Tourism in Uttarakhand > Religious Places Of Uttarakhand - देव भूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देव मन्दिर एवं धार्मिक कहानियां

Mention about Uttarakhand Places in Epics-धार्मिक ग्रंथो में उत्तराखंड का वर्णन

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
पुरातन हिन्दू धर्म ग्रन्थों जैसे कि वेद, उपनिष्द, पुराण तथा महाभारत ने इस मध्य हिमालय क्षेत्र को विभिन्न नामों से पहचाना है जैसे कि हिमवंत, ब्रह्मव्रत, तपोभूमि, स्वर्गभूमि, आर्यवृत, देवभूमि, ब्रह्मऋषि देश, पांचालदेश, केदारखण्ड, बादीकाश्रम, केदारमण्डल, खासमण्डल, तथा उत्तराखण्ड।

पुरातन विद्वानों ने इस क्षेत्र को बहुत प्रशंसा भरे इन शब्दों से अलेकृत किया हैः

“गंगाद्वारोत्तारम विप्र! स्वर्ग भूमि स्मरिता बुधेi
अन्यत्र पृथ्विनि प्रोक्ता गंगाद्वारोत्तारम वीना”

गंगाद्वार से यानि हरिद्वार से उत्तर की भूमि को ज्ञानी स्वर्गभूमि (पैराडाइज) कहते हैं तथा अन्य सभी क्षेत्र पृथ्वी कहलाते हैं।

यह माना जाता है कि ऋगवेद के समय आर्य पांच मुख्य कबीलों में विभाजित थे त्रितसु, पुरू, अनु, यदु तथा त्रावसु। त्रित्सुओं ने यमुना तथा सतलुज के मध्य का भाग जो कि उत्तर में हिमालय की गंगोत्री श्रंखला तक फैला हुआ था, पर राज किया। यहां के स्वच्छ वातावरण वस्तु नैसर्गिक सुंदरता से मुग्ध आर्यों ने इस स्थान को पवित्र माना। गढ़वाल की अपने धार्मिक रीतिओं से समानता जैसे कि प्रकृति के कारण आर्यों ने इस स्थान को प्रकृति के देव-स्थान के रूप में मान्यता दी। वैदिक काल में ऋषि मानते थे कि यह स्थान प्रकृति द्वारा स्वयं धार्मिक यज्ञों, बलियों तथा अन्य धार्मिक कार्यों के लिए चुना गया है। मिथिहास के अनुसार यहां से जो भी यज्ञ अथवा धार्मिक अनुष्ठान करता था उसे उच्च पुण्य की प्राप्ति होती थी तथा पाप मुक्त होता था। इस स्थान को ज्ञान प्राप्ति के लिए चुन लिया गया यहां पर ही चार आश्रम (जीवन की अवस्थाएं) ब्रह्मचार्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा सन्यास प्रत्येक हिन्दू के लिये निर्मित किये गये।

पवित्र हिन्दू अभिलेखों के अनुसार दर्शन ज्ञान के छहः मे से पांच दार्शनिक विचारधारओं के संस्थापकों ने अपने मतों की शुरूआत गढ़वाल से ही की: हरिद्वार में कपिल, बद्रीनाथ में कश्यप, मंदाकिनी के तट पर गौतम, तथा सरस्वती नदी के तटों पर व्यास तथा जैमिनी गढ़वाल विभिन्न गुरूकुलों के उन हजारों युवा अनुयाईयों का घर था जो यहां पर पुरान महाभारत, वेदों, सूत्रों, ब्राह्मणों तथा विभिन्न दर्शनों के श्लोक संगीतमयी वाणी में उच्चारित करते थे। उन शिष्यों को शायद अनेकों शताब्दियां लगी होगी सीखने में तथा फिर वे आम लोगों के मध्य पहुंचे होंगे अपना पूर्ण समर्पण से ग्रहण किया ज्ञान बांटने।

महान खगोलशास्त्री गर्ग ने अपनी खोजें द्रोणगिरी पर्वत पर की। उसके भी बहुत से शिष्य तथा अनुयायी होगें जिन्हें उसने खगोल शास्त्र में निपुण किया होगा और संसार में खगोल विसान को फैलाने के लिए भेजा होगा। आधुनिक समय में भी खगोल शास्त्र इस देश में प्रच्चुर मात्रा में सुरक्षित है।

Source : http://staging.ua.nic.in/chardham/hindi/history.asp

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
गढ़वाल में इन पांच स्थलों को पंच केदार कहा जाता है। माना जाता है कि जो भी तीर्थयात्री इन पांच मंदिरों में पूजा कर लेता है उसके जीवन भर के पाप धुल जाते हैं।

मम क्षेत्राणी पंचेवा भक्तिप्रीतिकारिणी वै
केदारम मध्यम तुंग थाता रूद्रालयम प्रियम
कल्पकम चा महादेवी सर्वपाप प्रनाशमम्
कथितं ते महाभागे केदारेश्वर मंडलम्

मेरे मात्र पांच स्थल हैं जो शिष्यों में प्रेम लाते हैं, वे केदारनाथ, मध्यम (मधमाहेश्वर) तुंग (तुंगनाथ) रूद्रालय (रूद्रनाथ) तथा कल्पकार (कल्पेश्वर) हैं। हे महादेवी, ये सभी पाप धो डालते हैं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Mention about Bhimtaal in Shrimad Bhagwat Puran

भीमेश्वर भीमताल के किनारे है! चित्रेश्वर महादेव गौला नदी के किनारे विश्वकर्मा का बनाया है ! चित्रशिला के उपर की छोटी पर पश्चिम की और मार्कंडेय ऋषि का आश्रम था ! उसका उल्लेख श्रीमद भागवत के द्वादश सकंद व् अध्याय ८ में है !

तेवै तदाश्रम जग्मुहिमाद्राये पार्श्उत्तरे
पुष्पभद्रा नदी यत्र, चित्रख्या च शिला विभौ !! (१७)

Source of Information : Kumaon Ka Itihas Book.

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:


मानसखंड  में अल्मोड़ा नगरी के जिस पर्वत पर वसी है, उसका वर्णन इस प्रकार है,

  कौशिकी शाल्मली मध्ये पुण्य कापाय पर्वत:!
  तस्य पश्चिमे भागे वै क्षेत्र विष्णो प्रतिषीतम!!

मानसखंड, अध्याय २ 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:


पुराणों के अनुसार शिवजी जहां-जहां खुद प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है।

सौराष्ट्रे सोमनाथ च श्री शैले मल्लिकार्जुनम, उज्जयिन्या महाकाल, मोंधारे परमेश्वरम, केदार हिमवत्पृष्ठे, डाकिन्या भीमशंकरम वारासास्था च विश्वेश, त्र्यम्बक गौतमी तीरे, वैद्यनाथ चिता भूमौनागेश द्वारका वने। सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवाल्ये। द्वादशेतानिनामानि प्रातरुत्थायय: पठेत, सर्व पापैर्विनिर्मुक्त: सर्व सिद्धि फल लभत्।

हाँ पर "नागेश दारुकावने" जो शब्द है, उसका सम्बन्ध जागीश्वर से है ! क्योकि जागेश्वर देवदारु की बनी जागीश्वर का मंदिर होना मानसखंड में माना गया है, (हर्न्यसाग ने भी इसके बारे में लिखा है) 

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