Tourism in Uttarakhand > Religious Places Of Uttarakhand - देव भूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देव मन्दिर एवं धार्मिक कहानियां
Nanda Raj Jat Story - नंदा राज जात की कहानी
vipin gaur:
कैलवा विनायक का वास्तविक इतिहास
लेखक -विपिन चन्द्र गौड़
कई बार जब इन्टरनेट पर पढता हूँ कि कैलवा विनायक के बारे मेँ कि कैलवा(कैलु) एक गण था तथा अनाप शनाप लिख देते है अरे जब पता ना है तो गलत क्योँ लिख देते हैँ?
नन्दा राजजात मे रूपकुण्ड , वेदिनी बुग्याल, पातर नचोणियाँ ,कैलवा विनायक , आदि नाम आपने सुने होँगे ।
16 वीँ सदी मेँ नन्दा देवी के मुख्य पुजारी श्री कैलवा दत्त एक बार जब माँ नन्दा देवी राजजात पूर्ण करा के वापिस घर की ओर आ रहे थे तो उन्होँने सोचा की मेरी तो सन्तान भी नही है मैँ घर जा कर क्या करूँगा यदि भगवती का ध्यान करूँ तो मेरा जीवन सफल हो जाएगायही सोचकर उन्होँने राजजात यात्रा को घर भेज दिया । उस समय राजजात नहीँ कहते थे बल्कि "बड़ी जात" कहते थे उस समय भी चांदपुर गढी तथा बधाण गढी की समस्त जनता का सिद्धपीठ कुरुड़ की नन्दा देवी के प्रति विशेष धार्मिक विश्वास था।तब कैलवा दत्त ने समस्त जनता को घर भेज कर स्वयं उस स्थान पर एक छोटा सा मन्दिर बनाकर एक गणेश भगवान की मूर्ति को वहाँ पर स्थापित कर दी।और यहाँ पर भगवान का ध्यान करने के लिए बैठ गये कई सालोँ तक तपस्या करने के बाद एक रात अचानक महामाया ने एक 16 साल की बच्ची के रूप मे दर्शन दिये और कहा कि अमुक गाँव मेँ महामारी फैली है तथा वहाँ लोग मर रहे है तुम वहाँ जा कर उन पर जल सीँचन करो तो महामारी खत्म हो जाएगी और वे लोग यदि दक्षिणा दे तो मेरा हाथ मांग लेना और योगमाया ने एक माला दे दी और कहा यदि तुम इस माला को सुल्टा जपोगे तो बारिश शुरु होगी तथा उल्टा जपने से बारिश रुक जाएगी। जब कैलवा दत्त की नींद खुली तो वो इस सपने को भूल चुके थे थोड़ी देर भाद जब एक माला
उन्हे दिखाई तो उन्हे सब कुछ सपने मे जो भी दिखा सब याद आ गया।
उसी समय अपना कमंडल उठाकर चले उस गाँव(ये गाँव बधाण पट्टी मेँ है गाँव का नाम भूल गया हूँ)।
गाँव पहुँचते ही सर्वप्रथम वही कन्या दिखाई दी कैलवा दत्त आश्चर्य चकित हो गए उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम रुक्मिणी बताया तब तक और गाँव के लोग भी आ गए उन्होने आप इस गाँव मे क्योँ आए यहाँ तो महामारी फैली है तो उन्होने कहा मुझे माँ नन्दा ने स्वप्न मे सब कुछ बता दिया तब उन्होँने सभी पर मंत्रोँ का जाप कर पानी सीँचन किया चार पाँच दिन मे सभी का स्वास्थ्य सही होने लगा तो उनकी खुशी का ठिकाना ना रहा भाव विह्वल होकर सभी ने कहा पण्डित जी सब आपका है आप कुछ भी ले लो तो कैलवा दत्त जी ने कहा कि रुक्मिणी का हाथ दे दो मुझे और कुछ नहीँ चाहिए सभी ने खुशी खुशी रुक्मिणी का हाथ दे कर विदा कर दिया।इधर उनके गाँव कुरुड़ मे लोगोँ ने सोचा कि कैलवा दत्त इतने सालोँ से घर नही आए तो अब जीवित न होँगेँ उधर कैलवा दत्त रुक्मिणी को लेकर जैसे ही "बोँठा विनायक" पहुँचे(ये एक पहाड़ की चोटी है जहाँ से पिछली तरफ बधाण पट्टी तथा आगे की तरफ दशोली पट्टी दिखती हे)
वहा उन्होँने एक ऊँचा शंखनाद किया ये शंखनान नन्दा देवी मन्दिर कुरुड़ तक सुनाई दिया अगल बगल के गाँव के लोगोँ ने जब ये शंखनाद सुना तो वे आश्चर्य चकित हो गए कि ये ध्वनि तो केवल पुजारी कैलवा दत्त ही बजाते हैँ तब सभी गाँवो के लोग एकत्रित होकर कहने लगे कि-कैलु ऐग कैलु ऐग(अर्थात कैलवा आ गया) ।जब कैलवा दत्त आए तो लोगोँ की खुशी का ठिकाना ना रहा।तथा रुक्मिणी को देख के भी बहुत खुश हुए कि अब नन्दा देवी के पुजारियोँ का वंश बढेगा।तब कैलवा जी ने नन्दा देवी की दी हुई "मेघमाला" के बारे मे भी बताया तो ये सारे राज्य मेँ ये बात फैल गई दूर दूर से लोग आने लगे स्वयं एक बार अल्मोड़ा के राजा बारिश के लिए कैलवा दत्त के पास आए थे तथा खुशी खुशी वापस गए तो उनके राज्य मेँ सचमुच वर्षा हो रही थी तथा वे भी मानने लगे कि वास्तव मेँ कुरुड़ ही नन्दा का थान है।तब कैलवा दत्त के पुत्र हुए तथा उनका वंश आगे बढता गया तथा ये गौड़ ब्राह्मण हमेशा माँ की भक्ति मे लीन रहे ।कैलवा दत्त से बढे वंश मे श्री श्यामा दत्त गौड़ के पास तक ये माला रही।श्यामा दत्त जी का नाम मेघमाला के चमत्कार के कारण आजकल भी कई लोगो के मुँह से सुनने को मिलता है।श्यामा दत्त के देहान्त के बाद ये माला चमत्कारिक रूप से गायब हो गई।
लेखक विपिन चन्द्र गौड़
श्रीनगर
vipin gaur:
कैलवा विनायक का वास्तविक इतिहास
लेखक -विपिन चन्द्र गौड़
कई बार जब इन्टरनेट पर पढता हूँ कि कैलवा विनायक के बारे मेँ कि कैलवा(कैलु) एक गण था तथा अनाप शनाप लिख देते है अरे जब पता ना है तो गलत क्योँ लिख देते हैँ?
नन्दा राजजात मे रूपकुण्ड , वेदिनी बुग्याल, पातर नचोणियाँ ,कैलवा विनायक , आदि नाम आपने सुने होँगे ।
16 वीँ सदी मेँ नन्दा देवी के मुख्य पुजारी श्री कैलवा दत्त एक बार जब माँ नन्दा देवी राजजात पूर्ण करा के वापिस घर की ओर आ रहे थे तो उन्होँने सोचा की मेरी तो सन्तान भी नही है मैँ घर जा कर क्या करूँगा यदि भगवती का ध्यान करूँ तो मेरा जीवन सफल हो जाएगायही सोचकर उन्होँने राजजात यात्रा को घर भेज दिया । उस समय राजजात नहीँ कहते थे बल्कि "बड़ी जात" कहते थे उस समय भी चांदपुर गढी तथा बधाण गढी की समस्त जनता का सिद्धपीठ कुरुड़ की नन्दा देवी के प्रति विशेष धार्मिक विश्वास था।तब कैलवा दत्त ने समस्त जनता को घर भेज कर स्वयं उस स्थान पर एक छोटा सा मन्दिर बनाकर एक गणेश भगवान की मूर्ति को वहाँ पर स्थापित कर दी।और यहाँ पर भगवान का ध्यान करने के लिए बैठ गये कई सालोँ तक तपस्या करने के बाद एक रात अचानक महामाया ने एक 16 साल की बच्ची के रूप मे दर्शन दिये और कहा कि अमुक गाँव मेँ महामारी फैली है तथा वहाँ लोग मर रहे है तुम वहाँ जा कर उन पर जल सीँचन करो तो महामारी खत्म हो जाएगी और वे लोग यदि दक्षिणा दे तो मेरा हाथ मांग लेना और योगमाया ने एक माला दे दी और कहा यदि तुम इस माला को सुल्टा जपोगे तो बारिश शुरु होगी तथा उल्टा जपने से बारिश रुक जाएगी। जब कैलवा दत्त की नींद खुली तो वो इस सपने को भूल चुके थे थोड़ी देर भाद जब एक माला
उन्हे दिखाई तो उन्हे सब कुछ सपने मे जो भी दिखा सब याद आ गया।
उसी समय अपना कमंडल उठाकर चले उस गाँव(ये गाँव बधाण पट्टी मेँ है गाँव का नाम भूल गया हूँ)।
गाँव पहुँचते ही सर्वप्रथम वही कन्या दिखाई दी कैलवा दत्त आश्चर्य चकित हो गए उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम रुक्मिणी बताया तब तक और गाँव के लोग भी आ गए उन्होने आप इस गाँव मे क्योँ आए यहाँ तो महामारी फैली है तो उन्होने कहा मुझे माँ नन्दा ने स्वप्न मे सब कुछ बता दिया तब उन्होँने सभी पर मंत्रोँ का जाप कर पानी सीँचन किया चार पाँच दिन मे सभी का स्वास्थ्य सही होने लगा तो उनकी खुशी का ठिकाना ना रहा भाव विह्वल होकर सभी ने कहा पण्डित जी सब आपका है आप कुछ भी ले लो तो कैलवा दत्त जी ने कहा कि रुक्मिणी का हाथ दे दो मुझे और कुछ नहीँ चाहिए सभी ने खुशी खुशी रुक्मिणी का हाथ दे कर विदा कर दिया।इधर उनके गाँव कुरुड़ मे लोगोँ ने सोचा कि कैलवा दत्त इतने सालोँ से घर नही आए तो अब जीवित न होँगेँ उधर कैलवा दत्त रुक्मिणी को लेकर जैसे ही "बोँठा विनायक" पहुँचे(ये एक पहाड़ की चोटी है जहाँ से पिछली तरफ बधाण पट्टी तथा आगे की तरफ दशोली पट्टी दिखती हे)
वहा उन्होँने एक ऊँचा शंखनाद किया ये शंखनान नन्दा देवी मन्दिर कुरुड़ तक सुनाई दिया अगल बगल के गाँव के लोगोँ ने जब ये शंखनाद सुना तो वे आश्चर्य चकित हो गए कि ये ध्वनि तो केवल पुजारी कैलवा दत्त ही बजाते हैँ तब सभी गाँवो के लोग एकत्रित होकर कहने लगे कि-कैलु ऐग कैलु ऐग(अर्थात कैलवा आ गया) ।जब कैलवा दत्त आए तो लोगोँ की खुशी का ठिकाना ना रहा।तथा रुक्मिणी को देख के भी बहुत खुश हुए कि अब नन्दा देवी के पुजारियोँ का वंश बढेगा।तब कैलवा जी ने नन्दा देवी की दी हुई "मेघमाला" के बारे मे भी बताया तो ये सारे राज्य मेँ ये बात फैल गई दूर दूर से लोग आने लगे स्वयं एक बार अल्मोड़ा के राजा बारिश के लिए कैलवा दत्त के पास आए थे तथा खुशी खुशी वापस गए तो उनके राज्य मेँ सचमुच वर्षा हो रही थी तथा वे भी मानने लगे कि वास्तव मेँ कुरुड़ ही नन्दा का थान है।तब कैलवा दत्त के पुत्र हुए तथा उनका वंश आगे बढता गया तथा ये गौड़ ब्राह्मण हमेशा माँ की भक्ति मे लीन रहे ।कैलवा दत्त से बढे वंश मे श्री श्यामा दत्त गौड़ के पास तक ये माला रही।श्यामा दत्त जी का नाम मेघमाला के चमत्कार के कारण आजकल भी कई लोगो के मुँह से सुनने को मिलता है।श्यामा दत्त के देहान्त के बाद ये माला चमत्कारिक रूप से गायब हो गई।
लेखक विपिन चन्द्र गौड़
श्रीनगर
vipin gaur:
नन्दा देवी का मायका "कुरुड़"(पत्थरोँ का गाँव)
क्या आप जानते हैँ कि माँ नन्दा देवी राजराजेश्वरी का मायका एक ऐसा गाँव है जहाँ पत्थरोँ का एक जंगल है। चारोँ ओर पत्थर ही पत्थर। पत्थर भी छोटे मोटे नही बड़े बड़े पत्थर विशालकाय हाथी जितने या उससे भी बड़े बड़े पत्थरोँ का जखीरा।
लेखक विपिन चन्द्र गौड़
शायद आपने इतने पत्थर किसी गाँव मेँ न देखेँ होँ।
एक और दिलचस्प बात कि इन पत्थरोँ का रंग काला है एक इतिहास को बयान करते ये पत्थर अपने आप मेँ एक ऐतिहासिक धरोहर है।
इन पत्थरोँ के इतिहास के बारे मे बुजुर्ग कहते हैँ कि द्वापर युग मे एक राक्षस अपना साम्राज्य फैलाते फैलाते दशौली के इस गाँव मेँ आ धमका लेकिन यहाँ माँ ऩन्दा भगवती का थान स्थान होने के कारण वह राक्षस माँ नन्दा के साथ युद्ध करने लगा ।शस्त्रोँ से पराजित करके माँ ने राक्षस को सम्मुख बिन्सर की पहाड़ी मेँ फेँक दिया लेकिन वो चुप ना बैठा उसने बिन्सर की पहाड़ी का आधा पहाड़ माँ के थान स्थान भद्रेश्वर पर्वत पर दे मारा जहाँ माँ नन्दा देवी विराजमान थी लेकिन माँ भगवती के शरीर से टकराते ही ये पत्थर हजारो टुकड़ोँ मे इस स्थाने के चारोँ ओर कुछ स्थानोँ पर पड़ गये।तब माँ ने त्रिशूल के एक वार से उस राक्षस का अन्त कर दिया लेकिन ये विशालकाय पत्थर यही पड़े रहे तथा इन टुकड़ोँ का आकार विशालकाय जानवरोँ जैसा है। बाद मे माँ नन्दा देवी इन पत्थरोँ मे शिला रूप मे बस गई। अब धीरे धीरे स्थानीय लोग इन पत्थरोँ को तोड़कर अपने घर बना रहे हैँ लगता है कि जैसे रूपकुण्ड का इतिहास मिट रहा है वैसे ही इस गाँव (कुरुड़) का इतिहास भी मिट जाएगा। अगर आप भी इस इतिहास का मुआयना कर ना चाहते हैँ तो आपका स्वागत है।
उत्तराखण्ड के चमोली जिले के घाट क्षेत्र मे ये गाँव है।
इसी कुरुड़ गाँव से माँ नन्दा की यात्रा होती थी और होती रहेगी।जिसे स्थानीय भाषा मे नन्दा देवी राजजात कहते है।
अगर आप भी इस पत्थरोँ के गाँव आना चाहते हैँ तो जरुर आइये।चमोली के घाट क्षेत्र से माँ नन्दा भगवती यात्रा का आगाज होगा।
लेखक-विपिन चन्द्र गौड़
vipin gaur:
नारायण मन्दिर माँ नन्दा देवी धाम सिद्धपीठ कुरुड़(घाट चमोली)
vipin gaur:
Nanda is the daughter of Himalayas and married to Lord Shiva who lives in his abode in higher mountains. Every year a smallYatraand every twelve years a Big Yatra (pilgrimage) is undertaken from kurur in chamoli . The yearly Yatra is conducted from Kurur Village to Baitarani and kurur to balpata or saptkund. the Big yatra from Kurur village (said to be the home of parents of Nanda) to Homekund at the base of Nandatrisulipeak lead by a four horn ram.There are two nanda devi dolies in this holy place.first doli called badhan's nanda devi and second doli called dashauli's nanda devi. in the rajjat these dolies goes to trishulipeak from two ways.badhan's nanda devi doli goes from kurur to nandkeshri where meets the kunwar's chantolis from kansuwa and nauty and kumau and go to wan village.nanda devi second doli going from kurur to ramani where meets dashamdwar kali ma doli from hindoli and also meet yatra from lata village ,from ramani this yatra go to wan village. wan is nanda devi brother latu's home .From wan yatra go to homekund.Whenever a four horn ram takes birth in the area, it is believed that Nanda has arrived to her parent's home. Beautifully decorated golden idol of Nanda is carried in a Palanquin by bear footed devotees followed by procession of colorful folks carrying idol of local Gods upon their shoulders, singing and dancing to the musical tune of local instruments. The ram is loaded with the goodies necessary for the journey of Nanda.
Womenfolk sing emotional farewell songs to send off Nanda as if their own dughter is going to her in-laws home .The 280 Km long Yatra passes through the beautiful valley of magnificent meadowsof Bedeni Bugyal frequented by colorful birds like Monal and musk Deer with panoramic view of snow clad peaksof Nandadevi, Trisual, Chaukhamba Panchchuli etc. Nanda of Almora and Ranchula Kotejoins at a place called Nanadkeshari. Latu was the the cousin of Nanda who once, under the influence of some intoxicant created nonsense at the time of her farewell and confined to a temple in Ban village. He is freed only once in the year to meet his sister but hisNishan (Flag)leads the procession.
The pilgrimage concludes on 22nd day(Nanda Ashtami)at Homekund at the foot hills of Nanda-Trisuli peaks after crossing over the mysterious ( human and horses skeletons are lying there) Roopkund cliff. A special puja is offered and Nanda is decorated in bridal make-up and given a tearful farewell. The image of Goddess is left there and the four horn ram proceeds towards the peak on its own and devotees return to their homes awaiting the next pilgrimage after twelve years.
Last Big Yatra was held during September, 2000 in which about 50000 people took part. Next yatra will be held in Aug' 2014.A good news is the four horn ram is in luntara village near kurur village in vikaskhand ghat in chamoli.The yatra will start from 18 august.
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