ के लिये भागता रहा । इस अवधि में उसने 12 स्थानों पर यह कुम्भ रखा। जहां-जहां कुम्भ रखा वहां-वहां अमृत की कुछ बुन्दें छलक कर गिर गई और वे पवित्र स्थान बन गये इसमें से आठ स्थान, देवलोक में तथा चार स्थान भू-लोक अर्थात भारत में है । इन्हीं बारह स्थानों पर कुम्भ पर्व मानने की बात कही जाती है। चूंकि देवलोक के आठ स्थानों की जानकारी हम मुनष्यों को नहीं है अतएव हमारे लिये तो भू-लोक उसमें भी अपने देश के चार स्थानों का महत्व है । यह चार स्थान है हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक ।

Source : hi.wikipedia.org

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