Author Topic: Nanda Raj Jat Story - नंदा राज जात की कहानी  (Read 138727 times)

vipin gaur

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नए कलेवर में मां नंदा को फिर चढ़ेगा 73 साल पुराना छत्र
1941में ग्राम कांडेई के थोकदार परिवार ने चढ़ाया था यह छत्र
उसी परिवार की तीसरी पीढ़ी को मिलेगा यह सौभाग्य
वर्ष 1941 में पहली बार सिद्धपीठ नंदा धाम कुरुड़ में जो पहला छत्र भगोती नंदा को चढ़ा था, वही 73 साल बाद नए कलेवर में फिर चढ़ेगा। यह सौभाग्य उसी थोकदार परिवार की तीसरी पीढ़ी को मिल रहा है, जिसने तब यह हस्तनिर्मित छत्र चढ़ाया था। फिलहाल क्षतिग्रस्त पड़े इस छत्र के पुनर्निर्माण का कार्य चल रहा है। इस पर सोने व चांदी का कार्य होना है।चमोली जनपद के ग्राम कांडेई (देवाल) निवासी थोकदार नारायण सिंह परिहार बिष्ट ने मनौती पूर्ण होने पर वर्ष 1941 में सिद्धपीठ नंदा धाम कुरुड़ में छत्र चढ़ाया था। यह छत्र आज भी नंदा धाम की शान है। यह पहला मौका था, जब भगोती नंदा को छत्र चढ़ाया गया। थोकदार नारायण सिंह के स्वर्गवास के बाद उनके परिवार ने थोकदारी संभाली, लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण माता के छत्र पर उनका ध्यान नहीं गया।थोकदार परिवार के सबसे छोटे पुत्र राजेंद्र सिंह परिहार बिष्ट बताते हैं कि दुर्गम क्षेत्र में यात्र होने के कारण इस छत्र में टूट-फूट हो गई थी। अब इसके पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी भी उन्हीं के परिवार की है। वह बताते हैं कि लंबे अर्से से माता का बुलावा न आने के कारण दशकों बाद भी छत्र दुरुस्त नहीं हो पाया। लेकिन, सौभाग्य से सिद्धपीठ के अध्यक्ष मनसाराम गौड़ की ओर से इस बार थोकदार परिवार को नंदा धाम आने का न्यौता मिला है।राजेंद्र सिंह ने बताया कि चैत्र नवरात्र के प्रथम दिन सिद्धपीठ कुरुड़ में पंच पुजारियों द्वारा पूजा-अर्चना के बाद उनके परिवार को यह छत्र सौंपा गया। अब इसे संवारने का कार्य चल रहा है। आगामी 18 अगस्त को श्री नंदा देवी राजजात शुरू होने से पूर्व विधि-विधान पूर्वक इसे सिद्धपीठ नंदा धाम कुरुड़ में भगोती नंदा को चढ़ाया जाएगा।1941 में ग्राम कांडेई के थोकदार परिवार ने चढ़ाया था यह छत्र16इस बार उसी परिवार की तीसरी पीढ़ी को मिल रहा यह सौभाग्य73 साल पुराना यह छत्र इस बार श्री नंदादेवी राजजात शुरू होने से पूर्व सिद्धपीठ नंदाधाम कुरुड़ में चढ़ेगा। नंदादेवी को चढ़ने वाला यह पहला छत्र है।

vipin gaur

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नन्दा देवी राजजात जो कि दुनिया की सबसे लम्बी पैदल यात्रा है। जिसमेँ कि सर्वप्रथम चमोली जनपद के घाट(नन्दप्रयाग से मात्र 18 किमी आगे) मेँ नन्दाकिनी नदी की आँचल मेँ बसेँ "कुरुड़" गाँव से बाजे भुंकारे के साथ नन्दादेवी की नवीँ सदी पूर्व राजराजेश्वरी नन्दा देवी तथा दशौली क्षेत्र की ईष्ट साक्षात नन्दा भगवती की दो स्वर्णमयी डोलियाँ जाती हैँ
इसके पीछे से चौसिँग्योँ को ले जाया जाता है तथा उसके बाद काँसुवा के कुँवर अपनी छँतोली लेकर चलते हैँ ।

नन्दा देवी की डोलियोँ के साथ कन्नौजी गौड़ (कुरुड़ के पुजारी) चलते हैँ।

राजजात की शुरुआत तब होती है जब नन्दा के क्षेत्र मेँ दुर्भिक्ष(अपशगुन) पैदा होता है।
यह अपशगुन चौसिँग्या खाड़ू के रुप मेँ होते हैँ

2013 मेँ नन्दा देवी धाम कुरुड़ के सामने लुन्तरा गाँव मे तथा एक चौसिँग्या खाड़ू कुरुड़ गाँव के ही अनुसूचित जाति के नन्दा देवी के ओजी पुष्कर लाल के यहाँ तथा हाल ही मेँ एक चौसिँग्या कुरुड़ के समीप सुंग गाँव मे भी हुआ है।
सन 2000 मेँ ये चरबंग मेँ पैदा हुआ था
और इस बार 3 चौसिँग्या कुरुड़ क्षेत्र मे पैदा होने के कारण लोगोँ को परम विश्वास हो गया कि कुरुड़ ही नन्दा राजजात का मुख्य थान है।

नन्दा देवी राजजात के मुख्य दो मुख्य रास्ते हैँ
1--प्रथम रास्ता कुरुड़ से  चरबंग,कुण्डबगड़,धरगाँव, फाली उस्तोली सरपाणी लॉखी भेँटी स्यारी,बंगाली बूंगा डुंग्री कैरा-मैना सूनाथराली, राडीबगड़  चेपड़यू कोटि, रात्रि नन्दकेशरी इच्छोली हाट रात्रि फल्दियागाँव काण्डई,लब्बू ,पिलखड़ा ,ल्वाणी ,बगरीगाड रात्रि मुन्दोली लोहाजंग,कार्चबगड़ रात्रि वाण लाटू देवता तथावाण से होमकुण्ड ।
नन्दकेशरी मेँ अद्भुत नजारा रहता है यहाँ पर काँसुवा तथा नौटी की राजछतोली का मिलन कुरुड़ बधाण की नन्दा राजराजेश्वरी से होता है यहीँ से राजजात का प्रारम्भिक बिन्दु शुरु होता है यहाँ पर कुमाउँ की जात भी अपनी छंतोलियोँ के साथ शामिल होती है तथा यहाँ से यात्रा कई पड़ावोँ से  होकर वाण पहुँचती है।

तथा नन्दा देवी राजजात का दूसरा रास्ता
2--नन्दा देवी दशोली की डोली का कुरुड़ से धरगाँव कुमजुग
से कुण्डबगड़, लुणतरा,कांडा मल्ला,खुनाना,लामसोड़ा लाटू मन्दिर माणखी,चोपड़ा कोट.चॉरी  काण्डई
खलतरा,मोठा  चाका,सेमा बैराशकुण्ड
 बैरो,इतमोली,मटई, दाणू मन्दिर
पगना देवी मन्दिर भौदार,चरबंग ल्वाणी
 सुंग,बोटाखला रामणी आला,जोखना, कनोल से वाण लाटू देवता। ये रास्ता नन्दाकिनी के साथ साथ चलता है ।रामणी में  विशाल भव्य मेला लगता है रामणी मेँ आते आते कुरुड़  नन्दा देवी डोली के साथ कुरुड़ कीनन्दामय लाटू, हिण्डोली, दशमद्वार की नन्दामय लाटू, मोठा का लाटू, केदारु पौल्यां, नौना दशोली की नन्दादेवी, नौली का लाटू, बालम्पा देवी, कुमजुग से ज्वाल्पा देवी की डोली, ल्वाणी से लासी का जाख, खैनुरी का जाख, मझौटी की नन्दा, फर्सवाण फाट के जाख, जैसिंग देवता, काण्डई लांखी का रुप दानू, बूरा का द्यौसिंह, जस्यारा, कनखुल, कपीरी, बदरीश पंचायत, बदरीनाथ की छतोली, उमट्टा, डिम्मर, द्यौसिंह, सुतोल, स्यारी, भेंटी की भगवती, बूरा की नन्दा, रामणी का त्यूण, रजकोटी, लाटू, चन्दनिय्यां, पैनखण्डा लाटा की भगवती आदि २०० से अधिक देवी-देवताओं का मिलन होता है।अतः रामणी एक पवित्र स्थल है ।रामणी मेँ जाख देवता का अद्भुत कटार भेद दर्शन भी होता है।यहां से आगे कुरुड़ की नन्दा के पीछे पीछे चलते वाण पहुँचते हैँ जहाँ पर राजजता के दोनो रास्ते मिलकर एक हो जाते हैँ  वाण मेँ स्वर्का का केदारु, मैखुरा की चण्डिका, घाट कनोल होकर तथा रैंस असेड़ सिमली, डुंगरी, सणकोट, नाखाली व जुनेर की छलोलियां चार ताल व चार बुग्यालों को पार करके वाण में राजजात में शामिल होती हैं।।

वाण राजजात का आखिरी गाँव है। यहाँ से आगे वीरान है।
वाण गाँव के बाद गेरोली पातळ में रण की धार नामक जगह पर देवी नंदा ने आखिरी राक्षस को मार गिराया था। लाटू की वीरता से प्रसन्न होकर देवी ने आदेश दिया कि आगे से वो ही यात्रा की अगुवाई करेंगे। रण की धार के बाद यात्री कालीगंगा में स्नान कर तिलपत्र आदि चढाते हैं!
रास्ते मेँ वेदिनी बुग्याल है।
बेदिनी  बुग्याल उत्तराखंड का सबसे बड़ा और सुंदर बुग्याल माना जाता है। यहाँ पर यात्री वैतरणी  कुंड  में स्नान करते हैं। राजकुंवर यहाँ पर अपने पित्तरों की पूजा करते हैं। एक बांस पर धागा बाँधा जाता है। श्रद्धालु धागा थामकर अपनें पित्तरों का तर्पण करते हैं। हर साल यहाँ पर नन्दा धाम कुरुड़ की नन्दा देवी की जात होती है।रास्ते मेँ
पातर  नचौणिया है। कहा जाता है कि यहाँ पर कन्नौज के रजा यशधवल ने पात्तर यानि नाचने-गाने वालियों का नाच गाना देखा। यशधवल के इस कृत्य से नंदा कुपित हो गयी और देवी के श्राप से नाचने-गाने वालियां शिलाओं में परिवर्तित हो गयी!
आगे कैलवा विनायक है।यहाँ से हिमालय का बहुत ही सुंदर दृश्य दिखता है। यहाँ से बेदिनी, आली और भूना बुग्याल देखते ही बनते हैं।
इस जगह  कन्नौज के राजा की गर्भवती रानी वल्लभा ने गर्भ की पीड़ा के समय विश्राम किया था। यहीं पर उसने एक शिशु को जन्म भी दिया था। इस दौरान राजा का लाव-लश्कर रूपकुंड में डेरा डाले रहा। गर्भवती रानी की छूत से कुपित होकर देवी के श्राप से ऐसी हिम की आंधी चली कि राजा के सारे सिपाही और दरबारी मारे गए।चेरिनाग से  रूपकुंड के लिए यात्रा बहुत ही खतरनाक रास्तों से गुजरती है। चट्टानों को काटकर बनायीं गयी बेतरतीब सीढ़ियां यात्रा को और मुश्किल बना देती हैं।रूपकुंड का  निर्माण भगवान् शिव ने नंदा की प्यास बुझाने के लिए किया था। मौसम के अनुसार अपना रूप और आकार बदलने के लिए विख्यात रूपकुंड बहुत ही सुंदर दिखता  है।खतरनाक  उतार-चढ़ाव के कारण ज्युरांगली को मौत की घाटी भी कहा जाता है।ज्युरांगली  के खतरनाक उतार-चढ़ाव के बाद यात्री शिला समुद्र में विश्राम के लिए रुकते हैं।
शिला समुद्र  में रात्रि विश्राम के बाद होमकुंड के लिए प्रस्थान करते हैं। होमकुंड पहुंचकर यात्री पूजा-अर्चना करते हैं। यहाँ पर चौसिँग्या खाड़ू को छोड़ दिया जाता है।

vipin gaur

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आपको नन्दा राजजात के बारे मेँ बहुत कुछ जानकारियाँ देँगे

जो आपसे बहुत दूर रखी जाती हैँ राजजात चमोली जनपद के घाट(नन्दप्रयाग से मात्र 18 किमी आगे)  "कुरुड़" गाँव से नन्दादेवी की नवीँ सदी पूर्व राजराजेश्वरी नन्दा देवी तथा दशौली क्षेत्र की ईष्ट साक्षात नन्दा भगवती की दो स्वर्णमयी डोलियाँ जाती हैँ ।
इसके पीछे से चौसिँग्योँ को ले जाया जाता है ।

नन्दा देवी राजजात के मुख्य दो मुख्य रास्ते हैँ आज एक रास्ते की बात करेँगे जिसे सबसे पवित्र पड़ाव माना जाता है लोगोँ को इस रास्ते की जानकारी से बहुत दूर रखा गया है

घाट क्षेत्र के नन्दा देवी धाम से 20 अगस्त को नन्दा देवी की डोली सर्वप्रथम

20 अगस्त कुरुड़ से  रात्रि लुन्तरा,
21 अगस्त रात्रि लामसोड़ा लाटूखाल ,
22 अगस्त
 माणखी,चोपड़ा कोट.चॉरी  रात्रि काण्डई।
23 अगस्त खलतरा,मोठा  चाका,सेमा रात्रि बैराशकुण्ड 24 अगस्त रात्रि
पगना देवी मन्दिर
25 अगस्त भौदार,चरबंग रात्रि रात्रि ल्वाणी
26 अगस्त सुंग,रात्रि रामणी 27 अगस्त रात्रि आला,
28 अगस्त जोखना,रात्रि कनोल
29 अगस्त रात्रि वाण लाटू देवता।
29 अगस्त  वाण मेँ कुरुड़ से ही चलने वाली नन्दा देवी राजराजेश्वरी तथा काँसुवा नौटी कुमाऊँ की छतोलियोँ का मिलन होता है।
30 अगस्त रात्रि गैरोली पातल
31 अगस्त रात्रि वेदिनी बुग्याल
01 सितम्बर रात्रि पातर नचौड़ियाँ
02 सितम्बर शिला समुद्र
03 सितम्बर होमकुण्ड मेँ पुजा कर चौसिंग्या खाड़ू को छोड़ कर वापसी रात्रि चन्दनायाँ घट
04 सितम्बर रात्रि सुतोल
05 सितम्बर रात्रि नारंगी
06 सितम्बर को नन्दा देवी अपने थान सिद्धपीठ कुरुड़ मेँ पहुँचेगी तथा महायज्ञ तथा  राजजात का समापन।26 अगस्त को रामणी में  विशाल भव्य मेला लगेगा है रामणी मेँ आते आते कुरुड़  नन्दा देवी डोली के साथ कुरुड़ कीनन्दामय लाटू, हिण्डोली, दशमद्वार की काली, मोठा का लाटू, केदारु पौल्यां, नौना , नौली का लाटू, बालम्पा देवी, कुमजुग से ज्वाल्पा देवी की डोली, ल्वाणी से लासी का जाख, खैनुरी का जाख, मझौटी की नन्दा, फर्सवाण फाट के जाख, जैसिंग देवता, काण्डई लांखी का रुप दानू, बूरा का द्यौसिंह, जस्यारा, कनखुल, कपीरी, बदरीश पंचायत, बदरीनाथ की छतोली, उमट्टा, डिम्मर, द्यौसिंह, सुतोल, स्यारी, भेंटी की भगवती, बूरा की नन्दा, रामणी का त्यूण, रजकोटी, लाटू, चन्दनिय्यां, पैनखण्डा लाता की भगवती आदि २०० से अधिक देवी-देवताओं का मिलन होता है।88सालोँ बाद लाता की भगवती भी रामणी मे शामिल होगी। वहीँ 24 अगस्त को बंड के भूम्याल चलेँगे जो 26 तारीख को 24छतोलियोँ के साथ रामणी मे कुरुड़ की नन्दा देवी से मिलेगी अतः रामणी एक पवित्र स्थल है ।रामणी मेँ जाख देवता का अद्भुत कटार भेद दर्शन भी होता है।28 अगस्त को राजजात कनोल पहुँचेगी कनोल2700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित जनपद चमोली के घाट ब्लाक का कनोल गांव न केवल अपनी बेपनाह सुदरता के लिए बिख्यात है अपितु इस बार नंदा देवी राजजात में यहाँ पर २८ अगस्त को लोकसंस्कृति की अनूठी छटा देखने को भी मिलेगी यहाँ पर सुतोल गांव के ईस्ट देवता द्यो सिंह से लेकर लाता की नंदा देवी, किरुली का बंड भुमियाल,लासी का जाख,रामणी का भुमियाल से लेकर अन्य देवीदेवताओ का हुजूम जब यहाँ पर आएगा तो यहाँ के लोग पारम्परिक परम्पराओ के अंतर्गत सबका स्वागत करेगे जिसमे पौराणिक जागर से लेकर लोकगीत प्रमुख होंगे

यहां से आगे कुरुड़ की नन्दा के पीछे पीछे चलते वाण पहुँचते हैँ जहाँ पर राजजात के दोनो रास्ते मिलकर एक हो जाते हैँ  वाण मेँ स्वर्का का केदारु, मैखुरा की चण्डिका, घाट कनोल होकर तथा रैंस असेड़ सिमली, डुंगरी, सणकोट, नाखाली व जुनेर की छलोलियां चार ताल व चार बुग्यालों को पार करके वाण में राजजात में शामिल होती हैं।
सुतोल गांव राजजात यात्रा का वापसी का अंतिम पड़ाव का गांव है, हिमालय की तलहटी में बसा यह खुबसूरत गांव चमोली के घाट ब्लाक का अति दूरस्थ गांव है हिमलय की गोद बसे इस गांव के लोगो ने बरसो से अपनी सांस्कृतिक बिरासत को अक्षुण रखा हुआ है जिसकी बानगी हमें राजजात के दौरान मिल जाएगी आजकल यहाँ पर हर कोई नंदा राजजात को लेकर बेहद उत्साहित है जिसे लेकर यहाँ खासा उमंग, उत्साह, जोरो पर है द्योसिंह ईस्ठ देवता की इस पवित्र भूमि पर इस बार राजजात में संस्कृति का अधभुत संगम देखने को मिलेगा जब यहाँ के महिलाये परम्परागत परिधानों और आभूषण से लकदक होकर श्रदालु और अन्य लोगो का स्वागत करेंगी जब हम इन महिलाओ को शीशफूल, कर्णफूल, बुलाक, नथुली, गुलबन्द, लौकेट, चरयो, हंसुली, कंठीमाला, मुंगो की माला, धागुला, पौंछि,गोंखले, तगड़ी, झिविरा, पोटा, जेवरी, बिछुवा, चंरहार, अतारदान, पुलिया, झड्तर, इत्यादि, परम्परागत आभूषण से सजी धजी पहाड़ की मात्रशक्ति जब कतारबद, लयबद होकर परम्परागत नृत्यों, गीतों और जागरो से सांस्कृतिक बिरासत से रुबरू करायेंगे तो हर किसी की नजर बरबस ही इनकी और खिची चली आएगी ..तो ऐसे अनमोल पलो को कौन नहीं सहेजना चाहेगा सदा के लिए .
06 सितम्बर को यात्रा कुरुड़ पहुँचेगी  जहाँ महायज्ञ होगा तथा नन्दा देवी राजजात का समापन होगा तथा समय इस इतिहास को पुन: दोहराता रहेगा।
write by vipin chandra gaur (srinagar)

vipin gaur

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Re: Nanda Raj Jat Story - नंदा राज जात की कहानी
« Reply #213 on: November 16, 2015, 05:24:13 PM »
 :'(नंदादेवी लोकजात यात्रा का भव्य स्वागत

 


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 Mon, 09 Sep 2013 02:18 AM (IST)

देवाल: नंदादेवी लोकजात यात्रा  ,जोकि सिद्धपीठ कुरुड़ से शुरु होती है की डोली का देवाल पहुंचने पर भक्तों ने भव्य स्वागत किया। जयकारों व पंचस्वरों से पूरा क्षेत्र नंदामय हो गया है। इस दौरान भक्तों ने मां से मनौतियां भी मांगी। इसके बाद देवी डोली फल्दियागांव पहुंची।

रविवार को मां नंदा की डोली को धरातल्ला के ग्रामीणों ने पूर्णा गांव पहुंचाया। इसके बाद मां की डोली देवाल बाजार होते हुए मुख्य बाजार पहुंची। इस दौरान देवी दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी। कुमाऊं के गरुड़-बागेश्वर डंगोली, श्रीकोट, ग्वालदम सहित तलौर, पदमल्ला, रैन, गरसों, देवलसारी, पलवरा के ग्रामीणों ने देवाल पहुंच देवी के दर्शन किए। बाद में डोली यात्रा देवाल से इच्छोली गांव पहुंची। भक्तों के लिए यहां पर भंडारे का आयोजन किया गया। इसके बाद डोली कैल गांव पहुंची। भक्तों ने पुष्पवर्षा से डोली का स्वागत किया। इस दौरान हवन कर देवी से क्षेत्र की सुख समृद्धि की कामना की गई। इसके बाद यात्रा हाट कल्याणी को रवाना हुई। रविवार देर शाम यात्रा अपने नौवें पड़ाव फल्दियागांव पहुंची। इस मौके पर भक्त नया अनाज देवी को भेंट कर रहे हैं। सोमवार को यात्रा अपने गंतव्य कांडे, पिलखाडा, ल्वांणी, हरनी होते हुए मुंदोली जाएगी।
Vipin Chandra Gaur

 

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