----------------------------------------------------------
नौलिंग जी द्वारा अब सनगडिया राक्षस के साथ भीषण युद्ध
---------------------------------------------------------
अब जैसे की मूल नारायण भगवान् के बचनो के अनुसार बजैण जी ने चनौला ब्रह्मण का अत्याचार ख़त्म हो जाता है और चनौला ब्रह्मण का सारा परिवार खत्म हो जाता है और भनार की जनता अब अपना सुखी के जीवन व्यतीत करने लगती है!
अब बारी थी नौलिंग जी द्वारा सनगडिया राक्षस का अंत करना! अब ये दोनों भाई सनगडिया राक्षस के अंत करने की योजना बनाते है! जैसे की यह राक्षस बहुत की विशालकाय शरीर का था लोगो को इसका भय इतना जयादा था की बहुत बेटियों ने वहाँ से अपना मायके तक जाना बंद कर दिया था ! इस राक्षस की जटाये इतनी बड़ी की जब यह चलता था तो इसकी जटाओ से पेड तक टूट जाते थे ! इसका दांत इतना बड़ा की पहाडो को उठा दे !
इस प्रकार से इस विशालकाय राक्षस का अंत करने के लिए सारे देवी देवता भी वहाँ पर इक्कठा गए ! जिनमे से नंदा देवी और उसके गण , १२ सौ भैरव, हरी सिम देवता, काशी से और भैरव गण और बहुत सारे देवता !
तब बजैण जी और नौलिंग जी इस राक्षस को मारने की रणनीत बनाते है ! ये दोनों भाई इन सारे देवताओ के लिए एक शिविर बना देते है और कहते है की जरुरत पड़ने पर की वे इन सभी देवी देवताओ से सहायता लेंगे ! क्यो ये दोनों भाई सोचते है कि यदि देवता इस राक्षस को मारने मे बाग़ लेते है तो सारे इलाके के लीक शीक ( पूजा के हकदार) ये भी हो जायंगे ! अतः यह कार्य ये स्वयं ही करंगे !
बजैण जी और नौलिंग जी एक बाज के पेड मे बैठ कर इस राक्षस को मारने कि योजना बनाते है !
--------------------------------------------------
अब नौलिंग जी का सनगडिया राक्षस के भीषण युद्ध प्रारम्भ
------------------------------------------------------
इस प्रकार से नौलिंग जी और बजैण जी एक बाज के पेड से इस राक्षस के नजर रखे हुए थे ! अब ये उसे युद्ध के लिए ललकारता है ! जब यह विशालकाय राक्षस इन बालको की ललकार सुनता है तो वह बौखला उठता है ! तब नौलिंग जी बाज के पेड से इस विशालकाय राक्षस के पीठ पर छलांग लगाते है और इसकी जटाओ को पकड़ते है और इन जटावो को उखाड़ने लगते है ! तब दोनों के बीच युद्ध चलता है देखते -२ यह युद्ध ७ दिन और ७ रात चलता है ! अभी नौलिंग जी जीतने लगते है और कभी राक्षस ! तब नौलिंग जी अपने विधाओ का प्रयोग करते और राक्षस को मार डालते है ! तभी नौलिंग जी राक्षस के छाती पर बैठ कर वार करते है तब वहाँ खून की गंगा बहती है, अब राक्षस का अंत समय आ गया था !
ठीक रावण जी तरह यह राक्षस भी नौलिंग जी से कहता है की मै आपके हाथो मरना चाहता था तबी मैंने ये सारे पाप किए ! वह राक्षस तब नौलिंग जी के चरणों मे गिरता है और क्षमा मागता है ! तब राक्षस भगवान् नौलिंग जी के एक प्राथना करता है की जब भी उनके मन्दिर मे पूजा होगी एक थोड़ा हिस्सा उसको भी मिल जाय. भगवान् नौलिंग जी इस प्राथना को स्वीकार कर लेते है ! इस राक्षस को भगवान् नौलिंग जी के मन्दिर से कुछ दूर आगे गाड दिया जाता है !
तब सारे देवी देवता आकाश के फूलों के वर्षा करने लगते है और भगवान् नौलिंग जी जै -२ कार करने लगते है !
वहाँ पर नंदा देवी, मूल नारायण जी और नौलिंग जी की माता सरिंगा भी वहाँ आती है