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Nanda Raj Jat 2014 update -हिमालयी कुम्भ नंदा राज जात 18 अगस्त से 06 सितम्बर 14

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Dosto,

Nanda Raj Jaat 2014 has commenced from today i.e. 18 Aug 2014. This is the longest religious journey on foot in Asia. We will provide all the update of Nanda Raj Jat this in this thread.

The details of Nand Raj Jaat is as under :

श्रीनंदा राजजात 2014 कार्यक्रम
(18 अगस्त से 06 सितंबर तक )

दिनांक यात्रा के पड़ाव पदयात्रा (किमी में) समुद्र तल से ऊंचाई (मी. में)
18/8/2014 श्रीनंदा देवी राजराज 10 1240 मी
का शुभारंभ।
नौटी से ईड़ाबधाणी
विशेष : पवित्र राज छंतोली और स्वर्ण प्रतिमा पर प्राण प्रतिष्ठा। यात्रा का शुभारंभ प्रात: 11.40 बजे।
19/8/2014 ईड़ाबधाणी से नौटी 10 1650 मी
20/8/2014 नौटी से कांसुवा 10 1530 मी
21 /82014 कांसुवा से सेम 10 1530 मी
विशेष : चांदपुर गढ़ी में राज परिवार करेगा मां नंदा की पूजा।
23/8/2014 कोटी से भगोती 12 1500 मी
24/8/2014 भगोती से कुलसारी 12 1050 मी
विशेष : कुलसारी मंदिर में अमावस्या की रात को मां काली की श्रीयंत्र की विशेष पूजा-अर्चना।
25/8/2014 कुलसारी से चेपड्यूं 10 1165 मी
26/8/2014 चेपड्यूं से नंदकेशरी 05 1200 मी
27/8/2014 नंदकेशरी से फल्दियागांव 10 1480 मी
28/8/2014 फल्दियागांव से मुंदोली 10 1750 मी
29/8/2014 मुंदोली से वांण 15 2450 मी
30/8/2014 वांण से गरोली पातल 10 3032 मी
31/8/2014 गरोली पातल से वैदनी कुंड 03 3450 मी
01/9/2014 वैदनी से पातरनचौणियां 09 3650 मी
02/9/2014 पातरनचौणिंया से शिलासमुद्र 15 4210 मी
03/9/2014 शिलासमुद्र से होमकुंड 16 4450 मी
विशेष : नंदानवमी को प्रात: 10.45 मिनट पर मां श्रीनंदा की राजजात की पूजा। चार सिंग के मेढ़ा को विदा किया जाता है। इसी दिन वापसी के तहत रात्रि विश्राम के लिए चंदनियाघाट
04/9/2014 चंदनियाघाट से सुतोल 18 2192 मी
5/9/2014 सुतोल से घाट 25 1331 मी
6/9/2014 घाट से नौटी (बस से) 60 1331 मी
वापसी में नंदप्रयाग, लंगासू, कर्णप्रयाग और ईड़ाबधाणी में राजजात का सुफल भी दिया जाएगा। जबकि 7 सितंबर को नौटी में नौ दिवसीय श्रीमद् देवी भागवत के विसर्जन और कांसुवा के कुंवरों की विदाई के साथ ही राजजात का विधिवत समापन हो जाएगा।

M S Mehta

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
ऐसे होता है मां नंदा देवी और भोले का मिलन




मां नंदा को उनकी ससुराल भेजने की यात्रा है राजजात। मां नंदा को भगवान शिव की पत्नी माना जाता है और कैलास (हिमालय) भगवान शिव का निवास।

मान्यता है कि एक बार नंदा अपने मायके आई थीं। लेकिन किन्हीं कारणों से वह 12 वर्ष तक ससुराल नहीं जा सकीं। बाद में उन्हें आदर-सत्कार के साथ ससुराल भेजा गया।

चमोली जिले में पट्टी चांदपुर और श्रीगुरु क्षेत्र को मां नंदा का मायका और बधाण क्षेत्र (नंदाक क्षेत्र) को उनकी ससुराल माना जाता है।

एशिया की सबसे लंबी पैदल यात्रा और गढ़वाल-कुमाऊं की सांस्कृतिक विरासत श्रीनंदा राजजात अपने में कई रहस्य और रोमांच को संजोए है।

कैसे होगी यात्रा
- 18 अगस्त से शुरू होकर 06 सितंबर, 14 तक चलेगी यात्रा
- चमोली के नौटी से यात्रा उच्च हिमालयी क्षेत्र होमकुंड पहुंचती है
- राजजात का समापन कार्यक्रम 07 सितंबर को नौटी में होगा
- 20 दिन में बीस पड़ावों से होकर गुजरते हैं राजजात के यात्री
- 280 किमी की यह यात्रा कई निर्जन पड़ावों से होकर गुजरती है
- आमतौर पर हर 12वर्ष पर होती है, इस बार 14 वें वर्ष में हो रही
- होमकुंड समुद्र तल से 17500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है
- इसलिए इस यात्रा को हिमालयी महाकुंभ के नाम से भी जानते हैं
- राजजात गढ़वाल-कुमाऊं के सांस्कृतिक मिलन का भी प्रतीक
- जगह-जगह से डोलियां आकर इस यात्रा में शामिल होती हैं

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
ऐसे होता है मां नंदा देवी और भोले का मिलन
7वीं शताब्दी में हुई शुरुआत
7वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा शालिपाल ने राजधानी चांदपुर गढ़ी से देवी श्रीनंदा को 12वें वर्ष में मायके से कैलास भेजने की परंपरा शुरू की।

राजा कनकपाल ने इस यात्रा को भव्य रूप दिया। इस परंपरा का निर्वहन 12 वर्ष या उससे अधिक समय के अंतराल में गढ़वाल राजा के प्रतिनिधि कांसुवा गांव के राज कुंवर, नौटी गांव के राजगुरु नौटियाल ब्राह्मण सहित 12 थोकी ब्राह्मण और चौदह सयानों के सहयोग से होता है।

चौसिंगा खाडू
चौसिंगा खाडू (काले रंग का भेड़) श्रीनंदा राजजात की अगुवाई करता है। मनौती के बाद पैदा हुए चौसिंगा खाडू को ही यात्रा में शामिल किया जाता है।

राजजात के शुभारंभ पर नौटी में विशेष पूजा-अर्चना के साथ इस खाडू के पीठ पर फंची (पोटली) बांधी जाती है, जिसमें मां नंदा की श्रृंगार सामग्री सहित देवी भक्तों की भेंट होती है। खाडू पूरी यात्रा की अगुवाई करता है।

होमकुंड में इस खाडू को पोटली के साथ हिमालय के लिए विदा किया जाता है।

http://www.dehradun.amarujala.com/feature/city-news-dun/nanda-devi-raj-jat-yatra-of-uttarakhand-hindi-news-1/?page=1

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
यात्रा का शुभारंभ स्थल है नौटी
सिद्धपीठ नौटी में भगवती नंदादेवी की स्वर्ण प्रतिमा पर प्राण प्रतिष्ठा के साथ रिंगाल की पवित्र राज छंतोली और चार सींग वाले भेड़ (खाडू) की विशेष पूजा की जाती है।

कांसुवा के राजवंशी कुंवर यहां यात्रा के शुभारंभ और सफलता का संकल्प लेते हैं। मां भगवती को देवी भक्त आभूषण, वस्त्र, उपहार, मिष्ठान आदि देकर हिमालय के लिए विदा करते हैं।

कब-कब हुई श्रीनंदा राजजात
राजजात समिति के अभिलेखों के अनुसार हिमालयी महाकुंभ श्रीनंदा देवी राजजात वर्ष 1843, 1863, 1886, 1905, 1925, 1951, 1968, 1987 तथा 2000 में आयोजित हो चुकी है।

वर्ष 1951 में मौसम खराब होने के कारण राजजात पूरी नहीं हो पाई थी। जबकि वर्ष 1962 में मनौती के छह वर्ष बाद वर्ष 1968 में राजजात हुई।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
पहला पड़ाव : ईड़ाबधाणी

नौटी से यात्रा के शुरू होते ही श्रद्धा का सैलाब उमड़ता रहता है। ढोल-दमाऊं और पौराणिक वाद्य यंत्रों के साथ ईड़ाबधाणी पहुंचने पर मां श्रीनंदा का भव्य स्वागत किया जाता है।

दूसरा पड़ाव : नौटी

ईड़ाबधाणी से दूसरे दिन राजजात रिठोली, जाख, दियारकोट, कुकडई, पुडियाणी, कनोठ, झुरकंडे और नैंणी गांव का भ्रमण करते हुए रात्रि विश्राम के लिए नौटी पहुंचती है। यहां मंदिर में मां नंदा का जागरण होता है।
तीसरा पड़ाव : कांसुवा
नौटी से मां श्रीनंदा तीसरे पड़ाव कांसुवा गांव पहुंचती हैं, जहां राजवंशी कुंवर माई नंदा और यात्रियों का भव्य स्वागत करते हैं। यहां भराड़ी देवी और कैलापीर देवता के मंदिर हैं। भराड़ी चौक में चार सिंग के मेढ और पवित्र छंतोली की पूजा होती है।

चौथा पड़ाव : सेम
कांसुवा से सेम जाते समय चांदपुर गढ़ी विशेष राजजात का आकर्षण का केंद्र रहता है। यहां से महादेव घाट मंदिर होते हुए उज्ज्वलपुर, तोप की पूजा प्राप्त कर देवी सेम गांव पहुंचती है। यहां गैरोली और चमोला गांव की छंतोलियां शामिल होती हैं।
पांचवां पड़ाव : कोटी
सेम से धारकोट, घड़ियाल और सिमतोली में देवी की पूजा होती है। सितोलीधार में देवी की कोटिश प्रार्थना की जाती है, इसलिए धार के दूसरे छोर पर स्थित गांव का नाम कोटी पड़ा। कोटी पहुंचने पर देवी की विशेष पूजा होती है।

छठा पड़ाव : भगोती
भगोती मां श्रीनंदा के मायके क्षेत्र का सबसे अंतिम पड़ाव है। यहां केदारु देवता की छंतोली यात्रा में शामिल होती है।
सातवां पड़ाव : कुलसारी
मायके से विदा होकर मां श्रीनंदा की छंतोली अपनी ससुराल के पहले पड़ाव कुलसारी पहुंचती हैं। यहां पर राजजात हमेशा अमावस्या के दिन पहुंचती है।

आठवां पड़ाव : चेपड्यूं
कुलसारी से विदा होकर थराली पहुंचने पर भव्य मेला लगता है। यहां कुछ दूरी पर देवराड़ा गांव है, जहां बधाण की राजराजेश्वरी नंदादेवी वर्ष में छ: माह रहती है। चेपड्यूं बुटोला थोकदारों का गांव है। यहां मां नंदादेवी की स्थापना घर पर की गई है।
नौवां पड़ाव : नंदकेशरी
वर्ष 2000 की राजजात में नंदकेशरी राजजात पड़ाव बना। यहां पर बधाण की राजराजेश्वरी नंदादेवी की डोली कुरुड से चलकर राजजात में शामिल होती है। कुमाऊं से भी देव डोलियां और छंतोलियां शामिल होती हैं।
दसवां पड़ाव : फल्दियागांव
नंदकेशरी से फल्दियागांव पहुंचने के दौरान देवी मां पूर्णासेरा पर भेकलझाड़ी यात्रा में विशेष महत्व है।

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