Author Topic: Sidhibali Mandir Kotdwar Uttarakhand- सिधिबली (हनुमान जी) मंदिर कोटद्वार  (Read 22682 times)

gouri

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Not much of a believer...however for me i would rank this on the same level as Vaishno Devi of Jammu, SiddhiVinayak of Mumbai in terms of spirituality and feeling of being at peace with oneself. Am a half Kumaoni half Garhwali...with hardly any connection to the state....whatever lil bit i have....must say Uttarakhand is heaven on earth. It beats all the locations across the world hands down.
Keep writing about the places....history of Uttarakhand ...its culture and rich heritage for people like us who would like to find our roots.

Cheers!!!
Gouri 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गुरु गोरखनाथ और हनुमान जी का हुआ था यहां युद्ध

उत्तराखंड में जिस स्थान पर वर्तमान में सिद्धबली मंदिर स्थापित है वहां गुरु गोरखनाथ और बजरंगबली का द्वंद्व युद्ध हुआ था।

इसके बाद यहां बजरंग बली प्रकट हुए और गुरु गोरखनाथ को दर्शन देकर उनको दिए वचनानुसार यहां पर प्रहरी के रूप में सदा के लिए विराजमान हो गए।

यह स्थान गुरु गोरखनाथ का सिद्धि प्राप्त स्थान होने के साथ इसे सिद्धबली बाबा के नाम से जाना जाने लगा। स्कंद पुराण के केदारखंड में इस बात का जिक्र है। सिद्धबाबा को साक्षात गोरखनाथ मना जाता है। इनको कलयुग में शिव का अवतार माना जाता है।

दोनों में भयंकर युद्ध हुआ

मान्यता है कि गुरु गोरखनाथ के गुरु मछेंद्रनाथ हनुमान जी की आज्ञानुसार त्रियाराज्य (वर्तमान में चीन के समीप) की रानी मैनाकनी के साथ गृहस्थ आश्रम का सुख भोग रहे थे।

जब इस बारे में उनके शिष्य गुरु गोरखनाथ को पता चला तो वे दुखी हुए। उन्होंने प्रण किया कि वह गुरु को इससे मुक्त कराएंगे।

जैसे ही वह त्रियाराज्य की ओर प्रस्थान कर रहे थे हनुमान जी ने वन मनुष्य का रूप लेकर उनका स्थान रोक लिया। दोनों में भयंकर युद्ध हुआ।

लेकिन हनुमान जी गुरु गोरखनाथ को पराजित नहीं कर पाए। इससे हनुमान जी आश्चर्य में पड़ते हैं कि वह एक साधारण साधु को परास्त नहीं कर पा रहे हैं।

जब उनको इस बात का पता चला कि यह कोई दिव्य पुरुष हैं तो वह अपने असली रूप में प्रकट हुए। उनके तप-बल से प्रसन्न होकर वह उनसे वरदान मांगने को कहते हैं।

गोरखनाथ हनुमान जी से अपने गुरु मछेंद्रनाथ को आज्ञामुक्त करने और इस स्थान पर प्रहरी की तरह रहने का वरदान मांगते हैं।

कहा जाता है कि तब से यहां पर हनुमान जी उपस्थित रहते हैं। इन दो यतियों (बजरंग बली और गुरु गोरखनाथ) के कारण इसे सिद्धबली बाबा कहा जाता है।

कौमुद से बना कोटद्वार

क्षेत्र का नाम पहले कौमुद था। कौमुद का अर्थ कार्तिक और बबूल का पेड़ भी होता है। महारात्रि के समय यहां पर बबूल (कौमुद) के पुष्प की खुशबू फैली रहती है।

कहा जाता है कि पौराणिक काल में कौमुद (कार्तिक) की पूर्णिमा को चंद्रमा ने भगवान शंकर को तपस्या कर प्रसन्न किया था।

इसलिए इसका नाम कौमुद पड़ा। पहले स्थानीय लोग इसे कौमुद द्वार के नाम से पुकारते थे। जब अंग्रेज यहां आए तो वे इसका सही उच्चारण नहीं कर पा रहे थे। जिसको उन्होंने पहले कौड्वार कहा। अभिलेखों में भी इसे ही दर्ज किया जाने लगा। बाद में यह कोटद्वार नाम से कहा जाने लगा।

खोह नदी भी पड़ा नाम

जिस प्रकार कौमुद से कोटद्वार बना उसी तरह अंग्रेजों के सही उच्चारण नहीं होने से कौमुद नदी को खोह नदी कहा जाने लगा। जो वर्तमान में खोह नदी के नाम से ही जानी जाती है। सिद्धबली मंदिर खोह नदी किनारे पर ही बना है।
http://www.dehradun.amarujala.com/news/shahar-nama-dun/guru-gorakhnath-and-lord-hanuman-battle/

 

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