Author Topic: Photograph of Bagnath Temple Bageshwar-बागनाथ मंदिर बागेश्वर की फ़ोटो  (Read 8809 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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भगवान शिव के 108 नाम ----
१- ॐ भोलेनाथ नमः

२-ॐ कैलाश पति नमः

३-ॐ भूतनाथ नमः

४-ॐ नंदराज नमः

५-ॐ नन्दी की सवारी नमः

६-ॐ ज्योतिलिंग नमः

७-ॐ महाकाल नमः

८-ॐ रुद्रनाथ नमः

९-ॐ भीमशंकर नमः

१०-ॐ नटराज नमः

११-ॐ प्रलेयन्कार नमः

१२-ॐ चंद्रमोली नमः

१३-ॐ डमरूधारी नमः

१४-ॐ चंद्रधारी नमः

१५-ॐ मलिकार्जुन नमः

१६-ॐ भीमेश्वर नमः

१७-ॐ विषधारी नमः

१८-ॐ बम भोले नमः

१९-ॐ ओंकार स्वामी नमः

२०-ॐ ओंकारेश्वर नमः

२१-ॐ शंकर त्रिशूलधारी नमः

२२-ॐ विश्वनाथ नमः

२३-ॐ अनादिदेव नमः

२४-ॐ उमापति नमः

२५-ॐ गोरापति नमः

२६-ॐ गणपिता नमः

२७-ॐ भोले बाबा नमः

२८-ॐ शिवजी नमः

२९-ॐ शम्भु नमः

३०-ॐ नीलकंठ नमः

३१-ॐ महाकालेश्वर नमः

३२-ॐ त्रिपुरारी नमः

३३-ॐ त्रिलोकनाथ नमः

३४-ॐ त्रिनेत्रधारी नमः

३५-ॐ बर्फानी बाबा नमः

३६-ॐ जगतपिता नमः

३७-ॐ मृत्युन्जन नमः

३८-ॐ नागधारी नमः

३९- ॐ रामेश्वर नमः

४०-ॐ लंकेश्वर नमः

४१-ॐ अमरनाथ नमः

४२-ॐ केदारनाथ नमः

४३-ॐ मंगलेश्वर नमः

४४-ॐ अर्धनारीश्वर नमः

४५-ॐ नागार्जुन नमः

४६-ॐ जटाधारी नमः

४७-ॐ नीलेश्वर नमः

४८-ॐ गलसर्पमाला नमः

४९- ॐ दीनानाथ नमः

५०-ॐ सोमनाथ नमः

५१-ॐ जोगी नमः

५२-ॐ भंडारी बाबा नमः

५३-ॐ बमलेहरी नमः

५४-ॐ गोरीशंकर नमः

५५-ॐ शिवाकांत नमः

५६-ॐ महेश्वराए नमः

५७-ॐ महेश नमः

५८-ॐ ओलोकानाथ नमः

५४-ॐ आदिनाथ नमः

६०-ॐ देवदेवेश्वर नमः

६१-ॐ प्राणनाथ नमः

६२-ॐ शिवम् नमः

६३-ॐ महादानी नमः

६४-ॐ शिवदानी नमः

६५-ॐ संकटहारी नमः

६६-ॐ महेश्वर नमः

६७-ॐ रुंडमालाधारी नमः

६८-ॐ जगपालनकर्ता नमः

६९-ॐ पशुपति नमः

७०-ॐ संगमेश्वर नमः

७१-ॐ दक्षेश्वर नमः

७२-ॐ घ्रेनश्वर नमः

७३-ॐ मणिमहेश नमः

७४-ॐ अनादी नमः

७५-ॐ अमर नमः

७६-ॐ आशुतोष महाराज नमः

७७-ॐ विलवकेश्वर नमः

७८-ॐ अचलेश्वर नमः

७९-ॐ अभयंकर नमः

८०-ॐ पातालेश्वर नमः

८१-ॐ धूधेश्वर नमः

८२-ॐ सर्पधारी नमः

८३-ॐ त्रिलोकिनरेश नमः

८४-ॐ हठ योगी नमः

८५-ॐ विश्लेश्वर नमः

८६- ॐ नागाधिराज नमः

८७- ॐ सर्वेश्वर नमः

८८-ॐ उमाकांत नमः

८९-ॐ बाबा चंद्रेश्वर नमः

९०-ॐ त्रिकालदर्शी नमः

९१-ॐ त्रिलोकी स्वामी नमः

९२-ॐ महादेव नमः

९३-ॐ गढ़शंकर नमः

९४-ॐ मुक्तेश्वर नमः

९५-ॐ नटेषर नमः

९६-ॐ गिरजापति नमः

९७- ॐ भद्रेश्वर नमः

९८-ॐ त्रिपुनाशक नमः

९९-ॐ निर्जेश्वर नमः

१०० -ॐ किरातेश्वर नमः

१०१-ॐ जागेश्वर नमः

१०२-ॐ अबधूतपति नमः

१०३ -ॐ भीलपति नमः

१०४-ॐ जितनाथ नमः

१०५-ॐ वृषेश्वर नमः

१०६-ॐ भूतेश्वर नमः

१०७-ॐ बैजूनाथ नमः

१०८-ॐ नागेश्वर नमः

Pawan Pathak

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धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।
कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ।।

बागेश्वर। नीलेश्वर और भीलेश्वर की दो सुरम्य पहाड़ियों के मध्य सरयू, गोमती के पावन संगम पर स्थित पौराणिक बागनाथ मंदिर क्षेत्र के लोगों की गहरी आस्था का प्रतीक है। बागनाथ का मंदिर पहले बहुत छोटा था। चंद्र वंशीय राजा लक्ष्मी चंद ने 1602 ईसवी में मंदिर को भव्य रूप दिया था। नागर शैली में बना यह मंदिर पुरातात्विक महत्व का है। शिव पुराण के मानस खंड के अनुसार अनादिकाल में जब मुनिश्रेष्ठ वशिष्ठ जी पतित पावनी सरयू को झूनी गांव के उस पार से लाकर अयोध्या को ले जा रहे थे तो यहां पहुंचने पर ब्रह्मकपाली के समीप मार्कंडेय ऋषि तपस्या में लीन थे। वशिष्ठ जी को ऋषि की तपस्या भंग होने का खतरा सताने लगा। उन्होंने भोलेनाथ का ध्यान किया। इस पर शिवजी ने पार्वती को गाय और खुद व्याघ्र का रूप धारण करने का निश्चय किया। तयशुदा कार्यक्रम के तहत दोनों ब्रह्मकपाली के पास पहुंचे। व्याघ्र ने गाय पर झपट्टा मारा और वह रंभाने लगी। इस पर ऋषि की आंखें खुल गई और सरयू आगे बढ़ गई। शिव पार्वती मार्कंडेय और वशिष्ठ जी को आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गए। ब्यूरो

धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।
कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ।।

बागेश्वर। नीलेश्वर और भीलेश्वर की दो सुरम्य पहाड़ियों के मध्य सरयू, गोमती के पावन संगम पर स्थित पौराणिक बागनाथ मंदिर क्षेत्र के लोगों की गहरी आस्था का प्रतीक है। बागनाथ का मंदिर पहले बहुत छोटा था। चंद्र वंशीय राजा लक्ष्मी चंद ने 1602 ईसवी में मंदिर को भव्य रूप दिया था। नागर शैली में बना यह मंदिर पुरातात्विक महत्व का है। शिव पुराण के मानस खंड के अनुसार अनादिकाल में जब मुनिश्रेष्ठ वशिष्ठ जी पतित पावनी सरयू को झूनी गांव के उस पार से लाकर अयोध्या को ले जा रहे थे तो यहां पहुंचने पर ब्रह्मकपाली के समीप मार्कंडेय ऋषि तपस्या में लीन थे। वशिष्ठ जी को ऋषि की तपस्या भंग होने का खतरा सताने लगा। उन्होंने भोलेनाथ का ध्यान किया। इस पर शिवजी ने पार्वती को गाय और खुद व्याघ्र का रूप धारण करने का निश्चय किया। तयशुदा कार्यक्रम के तहत दोनों ब्रह्मकपाली के पास पहुंचे। व्याघ्र ने गाय पर झपट्टा मारा और वह रंभाने लगी। इस पर ऋषि की आंखें खुल गई और सरयू आगे बढ़ गई। शिव पार्वती मार्कंडेय और वशिष्ठ जी को आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गए। ब्यूरो


Source: http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20140718a_004115007&ileft=-5&itop=734&zoomRatio=182&AN=20140718a_004115007

 

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