दुर्गम पर्वतीय मार्गों से गुजरने वाली रोमांचक यात्रा कांसुआ से नौटी, ईड़ाबधाणी, वहां से पुनः नौटी, कांसुआ, सेम, कोटी, भगोती, कुलसारी, चैपड़ो, नन्द केसरी, फल्दिगां, मुंदोली, वाण, गैरोली पाताल, पातर नचौणियां और शिला समुद्र होती हुई होम्कुण्ड चन्दनिया घाट पहुंचती है। यहा से सुतालघाट नन्दप्रयाग होते हुये वापस नौटी पहुंच कर संपन्न होती है। इन पड़ावों का विस्तृत विवरण मैं पहले भे प्रस्तुत कर चुका हूं।
लम्बे यात्रा मार्ग में पड़ने वाले हर पड़ाव पर विशेष विधि-विधान से पूजा होती है। मार्ग में पड़ने वाले गांवों के लोग राजजात की अगवानी कर नन्दा को श्रद्धानुसार चढ़ावा भी चढ़ाते हैं। अलग-अलग स्थानों से चली देवी की डोलियां भी राजजात में शामिल होती हैं। जिनमें कुरुड़ और नन्दा देवी, अल्मोड़ा की डोलियां प्रमुख हैं।
इस धार्मिक यात्रा में जहां विभिन्न क्षेत्रों के पुरोहित रिंगाल की बनी छतोलियां लेकर चलते हैं, वहीं यात्रा का आकर्षण चार सींग वाला मेंढ़ा (भेड़) होता है। होमकुण्ड तक राजजात का नेतृत्व यही मेंढा करता है। मेढ़े की विदाई के साथ ही पुरोहितों द्वारा साथ ले जाई गई रिंगाल की छतौलियों का भी विसर्जन यहीं पर किया जाता है। जब कि नन्दा के ससुराल पक्ष की छतौलियों को पुरोहित वापस ले आते हैं।......