Author Topic: Shri 1008 Mool Narayan Story - भगवान् मूल नारायण (नंदा देवी के भतीजे) की कथा  (Read 96678 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बजैण को भानार के लिए प्रस्थान करना और चनौला ब्रह्मण को अत्याचार ख़त्म करना
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बजैण जी अब भनार के गाव मे पहुच जाते है और चनौला ब्रह्मण के गति विधियों पर नजर रखते है !  भनार गाव के ऊपर एक पत्थर है जिसका नाम " झलू दुंगा" ( मतलब सफ़ेद और काला रंग को पत्थर) है जहाँ से चनौला ब्रह्मण जो कि बहुत विद्वान था और अपनी विद्या से गाववालो को शोषण करता था, वह इसी पत्थर से गाव के जनता को आवाज लगा कर विभिन्न प्रकार के सूचनाये देता था ! 

चनौला ब्रह्मण के पास कई सौ गाए और भैस थी जिसे वह इन जंगलो मे चरने के लिए छोड़ देता था ! भगवान्  बजैण जी ने अब इन अपने मोहनी मन्त्र से इन गायो को दूध पीना शुरू कर दिया! वहाँ चनौला ब्रह्मण कि पत्नी को यह शक होता है कि उसकी गाए दूध कम क्यो दे रही है ! उसकी सारी गायो मे से एक गाय बहुत दूध देते थी,  एक दिन उसने उसे घर पर ही बाध दिया, लेकिन कुछ देर पानी पीने के लिए जब उसने इस खोला तो वह गाय सीधे जंगल मे चली गयी इसी " झलू दुंगा" के पास जहाँ पर बजैण छिपे हुए थे ! लेकिन चनौला ब्रह्मण की पत्नी भी बहुत चालाक थी और वह भी इस गाय के पीछे-२ जंगल कि ओर दौड़ गयी ! उसने देखा कि गाय " झलू दुंगा"  पर रुक कर दूध गिराने लगी वही बजैण घरती मे छुपे इस दूध को पी रहे थे !  तब इस औरत ने अपनी दराती से धरती पर मारा ( जहाँ की बजैण जी छुपे हुए धे ! देखते ही देखते वहाँ से एक धार दूध की और एक धार खून की आने लगी ! यह सब देखर औरत डर जाती है ! तब  बजैण जी एक साधारण आदमी के भेष मे वहाँ प्रकट होते है और इस औरत से कहते है तुम्हारी इसमे कोई गलती नही है अब तुम एक सफ़ेद कपड़े से मेरा सिर बाध दो! तब यह चनौला ब्रह्मण की औरत बजैण जी का सिर कपडे से बाध देती है ! तब बजैण जी जी वहाँ से अंतर्ध्यान हो जाते है परन्तु इस औरत को इसका बाद मे समरण नही रहता है !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बजैण जी द्वारा झालुवा दूंगा से चनौला ब्रह्मण के अत्याचारों पर आवाज लगाना
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इस प्रकार बजैण जी चनौला ब्रह्मण के अत्याचारों पर नजर बनाये रखे हुए होते है !  चनौला ब्रह्मण के दो औरते होते है! एक दिन फसल के समय बे दोनों औरतों के घर मे छोटे -२ दूध पीने वाले बच्चे होते है तब घर से आवाज आती है एक बड़ी वाली औरत का बचा रो रहा है और वह तुरुंत घर आए और बच्चे दो दूध दे ! यह औरत घर आती है और बच्चे को दूध देती है लेकिन वापस खेत मे जाते वक्त वह आगन मे मोस्ता मे सूख रहे उसके सौतन  धान मे से चार आचुली धान अपने मोस्ता मे दाल देती है और चली जाती है ! 

कुछ समय बाद फिर से घर से आवाज आती है कि छोटी वाली औरत का बचा  रो रहा है और वह उसे घर आकर अपने बच्चे को दूध देना है लेकिन वापस खेत मे जाते वक्त वह आगन मे मोस्ता मे सूख रहे उसके सौतन  धान मे से चार आचुली धान अपने मोस्ता मे दाल देती है पर  जब वह पाचवा आचुली डालने कि कोशिश करती है तो बजैण जी झालुवा दूंगा से आवाज लगाते है बस तेरा इतना ही था ! यह सुनकर यह औरत चौक पड़ती है पर तुरुंत खेत मे चुचाप चली जाती है !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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भगवान् बजैण जी द्वारा फिर से  झालुवा दूंगा से चनौला ब्रह्मण के अत्याचारों पर आवाज लगाना
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एक किसी नज्दीग गाव के एक आदमी अपने बेटे कि जनम कुंडली मिलाने के लिए चनौला पंडित के पास ले आता है ! लेकिन कुंडली मिलती नही है पर चनौला पंडित इस यजमान को कहता है सब सही है और और अपने बेटे कि शादी के कार्य शुरू कर दो !  लेकिन झालुवा दूंगा से बजैण जी देखे थे ! जब यह आदमी अपने पुत्र सगाई के लिए जा रहा था तो बजैण जी के आवाज लगा दी कि उसके बेटे कि कुंडली नही मिली है और चनौला पंडित से उसके साथ चाल किया है परन्तु यह आदमी कहता है कि उसने बचन दिया है लड़की वालो को उसे जाना ही होगा! बजैण जी के चेतावनी देने पर भी यह आदमी अपने लड़के कि सगाई करने चले जाता है लेकिन उसी रात वहाँ कोई बाधा आ जाती है जिससे उसका यह काम सफल नही हो पता है !

वापस लौटकर यह आदमी चनौला पंडित को खरी खोटी सुनाता है और यह सारी घटना के बारे मे बता देता है ! अब चनौला पंडित अपने आप को असुरक्षित पाने लगा !
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चनौला पंडित द्वारा जंगल मे आग लगा कर बजैण जी को मारने की कोशिश
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इस घटना के घटने के बाद चनौला पंडित तिलमिला जाता है क्योकि उसकी औरते भी उसको झलुवा दूंगा से आवाज आने वाले घटना के बारे मे बता देते है ! तब चनौला ब्राहमण जंगल मे आग लगाने की सोचता है ताकि यह आवाज लगाने वाला ( यानी बजैण ) मर जाय और उसका दब दबा बना रहे! तब चनौला पंडित जंगल मे भीषण आग लगा देता है जिससे सारे जंगल के पशु पक्षी आग से मरने लगते है ! तब बजैण के लिए भी वहाँ रहना बड़ा कठिन हो गया था क्योकि सारे जंगल मे आग ही आग थी !

तब बजैण जी ने अपने पिता मूल नारायण भगवान् को याद किया की उनकी जान आफत है आ गयी है क्योकि चारो और आग लग चुकी है ! तब मूल नारायण भगवान्  बजैण जी से कहते है की वे भनार नामक जगह पर एक नौला ( कुवा) है वहाँ पर आग से बचने के लिए चले जाय ! तब बजैण जी पक्षी के रूप मे उस नौले मे कूद लगा देते है लेकिन चनौला ब्रह्मण की औरत बजैण जी को नौले मे प्रवेश करते देख लेती है और वह जंगल के जहरीले घास का विष उस नौले पर डाल देते है जिससे की बजैण जी की मौत हो जाय !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बजैण जी को नौले मे विष लगना और नंदा देवी को सहायता के लिए याद करना
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जब चनौला ब्रह्मण की पत्नी के इस नौले मे विष दाल दिया तो भगवान् बजैण ने कछुवे का रूप धारण कर लिया परन्तु विष का असर फिर भी कम नही हुवा!  अब बजैण जी की जान को खतरा हो गया तो उन्होंने नंदा देवी ( अपनी बुवा) की याद किया !  नंदा देवी अपने भतीजे को खतरे मे देख तुरुंत आनन फानन मे अपने साथ धर्मिया वैध को लाती है!  तब धर्मिया बैध बजैण जी का विष दूर निकलता है !  इस प्रकार से बजैण जी की बच जाते है !

नंदा देवी फिर अपने भतीजे को गले लगा लेती है!

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चनौला ब्रह्मण का अंत
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यहाँ बजैण जी विष को निकाले जाने पर स्वस्थ हो जाते है उधर चनौला ब्रह्मण के धर पर जानलेवा  बिमारी हो जाती है जिससे उसका परिवार समाप्त हो जाता है


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बजैण जी जी का भानार के सिमार नामक जगह पर अवतार लेना
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अब चनौला ब्रह्मण का अंत हो गया और बजैण जी भी विष के प्रभाव से स्वस्थ हो चुके थे! तो अब जनहित मे और जनता के सेवा के लिए बजैण जी ने इस जगह पर अवतार ले लिया !

महंत स्वर्गीय श्री बद्रीनारायण जी ने यहाँ पर भव्य मन्दिर बनाया है!  हर साल यहाँ पर कार्तिक त्रियोदाशी को रात्री का विशाल मेला लगता है !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नौलिंग जी द्वारा अब सनगडिया राक्षस के साथ भीषण युद्ध
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अब जैसे की मूल नारायण भगवान् के बचनो के अनुसार बजैण जी ने चनौला ब्रह्मण का अत्याचार ख़त्म हो जाता है और चनौला ब्रह्मण का सारा परिवार खत्म हो जाता है और भनार की जनता अब अपना सुखी के जीवन व्यतीत करने लगती है!

 अब बारी थी नौलिंग जी द्वारा सनगडिया राक्षस का अंत करना! अब ये दोनों भाई सनगडिया राक्षस के अंत करने की योजना बनाते है!  जैसे की यह राक्षस बहुत की विशालकाय शरीर का था  लोगो को इसका भय इतना जयादा था की बहुत बेटियों ने वहाँ से अपना मायके तक जाना बंद कर दिया था ! इस राक्षस की जटाये इतनी बड़ी की जब यह चलता था तो इसकी जटाओ से पेड तक टूट जाते थे ! इसका दांत इतना बड़ा की पहाडो को उठा दे !

इस प्रकार से इस विशालकाय राक्षस का अंत करने के लिए सारे देवी देवता भी वहाँ पर इक्कठा गए ! जिनमे से नंदा देवी और उसके गण , १२ सौ भैरव, हरी सिम देवता, काशी से और भैरव गण और बहुत सारे देवता !

तब बजैण जी और नौलिंग जी इस राक्षस को मारने की  रणनीत बनाते है ! ये दोनों भाई इन सारे देवताओ के लिए एक शिविर बना देते है और कहते है की जरुरत पड़ने पर की वे इन सभी देवी देवताओ से सहायता लेंगे ! क्यो ये दोनों भाई सोचते है कि यदि देवता  इस राक्षस को मारने मे बाग़ लेते है तो सारे इलाके के लीक शीक ( पूजा के हकदार) ये भी हो जायंगे ! अतः यह कार्य ये स्वयं ही करंगे !

बजैण जी और नौलिंग जी एक बाज के पेड मे बैठ कर इस राक्षस को मारने कि योजना बनाते है !

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अब नौलिंग जी का सनगडिया राक्षस के भीषण युद्ध  प्रारम्भ

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इस प्रकार से नौलिंग जी और बजैण जी एक बाज के पेड से इस राक्षस के नजर रखे हुए थे ! अब ये उसे युद्ध के लिए ललकारता है ! जब यह विशालकाय राक्षस इन बालको की ललकार सुनता है तो वह बौखला उठता है ! तब नौलिंग जी बाज के पेड से इस विशालकाय राक्षस के पीठ पर छलांग लगाते है और इसकी जटाओ को पकड़ते है और इन जटावो  को उखाड़ने लगते है ! तब दोनों के बीच युद्ध चलता है देखते -२ यह युद्ध ७ दिन और ७ रात चलता है ! अभी नौलिंग जी जीतने लगते है और कभी राक्षस ! तब नौलिंग जी अपने विधाओ का प्रयोग करते और राक्षस को मार डालते है ! तभी नौलिंग जी राक्षस के छाती पर बैठ कर वार करते है तब वहाँ खून की गंगा बहती है, अब राक्षस का अंत समय आ गया था ! 

ठीक रावण जी तरह यह राक्षस भी नौलिंग जी से कहता है की मै आपके हाथो मरना चाहता था तबी मैंने ये सारे पाप किए !  वह राक्षस तब नौलिंग जी के चरणों मे गिरता है और क्षमा मागता है ! तब राक्षस भगवान् नौलिंग जी के एक प्राथना करता है की जब भी उनके मन्दिर मे पूजा होगी एक थोड़ा हिस्सा उसको भी मिल जाय. भगवान् नौलिंग जी इस प्राथना को स्वीकार कर लेते है !  इस राक्षस को भगवान् नौलिंग जी के मन्दिर से कुछ दूर आगे गाड दिया जाता है !

तब सारे देवी देवता आकाश के फूलों के वर्षा करने लगते है और भगवान् नौलिंग जी जै -२ कार करने लगते है !

वहाँ पर नंदा देवी, मूल नारायण जी और नौलिंग जी की माता सरिंगा भी वहाँ आती है   

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सनगड़िया राक्षस के अंत के बाद नौलिंग जी का सनगाड़ मे अवतार

भगवान् नौलिंग जी द्वारा  सनगड़िया राक्षस का अंत होने पर वहाँ पर जनता पर अत्याचार भी ख़त्म हो जाता है!  भगवान् नौलिंग जी सारे देवी देवताओ का आभार व्यक्त करते है और फिर सारे देवता सनगाड से विदा होत्ते है ! अब भगवान् नौलिंग जी इस क्षेत्र मे अवतार लेने की सोचते है ! नौलिंग जी के शिला मे छिप जाते है ! एक दिन सनगाड गाव के भीम सिह महर इस स्थान पर फावड़ा से कुछ खुदाई कर रहा था तो जमीन से एक धार दूध की आने लगी और वही जमीन पर खून बहने लगा ! यह देखर भीम सिह महर डर जाता है तब भगवान् नौलिंग जी आकाशवाणी करते है और कहते है कि भीम सिह महर डरो मत इसमे तुम्हारी कोई गलती नही है यो समझ लो अब वहाँ पर मेरा अवतार हो चुका है ! यह सुनकर भीम सिह और उसकी पत्नी का खुशी के ठिगाना नही रहता और वे ये सारी बातें गाव वालो को बताते है ! तब इस जगह पर एक मन्दिर का निर्माण होता है जिसे कि विभिन्न गावो वालो ने मिलकर बनाया!

इस जगह पर हर साल कार्तिक के महीने मे मेला लगता है और दूर -२ से क्षर्धालू यहाँ पर आते ! इस मन्दिर पर काफ़ी बकरों कि बलि दी जाती है ! कहा जाता है कि ये बलि उन देवताओ के लिए जैसे भैरव और बाण देवता आदि, जो नौलिंग जी कि मदद के लिए यहाँ पर आए थे !

बाद मे इस मन्दिर का भव्य जीणोंधार महंत श्री बदरी नारायण दास ने लिया जो कि बहुत कि आकर्षक है !


Sangad Nauling Temple...



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पर्यटन के दृष्टि से सनगाड

पर्यटन के दृष्टि भी यह इलाका अति सुंदर है धरम घर से इस मन्दिर के एक रोड का निर्माण अभी प्रगति पर है जो कि मन्दिर ने बिल्कुल नजदीक पहुच चुकी है !  धार्मिक आस्था के हिसाब से भी लोग दूर -२ से यहाँ पर अपने मन्नते मागने आत है और जब इनके मन्नते पूरी हो जाती है तो लोग जब यहाँ पर मेला लगता है तो बकरे कि बलि भी देते है!

कहा जाता है कि भनार ( जो कि बजैण जी का धाम है) और सनगाड ( नौलिंग जी का धाम) ये मन्दिरे शिखर ( जो कि मूल नारायण भगवान् का धाम है ) से बराबर कि दूरी पर है !

सनगाड मे महर लोग ही केवल रहते है !  जैसा की नौलिंग जी ने खीम सिह महर से आकाशवाणी से कहाँ था की आप लोग मिलकर मेरा मन्दिर बनाओ और साथ यह भी वचन दिया था की इस गाव मे केवल महर लोग जी निवास करंगे !  सनगाड से ऊपर बास्ती गाव है जहाँ पर भी केवल महर लोग ही रहते है !
 

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मूल नारायण भगवान् द्वारा 'दौ नारायण" नामक राक्षस का मोहरी गाव मे बध

इस प्रकार से शिखर, भनार एव सनगाड और अन्य इलाको मे राक्षसों का अत्याचार अब खत्म हो चुका था ! परन्तु नाकुरी पट्टी के मोहरी गाव मे 'दौ नारायण" का आतंक एव अत्याचार अभी भी बरकरार था !  यह राक्षस ने बारी लगाई थे की वह गाव से हर दिन एक -२ आदमी को खायेगा !  एक दिन मूल नारायण जी का भक्त की बारी इस राक्षस के शिकार बनने के लिए आयी तो वब मूल नारायण भगवान् एव नौलिंग जी के पास अपने जान की रक्षा के लिए भागा !

मूल नारायण जी ने इस आदमी ने कहाँ की तू चिंता मत कर ! वहाँ से नौलिंग जी भी इस राक्षस के बध करने वाले ही थे कि मूल नारायण भगवान् वहाँ पहुच कर उस राक्षस को ललकारने लगे, ललकार सुनकर राक्षस युद्ध के लिए सामने आया और तब युद्ध के दौरान वह 'दौ नारायण" नमक राक्षस मूल नारायण जी के द्वारा मारा गया !

तब यहाँ कि janta सुख के sath अपना jewan yapan karene लगी ! 

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फरसाली लाटू बेतार राक्षस का अंत

यह लाटू बेतार राक्षस फरसाली मे कोश्यारी जाति के लोगो का कुलवंश समाप्त करने मे तुला था ! यह बहुत बड़ा क्षेत्र था यहाँ सात भाई रहते थे! क्रमश एक के बाद एक लाटू राक्षस ने छः भाइयो को मार डाला था! अब यह ७ भाई भीम सिह बचा हुवा था ! लेकिन यह " नौलिंग जी का बहुत बड़ा भक्त था!

अब भगवान् मूल नारायण जी, बजैण जी एव नौलिंग जी द्वारा कई राक्षसों का अलग -२ जगहों पर अंत हो चुका था ! एक क्षेत्र फरसाली बचा हुवा था जहाँ जी लाटू बेतार नामक राक्षस का आतंक अभी की था वह वहाँ की भोली भाली जनता को परेशान करता था और एक -२ कर रोज वहाँ एक आदमी का भक्षण करता था !  तब एक आदमी की बारी जी उस राक्षस के पास उसके भोजन बनने के जाने की !  वह अपने खेत मे रोपाई लगाने जा रहा था तब वह राक्षस उसके सामने आ खड़ा हो गया ! भय से यह आदमी डर गया उसने राक्षस से कहा कि मुझे दिन का समय दे दो शाम को तो वह उसका भक्षण करेगा ही क्योकि उसे खेत मे रोपाई लगना है! अब शाम होने लगी वह राक्षस भी वही बैठा था ! तब वह राक्षस उसे खाने ले लिए आगे बड़ने लगा, तब यह आदमी एक बार फिर से इस राक्षस से विनती करता है कि उसे अपने भगवान् के आप अन्तिम बार पूजा करने के लिए जाने दिया जाय ! यह भी राक्षस मान जाता है, लेकिन अवसर पाकर यह आदमी सीधे बजैण जी से पास भाग जाता है और पीछे से राक्षस पीछा करता है बजैण जी कहते है कि आप उनके छोटे भाई नौलिंग के पास चले जाय ! इस बीच वह मूल नारायण भगवान् से भी अपने प्राणों के रक्षा के लिए गुहार लगता है, मूल नारायण जी भी उसे यही राय देते है! तब यह आदमी जंगल मे दौड़ते -२ सनगाड कि तरह दौड़ लगता है और नौलिंग जी से रक्षा कि गुहार लगता है ! यह सुनकर नौलिंग जी बहुत गुस्से मे आ जाता है और वे सनगाड से ही मंत्र के द्वारा भिभूति फैकते है और वह आदमी मे अपार शक्ति आ जाती है !

अब राक्षस भागने लगता है और पीछे यह आदमी ! अंत मे यह आदमी फरसाली मे ही इस राक्षस का अंत कर देता है और वहाँ कि जनता सुख और चैन से जीवन यापन करने लगती है!  यहाँ पर भी मूल नारायण भगवान् जी एक भव्य मन्दिर है !

 

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