नागवंशी नागराजा, प्रकटा सेम जाग
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सेम-मुखेम में वैसे तो वर्ष भर पर्यटकों का तांता लगा रहता है, लेकिन 26 नवंबर (11 गते मंगशीर )से शुरू होने वाले सेममुखेम मेले का महत्व ही कुछ और है। कहा जाता है कि द्वारिका डूबने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन यहां नागराज के रूप प्रकट हुए थे।
जिला मुख्यालय से करीब 90 किमी दूर प्रतापनगर प्रखंड के अंतर्गत सेममुखेम में द्वापर युग में यमुना नदी में काले नाग का वास था इस कारण यहां के लोग भयभीत थे और नदी का पानी भी दूषित हो गया था इस कारण आस-पास के क्षेत्र में पानी की समस्या पैदा हो गई।
जब भगवान श्रीकृष्ण को इस बात का पता चला तो उन्होंने बालक रूप में गेंद खेलते समय उसे जानबूझकर यमुना नदी में डाल दिया। जब भगवान गेंद को लेने नदी में गए तो वहां उनका सामान काले नाग से हो गया दोनों के बीच युद्ध हुआ और अंत में नाग ने भगवान से क्षमा मांग ली।
इसके बाद श्री कृष्ण ने उसे इस स्थान को छोड़ने को कहा इस पर नाग ने भगवान से कहा कि वहीं उन्हें किसी स्थान पर छोड़ दें। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण भी डांडानागराजा (पौड़ी) चले गए किंतु वहां उन्हें रास नहीं आया। इसके बाद वह सेममुखेम आ पहुंचे और उस समय यहां का गंगू रमोला गढ़पति था जो काफी वृद्ध हो चुका था, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी, पर उनकी पत्नी की भगवान के प्रति आगाध आस्था थी।
वह रोज पुत्र रत्न प्राप्ति की मन्नतें भगवान से मांगती थी किंतु गंगू रमोला के आगे उनकी कुछ नहीं चलती थी। इसी दौरान भगवान श्रीकृष्ण छद्म रूप धारण कर गंगू रमोला से थोड़ा जमीन मांगी पर गंगू एक इंच भूमि देने को तैयार नहीं हुआ।
अंत में श्रीकृष्ण ने गंगू रमोला की पत्नी के सपने में दर्शन देकर कहा कि यदि गंगू रमोला उन्हें थोड़ा जमीन दे दे तो उन्हें पुत्र की प्राप्ति होगी। पत्नी के कहने पर गंगू रमोला ने भगवान श्रीकृष्ण को जमीन देने की बात स्वीकारी, लेकिन वह मन ने संतुष्ट नहीं था। वह एक के बाद एक मंदिर दिन में बनाता गया और वह रात को टूटते गए। इसके बाद श्रीकृष्ण फिर गंगू की पत्नी के सपने में आये और कहा कि गंगू रमोला मन से मंदिर नहीं बना रहे हैं।
इस लिए तुम्हें पुत्र की प्राप्ति नही हो सकती इसके बाद फिर गंगू रमोला ने मन से मंदिर बनाया इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण प्रकटा सेम के नाम से प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम्हारे दो पुत्र पैदा होंगे। इसके बाद गंगू रमोला ने सिदवा और विद्धवा दो पुत्रों को जन्म दिया बाद एक भाई रमोल गढ़ का गढ़पति बना और दूसरा कुमायूं चला गया था। इस दौरा की शिलाएं आज भी यहां पर गाय के खुर के रूप में मौजूद है।
Source Dainik jagran