Author Topic: PATAL BHUBANESHWAR CAVE & GANGOLI HAAT MAHA KALI TEMPLE IN PITHORAGARAH, UK  (Read 51208 times)

पंकज सिंह महर

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रहस्यों से परदा उठाती गुफा: पाताल भुवनेश्वर

उत्तराखण्ड की पहाड़ी वादियांे के बीच बसे सीमान्त कस्बे गंगोलीहाट की पाताल भुवनेश्वर गुफा किसी आश्चर्य से कम नही है। यहां पत्थरों से बना एक. एक शिल्प तमाम रहस्यों को खुद में समेटे हुए है। मुख्य ðार से संकरी फिसलन भरी 80 सीड़ियां उतरने के बाद एक ऐसी दुनिया नुमाया होती है जहां युगों युगों का इतिहास एक साथ प्रकट हो जाता है। गुफा में बने पम्थरों के ढांचे देष के आध्यात्मिक वैभव की पराकाष्ठा के विषय में सोचने को मजबूर कर देते हैं।
पौराणिक महत्व ़ पुरातात्विक साक्षों की मानें तो इस गुफा को त्रेता युग में राजा ऋतुपर्ण ने सबसे पहले देखा।ट्ठापर युग में पाण्डवों ने यहां चैपड़ खेला और कलयुग में जगदगुरु षंकराचार्य का 822 ई के आसपास इस गुफा से साक्षात्कार हुआ तो उन्होंने यहां तांबे का एक शिवलिंग स्थापित किया। इसके बाद चन्द राजाओं ने इस गुफा के विशय मे जाना।और आज देष विदेष से षैलानी यहां आते हैं। और गुफा के स्थपत्य को देख दांतो तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाते हैं।
मान्यताएं सच चाहे कुछ भी हो पर एकबारगी गुफा में बनी आकृतियों को देख लेने के बाद उनसे जुड़ी मान्यताओं पर भरोसा किये बिना नहीं रहा जाता। गुफा की षुरुआत में षेशनाग के फनों की तरह उभरी संरचना पम्थरों पर नज़र आती है। मान्यता है कि धरती इसी पर टिकी है।आगे बड़ने पर एक छोटा सा हवन कुंड दिखाई देता है।कहा जाता है कि राजा परीक्षित को मिले श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए उनके पुत्र जन्मेजय ने इसी कुण्ड में सभी नागों को जला डाला परंतु तक्षक नाम का एक नाग बच निकला जिसने बदला लेते हुए परीक्षित को मौत के घाट उतार दिया। हवन कुण्ड के ऊपर इसी तक्षक नाग की आकृति बनी है। आगे चलते हुए महसूस होता है कि हम किसी की हडिडयों पर चल रहे हों। सामने की दीवार पर काल भैरव की जीभ की आकृति दिखाई देती है। कुछ आगे मुड़ी गरदन वाला गरुड़ एक कुण्ड के ऊपर बैठा दिखई देता है। माना जाता है कि षिवजी ने ने इस कुण्ड को अपने नागों के पानी पीने के लिये बनाया था। इसकी देखरेख गरुड़ के हाथ में थी। लेकिन जब गरुड़ ने ही इस कुण्ड से पानी पीने की कोषिष की तो षिवजी ने गुस्से में उसकी गरदल मोड़ दी। कुछ आगे ऊंची दीवार पर जटानुमा सफेद संरचना है। यहीं पर एक जलकुण्ड है मान्यता है कि पाण्डवों के प्रवास के दौरान विष्वकर्मा ने उनके लिये यह कुण्ड बनवाया था। कुछ आगे दो खुले दरवाजों के अन्दर संकरा रास्ता जाता है। कहा जाता है कि ये ट्ठार धर्म ट्ठार और मोक्ष ट्ठार हैं।आगे ही है आदिगुरु षंकराचार्य ट्ठारा स्थापित तांबे का षिवलिंग। माना यह भी जाता है गुफा के आंखिरी छोर पर पाण्डवों ने षिवजी के साथ चैपड़ खेला था। लौटते हुए एक स्थान पर चारों युगों के प्रतीक चार पत्थर हैं। इनमें से एक धीरे धीरे ऊपर उठ रहा है। माना जाता है कि यह कलयुग है और जब यह दीवार से टकरा जायेगा तो प्रलय हो जायेगा। गुफा की षुरुआत पर वापस लौटने पर एक मनोकामना कुण्ड है। मान्यता है कि इसके बीच बने छेद से धातु की कोई चीज पार करने पर मलोकामना पूरी होती है। आष्चर्य ही है कि ज़्ामीन के इतने अन्दर होने के बावजूद यहां घुटन नहीं होती षान्ति मिलती है। देवदार के घने जंगलों के बीच बसी रहस्य और रोमान्च से सराबोर पाताल भुवनेष्वर की गुफा की षैलानियों के बीच आज एक अलग पहचान है। कुछ श्रृद्धा से, कुछ रोमान्च के अनुभव के लिये, और कुछ षीतलता और षान्ति की तलाष में यहां आते हैं। गुफा के पास हरे भरे वातावरण में सुन्दर होटल भी पर्यटकों के लिये बने हैं। खास बात यह है कि गंगोलीहाट में अकेली यही नहीं बल्कि दस से अधिक गुफाएं हैं जहो इतिहास की कई परतें, मान्यताओं के कई मूक दस्तावेज खुदबखुद खुल जाते हैं। आंखिर यूं ही गंगोलीहाट को गुफाओं की नगरी नहीं कहा जाता।
अन्य आकर्षण हिमालय की श्रृंखलाओं को यहां नजदीक से देखा जा सकता है। प्रसिद्ध कालिका मन्दिर और हजारों फीट की ऊंचाई पर बसा मुक्तेष्वर। सर्दियों में बर्फ का लुत्फ भी यहां उठाया जा सकता है।

कहां रहें पार्वती रिसोर्ट और होटल सैलाषा में रहने खाने पीने की उच्च स्तरीय व्यवस्था है।
कैसे पहुंचें दिल्ली से गंगोलीहाट तक सीधी बस सेवा। गंगोलीहाट से टैक्सी लेकर एक घ्ंाटे में यहां पहुंचा जा सकता है।
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साभार-http://naisoch.blogspot.com/2008/11/blog-post_6273.html

मदन मोहन भट्ट

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आदरणीय मित्रो जय माता की

मैं आप लोगों द्वारा पोस्ट की हुई माता महाकाली और पाताल भुबनेश्वर के बारे मैं पढ़ रहा था.  मेरा सौभाग्य है की मैं सन १९८१ मै गंगोलीहाट स्थित माता महाकाली के दर्शन कर पाया था.  क्योकि मैं तो जिला अल्मोडा से हूँ, उस तरफ जाने का कभी फिर मौका भी नहीं मिला. अब मेरा उस तरफ घूमने का बड़ा ही मन है.  किन्ही भाई साहेब ने लिखा है की पाताल भुबनेश्वर, गंगोलीहाट के उत्तर मैं १४ किमी है.  क्या कोई भाई बता सकता है कि सात सीलंग या राई आगर से कहाँ को जाना होता है? ये भंडारी गाँव तो राई आगर से नीचे कि तरफ पड़ता है शायद? कृपया पूरा मार्ग दर्शन करने का कष्ट करें.

मदन मोहन भट्ट

पंकज सिंह महर

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आदरणीय मित्रो जय माता की

मैं आप लोगों द्वारा पोस्ट की हुई माता महाकाली और पाताल भुबनेश्वर के बारे मैं पढ़ रहा था.  मेरा सौभाग्य है की मैं सन १९८१ मै गंगोलीहाट स्थित माता महाकाली के दर्शन कर पाया था.  क्योकि मैं तो जिला अल्मोडा से हूँ, उस तरफ जाने का कभी फिर मौका भी नहीं मिला. अब मेरा उस तरफ घूमने का बड़ा ही मन है.  किन्ही भाई साहेब ने लिखा है की पाताल भुबनेश्वर, गंगोलीहाट के उत्तर मैं १४ किमी है.  क्या कोई भाई बता सकता है कि सात सीलंग या राई आगर से कहाँ को जाना होता है? ये भंडारी गाँव तो राई आगर से नीचे कि तरफ पड़ता है शायद? कृपया पूरा मार्ग दर्शन करने का कष्ट करें.

मदन मोहन भट्ट

भट्ट जी अगर आप अल्मोड़ा से गंगोलीहाट जाना चाहते हैं तो आप बाड़ेछीना से धौलछीना-कनारीछीना-शेराघाट-गणाई होते हुये राईआगर पहुंचेंगे, राई आगर से एक सड़क गंगोलीहाट जाती और दूसरी बेरीनाग, आप गंगोलीहाट वाली सड़क पर जायेंगे तो आपको दशाईथल से आधा किलोमीटर दूर पर गुप्तड़ी नामक जगह मिलेगी, यहीं से पाताल भुवनेश्वर के लिये रास्ता जाता है, पाताल भुवनेश्वर में आपको रहने-खाने के लिये आरामदायक होटल मिल जायेगें।
       सात सिलिंग तो पिथौरागढ़ से आगे है, यहां से एक रोड कनालीछीना और दूसरी देवलथल को जाती है।

पंकज सिंह महर

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हेम पन्त

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पाताल भुवनेश्वर गुफा के बाहर
 

 
Visitors taking rest outside Patal Bhuwaneshwar Cave

पातालभुवनेश्वर में ईश्वरीय शक्ति का अद्भुत नजारा दृष्टिगोचर होता है।  एक बार अवश्य दर्शन करने चाहिये।  ओम नम: शिवाय ।

पंकज सिंह महर

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इस लिंक पर आपको आज तक द्वारा तैयार वीडियो देखने को मिलेगा, जिसके चार भाग हैं।

http://aajtak.intoday.in/videosection.php/videos/karyakramsubsec/24463/1/2

हेम पन्त

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Information Board by Patal Bhuwaneshwar Mandir Commitee outside the cave.
 

पंकज सिंह महर

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उत्तराखण्ड की पहाड़ी वादियों के बीच बसे सीमान्त कस्बे गंगोलीहाट की पाताल भुवनेश्वर गुफा किसी आश्चर्य से कम नही है। यहां पत्थरों से बना एक. एक शिल्प तमाम रहस्यों को खुद में समेटे हुए है। मुख्य द्वार से संकरी फिसलन भरी 80 सीढियां उतरने के बाद एक ऐसी दुनिया नुमाया होती है जहां युगों युगों का इतिहास एक साथ प्रकट हो जाता है। गुफा में बने पम्थरों के ढांचे देष के आध्यात्मिक वैभव की पराकाष्ठा के विषय में सोचने को मजबूर कर देते हैं।
पौराणिक महत्व  पुरातात्विक साक्षों की मानें तो इस गुफा को त्रेता युग में राजा ऋतुपर्ण ने सबसे पहले देखा। द्वापर युग में पाण्डवों ने यहां चौपड़ खेला और कलयुग में जगदगुरु शकराचार्य का 822 ई के आसपास इस गुफा से साक्षात्कार हुआ तो उन्होंने यहां तांबे का एक शिवलिंग स्थापित किया। इसके बाद चन्द राजाओं ने इस गुफा के विशय मे जाना।और आज देष विदेष से षैलानी यहां आते हैं। और गुफा के स्थपत्य को देख दांतो तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाते हैं।
मान्यताएं चाहे कुछ भी हो पर एकबारगी गुफा में बनी आकृतियों को देख लेने के बाद उनसे जुड़ी मान्यताओं पर भरोसा किये बिना नहीं रहा जाता। गुफा की शुरुआत में शेषनाग के फनों की तरह उभरी संरचना पत्थरों पर नज़र आती है। मान्यता है कि धरती इसी पर टिकी है। आगे बढने पर एक छोटा सा हवन कुंड दिखाई देता है। कहा जाता है कि राजा परीक्षित को मिले श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए उनके पुत्र जन्मेजय ने इसी कुण्ड में सभी नागों को जला डाला परंतु तक्षक नाम का एक नाग बच निकला जिसने बदला लेते हुए परीक्षित को मौत के घाट उतार दिया। हवन कुण्ड के ऊपर इसी तक्षक नाग की आकृति बनी है। आगे चलते हुए महसूस होता है कि हम किसी की हडिडयों पर चल रहे हों। सामने की दीवार पर काल भैरव की जीभ की आकृति दिखाई देती है। कुछ आगे मुड़ी गरदन वाला गरुड़ एक कुण्ड के ऊपर बैठा दिखई देता है। माना जाता है कि शिवजी ने ने इस कुण्ड को अपने नागों के पानी पीने के लिये बनाया था। इसकी देखरेख गरुड़ के हाथ में थी। लेकिन जब गरुड़ ने ही इस कुण्ड से पानी पीने की कोशिश की तो  शिवजी ने गुस्से में उसकी गरदल मोड़ दी। कुछ आगे ऊंची दीवार पर जटानुमा सफेद संरचना है। यहीं पर एक जलकुण्ड है मान्यता है कि पाण्डवों के प्रवास के दौरान विश्वकर्मा ने उनके लिये यह कुण्ड बनवाया था। कुछ आगे दो खुले दरवाजों के अन्दर संकरा रास्ता जाता है। कहा जाता है कि ये द्वार धर्म द्वार और मोक्ष द्वार है । आगे ही है आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा  स्थापित तांबे का शिवलिंग। माना यह भी जाता है गुफा के आंखिरी छोर पर पाण्डवों ने शिवजी के साथ चौपड़ खेला था। लौटते हुए एक स्थान पर चारों युगों के प्रतीक चार पत्थर हैं। इनमें से एक धीरे धीरे ऊपर उठ रहा है। माना जाता है कि यह कलयुग है और जब यह दीवार से टकरा जायेगा तो प्रलय हो जायेगा। गुफा की शुरुआत पर वापस लौटने पर एक मनोकामना कुण्ड है। मान्यता है कि इसके बीच बने छेद से धातु की कोई चीज पार करने पर मलोकामना पूरी होती है। आष्चर्य ही है कि जमीन के इतने अन्दर होने के बावजूद यहां घुटन नहीं होती शान्ति मिलती है। देवदार के घने जंगलों के बीच बसी रहस्य और रोमान्च से सराबोर पाताल भुवनेश्वर की गुफा की सैलानियों के बीच आज एक अलग पहचान है। कुछ श्रृद्धा से, कुछ रोमान्च के अनुभव के लिये, और कुछ शीतलता और शान्ति की तलाश में यहां आते हैं। गुफा के पास हरे भरे वातावरण में सुन्दर होटल भी पर्यटकों के लिये बने हैं। खास बात यह है कि गंगोलीहाट में अकेली यही नहीं बल्कि दस से अधिक गुफाएं हैं जहो इतिहास की कई परतें, मान्यताओं के कई मूक दस्तावेज खुदबखुद खुल जाते हैं। आंखिर यूं ही गंगोलीहाट को गुफाओं की नगरी नहीं कहा जाता।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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  जनोक्ति/उतराखन्ड
 उत्तराखण्ड की पहाड़ी वादियों के बीच बसे   सीमान्त कस्बे गंगोलीहाट की पाताल भुवनेश्वर गुफा किसी आश्चर्य से कम नही   है। यहां पत्थरों से बना एक. एक शिल्प तमाम रहस्यों को खुद में समेटे हुए   है। मुख्य द्वार से संकरी फिसलन भरी 80 सीढियां उतरने के बाद एक ऐसी दुनिया   नुमाया होती है जहां युगों युगों का इतिहास एक साथ प्रकट हो जाता है। गुफा   में बने पम्थरों के ढांचे देष के आध्यात्मिक वैभव की पराकाष्ठा के विषय   में सोचने को मजबूर कर देते हैं।
  पौराणिक महत्व  पुरातात्विक साक्षों की मानें तो इस गुफा को त्रेता युग में   राजा ऋतुपर्ण ने सबसे पहले देखा। द्वापर युग में पाण्डवों ने यहां चौपड़   खेला और कलयुग में जगदगुरु शकराचार्य का 822 ई के आसपास इस गुफा से   साक्षात्कार हुआ तो उन्होंने यहां तांबे का एक शिवलिंग स्थापित किया। इसके   बाद चन्द राजाओं ने इस गुफा के विशय मे जाना।और आज देष विदेष से षैलानी   यहां आते हैं। और गुफा के स्थपत्य को देख दांतो तले उंगली दबाने को मजबूर   हो जाते हैं।
  मान्यताएं चाहे कुछ भी हो पर एकबारगी गुफा में बनी आकृतियों को देख लेने के   बाद उनसे जुड़ी मान्यताओं पर भरोसा किये बिना नहीं रहा जाता। गुफा की   शुरुआत में शेषनाग के फनों की तरह उभरी संरचना पत्थरों पर नज़र आती है।   मान्यता है कि धरती इसी पर टिकी है। आगे बढने  पर एक छोटा सा हवन कुंड   दिखाई देता है। कहा जाता है कि राजा परीक्षित को मिले श्राप से मुक्ति   दिलाने के लिए उनके पुत्र जन्मेजय ने इसी कुण्ड में सभी नागों को जला डाला   परंतु तक्षक नाम का एक नाग बच निकला जिसने बदला लेते हुए परीक्षित को मौत   के घाट उतार दिया। हवन कुण्ड के ऊपर इसी तक्षक नाग की आकृति बनी है। आगे   चलते हुए महसूस होता है कि हम किसी की हडिडयों पर चल रहे हों। सामने की   दीवार पर काल भैरव की जीभ की आकृति दिखाई देती है। कुछ आगे मुड़ी गरदन वाला   गरुड़ एक कुण्ड के ऊपर बैठा दिखई देता है। माना जाता है कि शिवजी ने ने इस   कुण्ड को अपने नागों के पानी पीने के लिये बनाया था। इसकी देखरेख गरुड़ के   हाथ में थी। लेकिन जब गरुड़ ने ही इस कुण्ड से पानी पीने की कोशिश की तो    शिवजी  ने गुस्से में उसकी गरदल मोड़ दी। कुछ आगे ऊंची दीवार पर जटानुमा   सफेद संरचना है। यहीं पर एक जलकुण्ड है मान्यता है कि पाण्डवों के प्रवास   के दौरान विश्वकर्मा ने उनके लिये यह कुण्ड बनवाया था। कुछ आगे दो खुले   दरवाजों के अन्दर संकरा रास्ता जाता है। कहा जाता है कि ये द्वार धर्म   द्वार और मोक्ष द्वार है । आगे ही है आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा  स्थापित   तांबे का शिवलिंग। माना यह भी जाता है गुफा के आंखिरी छोर पर पाण्डवों ने   शिवजी के साथ चौपड़ खेला था। लौटते हुए एक स्थान पर चारों युगों के प्रतीक   चार पत्थर हैं। इनमें से एक धीरे धीरे ऊपर उठ रहा है। माना जाता है कि यह   कलयुग है और जब यह दीवार से टकरा जायेगा तो प्रलय हो जायेगा। गुफा की   शुरुआत पर वापस लौटने पर एक मनोकामना कुण्ड है। मान्यता है कि इसके बीच बने   छेद से धातु की कोई चीज पार करने पर मलोकामना पूरी होती है। आष्चर्य ही है   कि जमीन के इतने अन्दर होने के बावजूद यहां घुटन नहीं होती शान्ति मिलती   है। देवदार के घने जंगलों के बीच बसी रहस्य और रोमान्च से सराबोर पाताल   भुवनेश्वर की गुफा की सैलानियों के बीच आज एक अलग पहचान है। कुछ श्रृद्धा   से, कुछ रोमान्च के अनुभव के लिये, और कुछ शीतलता और शान्ति की तलाश में   यहां आते हैं। गुफा के पास हरे भरे वातावरण में सुन्दर होटल भी पर्यटकों के   लिये बने हैं। खास बात यह है कि गंगोलीहाट में अकेली यही नहीं बल्कि दस से   अधिक गुफाएं हैं जहो इतिहास की कई परतें, मान्यताओं के कई मूक दस्तावेज   खुदबखुद खुल जाते हैं। आंखिर यूं ही गंगोलीहाट को गुफाओं की नगरी नहीं कहा   जाता।    अन्य आकर्षण :- हिमालय की श्रृंखलाओं को यहां नजदीक से   देखा जा सकता है। प्रसिद्ध कालिका मन्दिर और हजारों फीट की ऊंचाई पर बसा   मुक्तेश्वर । सर्दियों में बर्फ का लुत्फ भी यहां उठाया जा सकता है।
 
  कहां रुकें :-
पार्वती रिसोर्ट और होटल सैलाषा में रहने खाने पीने की उच्च स्तरीय व्यवस्था है।    कैसे पहुंचें:- दिल्ली से गंगोलीहाट तक सीधी बस सेवा। गंगोलीहाट से टैक्सी लेकर एक घन्टे में यहां पहुंचा जा सकता है।

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