Tourism in Uttarakhand > Religious Places Of Uttarakhand - देव भूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देव मन्दिर एवं धार्मिक कहानियां
Spiritual Places of Uttarakhand - विभिन्न स्थानों से जुड़ी धार्मिक मान्यतायें
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
गंगोत्री मंदिर
हिन्दुओं के कैलेंडर के महत्वपूर्ण दिन अक्षय तृतीया को साधारणतः अप्रैल के अंत में शुरू होता है, जब भगवती गंगा की डोली गंगोत्री वापस आती है। 20 किलोमीटर दूर नीचे के मार्कण्डेय मंदिर के मुखवा गांव से जो गंगा का जाड़े का घर है। प्रत्येक पूजन एवं परंपराओं के साथ सदियों से डोली के साथ एक जुलुस होता है। मंदिर, हर वर्ष दीवाली पर बंद होता है तब डोली को साज-सज्जा एवं अर्चना के साथ मुखवा भेजी जाती है जो गंगोत्री के पुजारियों के घर होता है।
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भागीरथ शिला IN GANGOTRI
गंगोत्री के प्रमुख मंदिर परिसर में एक छोटा मंदिर है जिसमें राजा भागीरथ की मूर्ति एवं एक पत्थर की शिला है जिसपर बैठकर उन्होंने तप किया था। कहा जाता है कि जो कोई भी एक पुत्र की आकांक्षा से सच्चे मन से यहां प्रार्थना करता है उस पुरूष-महिला की प्रार्थना अवश्य फलीभूत होती है।
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GANGOTRI
डूबा शिवलिंग
कहावत है कि नदी में डूबा शिवलिंग ठीक उसी जगह है जहां भगवान ने बैठकर अपनी जटाओं में गंगा के वेग को समेटा था। जाड़ों में पानी कम होने पर इसे देखा जा सकता है।
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शक्ति मंदिर - UTTARKASHI.
एक ही परिसर में विश्वनाथ मंदिर के ठीक विपरित शक्ति मंदिर देवी पार्वती के अवतार में, शक्ति की देवी को समर्पित है।
इस मंदिर के गौरव स्थल पर, 8 मीटर ऊंचा एक त्रिशूल है जो 1 मीटर व्यास का है (जैसा एटकिंसन ने सुख का मंदिर के त्रिशूल को बताया है) जिसे शक्ति स्तंभ भी कहते हैं। त्रिशुल का प्रत्येक कांटा 2 मीटर लंबा है।
इस पर सामान्य सहमति है कि उत्तराखण्ड में यह सबसे पुराना अवशेष है।
त्रिशूल के खंभे गाटे सजी चुनियों से ढंका हुआ है जो भक्तों की मन्नत का प्रतीक है।
स्तंभ के आधार पर (यहां पूजित देवी-देवता) भगवान शिव, देवी पार्वती एवं उनके पुत्र गणेश तथा कार्तिकेय की प्रस्तर प्रतिमा है।
शक्ति स्तंभ से संबद्ध कई रहस्य तथा किंवदन्तियां हैं। एक मतानुसार जब देवों तथा असुरों में युद्ध छिड़ा तो इस त्रिशूल को स्वर्ग से असूरों की हत्या के लिये भेजा गया। तब से यह पाताल में शेषनाग (वह पौराणिक नाग जिसने अपने मस्तक पर पृथ्वी धारण किया हुआ है) के मस्तक पर संतुलित है। यही कारण है कि छूने पर हिलता-डुलता है क्योंकि यह भूमि पर स्थिर नहीं है। यह भी कहा जाता है कि स्तंभ धातु से बना है इसकी पहचान अब तक नहीं हो सकी है यद्यपि इसका भूमंडलीय आधार अष्टधातु का हजारों वर्ष पहले से है।
RELIGIOUS IMPORTANCE
शक्ति स्तंभ से संबद्ध एक अन्य किंवदन्ती यह है भगवान शिव ने विशाल त्रिशूल से वक्रासुर राक्षस का बध किया था और यह जो त्रिशूल आठ प्रमुख धातुओं से बना था।
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
प्राचीन अन्नपूर्णा माता मंदिर - UTTARKASHI
भगवान शिव की पत्नी पार्वती को एक अन्य रूप अन्नदात्री देवी अन्नपूर्णा की यहां पूजा होती है। यहां सदियों से मूर्ति स्थापित है तथा मंदिर का निर्माण वर्तमान 8वीं सदी के आस-पास हुआ।
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