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Muni ki reti Rishikesh Uttarakhand,विश्व का योग केन्द्र है। मुनि की रेती

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Devbhoomi,Uttarakhand:
विश्व का योग केन्द्र है। --------- मुनि की रेती  ये बात सायद ही हर कोई जानता होगा की मुनि की रेती का नाम विश्व के बड़े बड़े योग केन्द्रों मैं आता है !



आज गलतीवश ऋषिकेश का एक भाग समझा जाता है। लेकिन पवित्र गंगा के किनारे तथा हिमालय की तलहटी में अवस्थित इस छोटे से शहर की एक खास पहचान है।

मुनि की रेती भारत के योग, आध्यात्म तथा दर्शन को जानने के उत्सुक लोगों का केन्द्र है, यहां कई आश्रम हैं जहां स्थानीय आबादी के 80 प्रतिशत लोगों को रोजगार मिलता है और यह जानकर आश्चर्य नहीं होगा कि यह विश्व का योग केन्द्र है।

अनुभवों के खुशनुमा माहौल में प्राचीन मंदिरों, पवित्र पौराणिक घटना के कारण जाने वाली स्थानों, तथा एक सचमुच आध्यात्मिक स्वातंत्र्य का एक ठोस वास्तविक अहसास - और वो भी आरामदायक आधुनिक होटलों, रेस्टोरेन्ट तथा भीड़भाड़ वाले बाजारों में - उपलब्ध है।

 यहां इजराइली तथा इटालियन व्यंजनों के साथ शुद्ध शाकाहारी भोजन मिलता है, भजन-कीर्तन एंव आरती के साथ टेकनो संगीत, एक ओर पर्यटक गंगा में राफ्टिंग करते हैं और दुसरी और भक्त इसमें स्नान करते हैं; इनमें से जो भी आप ढुंढ रहे हैं, मुनि की रेती में ही आपको मिल जायेगा।

मुनि की रेती में इतिहास, पौराणिक परम्परा तथा आधुनिकता का एक जादुई मिश्रण है। जबकि यहां के लोग तथा सभ्यता रामायण तथा इससे भी पहले के युग से जुड़े हैं, यह शहर वर्तमान तथा भविष्य का एक बड़ा हिस्सा है। गंगा नदी के किनारे स्थित इस शहर का पर्यावरण प्रेरणा तथा शांत दोनों प्रदान करता है।

 मुनि की रेती के स्थानीय आकर्षणों में अनेकानेक प्राचीन मंदिर, आश्रम, परंपरागत स्थल शामिल हैं तथा भारत के वास्तविक रुप का आनंद उठाने का तीव्र मिश्रण है। शहर के आस-पास सैर-सपाटा आपको प्रसन्नता तथा शांति दोनो प्रदान करेगा।

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मुनि की रेती,का पौराणिक नाम

शालीग्राम वैष्णव ने उत्तराखंड रहस्य के 13वें पृष्ट पर वर्णन किया है कि रैम्या मुनि ने मौन रहकर यहां गंगा के किनारे तपस्या की ।
उनके मौन तपस्या के कारण इसका नाम मौन की रेती तथा बाद में समय के साथ-साथ यह धीरे-धीरे मुनि की रेती कहलाने लगा।आचार्य के अनुसार, इस शहर का वर्णन स्कन्द पुराण के केदार खण्ड में भी मिलता है।



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मुनि की रेती,का पौराणिक संदर्भ

ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम ने लंका में रावण को पराजित कर अयोध्या में कई वर्षो तक शासन किया और बाद में अपना राज्य अपने उत्तराधिकारियों को सौंप कर तपस्या के लिए उत्तराखंड की यात्रा की। प्राचीन शत्रुघ्न मंदिर के प्रमुख पुजारी गोपाल दत्त आचार्य के अनुसार जब भगवान राम इस क्षेत्र में आये तो उनके साथ उनके भाई तथा गुरु वशिष्ठ भी थे।

 गुरु वशिष्ठ के आदर भाव के लिए कई ऋषि-मुनि उनके पीछे चल पडे, चूंकि इस क्षेत्र की बालु (रेती) ने उनका स्वागत किया, तभी से यह मुनि की रेती कहलाने लगा।

मुनि की रेती तथा आस-पास के क्षेत्र रामायण के नायक भगवान राम तथा उनके भाइयों के पौराणिक कथाओं से भरे हैं। वास्तव में, कई मंदिरों तथा ऐतिहासिक स्थलों का नाम राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के नाम पर रखा गया है। यहां तक कि इस शहर का नाम भी इन्हीं पौराणिक कथाओं से जुड़ा है।

Guru Vashisth

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आओ जाने मुनि की रेती,का इतिहास


उत्तराखंड के इतिहास में मुनि की रेती की एक खास भूमिका है। यही वह स्थान है जहां से परम्परागत रुप से चार धाम यात्रा शुरु होती थी। यह सदियों से गढ़वाल हिमालय की ऊंची चढ़ाईयों तथा चार धामों का प्रवेश द्वार था।

जब तीर्थ यात्रियों का दल मुनि की रेती से चलकर अगले ठहराव गरुड़ चट्टी (परम्परागत रुप से तीर्थ यात्रियों के ठहरने के स्थान को चट्टी कहा जाता था) पर पहुंचाते थे तभी यात्रा से वापस आने वाले लोगों को मुनि की रेती वापस आने की अनुमति दी जाती थी। बाद में सड़कों एवं पूलों के निर्माण के कारण मुनि की रेती से ध्यान हट गया।

प्राचीन शत्रुघ्न मंदिर, मुनि की रेती का एक पवित्र स्थान था जहां से यात्रा वास्तव में शुरु होती थी। सम्पूर्ण भारत से आये भक्तगण इस मंदिर में सुरक्षित यात्रा के लिए प्रार्थना करते थे, गंगा में स्नान करने के बाद आध्यात्मिक शांति के लिए पैदल यात्रा शुरु करते थे।

श्री विनोद द्रिवेदी द्विवेदी, एक स्कूल शिक्षक जो इस शहर के इतिहास को जानने में अधिक रुचि रखते हैं, के अनुसार इस मंदिर की स्थापना नौंवी शताब्दी में आदि शंकराचार्य के द्वारा की गई।

मुनि की रेती टिहरी रियासत का एक हिस्सा था तथा शत्रुघ्न मंदिर की देखभाल टिहरी के राजा करते थे। वास्तव में, वहां जहां आज लोक निर्माण विभाग का आवासीय क्वार्टर है पहले रानी का घाट था यहां पहले टिहरी की रानी तथा उनकी दासिया स्नान करने आती थीं।

 इससे थोड़ी दूर राजधराने के मृतकों के दाह-संस्कार का स्थान तथा फुलवाडी थे। दुर्भाग्य से उस स्थान पर अब कुछ भी पुराना मौजूद नहीं है।

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इस शहर के एक बुजुर्ग निवासी, श्री एच एल बदोला कहते हैं कि “टिहरी के राजा लालची नहीं थे, उन्होंने बहुत सारी जमीन जैसे देहरादून तथा मसुरी अंग्रेजों को दे दी। उन्होंने ऋषिकेश में रेलवे निर्माण के लिए जमीन दी तथा ऋषिकेश के रावत ने ऋषिकेश तक रेल स्टेशन बनाने का खर्च दिया। राजा ने अगर थोड़ा और भी सोचा होता तो आसानी से रेल मार्ग मुनि की रेती तक पहूंच जाता।”

उन दिनों रेलवे स्टेशन से मुनि की रेती तक बैलगाड़ी से पहूंचा जाता था और जब तक कि चन्द्रभाग पुल का निर्माण रियासत सरकार द्वारा न कराया गया तब तक हाथी के पीठ पर बैठकर नदी पार किया जाता था। श्री बदोला कहते हैं कि खास इसी मकसद के लिए राजा मुनि की रेती में एक हाथी रखते थे।

कैलाश आश्रम की स्थापना वर्ष 1880 में हुई और इस आश्रम के आस-पास धीरे-धीरे शहर का विकास हुआ जहां चाय की कुछ दूकानें थी, जो आध्यात्मिक ज्ञान सीखने आये लोगों के लिए बनी थी। वर्ष 1932 में शिवानन्द आश्रम की स्थापना हुई जिनका इस शहर को योग एवं वेदान्त केन्द्र के रुप में विकास के लिए एक बड़ा योगदान है। इसका श्रेय इसके संस्थापक स्वामी शिवानन्द को जाता है जिन्होंने योग एवं वेदान्त को आसानी से समझने लायक बनाकर पश्चिम के देशों में प्रसिद्ध किया।

वर्ष 1986 में महर्षि महेश योगी ट्रांसेन्डेन्टल आश्रम (जो अभी मरम्मत के अभाव में गिर चुका है, तथा नोएडा में स्थानांतरित हो चुका है) में बीटल्स के आगमन ने भी मुनि की रेती को अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि दिलाई।

लेकिन इतिहास के जिस भी समय की बात करें मुनि की रेती ने आध्यात्मिक महत्व एवं विचारों के पौराणिक ज्ञान के केन्द्र के रुप में अग्रणीय स्थान पाया है।


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