Tourism in Uttarakhand > Religious Places Of Uttarakhand - देव भूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देव मन्दिर एवं धार्मिक कहानियां

पूर्णागिरी मंदिर उत्तराखंड ,Purnagiri Temple Uttarakhand

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Raje Singh Karakoti:

--- Quote from: Devbhoomi,Uttarakhand on July 13, 2010, 06:33:11 AM ---हिमालयन गजेटियर लेखक एटकिन्सन ने लिखा है कि हिंदुओं की भारी संख्या के लिए कुमाऊं वैसा ही धार्मिक स्थान है, जैसा कि ईसाईयों केलिए फिलिस्तीन। जागेश्वर, पूर्णागिरी, बागेश्वर, कटारमल सूर्य मंदिर, बैजनाथ, द्वाराहाट, कुमाऊं के मुख्य तीर्थ स्थल हैं। यहां के लोग शिव और शक्ति के उपासक रहे हैं। इस संप्रदाय में वाराही को भगवान विष्णु के विशेषणों में अर्थात्‌ हाथों में शंख, चक्र, हल, मूसल, दंड, ढाल, खड्‌ग, फॉस व अंकुश लिए तथा दो हाथ वरद और अभय मुद्रा में दिखया गया है।

शेषनाग, कूर्म या गरूड़ उनके वाहन बताए हैं तथा साथ में सूकर बैठा दिखाया गया है। अभय मुद्रा में देवी ने दाएं हाथ की हथेली सामने दिखाई है, जिसका मतलब है ‘मैं तुम्हारी रक्षा करूंगी’ और वरद मुद्रा में बाएं हाथ की हथेली दिखाई जाती है, जिसमें ऊंगलियां नीचे की ओर है। इस मुद्रा से देवी कहती है कि ‘मैं तुम्हारी कामनाएं पूरी करूंगी’।

देवीधूरा में अनेकों मंदिर हैं, जो विभिन्न देवताओं को समर्पित है। लेकिन यहां की मुख्य अराध्य देवी मां वराही हैं जो निमांषी और वैष्णवी है। वाराही को दो पूजास्थल समर्पित है। यानी असीम श्रद्घा वाले प्राचीन गुफा मंदिर की गुह्येश्वरी तथा सिंहासन डोला के अंदर सदैव गुप्त रहने वाली गुप्तेश्वरी। वाराही देवी की मूर्ति तांबे के संदूक अर्थात्‌ सिंहासन डोला में स्थित है। इसे सदैव गुप्त रखा जाता है अर्थात्‌ देवी के दर्शन का ओदश किसी को नहीं है।
करीब 40 साल पहले तक सावन में देवीधूरा का मेला एक महीने तक चलता था। इस दौरान आसपास के लगभग 25 मील परिधि के गांववाले यहां आकर डेरा डालते थे।
 विशेषकर लोक संगीत के शैकीनों का तो यहां जमावड़ा लगता था। स्थानीय लोगों को इस मेले का बेसब्री से इंतजार रहता था। आजकल यह मेला श्रावण की एकादशी से लेकर जन्माष्टमी तक चलता है। अठवार, बग्वाल, जमान अर्थात्‌ रक्षा बंधन के एक दिन पहले से एक दिन बाद तक तीन मुख्य मेला दिवस हैं।

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Raje Singh Karakoti:

--- Quote from: Pawan Pathak on October 19, 2015, 04:48:43 PM ---लड़ीधुरा में मां पूर्णागिरि के रूप में पूजी जाती है भगवती
लोहाघाट (चंपावत)। नवरात्रों में लोहाघाट से 13 किमी दूर बाराकोट के लड़ीधुरा की पहाड़ी में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगती है। बांज, चीड़ आदि वृक्षों से आच्छादित इस पहाड़ी से नगाधिराज हिमालय का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। यहां के लड़ीधुरा मंदिर में विद्यमान मां भगवती को लोग मां पूर्णागिरि के रूप में शताब्दियों से पूजते रहे हैं। कहा जाता है कि सिमल्टा के पांडे पुरोहित और उनके ढुंगाजोशी के यजमान को मां पूर्णागिरि ने स्वप्न में दर्शन दिए। कहा कि मैं यहां के शिखर में बैठी हूं। दूसरे दिन ग्रामीण वहां पहुंचे तो। स्वप्न के अनुसार ठीक उसी स्थान में देवी विराजमान थी। दोनों उन्हें उठाकर श्रद्धा के साथ बाराकोट ले आए। क्वांरकाली के पास जब दोनों रुके तो इसी बीच देवी अंतर्ध्यान हो गई। दूसरे दिन देवी ने स्वप्न में अपनी उपस्थिति का अहसास कराया। तब से यह स्थान देवी के उपासकों के लिए श्रद्धा, आस्था का केंद्र बन गया है। लड़ीधुरा देवी के नाम से बाराकोट के लोगों ने पिछले कुछ वर्षों से लड़ीधुरा महोत्सव की शुरुआत किए जाने से इस मंदिर की ख्याति दूर तक पहुंच चुकी है। ब्यूरो
Source-http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20151018a_007115011&ileft=-5&itop=543&zoomRatio=182&AN=20151018a_007115011


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Raje Singh Karakoti:

--- Quote from: Pawan Pathak on October 19, 2015, 04:48:43 PM ---लड़ीधुरा में मां पूर्णागिरि के रूप में पूजी जाती है भगवती
लोहाघाट (चंपावत)। नवरात्रों में लोहाघाट से 13 किमी दूर बाराकोट के लड़ीधुरा की पहाड़ी में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगती है। बांज, चीड़ आदि वृक्षों से आच्छादित इस पहाड़ी से नगाधिराज हिमालय का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। यहां के लड़ीधुरा मंदिर में विद्यमान मां भगवती को लोग मां पूर्णागिरि के रूप में शताब्दियों से पूजते रहे हैं। कहा जाता है कि सिमल्टा के पांडे पुरोहित और उनके ढुंगाजोशी के यजमान को मां पूर्णागिरि ने स्वप्न में दर्शन दिए। कहा कि मैं यहां के शिखर में बैठी हूं। दूसरे दिन ग्रामीण वहां पहुंचे तो। स्वप्न के अनुसार ठीक उसी स्थान में देवी विराजमान थी। दोनों उन्हें उठाकर श्रद्धा के साथ बाराकोट ले आए। क्वांरकाली के पास जब दोनों रुके तो इसी बीच देवी अंतर्ध्यान हो गई। दूसरे दिन देवी ने स्वप्न में अपनी उपस्थिति का अहसास कराया। तब से यह स्थान देवी के उपासकों के लिए श्रद्धा, आस्था का केंद्र बन गया है। लड़ीधुरा देवी के नाम से बाराकोट के लोगों ने पिछले कुछ वर्षों से लड़ीधुरा महोत्सव की शुरुआत किए जाने से इस मंदिर की ख्याति दूर तक पहुंच चुकी है। ब्यूरो
Source-http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20151018a_007115011&ileft=-5&itop=543&zoomRatio=182&AN=20151018a_007115011


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Raje Singh Karakoti:

--- Quote from: Pawan Pathak on October 16, 2015, 08:26:10 AM ---पूर्णागिरि : अभिन्न हिस्सा है देवी का चरण मंदिर
पूर्णागिरि(चंपावत)। मां पूर्णागिरि का चरण मंदिर पूर्णागिरि तीर्थयात्रा का अभिन्न हिस्सा है लेकिन जानकारी के अभाव में बहुत कम लोग देवी के चरण मंदिर के दर्शन कर पाते हैं।
देवी सती की नाभि स्थली के रूप में विख्यात मां पूर्णागिरि शक्तिपीठ में कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं, जो देवी की चमत्कारिक शक्ति का प्रमाण देते हैं। प्रचार-प्रसार के अभाव में बहुत कम लोगों को मां पूर्णागिरि की गाथा से जुड़े झूठे का मंदिर, बाबा भैरव नाथ मंदिर, बाबा सिद्धनाथ मंदिर जैसे धार्मिक स्थलों के महत्व की जानकारी मिल पाती है। आस्था से जुड़ा ऐसा ही एक स्थल है देवी का चरण मंदिर। ठुलीगाड़ से करीब तीन किलोमीटर दूर शारदा नदी में तट पर स्थित मंदिर को देवी पूर्णागिरि के चरण मंदिर में रूप में जाना है। पूर्णागिरि पर्वत के ठीक नीचे स्थापित इस मंदिर की खासियत यह है कि इस स्थान पर शारदा नदी बहुत खामोशी से प्रवाहित होती है। वहां पहुंचने पर नदी की कलकल सुनाई नहीं पड़ती है। पं. भुवन चंद्र पांडेय बताते हैं कि देवी पूर्णागिरि के प्रसिद्ध उपासक पं. सज्जन तिवारी अल्मोड़ा से आकर इसी स्थान स्नान कर देवी की उपासना करते थे। वहीं इसी स्थान से प्रसिद्ध शिकारी जिम कार्बेट को दिव्य ज्योति के साक्षात दर्शन हुए थे। इसका उल्लेख उन्होंने अपनी पुस्तक द मेन इटर्स आफ कुमाऊं में किया है। पं. पांडेय का कहना है कि प्रचार प्रसार के अभाव में पूर्णागिरि से जुड़े कई धार्मिक स्थलों की जानकारी लोगों को नही मिल पाती।
•जानकारी के अभाव में कम लोग कर पाते हैं दर्शन
•जिम कार्बेट को दिव्य ज्योति के साक्षात दर्शन हुए थे
•शारदा नदी का शांति से बहना भी है खासियत
Source-
http://earchive.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20110506a_002115008&ileft=-5&itop=1182&zoomRatio=130&AN=20110506a_002115008


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Raje Singh Karakoti:

--- Quote from: Pawan Pathak on October 19, 2015, 04:48:43 PM ---लड़ीधुरा में मां पूर्णागिरि के रूप में पूजी जाती है भगवती
लोहाघाट (चंपावत)। नवरात्रों में लोहाघाट से 13 किमी दूर बाराकोट के लड़ीधुरा की पहाड़ी में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगती है। बांज, चीड़ आदि वृक्षों से आच्छादित इस पहाड़ी से नगाधिराज हिमालय का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। यहां के लड़ीधुरा मंदिर में विद्यमान मां भगवती को लोग मां पूर्णागिरि के रूप में शताब्दियों से पूजते रहे हैं। कहा जाता है कि सिमल्टा के पांडे पुरोहित और उनके ढुंगाजोशी के यजमान को मां पूर्णागिरि ने स्वप्न में दर्शन दिए। कहा कि मैं यहां के शिखर में बैठी हूं। दूसरे दिन ग्रामीण वहां पहुंचे तो। स्वप्न के अनुसार ठीक उसी स्थान में देवी विराजमान थी। दोनों उन्हें उठाकर श्रद्धा के साथ बाराकोट ले आए। क्वांरकाली के पास जब दोनों रुके तो इसी बीच देवी अंतर्ध्यान हो गई। दूसरे दिन देवी ने स्वप्न में अपनी उपस्थिति का अहसास कराया। तब से यह स्थान देवी के उपासकों के लिए श्रद्धा, आस्था का केंद्र बन गया है। लड़ीधुरा देवी के नाम से बाराकोट के लोगों ने पिछले कुछ वर्षों से लड़ीधुरा महोत्सव की शुरुआत किए जाने से इस मंदिर की ख्याति दूर तक पहुंच चुकी है। ब्यूरो
Source-http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20151018a_007115011&ileft=-5&itop=543&zoomRatio=182&AN=20151018a_007115011


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