Author Topic: Nanda Raj Jat Story - नंदा राज जात की कहानी  (Read 139428 times)

विनोद सिंह गढ़िया

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सज्जनों, मेरा पहाड़ डॉट कॉम नेटवर्क द्वारा श्री नन्दादेवी राजजात यात्रा के पड़ावों पर कुछ दिन पूर्व पोस्टर की एक सीरीज प्रारम्भ की थी, जो अब अन्तिम दौर में है। यह अन्तिम पोस्टर श्री नन्दादेवी राजजात यात्रा के 18वें पड़ाव 'घाट' का है। राजछंतोली वाला दल यहीं पर रात्रि विश्राम करने के बाद अगले दिन बस द्वारा नौटी वापस पहुँचता है और यात्रा पूर्ण होती है।

इस प्रकार 19 पड़ाव पार कर राजजात यात्रा पूर्ण होती है।

श्री नन्दादेवी राजजात यात्रा पर बनाये गए पोस्टर सीरीज को समाप्त करने से पहले मैं हमारे वरिष्ठ सदस्य श्री हेम पन्त जी का आभार व्यक्त करूंगा जिन्होंने मुझे इस कार्य पर मेरा मार्गदर्शन किया, तत्पश्चात मैं श्री पंकज महर जी का धन्यवाद करूँगा जिनके बिना यह कार्य पूर्ण होना सम्भव न था एवं श्री ऍम.एस.मेहता जी जिन्होंने मेरा उत्साहवर्धन किया। साथ ही 'मेरा पहाड़ डॉट कॉम' परिवार के अन्य सभी सदस्यों और इसके दर्शकों,पाठकों का आभार जिन्होंने इतना प्यार दिया।


धन्यवाद

(विनोद सिंह गढ़िया



विनोद सिंह गढ़िया

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नन्दा को उत्तराखण्ड की बेटी माना जाता है और नन्दा राज जात भी इसी का प्रतीक है, जैसे अपनी बेटी को बुलाने और पहुंचाने की प्रक्रिया होती है, वैसे ही इस पर्व में नन्दा को बुलाने और ससुराल भेजा जाता है।
नन्दा जात में शरद ऋतु के आगमन पर गंगाड़ी साक समौण के साथ नन्दा को बुलाने जाते हैं और पतझड़ के आगमन से पूर्व नन्दा को ससुराल भेजा जाता है।

शरद ऋतु के आगमन पर नन्दा का आगमन होता है, मैतुड़ा (मायका) के देश पहुँचने पर गीत गाये जाते हैं-




विनोद सिंह गढ़िया

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[justify]नन्दा को उत्तराखण्ड की बेटी माना जाता है और नन्दा राज जात भी इसी का प्रतीक है, जैसे अपनी बेटी को बुलाने और पहुंचाने की प्रक्रिया होती है, वैसे ही इस पर्व में नन्दा को बुलाने और ससुराल भेजा जाता है।
नन्दा जात में शरद ऋतु के आगमन पर गंगाड़ी साक समौण के साथ नन्दा को बुलाने जाते हैं और पतझड़ के आगमन से पूर्व नन्दा को ससुराल भेजा जाता है।
नन्दा जी को जब ससुराल भेजा जाता है तो वे अपने माता-पिता से रुनेड़ा लगाती हैं और फिर माता-पिता उनके आंसू पोंछते हुए समझाते हैं। जो इस पोस्टर के माध्यम से आपके सम्मुख है।



Vinod Gariya

Bhishma Kukreti

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                     Latu Devta: Adopted Brother of Deity Nanda Devi
Folklore, Folk Legends, Folk Myths of Kumaon-Garhwal, Uttarkahnd-1
                           Bhishma Kukreti
[Notes on Folklore, Folk Legends, Folk Myths of Kumaon-Garhwal, Uttarakhand;  Folklore, Folk Legends, Folk Myths of Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand;  Folklore, Folk Legends, Folk Myths of Nainital Kumaon, Uttarakhand; Folklore, Folk Legends, Folk Myths of Almora Kumaon, Uttarakhand;  Folklore, Folk Legends, Folk Myths of Bageshwar Kumaon, Uttarakhand;  Folklore, Folk Legends, Folk Myths of Champavat Kumaon, Uttarakhand;  Folklore, Folk Legends, Folk Myths of Pithauragarh Kumaon-Garhwal, Uttarakhand;  Folklore, Folk Legends, Folk Myths of Garhwal, Uttarakhand; Folk Legends, Folk Myths of Haridwar/Hardwar Garhwal, Uttarakhand; Folk Legends, Folk Myths of Dehradun Garhwal, Uttarakhand; Folk Legends, Folk Myths of Uttarkashi Garhwal, Uttarakhand; Folk Legends, Folk Myths of Tihri Garhwal, Uttarakhand; Folk Legends, Folk Myths of Chamoli Garhwal, Uttarakhand; Folk Legends, Folk Myths of Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand; Folk Legends, Folk Myths of Pauri Garhwal, Uttarakhand]

                         Latu deity is one of the important deities worshipped in northern Garhwal. Nanda Devi is one of the most worshipped goddesses in Kumaon and Garhwal.
               There is folk story about Latu deity.
                   Once, in Kailash, Bhagwati Nanda was feeling sadness. She was very unrest mentally and was sitting still for hours. Lord Shiva asked the reasons for her sadness. Goddess Nanda told that she does not have any brother to remind her seasonal changes. Goddess Nanda requested Shiva her to find a brother. Lord gave permission.
   Goddess Nanda reached to prime minister of Kannauj. The name of wife of prime minister was maina too as Nanda’s mother’s name was also Maina. Maina asked the reasons for Nanda’s coming to Kannauj. Nanda told that she does not have brother to provide her seasonal gifts. Maina had two brilliant sons Batu and Latu. Nanda requested Maina to give her Latu as Nanda’s adopted brother. After continuous persuasion from Nanda, Maina gave her son to Nanda.
   Nanda reached Ban village by passing Bans Bhabhar, Ringal Bhabhar, Anvala Bhabhar, Ver Bhabhar and Burans Bhabhar. Nanda went to KailNadi for bathing. Latu was sitting on the road. Latu felt thirsty and he asked water from village women of ban village. The women, instead of offering water to Latu, gave some jand-mand (addictive) juice to Latu. Latu became unconscious. Nanda came to know the realities through her potent spiritual knowledge and cured Latu. Nanda told to Latu that there would be his temple in Ban village. Nanda also promised Latu that Nautiyals of Nauti village would be priest for that Latu temple.  Nanda told to her brother Latu that when at every twelve years people would bring Nanda Jat procession, people will also worship Latu. She promised that none other than Nauitylas would be permitted to enter into Latu temple.
 From that day, people worship Latu along with Nanda deity. People also offer goat as sacrifice to deity.
 Nautiyals open the Latu temple of Ban village and they only shut the door of Latu temple.

Curtsey and references:
 Dr Trilochan Pandey, Kumaoni Bhasha aur Uska Sahity
Dr Siva Nand Nautiyal, Garhwal ke Lok Nrityageet 
Dr Govind Chatak, Garhwali Lokgathayen
Dr Urbi datt Upadhyaya, Kumaon ki Lokgathaon ka Sahityik Adhyan
Dr. Prayag Joshi, Kumaon Garhwal ki Lokgathaon ka Vivechnatmak Adhyayan
Dr Dinesh Chandra Baluni, Uttarakhand ki Lokgathayen
Dr Jagdish (Jaggu) Naudiyal, Uttarakhand ki Sanskritik Dharohar, (Ravain) 
Copyright (Interpretation) @ Bhishma Kukreti, 8/4/2013
Folklore, Folk Legends, Folk Myths of Kumaun-Garhwal, Uttarakhand- to be continued…2
Notes on Folklore, Folk Legends, Folk Myths of Kumaon-Garhwal, Uttarakhand;  Folklore, Folk Legends, Folk Myths of Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand;  Folklore, Folk Legends, Folk Myths of Nainital Kumaon, Uttarakhand; Folklore, Folk Legends, Folk Myths of Almora Kumaon, Uttarakhand;  Folklore, Folk Legends, Folk Myths of Bageshwar Kumaon, Uttarakhand;  Folklore, Folk Legends, Folk Myths of Champavat Kumaon, Uttarakhand;  Folklore, Folk Legends, Folk Myths of Pithauragarh Kumaon-Garhwal, Uttarakhand;  Folklore, Folk Legends, Folk Myths of Garhwal, Uttarakhand; Folk Legends, Folk Myths of Haridwar/Hardwar Garhwal, Uttarakhand; Folk Legends, Folk Myths of Dehradun Garhwal, Uttarakhand; Folk Legends, Folk Myths of Uttarkashi Garhwal, Uttarakhand; Folk Legends, Folk Myths of Tihri Garhwal, Uttarakhand; Folk Legends, Folk Myths of Chamoli Garhwal, Uttarakhand; Folk Legends, Folk Myths of Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand; Folk Legends, Folk Myths of Pauri Garhwal, Uttarakhand to be continued…


msnegi

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Bahut he achi information hai...

vipin gaur

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Re: Nanda Raj Jat Story - नंदा राज जात की कहानी
« Reply #205 on: February 14, 2014, 09:29:37 AM »
कैलवा विनायक का वास्तविक इतिहास

लेखक -विपिन चन्द्र गौड़
कई बार जब इन्टरनेट पर पढता हूँ कि कैलवा विनायक के बारे मेँ कि कैलवा(कैलु) एक गण था तथा अनाप शनाप लिख देते है अरे जब पता ना है तो गलत क्योँ लिख देते हैँ?

नन्दा राजजात मे रूपकुण्ड , वेदिनी बुग्याल, पातर नचोणियाँ  ,कैलवा विनायक , आदि नाम आपने सुने होँगे ।

16 वीँ सदी मेँ नन्दा देवी के मुख्य पुजारी श्री कैलवा दत्त एक बार जब माँ नन्दा देवी राजजात पूर्ण करा के वापिस घर की ओर आ रहे थे तो उन्होँने सोचा की मेरी तो सन्तान भी नही है मैँ घर जा कर क्या करूँगा यदि भगवती का ध्यान करूँ तो मेरा जीवन सफल हो जाएगायही सोचकर उन्होँने राजजात यात्रा को घर भेज दिया । उस समय राजजात नहीँ कहते थे बल्कि "बड़ी जात" कहते थे  उस समय भी चांदपुर गढी तथा बधाण गढी की समस्त जनता का सिद्धपीठ कुरुड़ की नन्दा देवी के  प्रति विशेष धार्मिक विश्वास था।तब कैलवा दत्त ने समस्त जनता को घर भेज कर स्वयं उस स्थान पर एक छोटा सा मन्दिर बनाकर एक गणेश भगवान की मूर्ति को वहाँ पर स्थापित कर दी।और यहाँ पर भगवान का ध्यान करने के लिए बैठ गये  कई सालोँ तक तपस्या करने के बाद एक रात अचानक महामाया ने एक 16 साल की बच्ची के रूप मे दर्शन दिये और कहा कि अमुक  गाँव मेँ महामारी फैली है तथा वहाँ लोग मर रहे है तुम वहाँ जा कर उन पर जल सीँचन करो तो महामारी खत्म हो जाएगी और वे लोग यदि दक्षिणा दे तो मेरा हाथ मांग लेना और योगमाया ने एक माला दे दी और कहा यदि तुम इस माला को सुल्टा जपोगे तो बारिश शुरु होगी तथा उल्टा जपने से बारिश रुक जाएगी। जब कैलवा दत्त की नींद खुली तो वो इस सपने को भूल चुके थे थोड़ी देर भाद जब एक माला
उन्हे दिखाई तो उन्हे सब कुछ सपने मे जो भी दिखा  सब याद आ गया।
उसी समय अपना कमंडल उठाकर चले उस गाँव(ये गाँव बधाण पट्टी मेँ है गाँव का नाम भूल गया हूँ)।
गाँव पहुँचते ही सर्वप्रथम वही कन्या दिखाई दी कैलवा दत्त आश्चर्य चकित हो गए उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम रुक्मिणी बताया तब तक और गाँव के लोग भी आ गए उन्होने आप इस गाँव मे क्योँ आए यहाँ तो महामारी फैली है तो उन्होने कहा मुझे माँ नन्दा ने स्वप्न मे सब कुछ बता दिया तब उन्होँने सभी पर मंत्रोँ का जाप कर पानी सीँचन किया चार पाँच  दिन मे सभी का स्वास्थ्य सही होने लगा तो उनकी खुशी का ठिकाना ना रहा भाव विह्वल होकर सभी ने कहा पण्डित जी सब आपका है आप कुछ भी ले लो तो कैलवा दत्त जी ने कहा कि रुक्मिणी का हाथ दे दो मुझे और कुछ नहीँ चाहिए सभी ने खुशी खुशी रुक्मिणी का हाथ दे कर विदा कर दिया।इधर उनके गाँव कुरुड़ मे लोगोँ ने सोचा कि कैलवा दत्त इतने सालोँ से घर नही आए तो अब जीवित न होँगेँ उधर कैलवा दत्त रुक्मिणी को लेकर जैसे ही "बोँठा विनायक" पहुँचे(ये एक पहाड़ की चोटी है जहाँ से पिछली तरफ बधाण पट्टी तथा आगे की तरफ दशोली पट्टी दिखती हे)
वहा उन्होँने एक ऊँचा शंखनाद किया ये शंखनान नन्दा देवी मन्दिर कुरुड़ तक सुनाई दिया  अगल बगल के गाँव के लोगोँ ने जब ये शंखनाद सुना तो वे आश्चर्य चकित हो गए कि ये ध्वनि तो केवल पुजारी कैलवा दत्त ही बजाते हैँ तब सभी गाँवो के लोग एकत्रित होकर कहने लगे कि-कैलु ऐग कैलु ऐग(अर्थात कैलवा आ गया) ।जब कैलवा दत्त आए तो लोगोँ की खुशी का ठिकाना ना रहा।तथा  रुक्मिणी को देख के भी बहुत खुश हुए कि अब नन्दा देवी के पुजारियोँ का  वंश बढेगा।तब कैलवा जी ने नन्दा देवी की दी हुई "मेघमाला" के बारे मे भी बताया तो ये सारे राज्य मेँ ये बात फैल गई  दूर दूर से लोग आने लगे स्वयं एक बार अल्मोड़ा के राजा बारिश के लिए कैलवा दत्त के पास आए थे तथा खुशी खुशी वापस गए तो उनके राज्य मेँ सचमुच वर्षा हो रही थी तथा वे भी मानने लगे कि वास्तव मेँ कुरुड़ ही नन्दा का थान है।तब कैलवा दत्त के पुत्र हुए तथा उनका वंश आगे बढता गया तथा  ये गौड़ ब्राह्मण हमेशा माँ की भक्ति मे लीन रहे ।कैलवा दत्त से बढे वंश मे  श्री श्यामा दत्त गौड़ के पास तक ये माला रही।श्यामा दत्त जी का नाम मेघमाला के चमत्कार के कारण आजकल भी कई लोगो के मुँह से सुनने को मिलता है।श्यामा दत्त के देहान्त के बाद ये माला चमत्कारिक रूप से गायब हो गई।
लेखक विपिन चन्द्र गौड़
श्रीनगर

vipin gaur

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Re: Nanda Raj Jat Story - नंदा राज जात की कहानी
« Reply #206 on: February 14, 2014, 09:40:27 AM »
कैलवा विनायक का वास्तविक इतिहास

लेखक -विपिन चन्द्र गौड़
कई बार जब इन्टरनेट पर पढता हूँ कि कैलवा विनायक के बारे मेँ कि कैलवा(कैलु) एक गण था तथा अनाप शनाप लिख देते है अरे जब पता ना है तो गलत क्योँ लिख देते हैँ?

नन्दा राजजात मे रूपकुण्ड , वेदिनी बुग्याल, पातर नचोणियाँ  ,कैलवा विनायक , आदि नाम आपने सुने होँगे ।

16 वीँ सदी मेँ नन्दा देवी के मुख्य पुजारी श्री कैलवा दत्त एक बार जब माँ नन्दा देवी राजजात पूर्ण करा के वापिस घर की ओर आ रहे थे तो उन्होँने सोचा की मेरी तो सन्तान भी नही है मैँ घर जा कर क्या करूँगा यदि भगवती का ध्यान करूँ तो मेरा जीवन सफल हो जाएगायही सोचकर उन्होँने राजजात यात्रा को घर भेज दिया । उस समय राजजात नहीँ कहते थे बल्कि "बड़ी जात" कहते थे  उस समय भी चांदपुर गढी तथा बधाण गढी की समस्त जनता का सिद्धपीठ कुरुड़ की नन्दा देवी के  प्रति विशेष धार्मिक विश्वास था।तब कैलवा दत्त ने समस्त जनता को घर भेज कर स्वयं उस स्थान पर एक छोटा सा मन्दिर बनाकर एक गणेश भगवान की मूर्ति को वहाँ पर स्थापित कर दी।और यहाँ पर भगवान का ध्यान करने के लिए बैठ गये  कई सालोँ तक तपस्या करने के बाद एक रात अचानक महामाया ने एक 16 साल की बच्ची के रूप मे दर्शन दिये और कहा कि अमुक  गाँव मेँ महामारी फैली है तथा वहाँ लोग मर रहे है तुम वहाँ जा कर उन पर जल सीँचन करो तो महामारी खत्म हो जाएगी और वे लोग यदि दक्षिणा दे तो मेरा हाथ मांग लेना और योगमाया ने एक माला दे दी और कहा यदि तुम इस माला को सुल्टा जपोगे तो बारिश शुरु होगी तथा उल्टा जपने से बारिश रुक जाएगी। जब कैलवा दत्त की नींद खुली तो वो इस सपने को भूल चुके थे थोड़ी देर भाद जब एक माला
उन्हे दिखाई तो उन्हे सब कुछ सपने मे जो भी दिखा  सब याद आ गया।
उसी समय अपना कमंडल उठाकर चले उस गाँव(ये गाँव बधाण पट्टी मेँ है गाँव का नाम भूल गया हूँ)।
गाँव पहुँचते ही सर्वप्रथम वही कन्या दिखाई दी कैलवा दत्त आश्चर्य चकित हो गए उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम रुक्मिणी बताया तब तक और गाँव के लोग भी आ गए उन्होने आप इस गाँव मे क्योँ आए यहाँ तो महामारी फैली है तो उन्होने कहा मुझे माँ नन्दा ने स्वप्न मे सब कुछ बता दिया तब उन्होँने सभी पर मंत्रोँ का जाप कर पानी सीँचन किया चार पाँच  दिन मे सभी का स्वास्थ्य सही होने लगा तो उनकी खुशी का ठिकाना ना रहा भाव विह्वल होकर सभी ने कहा पण्डित जी सब आपका है आप कुछ भी ले लो तो कैलवा दत्त जी ने कहा कि रुक्मिणी का हाथ दे दो मुझे और कुछ नहीँ चाहिए सभी ने खुशी खुशी रुक्मिणी का हाथ दे कर विदा कर दिया।इधर उनके गाँव कुरुड़ मे लोगोँ ने सोचा कि कैलवा दत्त इतने सालोँ से घर नही आए तो अब जीवित न होँगेँ उधर कैलवा दत्त रुक्मिणी को लेकर जैसे ही "बोँठा विनायक" पहुँचे(ये एक पहाड़ की चोटी है जहाँ से पिछली तरफ बधाण पट्टी तथा आगे की तरफ दशोली पट्टी दिखती हे)
वहा उन्होँने एक ऊँचा शंखनाद किया ये शंखनान नन्दा देवी मन्दिर कुरुड़ तक सुनाई दिया  अगल बगल के गाँव के लोगोँ ने जब ये शंखनाद सुना तो वे आश्चर्य चकित हो गए कि ये ध्वनि तो केवल पुजारी कैलवा दत्त ही बजाते हैँ तब सभी गाँवो के लोग एकत्रित होकर कहने लगे कि-कैलु ऐग कैलु ऐग(अर्थात कैलवा आ गया) ।जब कैलवा दत्त आए तो लोगोँ की खुशी का ठिकाना ना रहा।तथा  रुक्मिणी को देख के भी बहुत खुश हुए कि अब नन्दा देवी के पुजारियोँ का  वंश बढेगा।तब कैलवा जी ने नन्दा देवी की दी हुई "मेघमाला" के बारे मे भी बताया तो ये सारे राज्य मेँ ये बात फैल गई  दूर दूर से लोग आने लगे स्वयं एक बार अल्मोड़ा के राजा बारिश के लिए कैलवा दत्त के पास आए थे तथा खुशी खुशी वापस गए तो उनके राज्य मेँ सचमुच वर्षा हो रही थी तथा वे भी मानने लगे कि वास्तव मेँ कुरुड़ ही नन्दा का थान है।तब कैलवा दत्त के पुत्र हुए तथा उनका वंश आगे बढता गया तथा  ये गौड़ ब्राह्मण हमेशा माँ की भक्ति मे लीन रहे ।कैलवा दत्त से बढे वंश मे  श्री श्यामा दत्त गौड़ के पास तक ये माला रही।श्यामा दत्त जी का नाम मेघमाला के चमत्कार के कारण आजकल भी कई लोगो के मुँह से सुनने को मिलता है।श्यामा दत्त के देहान्त के बाद ये माला चमत्कारिक रूप से गायब हो गई।
लेखक विपिन चन्द्र गौड़
श्रीनगर

vipin gaur

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Re: Nanda Raj Jat Story - नंदा राज जात की कहानी
« Reply #207 on: February 14, 2014, 09:57:43 AM »
नन्दा देवी का मायका "कुरुड़"(पत्थरोँ का गाँव)

क्या आप जानते हैँ कि माँ नन्दा देवी राजराजेश्वरी का मायका एक ऐसा गाँव है जहाँ पत्थरोँ का एक जंगल है।  चारोँ ओर पत्थर ही पत्थर। पत्थर भी छोटे मोटे नही बड़े बड़े पत्थर विशालकाय हाथी जितने या उससे भी बड़े बड़े पत्थरोँ का जखीरा।

लेखक विपिन चन्द्र गौड़

शायद आपने इतने पत्थर किसी गाँव मेँ न देखेँ होँ।

एक और दिलचस्प बात कि इन पत्थरोँ का रंग काला है एक इतिहास को बयान करते ये पत्थर अपने आप मेँ एक ऐतिहासिक धरोहर है।
इन पत्थरोँ के इतिहास के बारे मे बुजुर्ग कहते हैँ कि द्वापर युग मे एक राक्षस अपना साम्राज्य फैलाते फैलाते दशौली के इस गाँव मेँ आ धमका लेकिन यहाँ माँ ऩन्दा भगवती  का थान स्थान होने के कारण वह राक्षस माँ नन्दा के साथ युद्ध करने लगा ।शस्त्रोँ से पराजित करके माँ ने राक्षस को सम्मुख बिन्सर की पहाड़ी मेँ फेँक दिया लेकिन वो चुप ना बैठा उसने बिन्सर की पहाड़ी का आधा पहाड़ माँ के थान स्थान  भद्रेश्वर पर्वत पर दे मारा जहाँ माँ नन्दा देवी विराजमान थी लेकिन माँ भगवती के शरीर से टकराते ही ये पत्थर हजारो टुकड़ोँ मे इस स्थाने के चारोँ ओर कुछ स्थानोँ पर पड़ गये।तब माँ ने त्रिशूल के एक वार से  उस राक्षस का अन्त कर दिया लेकिन ये विशालकाय पत्थर यही पड़े रहे  तथा इन टुकड़ोँ का आकार विशालकाय जानवरोँ जैसा है। बाद मे माँ नन्दा देवी इन पत्थरोँ मे शिला रूप मे बस गई। अब धीरे धीरे स्थानीय लोग इन पत्थरोँ को तोड़कर अपने घर बना रहे हैँ लगता है कि जैसे रूपकुण्ड का इतिहास मिट रहा है वैसे ही इस गाँव (कुरुड़) का इतिहास भी मिट जाएगा। अगर आप भी इस इतिहास का मुआयना कर ना चाहते हैँ तो आपका स्वागत है।
 उत्तराखण्ड के चमोली जिले के घाट क्षेत्र मे ये गाँव है।
इसी कुरुड़ गाँव से माँ नन्दा की यात्रा होती थी और होती रहेगी।जिसे स्थानीय भाषा मे नन्दा देवी राजजात कहते है।
अगर आप भी इस पत्थरोँ के गाँव आना चाहते हैँ तो जरुर आइये।चमोली के घाट क्षेत्र से माँ नन्दा भगवती यात्रा का आगाज होगा।
लेखक-विपिन चन्द्र गौड़

vipin gaur

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Re: Nanda Raj Jat Story - नंदा राज जात की कहानी
« Reply #208 on: February 15, 2014, 10:23:22 AM »
नारायण मन्दिर माँ नन्दा देवी धाम सिद्धपीठ कुरुड़(घाट चमोली)

vipin gaur

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Nanda   is    the    daughter of     Himalayas    and married  to Lord  Shiva who  lives   in    his   abode  in  higher  mountains.  Every year a smallYatraand every twelve    years  a   Big Yatra   (pilgrimage)  is     undertaken from kurur in chamoli . The yearly Yatra is conducted    from Kurur Village to Baitarani and kurur to balpata or saptkund. the Big yatra from  Kurur  village (said   to   be   the  home   of   parents   of   Nanda)    to     Homekund       at   the  base     of Nandatrisulipeak    lead   by a   four   horn   ram.There are two nanda devi dolies in this holy place.first doli called badhan's nanda devi and second doli called dashauli's nanda devi. in the rajjat these dolies goes to trishulipeak from two ways.badhan's nanda devi doli goes from kurur to nandkeshri where meets the kunwar's chantolis from kansuwa and nauty and kumau and go to wan village.nanda devi second doli going from kurur to ramani where meets dashamdwar kali ma doli from hindoli and also meet yatra from lata village ,from ramani this yatra go to wan village. wan is nanda devi brother latu's home .From wan yatra go to homekund.Whenever a  four  horn  ram  takes    birth  in   the area,  it is    believed   that  Nanda   has    arrived      to    her     parent's        home.    Beautifully   decorated  golden  idol  of Nanda is  carried   in  a   Palanquin       by      bear     footed       devotees    followed     by       procession     of   colorful   folks  carrying  idol   of   local   Gods    upon       their shoulders,     singing       and  dancing    to    the   musical    tune     of   local   instruments.                The   ram  is   loaded  with  the  goodies  necessary    for    the     journey   of   Nanda.
Womenfolk  sing emotional farewell songs to send off Nanda as if their own dughter is going to her in-laws home .The    280   Km     long     Yatra     passes through     the     beautiful     valley      of magnificent meadowsof    Bedeni Bugyal frequented by colorful birds like   Monal  and   musk   Deer   with panoramic view of  snow clad peaksof Nandadevi, Trisual,    Chaukhamba      Panchchuli etc. Nanda of Almora and Ranchula Kotejoins at a place called Nanadkeshari.  Latu was the the cousin  of Nanda who once, under the influence of some intoxicant created nonsense at the time of her farewell and confined to a temple in Ban village. He is freed only once in the year to meet his sister but hisNishan (Flag)leads the procession.
The   pilgrimage   concludes  on    22nd     day(Nanda Ashtami)at   Homekund   at   the foot hills  of   Nanda-Trisuli    peaks    after    crossing over   the    mysterious      ( human  and  horses skeletons  are  lying there)    Roopkund  cliff.  A  special   puja   is    offered   and       Nanda       is  decorated  in   bridal make-up   and     given     a tearful    farewell.   The   image of   Goddess is left there and the four horn ram proceeds towards the  peak  on its own  and  devotees     return  to  their  homes  awaiting the next pilgrimage after twelve years.
Last Big Yatra was held during September, 2000 in which about 50000 people took part. Next yatra will be held in Aug' 2014.A good news is the four horn ram is in luntara village near kurur village in vikaskhand ghat in chamoli.The yatra will start from 18 august.

 

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