Author Topic: Shri 1008 Mool Narayan Story - भगवान् मूल नारायण (नंदा देवी के भतीजे) की कथा  (Read 96486 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नंदा देवी का बागेश्वर पहुचना

अल्मोड़ा शहर से रास्ता लगने के बाद नंदा देवी अब ताकुला से आगे बदती है ! गाव के लोग स्थान -२ पर देवी के दर्शन के लिए उमड़ पड़ते है ! नंदा देवी सरयू के किनारे -२ जब बागेश्वर के निकट पहुचती है तब सरयू के किनारे बसे एव मैदान भूमि के खेत तो रानी को सुंदर लगते है ! जहाँ सास बहु (सास ब्वारी  का गड  ) का खेत भी प्रसिद्ध है वहाँ से होकर रानी के डोला आगे पहुचता है !

बागेश्वर जिनके नाम से प्रसिद्ध है अर्थात बागनाथ जी बागेश्वर के ईश्वर थे उनका प्रताप दसो दिशाओ मे फैला था ! रानी के डोले के आगमन के खबर से ये सभी लोग घबराने लगे ! नंदा देवी जब बागेश्वर पहुची तो बागनाथ जी से ठहरने के लिए, अपने कटुक के विश्राम हेतु जगह मागती है ! मागने की प्रार्थना न कर कुछ गौरव से कहती है तब बागनाथ जी क्रोथ मे कहते है " आप मुसाफिर के तौर पर स्थान मांगती तो मे सहर्ष दे देता लेकिन अकड़ कर बोलने से या अधिकार जैसा दिखाकर मेरे मन मे तो यह आता है की आपको पैर रखने की भी जगह न दी जाय !





नंदा देवी का बागनाथ भगवान से संधर्ष

भगवान बागनाथ जी के द्वारा मन कर देने पर माई नंदा को इतना गुसा आ गया की वह अपने विकराल रूप धारण करने लगी और सिर के बालो को फैला कर अष्ट भैरव गणों को आदेश देने लगी! इस भयंकर रूप से बागनाथ जी भी भयभीत होने लगे लेकिन माई नंदा ने मंत्र फूक कर दोनों नदियों के बहाव को बंद कर दिया ! अब क्या बागेश्वर डूबने लगा, तब क्या भगवान बागनाथ ने अपनी हार मानकर अपनी हार मानने लगे और नंदा देवी से क्षमा प्राथना करने लगे !  नंदा देवी कहने लगी यदि आप मे शक्ति है तो नदियों का बहाव फिर से शुरू कर के दिखाओ !  भगवान बागनाथ अपनी हार बार -२ स्वीकार करते !

तब रानी का क्रोध कुछ कम हुवा लेकिन कुछ हठ मे परिवर्तन होता है ! देवी ने पुनः मे कहा यदि आप प्रवाह को फिर से चलने मे असमर्थ हो गए हो तो इतना करके दिखा दो की आप मछली के जाल को ले जाकर पानी भर लावो, और आप जब पानी ला पाओगे तो मे पानी पिउंगी क्योकि मुझे प्यास लगी है! लेकिन एसा सम्भव नही था, अंत मे थककर भगवान बागनाथ जी माता नंदा के पास आए और वंदना करने लगे मेरी हार स्वीकार कर दे !  तब माता ने उन्हें क्षमा कर दिया और सरयू एव गोमती नदियों का प्रवाह शुरू कर दिया जिससे बागेश्वर डूबने से बच गया ! भगवान बागनाथ ने नंदा देवी को धूम धाम से विदाई दी !


BAGESHWAR CITY



Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नंदा देवी का कालागढ़ पहुचना !

बागेश्वर से नंदा देवी का डोला कालागढ़ पहुचता है ! जहाँ पर मौना बालक यानी मूल नारायण भगवान डोली ने नीचे कूद जाते क्योकि कहा जाता है यहाँ के लोगो ने नंदा देवी, मौना बालक एव पूरे गानों का यहाँ पर भव्य स्वागत किया था ! 

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नंदा देवी का बनलेख मे पहुचना
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कालागढ़ ने नंदा देवी का डोला आगे चलता है और बनलेख नामक जगह पर पहुचता है ! यह जगह मौना बालक को काफ़ी पसंद आयी ! यहाँ के लोगो ने भी नंदा देवी के डोले का काफ़ी स्वागत किया और यह भी कहा जाता है की लोगो ने मूल नारायण के चरणों मे भी तिलक लगाकर स्वागत किया ! इस जगह पर हर वर्ष के भव्य मेला लगता है ! दूसरी तरफ़ भगवान मूल नारायण जी एक यहाँ के लोगो को मसान के आतंक के मुक्त कराया !   

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अब नंदा देवी के डोले का जारती के लोती नामक (जो कि मेरी जन्म भूमि भी है) पहुचना
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क्योकि मै इसी गाव का निवासी हूँ मैंने अपने बुजुर्गो के श्री १००८ मूल नारायण जी कथा सुनी है और यहाँ लगने वाले हर वर्ष मेले मे जाया करता था!  जारती गाव काफ़ी ऊँचाई पर है यहाँ के पिथौरागढ़ और ऊपर चोटी से सारा गडवाल, हिमालय कि ऊँची -२ श्रन्ख्लाये दिखायी पड़ती है! लोती जगह बिल्कुल एक मैदानी भाग मे है और यह मैदान पूरा बाज से पैदो से घिरा हुवा है!  मौना बालक यानी मूलनारायण जी को यह जगह काफ़ी पसंद आयी!  जारती गाव के निवासियों ने भी नंदा देवी के डोले का काफ़ी स्वागत किया! 


PHOTO OF TEMPLE GATE

इस जगह पर मूल नारायण जी ने जारती वासियों के कहा कि उनके गणों के लिए भोजन के व्यवस्था कर दी जाय तो बहुत अच्छा होगा! लेकिन गणों के लिए विशेष कुमिन (भुजिया) का भोजन तैयार किया गया और गानों को खिलाया गया ! लेकिन मौना बालक पेट के बल सोकर नाराज हो गए और कहने लगे आप लोगो ने तो भोजन कर दिया लेकिन मे तो भूखा हूँ!  इसी कहा जाता है कि मूल नारायण भगवान के पेट के बल सोने के कारण यहाँ पर केवल चंदन का टीका लगता है!

दूसरी कथा के अनुसार यहाँ पर कुमिनी वाण का आतंक था जिसने मूल नारायण भगवान को यहाँ परेशानी पर डाला और उनको चैन यहाँ पर आराम नही करने दिया ! बाद सघर्ष के दौरान कुमिनी वाण हार गया और भगवान उसे कहा कि औशौज के महीने जब गाव वाले भगवान मूल नारायण कि नए फसल कि भोग लगाते है तो कुमिनी वाण को भी कुमिन (भुजिया ) कि बलि देते है! यह प्रथा वर्षो के चली आ रही है! 


भगवान् १००८ मूल नारायण जी का मन्दिर बहुत आकर्षक है! यहाँ पर लोग दूर -२ से भगवान मूल नारायण के दर्शन के लिए आते है!  हर वर्ष यहाँ पर मेला लगता है कई गाव जैसे जुनायल, सुन्दिल, रतायास, बस्कुना, पपोली, उडियार, बीनाडी, रीमा आदि से यहाँ पर भगवान के दर्शन के लिए आते आते है ! खासतौर से जारती जहाँ की पूरे तरह से मेहता लोग ही रहते है, यहाँ पर पौष के महीने मे ९ दिनों तक मन्दिर मे पूजा करते है और दसवे दिन को कुमिन ( भुजिया) की बली देकर इस नौ रात्रि के समापन विधि पूर्वक करते है!

इसके अलावा, उडियार और पपोली गाव के लोग भी इस मेले भी विधि पूर्वक भाग लेते है और दोल रहित आरती लेकर आते है !

 भगवान मूल नारायण जी ने कई इस गाव मे चमत्कार दिखाए है!  लोती मन्दिर से थोड़ा आगे चल एक बहुत बड़ा पत्थर है जहाँ से सारा जारती गाव और सारा इलाका दिखायी देता है ! ऐसा कहा जाता है की भगवान इसी जगह से लोगो को आवाज लगाया करते थे ! 

एक बार एक आदमी हल चला रहा था लेकिन बार -२ उसका हल जोइन्ट से खुल जा रहा था भगवान मूल नारायण जी इसी पत्थर से इस घटना को देख रहे थे ! उन्होंने ने देखा कि यह आदमी बहुत प्रेशान  हो गया है, तो इस पत्थर से उस आदमी को आवाज दी कि अपने हल मे किरमड के पेड का पात ( जोइन्ट) डाल तब तेरा हल सही चलेगा!

एक और रोचक कथा ....

हमने बुजुर्गो से यह कथा सुनी है कि लोती मन्दिर से मूल नारायण भगवान ने दो फल अलग -२ दिशावो मे फैके और कहा कि जहाँ पर ये फल रुकेगे वहाँ पर मन्दिर होगा! पहला फल काफ़ी दूर जाकर पपोली गाव मे एक बुराश मे पेड के होल मे जा रुका जहाँ पर ज्वाला देवी का मन्दिर है ! दूसरा  फल जारती गाव के बीच मे जा रुका जहाँ पर वह एक बड़े पत्थर के रूप मे है! इसे देवता का घोडा कहते है और यहाँ पर भी लोग पूजा करते है !

लोती मन्दिर के ऊपर से हिमालय के पूर दर्शन होते है!  भगवान के इन दस दिनों के पूजा के दौरान भक्त हिमालय के देवी देवता की पूजा करने इस पर्वत के टॉप पर जाते है !

(पर्यटन के नजर से भी यह स्थान बहुत ही अच्छा है, उत्तराखंड सरकार को जरूरत है इस प्रकार के जगहों को पर्यटन एव पौराणिक कथाओ से दृष्टि से बढावा दे )

मेरे बड़े भाई ने मूल नारायण भगवान एक बहुत अच्छा गीत बनाया है.. चंद पक्तिया ..

   " जय मेरी जन्म भूमि जारती"
    उतारू मै तेरी आरती..

    शिरान मे मूल नारायण देवा रौना
  बाज घाडी, बीच मन्दिर के भल छाजी रूने

  " जय मेरी जन्म भूमि जारती"
    उतारू मै तेरी आरती..

    पूर्व दिशा नौलिग़ देवा रूनी
  पश्छिमा सिद्दी नाथ ..
   घर बार, देश प्रदेश
  रया हमार साथ

  " जय मेरी जन्म भूमि जारती"
    उतारू मै तेरी आरती..



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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भगवान मूल नारायण का निवास स्थान बना शिखर - इस यात्रा का अन्तिंम पड़ाव______________________________________________

भगवान मूल नारायण तब जारती (लोती) से आगे चलते है और एक सुंदर जगह शिखर मे अपनी बुवा नंदा देवी के साथ इस अन्त्यंत रमणीय स्थल पर पहुचते है,  जहाँ पर भगवान मूल नारायण का निवास स्थान बन जाता है! 

कथावो मे हमने सुना है कि जब नंदा देवी उन्हें अपने पीठ पर और कभी डोली मे शिखर कि ओर ले जा रही थी ! तो मौना बालक यानी मूल नारायण जी शिखर कि चदाई मे उनको अपनी पीठ पर यह बालक भरी लगने लगे, तब नंदा देवी सोचने लगी कि आखिर यह बालक यो वह इतनी दूर से अपनी पीठ पर लाई परन्तु अचानक उनको यह बालक भारी क्यो लगने लगा! इससे यह स्पष्ट था कि मौना बालक को यह जगह पसंद आने लगी थी ! जब नन्द देवी शिखर की चदाई मे चल रहे थे तो बालक ने पानी के मांग किया! तो नंदा देवी ने अपने छड़ी से घरती पर छेद किया तो वहाँ से पानी आने लगा, यह जगह अभी वहाँ है और इस सूखे जगह से पानी आता है !

आख़िर मे नंदा देवी शिखर मे पहुचती है ! नंदा देवी तो मौना बालक को अपने साथ हिमालय मे जाना चाहती थी लेकिन बालक मौना ने सोचा की वह हिमालय मे बर्फ से घिरे हुवे जगह मे करेगा क्या !  तो मूल नारायण भगवान् ने यहाँ पर अवतार ले लिया और कई चमत्कार दिखाए . एक और जोड़.

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सुनपति सौका (व्यपारी) के बकरियों के कर्वचो का पत्थर बनना.
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इस जगह पर दूर हिमालय (भूटान) तरफ़ से लोग पहले व्यापार के लिए आया करते थे !  इस जगह पर खासतौर से उनका पड़ाव हुवा करता था! जब मूल नारायण जी यह पहुचते है, वहाँ पर जो सौका के बकरियों

जब मूल नारायण भगवान् ने देखा की सौका के बकरियों का कर्वाच वहाँ पर पड़े है, उन्होंने ने इनको पत्थर मे बदल दिया ! क्योकि भगवान् ने इस सौका को अपने अवतार होने का सपना पहले ही उसे दे दिया था परन्तु सौका ने इसे वहाँ से हटाया नही ! जिससे सौका कारण सौका का मानसिक संतुलन भी ख़राब हो गया! सौका की बेटी ने मूल नारायण जी के यहाँ पर दर्शन किए और उनसे प्राथना की उसके पिता का मानसिक संतुलन ठीक कर दे ! तब भगवान् ने आकाशवाणी द्वारा सौका से कहा की अब यहाँ पर उनका अवतार हो चुका है इसी लिए वो यहाँ से कही और चले जाय! और सौका ने यही किया तब उसका पागलपन भी दूर हो गया !
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भगवान् मूल नारायण जी का नंदा देवी से पानी के मांग करना

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शिखर जैसे ऊँचे जगह पर पानी मिलना काफी मुश्किल था लेकिन बालक मौना को पानी पिलाना भी जरुरी था! तब नंदा देवी मूल नारायण जी से कहती है कि इस जगह पर पानी कहाँ मिलेगा,  मूल नारायण जी एक फल गिराते है और अपनी बुवा नंदा देवी से कहते है जहाँ पर यह फल रुकेगा, वहाँ पर उन्हें पानी मिलेगा !  यह फल गिरते -२ बिगर (गुफा का नाम) वहाँ जा कर रुकता है!






एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मूल नारायण जी का नंदा देवी के डाव ( ओला वृस्ती ) वाले घडो को इस बीच फोड़ डालना __________________________________


नंदा देवी जब पानी लेकर आती है तो उन्हें पता चलता है कि उनके डाव (ओला ब्रस्ती) के घडे मूल नारायण भगवान फोड चुके है तो नंदा देवी काफ़ी क्रोधित होती है और कहते है मे तुझे इतने दूर से तुझे यहाँ पर लाई तेरे माँ बाप ने तो तुझे नदी मे बहा दिया था और तुने मेरे सारे घडे फोड़ डाले! कहा जाता है नंदा देवी ने टैब मूल नारायण भगवान को शाप दिया कि तू और मै आमने सामने होंगे लेकिन भेट नही होगी. शिखर से नंदा देवी पर्वत बिल्कुल सामने दिखायी देता है! तब मूल नारायण जी अपनी बुवा को मनाया कि तेरा जो एक घडा बचा है तो उसके प्रभाव से सारी क्षेत्र कि जनता तुझे पूजेगी! 



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नंदा देवी का शिखर से अपने निवास स्थान ( नंदा हिमालय) के लिए प्रस्थान =============================================================================

यह नंदा देवी एव मूल नारायण जी के लिए एक दूसरे एक भाविक क्षण था! नंदा देवी जहाँ मूल नारायण जी को कई कठिनायो के सामना करने के बाद शिखर तक ले आयी और जब यह जगह मूल नारायण भगवन को भा गयी थे उन्होंने यहाँ पर अपना निवास स्थान बनाने की सोची! 

विदा होने से पहले दोनों मूल नारायण जी एव नंदा देवी रोते है और नंदा देवी अपने गणों से साथ हिमालय क्षेत्र के लिए प्रस्थान करती है!

तो इस प्रकार से मौना बालक इस स्थान पर मूल नारायण भगवान् के रूप मे अवतार होता है ! इस जगह पर भगवन मूल नारायण जी का मन्दिर वहाँ की क्षेत्रीय जनता द्वारा बनाया जाता है!  नाकुरी क्षेत्र, पुंगरू, कमस्यर, दानपुर आदि जनता यहाँ पर समय -२ पूजा पाठ करती रहती है ! जैसे के नाम से प्रतीत होता है शिखर यह जगह काफ़ी ऊँचे स्थान पर है और सर्दियों मे यहाँ पर काफ़ी जल्दी है बर्फ्वारी होते है!

पर्यटन की दृष्टि से भी यह क्षेत्र काफ़ी अच्छा है लेकिन सड़क से आभाव से यहाँ अधिकतर लोग पहुच नही पाते है ! आशा है उत्तराखंड सरकार का पर्यटन विभाग इस क्षेत्र का पर्यटन के दृष्टि से इसका विकास करेगा!



शिखर मूल नारायण जी का मन्दिर मे क्षर्दालू



शिखर मूल नारायण मन्दिर से नंदा देवी हिमालय का द्रश्य


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red]मूल नारायण जी का हाम्रू राजा की कन्या सारंगी से विवाह होना   =======================================================

मूल नारायण भगवान् का जीवन काफी अकेला सा था! उधर नंदा देवी ने उनकी शादी के लिया कवायत शुरू कर दी! नंदा देवी जी ने काफ़ी खोज करने के बाद भगवान् मूल नारायण जी के लिए एक योग्य कन्या की तलाश की ! यह कन्या हिमालय की हाम्रू राजा की कन्या थी!  सब बात चीत हो जाने के बाद नंदा देवी ने अपने भतीजे मूल नारायण जी को सपना दिया कि उनके लिए उन्होंने एक सुंदर एव शुशील कन्या से विवाह तय किया है अतः वे एक निर्धारित तिथि को बारात लेकर हाम्रू राजा के राज्य मे आए !

कहा जाता है कि मूल नारायण भगवान् ने अपने बुवा के सपने के आधार पर बरात की तैयारी शुरू कर दी !  इस वारत मे कहा जाता है कि शिखर के आस पास के सभी लोग शामिल हुए जिसमे कि मूल नारायण के शियोगी (भक्त) जैसे नाकुरी पट्टी के लोग, पुंगरू क्षेत्र के लोग और बहुत सारे लोग!

बारात के विधिवत दंग से संपन्न होता होता और निर्धारित लगन, तिथि समय आदि ने अनुसार मूल नारायण भगवन एव सारंगी ( हाम्रू राजा कि कन्या) परिणय सूत्र मे बध जाते है! तब स्वर्ग के देवी देवता ऊपर से फूलों के वर्षा करते है ! इस प्रकार से भगवान् मूल नारायण एव सारंगी की शादी सम्पन्न होती है ! और नम आखो से हाम्रू राजा अपनी बेटी को विदा करते है!

इस प्रकार से अब मूल नारायण भगवान् शिखर मे विवाहिक जीवन यापन करते है


मूल नारायण जी भक्त जो शिखर मे उनकी पूजा के लिया आया करते थे !

१) दुदी महर
२) धोगा बफिला
३) पुन्गुरु के दौरोली एव कराला के पाठक
४) चारा राठ - कार्की
५)  मालू रैखेला
६)  जोगा रिथाल ( राठौर)
७)  बाघ - भौरियाल
८) सोना - सुर्काली
९) ध्यान - चौहान
१०)  गणेश सुर्काली
११) पुरुख पन्त बदाऊ
१२ नरपति पाण्डेय
१३)  झाजू गौर ( चतुरानी)
१४) भीमु खाती
१५) जिया नौरंगी 
१६ ) कमसियार  - रौतेला - रावत - धपोला - कांडा के मंजिला
१८ ) कोशियारी (महरगाडी के )



 !

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भगवान् बैंजन एव नौलिंग (मूल नारायणन जी के बालको का जन्म)
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इस प्रकार से मूल नारायण भगवान् जी का शिखर मे वैवाहिक जीवन व्यतीत होने लगा!  कुछ वर्षो के बाद उनके इस निवास स्थान पर शुभ संदेश का पता चलता है की सारंगी (मूल नारायण जी की पत्नी) गर्भवती है और समायानुसार बजैण जी का जनम होता होता है ! तब स्वर्ग से फूलों के वर्षा होती है  और शिखर मे हर्ष का माहौल होता है !

नौलिंग जनम की रोचक कहानी

बालक को जब पैदा हुवे पाँच दिन हो गए तब रानी सारिंगा भारतीय संस्कृति के अनुसार अपनी पति से पूछती है कि हे राजन ! मै आज पाचवा सनान कहाँ करुँगी ! तब भगवान् वेद मुखी ब्रह्म का समरण करते है ! ब्रह्म जी आकाशवाणी करते है कि, " रानी ने बिबर से सहेलिया पानी लाये जाने एव उसमे स्नान करने कि इच्छा रखते हुए भी आपसे स्नान हेतु जो आज्ञा ली है, उसके अनुसार रानी बिबर के जल का स्नान न करे ! क्योकि यह बिवर का जल प्रयाग राज गंगा, यमुना के संगम मै जाकर मिलता है ! अतः इससे स्नान करना उचित नही होगा! एक बार एक सन्यासी और एक कुत्ता इस शिखर की गुफा मे प्रवेश कर इसी के अन्दर -२ ही रात दिन चल कर काशी मे बाहर निकले थे ! अतः रानी को इस जल मे न नहा कर शिखर से पश्चिम दक्षिण से बीच नाकुरी मे किडई नामक ( अभ्याकोट ) मे एक नौला है! वहाँ इतनी दूर जाकर पाचवा स्नान करना चाहिए !

ब्रह्म जी के अनुसार तब रानी इस सुंदर बालक को नहला धुलाकर, दूध पिलाकर झूले मे सुलाकर पाचवा स्नान करने निकल पड़ी! भगवान् मूल नारायण जी तब रानी के साथ दासियाँ भी साथ चली इसके आलावा कुछ गण भी रानी के रक्षा हेतु साथ मे जाते है !  ! 

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नौलिंग जी का जनम होना 

अब रानी सारंगा किडई पहुचती है तबी जसुवा धोबी रानी को स्नान करने एव कपडा धोने से रोकता है ! परन्तु रानी ने कपड़ा धोना नही छोड़ा! इस पर जसुवा धोबी कुछ अनुचित शब्दों का प्रयोग करते हुवे जोर -२ से बोलने लगता है और रानी एव धोनी का विवाद झगडे मे बदलने ही वाला था कि रानी को अत्यन्त क्रोध आ जाता है और साथ मे गणों का क्रोध भी बड गया ! एसे विकट समय मे अचानक नौले का पाट फटने कि भयानक आवाज हो उठी! जसुवा भयभीत हो जाता है ! इतने मे सबने क्या देखा कि अचानक एक सुंदर बालक नौले से प्रकट हो गया यह बालक पाँच दिन के उम्र का सा लगता था !

एकदम रानी ने अपनी रक्षा हेतु अर्थात अपनी माता की रक्षा हेतु शिखर से मेरा बालक आ गया समझ अपने गोद मे उठा लिया ! बालक के मुख मंडल कि सूर्य के समान तीज आभा देखा जसुवा रानी के चरणों मे क्षमा हेतु गिर पडा! ( इस नौले से जो बालक प्रकट हुवा उसका नाम नौलिग़ रखा गया ) इसी लिए उस स्थान का नाम उस दिन से धोबी नौलिंग नाम रखा गया )

रानी बालक के अवतार के बाद आराम से नहा धोकर शिखर चली जाती है और भगवन मूल नारायण जी को इस पूरे घटनाक्रम के बारे मे बताते है !


Shikhar & Sangar Temple..

This temple was made by Mahant Shree Badri Narayan Daas with help of the entire area devotees.


 

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