उत्तराखंड - इस मंदिर में राष्ट्रपति भवन से आती है भेंट
उत्तराखंड में त्यूनी-मोरी रोड पर स्थित महासू देवता मंदिर में आस्था और श्रद्घा का अनूठा संगम देखने को मिलता है। 9वीं शताब्दी में बनाया गया महासू देवता का मंदिर काफी प्राचीन है।
मिश्रित शैली की स्थापत्य कला
मिश्रित शैली की स्थापत्य कलामंदिर में मिश्रित शैली की स्थापत्य कला देखने को मिलती है। इस मंदिर को पुरातत्व सर्वेक्षण में भी शामिल किया गया है। महासू देवता मंदिर देहरादून से 190 किलोमीटर दूर और मसूरी से 156 किमी, चकराता के पास हनोल गांव में टोंस नदी के पूर्वी तट पर स्थित हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार इस गांव का हुना भट्ट, एक ब्राह्मण के नाम पर रखा गया है। इससे पहले यह जगह चकरपुर के रूप में जानी जाती थी। और पांडव लाक्षा ग्रह से निकलकर यहां आए थे। हनोल का मंदिर लोगों के लिए तीर्थ स्थान के रूप में भी जाना जाता है।
भगवान शिव का दूसरा रूप है महासू
महासू देवता भगवान शिव के ही रूप हैं। इसके साथ ही यह मान्यता भी है कि महासू ने किसी शर्त पर हनोल का यह मंदिर जीता था। महासू देवता जौनसार बावर, हिमाचल प्रदेश के ईष्ट देव हैं। यहां हर साल दिल्ली से राष्ट्रपति भवन से नमक की भेंट आती है।
मंदिर के साथ छोटे-छोटे पत्थर हैं। जो आकार में तो बहुत छोटे हैं, लेकिन इन्हें उठा पाना हर किसी के बस की बात नहीं है।यह भी कहा जाता है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से महासू की पूजा करता है वह ही इन पत्थरों को उठा सकता है।
अपने आप जलती है ज्योत
मंदिर के गृह गर्भ में भक्तों का जाना मना है। केवल पुजारी ही मंदिर में प्रवेश कर सकता है। इसके साथ ही मंदिर में एक ज्योत हमेशा अपने आप जलती रहती है।
मंदिर के गृह गर्भ में पानी की एक धारा भी निकलती है, लेकिन वह कहां जाती है इसके बारे में किसी को भी पता नहीं है। महासू देवता के मंदिर में उत्तराखंड के साथ ही जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली से भक्त काफी संख्या में भक्त पहुंचते हैं।