Tourism in Uttarakhand > Religious Places Of Uttarakhand - देव भूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देव मन्दिर एवं धार्मिक कहानियां

Shiv Ling Pooja Worship -शिव लिंग पूजा का रहस्य जुडा है उत्तराखंड देवभूमि से

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

अतः जागेश्वर में लिंग काटा गया ! और वह नौ खंडो में बाटा गया !
 
   (१)   हिमाद्री खंड
  (२)   मानसखंड
  (३)  केदारखंड
  (४)  पातालखंड - जहाँ नागो के पूजा की जाती है
  (५)  कैलाश खंड - जहाँ शिव स्वय विराजते है
  (६)   काशीखण्ड (जहाँ विश्वनाथ है)
  (७)  रेवाखंड (जहाँ रेवा नदी है, जिसके पत्थर नारव देश्वर के रूप में लिंग की पूजा होती है)
  (८)  ब्रह्तोतर खंड (जहाँ गोकेश्वर महादेव है) - कनारा जिला मुंबई
 (९)  नगरखंड जिसमे उज्जैन नगरी है   

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी:
मेहता जी आपने इस टोपीक मे हमै पौराणीक ज्ञान से अवगत कराया है पढकर हमै बहुत अच्छा लगा लेकिन कुछ-एक जगहो पर इसे समझने मे दिक्कत हो रही है।
सायद या तो आपका शब्द रिपीड हो रहा है य़ा शब्द सस्कृत मे है। मै यहा पर एक शब्द लिख रहा हुं जीसका अथॅ मै समझ नही पा रहा हु आपसे अनरोध करता हु कि इस शब्द का भावॉथ बता कर हमे ज्ञान से परिपुणॅ करे।           (ग्लेच्छो)
धन्यबाद

jagdishmainali:
Bahot badiya site chhu or mehta ji k yogdan bahute mahtwapurn chha aap sabhi logo ken  naya saal ki hardik shubh kamnayen 0989926897

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
शिवलिंग पूजा की शुरूआत का गवाह है जागेश्वर मंदिर[/color]दुनिया में शिवलिंग पूजा की शुरूआत होने का गवाह बना ऐतिहासिक और प्राचीनतम जागेश्वर महादेव का मंदिर आज भी अपनी भव्यता और प्रसिद्धि को मान्यता मिलने की बाट जोह रहा है.उत्तराखंड के अल्मोडा जिले के मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर देवदार के वृक्षों के घने जंगलों के बीच पहाडी पर स्थित जागेश्वर महादेव के मंदिर परिसर में पार्वती, हनुमान, मृत्युंजय महादेव, भैरव, केदारनाथ, दुर्गा सहित कुल 124 मंदिर स्थित हैं जिनमें आज भी विधिवत् पूजा होती है.मंदिर के मुख्य पुजारी षष्टी दत्त भट्ट ने विशेष बातचीत में भाषा संवाददाता को बताया कि भारतीय पुरातत्व विभाग ने इस मंदिर को देश के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक बताया है और बाकायदा इसकी घोषणा करता एक शिलापट्ट भी लगाया है. एक सचाई यह भी है कि इसी मंदिर से ही भगवान शिव की लिंग पूजा के रूप में शुरूआत हुई थी. यहां की पूजा के बाद ही पूरी दुनियां में शिवलिंग की पूजा की जाने लगी और कई स्वयं निर्मित शिवलिंगों को बाद में ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाने लगा.उन्होंने कहा कि यहां स्थापित शिवलिंग स्वयं निर्मित यानी अपने आप उत्पन्न हुआ है और इसकी कब से पूजा की जा रही है इसकी ठीक ठीक से जानकारी नहीं है लेकिन यहां भव्य मंदिरों का निर्माण आठवीं शताब्दी में किया गया है. घने जंगलों के बीच विशाल परिसर में पुष्टि देवी (पार्वती), नवदुर्गा, कालिका, नीलकंठेश्वर, सूर्य, नवग्रह सहित 124 मंदिर बने हैं.दत्त ने बताया कि दुनिया में भगवान शिव की लिंग के रूप में पूजा की शुरूआत इसी मंदिर से हुई थी और इसका जिक्र शिवपुराण के मानस खण्ड में हुआ है. चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भारत यात्रा के दौरान यहां की यात्रा की थी और उसने इस मंदिर की प्राचीनता के बारे में जिक्र भी किया है. यह मंदिर साक्ष्यों के आधार पर करीब ढाई हजार साल पुराना है क्योंकि इस मंदिर की दीवारों की प्राचीनता इसकी गवाह है. उन्होंने बताया कि मंदिर पर पहले एक बोर्ड लगा था, जिसको पुरातत्व विभाग दवारा हटा दिया गया है. उन्होंने कहा कि मंदिर की प्राचीनता साबित करने वाले बोर्ड को फिर से लगाया जाना चाहिये.उन्होंने कहा कि चंदकाल के राजाओं ने इस मंदिर का उद्धार कराया था और बाद में कत्यूरी राजाओं ने भी जागेश्वर मंदिर के लिए कई गांव दान दिये, जिससे मंदिर में पूजा पाठ की व्यवस्था हुआ करती थी. वर्तमान में मंदिर की देख रेख का काम भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा किया जा रहा है, लेकिन इसकी प्राचीनता को देखते हुए इसे विश्व धरोहर के रूप में विकसित किया जाना चाहिये.द्वादश शिवलिंगों में शुमार किये जाने के बावजूद इस मंदिर में आने वाले तीर्थ यात्रियों की सुविधा के लिए आवासीय व्यवस्था, मंदिर मार्ग के विकास, विद्युत और पेयजल व्यवस्था को अभी भी सुधारा नहीं जा सका है.उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद के निवासी राजीव अग्रवाल ने इस संवाददाता को बताया कि मंदिर के इतिहास के बारे में जिक्र करते हुए उन्होंने एक पुस्तक लिखी है. यह मंदिर रेखा देवल शैली, पीठ देवल शैली और बल्लभी देवल शैली में बना है. महामृत्युंजय मंदिर का निर्माण रेखा शैली में किया गया है, जबकि केदार और बालकेश्वर मंदिर का निर्माण पीठ शैली तथा पुष्टि देवी मंदिर बल्लभी शैली में बना है. उन्होंने कहा कि मुख्य मंदिर के पास डंडेश्वर, वृद्ध जागेश्वर, ब्रह्म कुण्ड, कुबेर, बटुक भैरव, पंचमुखी महादेव मंदिरों के अतिरिक्त घने देवदार जंगल के चलते इसकी प्राचीनता पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता. श्रावण महीने को छोडकर इस मंदिर में आने वालों की संख्या अपेक्षाकृत कम रहती है, जबकि श्रावण के महीने में भारी संख्या में यहां लोग आते हैं.दत्त ने कहा कि जागेश्वर को ही नागेश्वर माना जाता है क्योंकि इस मंदिर के आसपास के अधिकांश इलाकों का नाम नाग पर ही आधारित है. उन्होंने बताया कि बेरीनाग, धौलेनाग, लियानाग, गरूड स्थानों से भी यह साबित होता है कि यह इलाका नाग बहुल था और इसी लिए इसका नाम नागेश्वर भी पडा लेकिन बाद में इसे जागेश्वर भी कहा जाने लगा.उन्होंने बताया कि मानस खण्ड में नागेशं दारूकावने का जिक्र आया है. दारूकावने देवदार के वन के लिए कहा गया है. इससे भी इसे नागेश्वर का नाम दिया गया.उन्होंने कहा कि द्वादश ज्योर्तिलिंग में एक घोषित होने के बावजूद इस मंदिर की सबसे बडी महत्ता यह है कि यहीं से लिंग के रूप में भगवान शिव की पूजा शुरू हुई थी. इस तथ्य को और अधिक विकसित कर पूरी दुनिया में स्थापित किया जा सकता हैऔर भी... http://aajtak.intoday.in/story.php/content/view/30805/42/0/1/2

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Om Namah Shivay.

This is secret of worshiping Sihv Linga which is mentioned in many religious books.

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