Tourism in Uttarakhand > Religious Places Of Uttarakhand - देव भूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देव मन्दिर एवं धार्मिक कहानियां

पूर्णागिरी मंदिर उत्तराखंड ,Purnagiri Temple Uttarakhand

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Raje Singh Karakoti:

--- Quote from: Pawan Pathak on October 16, 2015, 08:23:17 AM ---देवी की नाभि से स्थापित यह शक्तिपीठ नाभि स्थली के रूप में भी विख्यात है।

टनकपुर। देश के प्रमुख तीर्थ स्थलों में शुमार मां पूर्णागिरि शक्तिपीठ देवी सती के अंगों से स्थापित शक्तिपीठों में से एक है। पूर्णागिरि में हर साल लाखों की तादात में श्रद्धालु तीर्थयात्रा पर आते हैं। देवी की नाभि स्थली के दर्शन को उत्तर भारत के कोने-कोने से बड़ी तादात से लोग पहुंचते हैं। नेपाल से लगी सीमा पर होने के कारण नेपाल से भी दर्शन के लिए वर्षभर काफी संख्या में लोगों की आवाजाही बनी रहती है। इस शक्तिपीठ की स्थापना भी देवी सती के अंगों से स्थापित शक्तिपीठों से जुड़ी है। प्रचलित किवदंती के अनुसार मां पार्वती के पिता राजा दक्ष ने हरिद्वार के पास कनखल में महायज्ञ का आयोजन किया। तमाम देवी देवता, राजा, ब्राह्मण एवं संतों को महायज्ञ में आमंत्रित किया गया, परंतु देवी पार्वती के पति भगवान भोले शंकर को आमंत्रित नहीं किया। पति के इस अपमान के प्रतिशोध में देवी पार्वती ने यज्ञ के हवन कुंड में कूदकर खुद को अग्निदेवता को समर्पित कर दिया। भगवान शंकर को पार्वती के सती होने का पता चला तो वे क्रोध में सती पार्वती का शव लेकर ब्रह्मांड में चक्कर काटने लगे। शिव के इस रौद्र रूप से देवी-देवता चिंतित हो गए। देवी-देवताओं के आग्रह पर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए, जहां-जहां देवी सती के शरीर के अंग गिरे वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। माना जाता है कि पूर्णागिरि पर्वत में देवी सती की नाभि गिरने से यहां शक्तिपीठ की स्थापना हुई है।
Source- http://earchive.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20110504a_005115011&ileft=573&itop=90&zoomRatio=130&AN=20110504a_005115011


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Raje Singh Karakoti:

--- Quote from: Pawan Pathak on October 16, 2015, 08:26:10 AM ---पूर्णागिरि : अभिन्न हिस्सा है देवी का चरण मंदिर
पूर्णागिरि(चंपावत)। मां पूर्णागिरि का चरण मंदिर पूर्णागिरि तीर्थयात्रा का अभिन्न हिस्सा है लेकिन जानकारी के अभाव में बहुत कम लोग देवी के चरण मंदिर के दर्शन कर पाते हैं।
देवी सती की नाभि स्थली के रूप में विख्यात मां पूर्णागिरि शक्तिपीठ में कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं, जो देवी की चमत्कारिक शक्ति का प्रमाण देते हैं। प्रचार-प्रसार के अभाव में बहुत कम लोगों को मां पूर्णागिरि की गाथा से जुड़े झूठे का मंदिर, बाबा भैरव नाथ मंदिर, बाबा सिद्धनाथ मंदिर जैसे धार्मिक स्थलों के महत्व की जानकारी मिल पाती है। आस्था से जुड़ा ऐसा ही एक स्थल है देवी का चरण मंदिर। ठुलीगाड़ से करीब तीन किलोमीटर दूर शारदा नदी में तट पर स्थित मंदिर को देवी पूर्णागिरि के चरण मंदिर में रूप में जाना है। पूर्णागिरि पर्वत के ठीक नीचे स्थापित इस मंदिर की खासियत यह है कि इस स्थान पर शारदा नदी बहुत खामोशी से प्रवाहित होती है। वहां पहुंचने पर नदी की कलकल सुनाई नहीं पड़ती है। पं. भुवन चंद्र पांडेय बताते हैं कि देवी पूर्णागिरि के प्रसिद्ध उपासक पं. सज्जन तिवारी अल्मोड़ा से आकर इसी स्थान स्नान कर देवी की उपासना करते थे। वहीं इसी स्थान से प्रसिद्ध शिकारी जिम कार्बेट को दिव्य ज्योति के साक्षात दर्शन हुए थे। इसका उल्लेख उन्होंने अपनी पुस्तक द मेन इटर्स आफ कुमाऊं में किया है। पं. पांडेय का कहना है कि प्रचार प्रसार के अभाव में पूर्णागिरि से जुड़े कई धार्मिक स्थलों की जानकारी लोगों को नही मिल पाती।
•जानकारी के अभाव में कम लोग कर पाते हैं दर्शन
•जिम कार्बेट को दिव्य ज्योति के साक्षात दर्शन हुए थे
•शारदा नदी का शांति से बहना भी है खासियत
Source-
http://earchive.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20110506a_002115008&ileft=-5&itop=1182&zoomRatio=130&AN=20110506a_002115008


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Raje Singh Karakoti:

--- Quote from: Pawan Pathak on October 16, 2015, 08:23:17 AM ---देवी की नाभि से स्थापित यह शक्तिपीठ नाभि स्थली के रूप में भी विख्यात है।

टनकपुर। देश के प्रमुख तीर्थ स्थलों में शुमार मां पूर्णागिरि शक्तिपीठ देवी सती के अंगों से स्थापित शक्तिपीठों में से एक है। पूर्णागिरि में हर साल लाखों की तादात में श्रद्धालु तीर्थयात्रा पर आते हैं। देवी की नाभि स्थली के दर्शन को उत्तर भारत के कोने-कोने से बड़ी तादात से लोग पहुंचते हैं। नेपाल से लगी सीमा पर होने के कारण नेपाल से भी दर्शन के लिए वर्षभर काफी संख्या में लोगों की आवाजाही बनी रहती है। इस शक्तिपीठ की स्थापना भी देवी सती के अंगों से स्थापित शक्तिपीठों से जुड़ी है। प्रचलित किवदंती के अनुसार मां पार्वती के पिता राजा दक्ष ने हरिद्वार के पास कनखल में महायज्ञ का आयोजन किया। तमाम देवी देवता, राजा, ब्राह्मण एवं संतों को महायज्ञ में आमंत्रित किया गया, परंतु देवी पार्वती के पति भगवान भोले शंकर को आमंत्रित नहीं किया। पति के इस अपमान के प्रतिशोध में देवी पार्वती ने यज्ञ के हवन कुंड में कूदकर खुद को अग्निदेवता को समर्पित कर दिया। भगवान शंकर को पार्वती के सती होने का पता चला तो वे क्रोध में सती पार्वती का शव लेकर ब्रह्मांड में चक्कर काटने लगे। शिव के इस रौद्र रूप से देवी-देवता चिंतित हो गए। देवी-देवताओं के आग्रह पर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए, जहां-जहां देवी सती के शरीर के अंग गिरे वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। माना जाता है कि पूर्णागिरि पर्वत में देवी सती की नाभि गिरने से यहां शक्तिपीठ की स्थापना हुई है।
Source- http://earchive.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20110504a_005115011&ileft=573&itop=90&zoomRatio=130&AN=20110504a_005115011


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Raje Singh Karakoti:

--- Quote from: Devbhoomi,Uttarakhand on July 11, 2010, 06:49:52 PM ---वैष्णो देवी की ही  भांति पूर्णागिरि मंदिर भी सभी को अपनी ओर आकर्षित किए रहता है। हिंदू हो  या मुस्लिम, सिख हो या ईसाई-सभी पूर्णागिरि की महिमा को मन से स्वीकार  करते हैं। देश के चारों दिशाओं में स्थित कालिकागिरि, हेमलागिरि व  मल्लिकागिरि में मां पूर्णागिरि का यह शक्तिपीठ सर्वोपरि महत्व रखता है
कहा  जाता है कि जो भक्त सच्ची आस्था लेकर पूर्णागिरी की दरबार में आता है,  मनोकामना साकार कर ही लौटता है।

देवभूमि उत्तराखंड में स्थित अनेकों  देवस्थलों में दैवीय-शक्ति व आस्था के अद्भुत केंद्र बने पूर्णागिरि धाम  की विशेषता ही कुछ और है। जहां अपनी मनोकामना लेकर लाखों लोग बिना किसी  नियोजित प्रचार व आमंत्रण के उमड़ पड़ते हैं, जिसकी उपमा किसी भी लघु-कुंभ  से दी जा सकती है। टनकपुर से टुण्यास तक का संपूर्ण क्षेत्र जयकारों व  गगनभेदी नारों से गूंज उठता है।

वैष्णो देवी की ही भांति पूर्णागिरि मंदिर  भी सभी को अपनी ओर आकर्षित किए रहता है। हिंदू हो या मुस्लिम, सिख हो या  ईसाई-सभी पूर्णागिरि की महिमा को मन से स्वीकार करते हैं। देश के चारों  दिशाओं में स्थित कालिकागिरि, हेमलागिरि व मल्लिकागिरि में मां पूर्णागिरि  का यह शक्तिपीठ सर्वोपरि महत्व रखता है।


 समुद्रतल से लगभग तीन हजार फीट  ऊंची धारनुमा चट्टानी पहाड़ के पूर्वी छोर पर सिंहवासिनी माता पूर्णागिरि  का मंदिर है जिसकी प्रधान पीठों में गणना की जाती है। संगमरमरी पत्थरों से  मण्डित मंदिर हमेशा लाल वस्त्रों, सुहाग-सामग्री, चढ़ावा, प्रसाद व  धूप-बत्ती की गंध से भरा रहता है। माता का नाभिस्थल पत्थर से ढका है जिसका  निचला छोर शारदा नदी तक गया है।

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Raje Singh Karakoti:

--- Quote from: Devbhoomi,Uttarakhand on July 11, 2010, 06:35:42 PM ---चारों ओर बिखरा प्राकृतिक सौंदर्य  ऊंची चोटी पर अनादि काल से स्थित माता पूर्णागिरि का मंदिर व वहां के  रमणीक दृश्य तो स्वर्ग की मधुर कल्पना को ही साकार कर देते हैं।
नीले आकाश  को छूती शिवालिक पर्वत मालाएं, धरती में धंसी गहरी घाटियां, शारदा घाटी  में मां के चरणों का प्रक्षालन करती कल-कल निनाद करती पतित पावनी सरयू,  मंद गति से बहता समीर, धवल आसमान, वृक्षों की लंबी कतारें, पक्षियों का  कलरव- सभी कुछ अपनी ओर आकर्षित किए बिना नहीं रहते।

चैत्र व शारदीय नवरात्र प्रारंभ होते ही लंबे-लंबे बांसों पर लगी लाल  पताकाएं हाथों में लिए सजे-धजे देवी के डोले व चिमटा, खडताल मजीरा, ढोलक  बजाते लोगों की भीड से भरी मिनी रथ-यात्राएं देखते ही बनती हैं। वैसे  श्रद्धालुओं का तो वर्ष भर आवागमन लगा ही रहता है।

 यहां तक कि नए साल, नए  संकल्पों का स्वागत करने भी युवाओं की भीड हजारों की संख्या में मंदिर में  पहुंच साल की आखिरी रात गा-बजा कर नए वर्ष में इष्ट मित्रों व परिजनों के  सुख, स्वास्थ व सफलता की कामना करती हैं।

मंदिर में दर्शन के बाद निकट ही  नेपाल में स्थित ब्रह्मदेव बाजार में उपलब्ध दैनिक उपयोग की विदेशी  वस्तुएं खरीदने के लोभ से भी लोग बच नहीं पाते। जूता, जींस, छाता, कपडा व  इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं वहां आसानी से मिल जाती है।


प्रचुरता पर्यटन-स्थलों की   पर्यटन में दृष्टिकोण से टनकपुर व पूर्णागिरि का संपूर्ण क्षेत्र अत्यंत  महत्वपूर्ण है। प्राचीन ब्रह्मदेव मंडी, परशुराम घाट,  ब्रह्मकुंड, सिद्धनाथ समाधि, बनखंडी महादेव, ब्यान, धुरा,





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