पाताल भुवनेश्वर का गुफा मंदिर-
कुमाऊ आँचल की पिथौरागढ़ क्षेत्र अपना एक अलग महत्व रखता है। पिथौरागढ़ जनपद के गंगालीहाट क्षेत्र में महाकाली मंदिर, चामुंडा मंदिर, गुफा मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह प्राचीन शिव गुफा मंदिर धरती के अंदर 8 से 10 फीट गहरी गुफा के अंदर बना हुआ है। जिसमें तरह-तरह की मूर्तियां विद्यमान हैं। यह स्थान सरयु राम गंगा के बीच बसा हुआ है। जिसका मुख उत्तर दिशा है। मैदान से उतरने तक 84 सीढ़ियाँ है। पताल के प्रथम तल में शेषनाग हैं उसके ऊपर पूरी पृथ्वी टिकी हुई है। इस गुफा का प्रारम्भिक मुख द्वार बहुत संकरा है। जिसमें एक बार में एक व्यक्ति ही बड़ी मुश्किल से नीचे उतर पाता है। नीचे उतरने के बाद गुफा के अंदर काफी बड़ा मैदान है। शिवरात्रि को यहां पर विशाल मेला लगता है। गुफा में दाहिनी ओर केदारनाथ, बद्रीनाथ, अमरनाथ की तीनों मूर्तियां विद्यमान हैं। यहां पर तीनों के दर्शन एक ही दृष्टि में होते हैं। उसी के साथ काल भैरव की जीभ है उनके गर्भ से प्रवेश करके उनकी पूंछ में त्रिमूर्ति है। लेकिन वहां तक मनुष्य अभी तक नहीं पहुंच पाया। पुराण के अनुसार कोई मनुष्य उस स्थान तक पहुंच जाए तो उसका अगला जन्म नहीं होता। गुफा के अंदर इसके बाद भगवान शंकर का मनोकामना झोला है। उसी साथ आसन है तथा काली कमली बीछी है और उसके नीचे बाधम्बर बिछा है वहीं पर पाताल भैरवी है जो मुण्डमाला पहने खड़ी हैं। यहां पर चार द्वार हैं 1) रण द्वार 2) पाप द्वार 3) धर्म द्वार और 4) मोक्ष द्वार। रण द्वार कलयुग में बंद हुआ, धर्म द्वार एवं मोक्ष द्वार खुले हुए हैं। अगर मनुष्य हर कार्य धर्म से कर रहा है तो उसके लिए मोक्ष में कोई रूकावट नहीं है। यहां पर मार्कन्डेश्वर ऋषि का आश्रम है। जहां पर मार्कण्ड ऋषि ने चार हजार वर्ष तक भगवान शंकर की तपस्या की थी, और यहीं पर मार्कन्डपुराण लिखा गया था। इसके साथ ही ब्रह्मा जी का पंचवा सिर है जिसे ब्रह्मकपाल कहा गया है। जिसमें उत्तर वाला सिर वह है जिस पर तर्पण करते हैं। यहां पर जीते जी श्राद्ध होता है। इससे आगे सप्तकुण्ड है जिसमें एक के बाद एक कुण्डों में पानी जमा होता है। पराणों में लिखा गया है कि उन कुण्डों में पानी के साथ अमृत बहता था। इस गुफा में 33 करोड़ देवताओं के बीच भगवान शिव का नर्मदेश्वर लिंग है जिस पर जितना भी पानी पड़ता है वह उसे सोख लेता है। इसके बाद आकाश गंगा है जिस पर बहुत लम्बी तारों की कतार है। इसके साथ ही सप्त ऋषि मंडल है।
मनुस्मृति में कहा गया है कि भगवान शंकर कैलाश में सिर्फ तपस्या करते थे। उनके समय बिताने के लिए विष्णुजी ने उनके लिये यह स्थान चुना। पाण्डवों के एक वर्ष के प्रवास के दौरान का दृश्य, उनके द्वारा जुए में हारना, सतयुग से कलयुग आने का चित्रण व कई प्राचीन शिल्प कला के दृष्य देखने को मिलते हैं। यह एक धार्मिक स्थल के साथ ही रोमांचक पर्यटक स्थल के रूप में जाना जाता है। यहां पर मनुष्य प्रवेश वर्जित था परन्तु कलयुग में आदी गुरू शंकराचार्य जिन्हें शंकर का अवतार माना जाता है, के द्वारा ही मनुष्य के लिए खोला गया। ऐसा मानना है कि इस गुफा में दर्शन करने से चार धाम यात्रा के दर्शन के बराबर फल की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह शिव गुफा सतयुग के समय की है। इस प्राचीन शिव मंदिर गंगोहीहाट पहुंचने के लिए हल्द्वानी से सीधी बस सेवा है, अपने वाहन व जीप द्वारा भी अल्मोड़ा से श्री जगेश्वर होते हुए भेराघाट से यहाँ पहुँचा जा सकता है।