Author Topic: Shri 1008 Mool Narayan Story - भगवान् मूल नारायण (नंदा देवी के भतीजे) की कथा  (Read 96489 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दोस्तो,

आज आप समुख भगवान (मूल नारायण) और उनके पुत्र नौलिग़ - बजैण की किवदंती कथा प्रस्तुत  कर रहा हूँ! भगवान मूल नारायाण जी जो की नंदा देवी के भाई मदना ऋषि के पुत्र है ! भगवान मूल नारायण जो की मूल नक्षत्र मे ऋषिकेश्वर जगह ( जोशीमठ की ओर)  मे पैदा हुए थे!  मूल नक्षत्र मे पैदा होने के कारण भगवान मूल नारायण जी को नदी मे बहा दिया गया था क्योकि ऐसा माना जाता है की जो भी बालक मूल नक्षत्र मे पैदा होता है वह अपने माता पिता के लिए अत्यन्त ही कष्टकारी एव अशुभ होता है ऑर इसी कारण से उनके माता - पिता ने उन्हें नदी मे बहा दिया !मूल नारायण जी अपनी बुवा (नंदा देवी) को सपना देते है वो मूल नक्षत्र मे पैदा होने के कारण उन्हें उनके माता - पिता ने नदी मे बहा दिया और नंदा देवी रक्षा के लिए आए और उन्हें ले जाय !   नंदा देवी इस बालक की कैसे -२ रक्षा करती है उसे कहाँ ले जाती है इसका बियोरा मै इस थ्रेड मै आपके सामने प्रस्तुत करूँगा !   श्री चंदन सिह कार्की जी, जो की अवकास प्राप्त हिन्दी प्रवक्ता है, उन्होंने इस पौराणिक कथा को किताब के रूप मै संग्रह किया है"  मैंने कुछ भाग इस कहानी मे कार्की जी के अनुमति से यहाँ पर प्रस्तुत  किया है. !

भगवान् मूल नारायण के वर्तमान मे कई जगह मन्दिर है, जिनमे से :

        बंलेख, (बागेश्वर जिला)     
        जारती गाव (बागेश्वर जिला)     
       शिखर भगवान मूल नारायण का प्रमुख मन्दिर 

आशा है की आप इस पौराणिक कहानी को पड़ेंगे और कई पौराणिक जगहों के बारे मे अवगत होंगे !

आपका

प्रिय साथी,

 एम् एस मेहता
 

Jhajhar Dance Mool Narayan Temple Uttarakhand Jarti Bageshwar-www.merapahadforum.com.mov


विषय सूची ...

  १)     मदना ऋषि (मूल नारायण भगवान् के पिता ) का पुत्र प्राप्ति के लिए तप
 २)     मूल नारायण भगवान् का जन्म ( मूल नक्षत्र) मे
 ३)     माँ बाप द्वारा मूल नारायण भगवान् को नदी मे बहाना
 ४)    मूल नारायण भगवान् का अपने बुवा नंदा देवी को सहायता के लिए स्वप्न देना
 ५)    नंदा देवी का मूल नारायण भगवान् की रक्षा के लिए हिमालय से आना
 ६)    नंदा देवी का मूल नारायण को लेकर अपनी बहन कालिका के पास कलकत्ता मिलने जाना
 ७)   नंदा देवी के मूल नारायण भगवान् को लेकर उत्तराखंड की ओर आना
 ८)   नंदा देवी का नैनीताल, अल्मोड़ा, बागेश्वर होते हुए शिखर पहुचना एव अल्मोडा मे कालू मोटिया राक्षस का वध करना
 ९)   नंदा देवी का बागेश्वर बागनाथ से संगर्ष
 १०) नंदा देवी का मूल नारायण को बंलेख, जारती से शिखर तक ले जाना
 ११) नंदा देवी का हिमालय वापस जाना
 १२)  मूल नारायण भगवान् का शिखर मे अवतार
 १३)  मूल नारायण भगवान् का सारंगी से शादी होना
 १४) मूल नारायण भगवान् के दो पुत्र बजैण एव नौलिंग जी का जन्म
 १५) बजैण एव नौलिंग जी की काशी मे पढाई
 १६) बजैण एव नौलिंग जी का गुरु गोरख ठिंगा की प्राप्ति के तप
 १६) बजैण एव नौलिंग जी का बदरी नाथ पर्वत को हिलाना
 १७) बजैण एव नौलिंग जी का अपने माता पिता के पास शिखर मे वापस लौटना
 १८)  बजैण जी का भनार मे चनौला ब्रह्मण के अत्याचार को ख़त्म करना और अवतार लेना
 १९) नौलिंग जी का सनगाड़ मे संगडिया राक्षस का अंत कर अवतार लेना 
 २०)  भगवान् मूल नारायण द्वारा फरसाली मे लाटू बेतार राक्षस का अंत करना
 २१)  मूल नारायण जी, बजैण एव नौलिंग जी के द्वारा विभिन्न राक्षसों का अंत करना
  २१)  मूल नारायण जी, बजैण एव नौलिंग जी के अन्य मन्दिर
  २२) शिखर, जारती एव अन्य इलाको के फोटो
   
Book written by Shree Chandan Singh Karki Ji on Mool Narayan, Baingain and Nauling Devta..



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जय ईष्ट देवता मूल नारायण जी की

मूल नारायण (श्री हरी अवतार) - भगवान् नौलिंग - बजैयण

किवदंतियो के आधार पर मूल नारायण भगवन की अवतार की कथा.

किसी समय उत्तराखंड की त्पोमय सुरम्य भूमि मे एक स्थान का नाम ऋकेश्वर कोट  था ! यह रमणीक स्थान नगधिराज हिमालय के एकदम निकट, रमणीक स्थान पर्वत मालावो के मध्य अधित्यका एव उपत्यका भू-भाग से घिरा हुवा, अतीव मनोहारी था ! इसी ऋकेश्वर कोट मे सोलह सौ ऋकेश्वर (ऋषि) रहते थे ! जहाँ श्री पपना ऋषि के पुत्र भी रहते थे ! पौराणिक ग्रंथो मे अधिकांश रूप से यह लिखा गया है की ऋषि गृहस्थ रूप मे एव बड़े -बड़े आश्रम बना कर रहते थे. जहाँ इनका अपना सारा परिवार भी होता था !

अतः मदना ऋषि भी इस हिमालय प्रदेश मे बहुत बड़े आश्रम के मालिक थे ! वे धन के भी संपन्न थे! परन्तु ऋषि एव उनकी पत्नी मेनावती को हमेशा एक ही चिंता सताती थे की उनकी कोई संतान नही थी !

मदना ऋषि का सन्तान प्राप्ति के लिए कठोर तप



मदना ऋषि ने अपनी पति मेनावती से कहा की उन्हें पुत्र प्राप्ति के लिए सौ तीर्थ जाकर पवित्र जल से स्नानादि कर तथा जलाभिषेक करके कठिन तपस्या करनी होगी और तपस्या के बाद जब सिद्धि मिलेगी, मै तुरुंत इसी रमणीक हिमालय क्षेत्र मे लौटूंगा और उसी सिद्धि के अनुसार हमको पुत्र रतन प्राप्त होगी! अतः मै सौ तीर्थ के लिए प्रस्थान करना चाहता हूँ ! अतः तुम मुझे इन तीर्थ यात्रा के लिए मुझे तैयार करो !

तब मैनावती ने यात्रा हेतु यथोचित सामग्री तथा बत्तीस जूनियार भोजन बनाकर भगवान ऋकेश्वर मुनि को दे दिया और मुनि आश्रम के तीर्थो के लिए निकल पड़े ! घर ( आश्रम) के सौ तीर्थो के लिए यात्रा करने हेतु ये हजारो मील की यात्रा करने हेतु कमश एक तीर्थ से दुशारे तीर्थ के दर्शन करते रहे ! इन तीर्थो मै से कमश प्रयाग राज, गया, गंगा सागर तथा दक्षिण भारत से सभी तीर्थो के दर्शन करते हुए एक दिन रामेश्वर मै पहुच गए ! दक्षिण मे क्रमश गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, नर्मदा तथा ताप्ती नदी के पवित्र जल मे स्नान करते हुए हजारो मील की यात्रा करते रहे.

इस प्रकार उत्तर भारत की प्रसिद्ध नदिया गंगा, यमुना तथा दक्षिण की सारी नदियों के किनारे पड़ने वाले तीर्थो के दर्शन कर था द्वारिकापुरी के दर्शन करते हुए



अंत मे यात्रा सफल हुयी

हरी के हरिद्वार से आगे बढकर अंत मे जोशीमठ पवित्र धाम मे पहुच कर कठिन तपस्या मे बैठ गए! तप करते बहुत समय बीत गया हुवा एक दिन आख़िर भगवान के मदना ऋषि को दर्शन दे दिया !  तब ऋषिकेश्वर मुनि अति प्रसन्न होकर भगवान के सामने नत मस्तक होकर प्राथना करने लगे ! हे भगवान ! मे आज आपके दर्शन पाकर धन्य हो गया हूँ ! अतः आपको आपना दुःख बतला देता हूँ की भगवान मे निसंतान हूँ मेरे घर पुत्र रतन की प्राप्ति कर दे ! भगवान ने " गुरु गोरख ठिंगा"  ऋषिकेश्वर मुनि को देते हुए कहा कि, हे मुनि ! इस  " गुरु गोरख ठिंगा" को गहण करो कि मे आज तुम्हे प्रदान करता हूँ !  अब तुम समुन्द्र तक कि यात्रा करो ! वहाँ एक रमणीक टापू है ! उसमे प्रवेश कर तुम्हे अनेक प्रकार से लदे हुए मनोहर वृक्ष दिखायी देंगे ! परन्तु मध्य भाग मे पके हुए, चमकते हुए फलो का एक येसा वृक्ष देखाई देगा जो उन फलो के वक्शो मे अलग पहचान रखता है ! अब तुमको क्या करना होगा कि उस वृक्ष को प्रणाम कर, उसकी जड़ से मधुर भाव के इस "गोरख ठिंगा" से हलकी सी केवल एक चोट मारना ! उस एक चोट से जितने फल गिर जाए प्रेम से उनको उठाकर सुरक्षित अपने घर ले जाना तथा अपनी रानी को उन फलो को खिला देना तब आपके घर प्रुत्र रतन कि प्राप्ति हो जायेगी [/size] [/size]

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ऋषि का रमणीक टापू पहुचना और ऋषि का लालच

ऋषि रमणीक सुंदर टापू पहुचते है ! ऋषि पेड के पास पहुचते है और ऋषि के बताये अनुसार " गुरु गोरख ठिंगा"  को लेकर तथा वृक्ष को प्रणाम कर मधुर भाव से एक चोट उस वृक्ष के तने पर मार दिया!  चोट लगते ही अमृत प्रदयानी उस वृक्ष के मणि सदर्श चमकता हुवा फल का एक दाना पृथ्वी पर गिरा! मुनि को उस दाना को देख अत्यंत प्रसन्ता के साथ लोभ ने भी आकर घेरा कि एक दाना गिरा अतः क्यो न एक चोट और मारकर दूसरा दाना भी प्राप्त करू ! " लोभो पापस्य कारणम्" के अनुसार ही मुनि का मन पतन कि ओर अग्रसर हुवा ! मुनि ने दूसरी चोट मार दी ! घटना तब यह घटती है कि दूसरी चोट मारने से कोई दाना नही गिरा उल्टा प्रथम बार कि मारी चोट से जो फल का दाना गिरा था यह पुनः उसी डाल पर वापस जा लगा ! मुनि निराश हो गए !

हाथ मे " गुरु गोरख ठिंगा"  लिए, मन मे निराशा लिए था हताश हुए मुनि एसे मुनि असफल होकर पुनः असंख्य कष्टों को सहन करते हुए जोशीमठ लौट आये ! पश्चताप से शिथिल अंग वाले, मुनि, पुनः अपनी गलती एव लोभ के कारण असफल हुए भगवान से प्राथना करने लगे ! पुनः भगवान प्रकट हुए और अबकी कि बार गलती पुनरावर्ती न करने को कहकर उस टापू मे पुनः जाने कि आज्ञा देकर ये अंतर्धान हो गए !

पुनः मुनि जी उस टापू मे प्रस्थान करते है और अबकी बार वे कोई गलती भूल एव लोभ नही करते हुए फल को हिमालय प्रदेश मे ले आते है ! ऋषिकेश्वर पुनि मणि सदर्श उस फल को रानी मैनावती को दिखाते है और एक दिन शुभ महूर्त मे, सौ तीर्थो से जल से युक्त दोनों स्नानआदि करके, भगवान भुवन भास्कर को प्रणाम कर जल्दी चड़ाकर तपोभूमि मे बैठकर पूजा विधि के हजारों ब्राह्मणों को षडरश भोजन करते है और इसके बाद दान दक्षिणा देकर ऋषिकेश्वर उस फल को गहण रानी मेनावती को खाने का आदेश देने है, मेनावती अत्यन्त प्रसन्न होकर उस फल को खा लेती है !

तब इसके बाद हिमालय प्रदेश के हजारो परियां एव देवी उस आश्रम मे फूलों कि वर्षा करते है

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बालक (मूल नारायण भगवान का जन्म)    

इधर फल ग्रहण के बाद रानी मैंनावती ने गर्भ समयांतर के बाद एक ओजस्वी बालक को जनम दिया ! देवता फूल बरसाने लगे, आश्रम के लोग हर्षाने लगे!


बालक का मूल मे पैदा होना 

मदना ऋषि पुत्र के पैदा होने के पाँचवे दिन बाद अपने पुरोहित के पास ग्रह नक्षत्र देखने के लिए पहुचते है ! टैब पुरोहित जी एक चौकी मे मिटटी विछाकर एक खडिया एव हाथ की अंगुलियों के द्वारा रेखा विज्ञान के रूप मे मनन करने लगते है. ! वे रेखा डालते है लेकिन फिर मिटा देते है ! यही क्रम बार बार चलता है ! तब दान - दक्षिणा का लोभ जाग जाता है ! उधर मुनि जी पूछ बैठे कि हे पुरोहित जी आप बता कुछ नही रहे हो परन्तु रेखा डालते इ मिटाते जा रहे हो, यह आख़िर क्या कारण है ?

उधर पंडित जी केवल मुकराते है तथा आंखो से बातें करते है ! तब पुरोहित बताने लगते है कि " आपका बालक अवतारी तो है परन्तु अभयुक्त मूल नक्षत्र मे पैदा हुवा है अतः माँ बाप व ईस्ट मित्रो के लिए बड़ा ही कष्ट पहुचाने वाला है अतः किसी नदी मे बहा देने के अलावा कोई रास्ता आपके पास नही है !

मुनि जी निराश होकर घर (आश्रम) लौट जाते है और मेनावती ने जब मुनि का उदास चेहरा देखा तो मेनावती बोली " हे मुनिदेव ! आपका चेहरा उतरा सा लगता है ! आप बताइए तो सही, पुरोहित जी क्या ने बताया ?  मुनि ने सारी बातें बता दी ! फिर एक दिन दो दिन के बाद मुनि एव मैनावती आपस मे काफ़ी बातें करते रहते है! ( सामाजिक रीति - रिवाजों के अनुसार, देश काल परिस्थिति के अनुसार, आज तक रूदियो के लड़ना किसने उचित समझा यह निरुन्तर लगता है)



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मुनि का भगवन का अवतारी बालक को जंगल मे छोड़ना

एक दिन किसी रात्रि को जब मेनावती को गाड़ी नीद आ गई थे तब मुनि जी ने इस अवतारी बालक को चुपचाप उठाकर, घर से दूर जंगल मे ले जाकर वन लातावो को ओट मे रख दिया और वन लता को काट कर बच्चे के मुख पर लगा दिया तथा उस लता का सिर का भाग वृक्ष पर चडा रहने दिया (यह लता एसी लता होती है उससे जो पानी निकलता है वह औषधिकारक व पौष्टिक होता है ) ! इसके अलावा धूप, वर्षा एव हिंसक पशुवों से रक्षा चारो ओर से अवरोधक अर्थात सुरक्षित स्थान सा बना कर मुनि घर लौट आते है !

क्योकि यह बालक अवतारी था ! अतः यह अदभुद प्रराकर्मी व तेजस्वी था उसको कोई विघन बाधा नही रही ! वन देवी ने उसकी रक्षा कि था वन लतावो माँ कि तरह अमृत रस प्रदान रस प्रदान किया !
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बालक मूलनारायण ने अपनी दीदी (बुआ जी), अर्थात पिता कि बहन हिवाल नंदा माई को स्वप्न देना

बालक मूलनारायण ने अपनी दीदी (बुआ जी), अर्थात पिता कि बहन हिवाल नंदा माई जो हौलू राजा को ब्याही गयी थी; सपना दिया कि, हे बुवा जी ! मे भगवन ऋषिकेश्वर मुनि का पुत्र जो कि घोर संकट मे हूँ, कारण यह है कि मे मूलनक्षत्र मे पैदा हुवा जानकर जन्म के एक सप्ताह के बाद इस जंगल मे माता पिता द्वारा त्याग दिया गया हूँ! मै यहाँ पर जंगल लतावो के सहारे जीवित हूँ जबकि मुझे माँ का दूध पीने से फुरसत नही मिलती! बुवा जी तुमि मुझे बचा सकती हो !

नंदा देवी का स्वप्न देखकर बालक कि रक्षा के लिए चल पड़ना


अचानक ऐसा सपना देखकर माँ नंदा, राजा के अनुमति लेकर बरफ कि गठरी साथ लेकर, अपने अंगरक्षको ( गणों) के साथ उस हिमालय क्षेत्र से रास्ता लगती है ! आनन फानन मे नंदा देवी जब अपने मायके पहुचती है तो यह क्रोध से आज अपने भाई ओर भाभी को प्रणाम भी नही करती है ! तब ऋषिकेश्वर मुनि कहते है कि, बहिन तू तो और दफे खूब पहाडी जड़ी बूटियाँ एव यहाँ जो वस्तुए वहाँ दुर्लभ है, वहाँ से लाती थी, आज क्या बात है, तू बहुत क्रोधित लगती है और केवल बर्फ कि गठरी लाई है, !
 

" आप लोगो ने आप लोगो ने मुझे विवाया ही कहाँ एकदम हिमालय के घर जहाँ चारो ओर बर्फ ही बर्फ है तो लाती भी क्या ? बर्फ ही तो लाउंगी ! आप लोगो ने तो पुत्र ( मेरा भतीजा) के पैदा होने पर मुझे निमंत्रण भी नही दिया और उसे जंगल मे छोड़ दिया ! मेरे भतीजे ने मुझे सपने के द्वारा मुझे यहाँ बुलाया है ! अब आप लोग मुझे दहेज़ दो ! " मै अपने भतीजे को लेकर अपने हौलू राजा के पास चली जाती हूँ !

ऋषिकेश्वर मुनि बोले " हमने तो लड़के का मूल नक्षत्र मै पैदा होने से नामकरण से पहले ही परित्याग कर दिया कहाँ नामकरण का निमंत्रण देते ! लो ये सात तुम्बे रखे है उनको ले जाओ और हर साल फसल के समय इन तुम्बो के प्रभाव के इसे (नाकुरी एव पुंगराओ -   बागेश्वर जिला के रीमा क्षेत्र ) क्षेत्र मे ओले गिराना ! ओले न गिराने के लिए यहाँ के लोग तुम्हे लीक, सीक देने लगेंगे तबी तुम सुख शान्ति से अपने दिन व्यतीत करना" !


 इस कथा मे यह भी कहा जाता है, जब नंदा देवी इस बालक को दूड़ने चल पड़ती है तो उन्हे बालक काफ़ी दूड़ने के बाद भी नही मिलता है ! तब नंदा देवी कहती है हे बालक यदि तुम वास्तव मे अवतारी हो, तो मुझे अपने बारे मे बताओ तुम आख़िर कहाँ पर हो. तब भगवान मूल नारायण जी नंदा आकाशवाणी के द्वारा बताते है, कि इस जगह पर हूँ !



 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नंदा देवी का बालक मूल नारायण को लेकर कलकत्ता (महाकाली ) के पास पहुचना !

रानी नंदा गोश्यानी उस सुंदर बालक को भी साथ लेकर हिमालय प्रस्थान करते हुवे वह दक्षिण प्रदेश कलकत्ता पहुची ! वहाँ वह अपनी बड़ी बहिन कलिका को प्रणाम करती है और दोनों बहिन गले मिलकर प्रेमाश्रु कि झड़ी लगा देते है ! कलकत्ता मे अपनी बहिन कलिका को नंदा देवी बहुत अच्छा लगा ! साथ मे दोनों ये सुंदर बालक कि बाल क्रीडा का भरपूर आनंद लिया !  काफ़ी दिन अपने बहिन कलिका के पास बीताने के बाद नंदा देवी अपने रंग बिरंगी परियों से साथ, ढोल - नगाडो, पताका, अष्ट भैरव गणों व सज धज डोली मे कहारों के साथ अपने बहिन से बिदा होती है !

नंदा देवी का तीर्थ राज प्रयाग पहुचना

फिर नंदा देवी और आते आते नंदा देवी तीर्थ राज प्रयाग पहुची ! जब तीर्थ राजप्रयाग मे रानी नंदा देवी कि डोली अपने गणों से साथ पहुचती है, सारे नर - नारी, बाल - बूड़े देवी से दर्शन को निकल पड़ते है ! रानी ने बालक मौन (यानी मूल नारायण भगवान) से साथ कुछ दिन प्रयाग मे विश्राम किया ! पवित्र त्रिवेणी जलाभिषेक से आनंदित होकर रानी ने पवित्र कल्पतरु के दर्शन किए !

प्रयाग राज मे भारद्वाज ऋषि आश्रम देखने भी रानी जाती है एव ऋषि भारद्वाज के दर्शन कर उनके चरणों मे प्रणाम करती है एव उनसे आशीर्वाद ग्रहण कर तब रानी हिवाल नंदा अपने दल के साथ आगे पहुचती है

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नंदा माई का तराई भाबर पहुचना

पर्वतीय प्रदेश के पूर्व नंदा देवी तराई के भू भाग मे फैले घने मन मोहक जंगलो को पार करती है ! नंदा देवी इस बात कि कोई चिंता नही थी कि भीहड़ रास्तों मे अकस्मात आने वाले खतरों से उसके गण रक्षा करते थे साथ ही बाजे घाजे के साथ एव सप्त बयार कि आवाज जब होती मीलो दूर के पशु - पक्षी व हिंसक प्राणी भी भयभीत हो जाते! काल भैरव से साथ रानी का डोला जब जलता था धरती कम्पायमान हो जाती थी !

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नंदा माई का नैनीताल पहुचना (नैनीताल का बनना)

तराई के बाद भाबर का क्षेत्र लगता है इसको पार करने के बाद नंदा देवी पहाडी यात्रा प्रराभ कर देती है ! काफ़ी चढाई पूरी करने के बाद नंदा देवी नैनीताल पहुचती है ! कुछ समय विश्राम कर नंदा देवी नैनीताल कि सुन्दरता को निहार रही थी कि बालक मौना ऋषि (मूल नारायण ) जी को अत्यन्त प्यास लग जाती है ! नंदा देवी आपने गणों को चारो दिशाओ मे पानी लेने के लिए भेज देती लेकिन सारे खली हाथ लौटते है,  तब नंदा देवी अपनी शक्ति से एकदम इतना पानी प्रकट करा देती है देखते -२ वहाँ एक तालाब बन गया ! बालक मौना ऋषि भी आश्चर्य हो जाते है और पवित्र पानी पीकर अपना प्यास भुझाते है ! 


Nainia Devi Mandir Nainial





ऐसा कहा जाता है कि नंदा देवी द्वारा प्रकट कराये गए पानी से बने इस तालाब का नाम नैनीताल हो गया !






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नंदा देवी का अल्मोड़ा मे पहुचना और कालो मोटिया राक्षस का अंत करना

नंदा देवी अपने गणों से साथ नैनीताल से अल्मोड़ा पहुचती है ! अल्मोड़ा शहर मे कालो मोटिया राक्षस ने जनता को बहुत प्रेशान किया हुवा था !  जब नंदा देवी अल्मोड़ा मे अपने गणों के साथ पहुचती है तो कालो मोटिया राक्षस का रास्ता रोक देता है, वह राक्षस बोला इस शहर मे मेरा राज है और बिना आप बिना मेरी अनुमति के इस शहर मे कैसे प्रवेश कर गयी ! इतना कहा था नंदा रानी ( नंदा हिवाल) ने अपने अष्ट भैरव, काल भैरव, लाखो करतब दिखाने वाले हजारो आण-बाण व आश्चर्य चकित कर देने वाली परियों व बयार देवताओ कि राक्षस एक साथ टूट पड़ने कि हुक्म दे दिया ! तब एसे नंदा देवी ने अपना विकराल रूप धारण कर लिया, सिर के बाल फैला दिए, कमर कि बुक्साडी का खड़क हाथ खीचते ही दोल नंगारो तुरही कि आवाज के साथ तब नंदा माई राक्षस कि सेना सहार करने उतर पड़ी !

फिर क्या था देखते ही देखते राक्षस कि सेना समाप्त होने लगी !  कालो मोटिया राक्षस ने यह कटुक तो कभी देखा तब न था ! वह रण स्थल से भागने लगा तो लखुवा बाण ने उसको लखुवा मार दिया अब वह भागने के सोच भी नही सकता था ! हरे, लाल, पीली, नीली, अष्टरंग ने उसके चारो और घूम कर उसकी आंखो के तीज विहीन कर दिया ! उसको कुछ दिखायी भी नही देता था ! तब रानी ने उस राक्षस का खड़क से अंत कर दिया !   राक्षस को मारने के बाद नंदा देवी का पूरे शहर मे बहुत स्वागत हुवा !

नंदा देवी कि डोली  अब, उसके गण नही उठाते बल्कि गणों के कहा " तुम आराम करो हम (अल्मोड़ा वासी) सवयं भगवती नंदा की डोली उठाते है, " नंदा देवी की डोली सारे शहर मे घुमाई गयी"  ! अंत मे जिस जगह पर रखी गयी वहाँ आज मेला भी लगता है !

अल्मोड़ा वासियों ने नंदा देवी की स्थापना कर डाली और एक भव्य मन्दिर बनाया जो मन्दिर भारी -२ पत्थरों से बना है ! उसकी कला दर्शनीय है ! हर वर्ष बरसात समाप्त होने लगती है वहाँ एक हफ्ते तक भयंकर मेला लगता
है






NANDA DEVI TEMPLE ALMORA.

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