Author Topic: Semmukhem Uttarakhand,नाग देवता का सेममुखेम उत्तराखंड  (Read 61024 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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सेममुखेम का मार्ग हरियाली और प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर है। मुखेम के आगे रास्ते में प्राकृतिक भव्यता और पहाड़ की चोटियाँ मन को रोमाँचित करती हैं। रमोली पट्टी अत्यन्त सुन्दर है। रास्ते में श्रीफल के आकार की खूबसूरत चट्टान है। सेममुखेम में घने जंगल के बीच मन्दिर के रास्ते में बांज, बुरांस, खर्सू, केदारपत्ती के वृक्ष हैं जिनसे खुशबू निकलती रहती है।

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भगवान श्री कृष्ण को हम बहुत से रूप में पूजते है.... कभी बांसुरी लिए मुरलीमनोहर के रूप में गोपिओं को बेचैन करते हुए तो कभी विराट रूप धारण कर शत्रु का नाश करने के लिए सुदर्शन उठा लेने वाले के रूप में...मधुसूदन के अनेक रूपों में एक स्वरूप 'नागाराजा' का भी है जिसका टिहरी के सेम मुखेम में पूजन होता है....जनश्रुतियों के साथ-साथ धार्मिक ग्रन्थों में भी इसका उल्लेख मिलता है

.जनपद टिहरी गढ़वाल की प्रताप नगर तहसील में समुद्र तल से तकरीबन 7000 हजार फीट की ऊंचाई पर भगवान श्रीकृष्ण के नागराजा स्वरूप का मंदिर है...जहां प्राचीन काल से भगवान कृष्ण नागराजा के नाम से पूजे जाते हैं...कहा जाता है की श्री कृष्ण नागवेश में केदारी कांठा होते हुए चमियाला चौंरी से नैपड गांव आए थे...इसीलिए गढ़वाली जागरों में भगवान कृष्ण को नौछमी नारायण (छदम वेश बदलने वाला) भी कहा जाता है....पुराणों में कहा गया है कि राक्षस राज वाणासुर ने कृष्ण के नाती प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध को हिमालय में बंदी बनाया था... श्री कृष्ण ने अपनी दस करोड़ महानारायणी सेना के साथ वाणासुर से युद्ध किया था.

इस युद्ध से घबराकर वाणासुर ने भगवान शिव की तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने स्वयं युद्ध में उतरकर अपने भक्त की रक्षा की थी....भगवान शंकर ने क्रोधित होकर जब अपने सभी दिव्यारु को वैष्णवी शक्ति के सामने नष्ट होते देखा तो प्रलयकारी अमोघ दिव्यशक्ति त्रिसिरा को महानारायणी सेना पर फेंक दिया...भगवान शिव की इस शक्ति से कृष्ण चिन्ता में डूब गए...कृष्ण ने त्रिसिरा शक्ति के भय से अपने आपको नागरूप में बदल दिया और केदारखंड आ गए....


एक जनश्रुति यह भी है कि महाभारत युद्ध के बाद शान्ति की तलाश में भगवान कृष्ण हिमालय पर आए....जानकारों के अनुसार श्रीमद् भागवत व पुराणों में इसका वर्णन मिलता है....सोनूगढ़ में कृष्ण ने गंगू रमोला से अपने लिए स्थान मांगा, लेकिन उसने कृष्ण को जगह देने से इंनकार कर दिया था।

 इस बात से नाराज होकर कृष्ण ने अपनी लीला से गंगू के सारे पशुओं को शिला रूप में बदल दिया...इस घटना से गंगू की पत्नी रत्ना ने अपने पति को समझाया और भगवान श्री कृष्ण के नागराजा रूप में स्तुति की व उन्हें स्थान देने का वचन दिया...तब श्री कृष्ण का नागराजा मंदिर बनवाया गया....लोक कथा के अनुसार अनेक स्थानों पर मंदिर बनाने पर भी वे लुप्त हो जाते थे..


.इस प्रकार छह मंदिरों के लुप्त होने बाद बना सातवां मंदिर जो आज भी विद्यमान है...इस स्थान पर प्रति वर्ष हजारों श्रद्धालु भगवान कृष्ण के नागराजा स्वरूप का दर्शन कर पुण्य कमाते हैं...

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नागवंशी नागराजा, प्रकटा सेम जाग
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 सेम-मुखेम में वैसे तो वर्ष भर पर्यटकों का तांता लगा रहता है, लेकिन 26 नवंबर (11 गते मंगशीर )से शुरू होने वाले सेममुखेम  मेले का महत्व ही कुछ और है। कहा जाता है कि द्वारिका डूबने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन यहां नागराज के रूप प्रकट हुए थे।


जिला मुख्यालय से करीब 90 किमी दूर  प्रतापनगर प्रखंड के अंतर्गत सेममुखेम में द्वापर युग में यमुना नदी में काले नाग का वास था इस कारण यहां के लोग भयभीत थे और नदी का पानी भी दूषित हो गया था इस कारण  आस-पास के क्षेत्र में पानी की समस्या पैदा हो गई।



जब भगवान श्रीकृष्ण को इस बात का पता चला तो उन्होंने बालक रूप में गेंद खेलते समय उसे जानबूझकर यमुना नदी में डाल दिया। जब भगवान गेंद को लेने नदी में गए तो वहां उनका सामान काले नाग से हो गया दोनों के बीच युद्ध हुआ और अंत में नाग ने भगवान से क्षमा मांग ली।



इसके बाद श्री कृष्ण ने उसे इस स्थान को छोड़ने को कहा इस पर नाग ने भगवान से कहा कि वहीं उन्हें किसी स्थान पर छोड़ दें। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण भी डांडानागराजा (पौड़ी) चले गए किंतु वहां उन्हें रास नहीं आया। इसके बाद वह सेममुखेम आ पहुंचे और उस समय यहां का गंगू रमोला  गढ़पति था जो काफी वृद्ध हो चुका था, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी, पर उनकी पत्‍‌नी की भगवान के प्रति आगाध आस्था थी।


 वह रोज पुत्र रत्‍‌न प्राप्ति की मन्नतें भगवान से मांगती थी किंतु गंगू रमोला के आगे उनकी कुछ नहीं चलती थी। इसी दौरान भगवान श्रीकृष्ण छद्म रूप धारण कर गंगू रमोला से थोड़ा जमीन मांगी पर गंगू एक इंच भूमि देने को तैयार नहीं हुआ।


 अंत में श्रीकृष्ण ने गंगू रमोला की पत्‍‌नी के सपने में दर्शन देकर कहा कि यदि गंगू रमोला उन्हें थोड़ा जमीन दे दे तो उन्हें पुत्र की प्राप्ति होगी। पत्‍‌नी के कहने पर गंगू रमोला ने भगवान श्रीकृष्ण को जमीन देने की बात स्वीकारी, लेकिन वह मन ने संतुष्ट नहीं था। वह एक के बाद एक मंदिर दिन में बनाता गया और वह रात को टूटते गए। इसके बाद श्रीकृष्ण फिर गंगू की पत्‍‌नी के सपने में आये और कहा कि गंगू रमोला मन से मंदिर नहीं बना रहे हैं।


 इस लिए तुम्हें पुत्र की प्राप्ति नही हो सकती इसके बाद  फिर गंगू रमोला ने मन से मंदिर बनाया इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण प्रकटा सेम के नाम से प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम्हारे दो पुत्र पैदा होंगे। इसके बाद गंगू रमोला ने सिदवा और विद्धवा दो पुत्रों को जन्म दिया बाद एक भाई रमोल गढ़ का गढ़पति बना और दूसरा कुमायूं चला गया था। इस दौरा की शिलाएं आज भी यहां पर गाय के खुर के रूप में मौजूद है।

Source Dainik jagran

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प्रतापनगर विकासखंड के अंर्तगत प्रसिद्ध कृष्ण धाम सेमनागराजा सेम मुखेम में त्रेवार्षिक लगने वाले मेले से एक दिन पहले ही शुक्रवार को श्रद्धालुओं का तांता लग गया। इससे पूरे दिन भर लम्बगाव बाजार सहित मुखेम तक कई जगह लम्बे समय तक भारी जाम लगा रहा।

इस कारण बाहर से हजारों यात्रियों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। जाम को हटाने के लिए दिन भर होमगार्ड के जवानों के पसीने छूट गये। मेला समिति ने शनिवार (आज)लगने वाले मेले की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।

उल्लेखनीय है कि त्रेवार्षिक लगने वाले सेम नागराजा मेले में हजारों की संख्या में श्रद्धालु देश के विभिन्न हिस्सों से यहां आते हैं। खासकर पौड़ी एवं रवाई घाटी के लोग भारी संख्या में यहां पहुंचते हैं। रवांई घाटी के लोग यहां पहुंचने के लिए अपने घरों से पांच दिन का पैदल सफर तय करते हैं।

ब्लाक प्रमुख पूरण चन्द रमोला, मुरारी लाल खडवाल, क्षेत्र पंचायत सदस्य राकेश राणा, विजय पोखरियाल आदि लोगों ने सेम मुखेम मेले के लिए अतिरिक्त बसों का संचालन न करने पर नाराजगी व्यक्त की। सेम मुखेम में आज होने वाले मेले की समिति द्वारा सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।


Source Dainik jagran

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Sem-Mukhem fair

धार्मिक अनुष्ठानो के अनुसार वैशाखी एवं कृष्ण जन्माष्टमी  के दौरान यहाँ वृहद पूजा अर्चना संम्पन होती है! हर तीसरे वर्ष 11 गते मार्गशीर्ष (नवम्बर दिसंबर ) को यहाँ कृष्ण  जात (धार्मिक  यात्रा ) के रूप में एक भव्य मेला आयोजित होता है, जिसमे हज़ारो की संख्या में लोग यहाँ पहुचते है!

 

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