उत्तरकाशी से जुड़ी पौराणिक मान्यता
काशी शब्द का उद्भव कास शब्द से हुआ है, जिसका अर्थ होता है चमकना। काशी को शिव एवं पार्वती द्वारा सृजित ‘मूल भूमि’ माना जाता है जिस पर प्रारंभ में वे खड़े हुए थे। यही वह भूमि है, जो भागीरथी, वरूणा एवं असी नदियों के संगम पर स्थित है। वरूणा एवं असी के मिलन स्थल होने से इसे वाराणसी कहा जाता है इसी कारण काशी को तपोभूमि (तप की भूमि) कहा जाता है एक स्थल जिसके कंपन से भी ज्ञान तथा शिक्षा में गुणात्मक वृद्धि हो जाती है।
अनंत काल से ही इस जगह को पवित्र माना गया है। स्कंद पुराणानुसार यह पवित्र भूमि पांच कोस विस्तृत था तथा उतनी ही लंबा, जो लंबाई, चौड़ाई में 12 मील थी।
भारत में गुप्त काशी, गया काशी, दक्खिन काशी, शिव काशी जैसे कई अन्य काशी भी हैं, पर यह केवल पूर्व काशी (बनारस या वाराणसी) एवं उत्तरकाशी ही है जहां विश्वनाथ मंदिर अवस्थित है। माना जाता है कि कलयुग में जब संसार का पाप मानवता को परास्त करने की धमकी देगा तो भगवान शिव मानव कल्याण के लिये वाराणसी से हटकर उत्तरकाशी पहुंच जायेगें। यही कारण है कि उत्तरकाशी में वे सभी मंदिर एवं घाट स्थित है जो वाराणसी में स्थित है। इनमें विश्वनाथ मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, भैरव मंदिर (भैरव को भगवान शिव का रक्षक माना जाता है और भगवान शिव की पूजा से पहले इसे प्रसन्न करना आवश्यक होता है), मणिकर्णिका घाट एवं केदारघाट आदि शामिल हैं।
उत्तरकाशी पौराणिक वैधता से ओत-प्रोत है। महाभारत के एक वर्णनानुसार महान मुनि जड़ भारथ ने उत्तरकाशी में तप किया था। यह भी कहा जाता है कि महाभारत के एक प्रणेता अर्जुन की मुठभेड़ शिकारी रूप में भगवान शिव से यहां हुआ था। महाभारत के उपायन पर्व में उत्तरकाशी के मूलवासियों जैसे किरातों, उत्तर कुरूओं, खासों, टंगनासों, कुनिनदासों एवं प्रतंगनासों का वर्णन है।
यह भी कहा जाता है कि उत्तरकाशी के चामला की चौड़ी में परशुराम ने तप किया था। भगवान विष्णु के 24वें अवतार परशुराम को अस्त्र का देवता एवं परशु धारण करने के कारण योद्धा संत के रूप में भी जाना जाता है। वे सात मुनियों में से एक हैं जो चिरंजीवी हैं।
कहा जाता है कि परशुराम ने अपने पिता जमदग्नि मुनि के आदेश पर अपनी माता रेणुका का सिर काट दिया था। उनकी आज्ञाकारिता से प्रसन्न होकर जमदग्नि मुनि ने उन्हें एक वरदान दिया। परशुराम ने अपनी माता के लिये पुनर्जीवन मांगा एवं वे जीवित हो गयीं। फिर भी वे मातृ हत्या के दोषी थे एवं पिता ने उन्हें उत्तरकाशी जाकर प्रायश्चित करने को कहा। तब से उत्तरकाशी उनकी तपोस्थली बना।