ई.टी. एटकिंसन (दी हिमालयन गजेटियर, वोल्युम भाग II वर्ष 1982) के अनुसार श्रीनगर का निर्माण प्रमुख पथ पर हुआ है जो प्रमुख बाजार भी है। वह कहता है “घर छोटे पत्थरों से बने हैं और सामान्यतः दो-मंजिले होते हैं तथा छतें ढालुवां होती है जो स्लेटों से ढंके रहते हैं। नीचे की मंजिल भंडारों या दूकानों के लिये होता है और परिवार उपरी मंजिल पर रहता है। घरों में लकड़ी का इस्तेमाल काफी होता है जहां दीवालों का एक भाग तथा गुंबजी बरामदा तिहारी तथा दंडयाली लकड़ी से निर्मित होते हैं। संपन्न वर्ग के घरों में मात्र एक संकीर्ण बाल्कनी की विशेषता होती है।”
सच तो यह है कि एटकिंसन, राजा अजय पाल के राजमहल की वास्तुकला से प्रभावित दिखता है जिसके बारे में वह कहता है, “राजा अजय पाल का राजमहल कभी वास्तुकला का प्रभावी प्रदर्शन एवं विस्तार रहा होगा क्योंकि इसके अवशेष अब भी कुछ एकड़ जमीन पर हैं। यह काले पत्थरों के बड़े टुकड़ों से मसालों से निर्मित है जिसके तीन उत्तम मुहाने हैं और ये सब चार मंजिले हैं जिसमें आगे तक पोर्टिको विस्तृत है जिस के नीचे के भाग में मूर्त्तियों की सजावट है। यह शैली किसी विशेष स्कूल का नहीं लगता। कहा जाता है कि इसके निर्माण में जो भी लकड़ी का काम हुआ हो उसका कोई प्रमाण उसमें नहीं मिलता जो अब बचे हैं तथा जालीदार खिड़किया भी पत्थर की हैं जबकि एकमात्र बचा द्वार पत्थरों से खुदा है जो वास्तव में लकड़ी जैसा ही लगता है। ये दरबाजा बहुत बड़ा एवं भारी होता है तथा इसे यथास्थान डालने में काफी श्रम लगा होगा।”
वह यह भी बताता है कि राजमहल से नदी तक एक भूमिगत रास्ता भी है जो महिलाओं के लिये नदी में स्नान करने के लिए बनाया गया होगा। “इस कार्य को अंजाम देने के लिए जरूरी आभियांत्रिकी कठिनाइयां महत्वपूर्ण रही होगीं क्योंकि एक चट्टानी रिज (टीला) अब भी मौजूद है पर इसके निर्मित होने में कोई संदेह नहीं है क्योंकि चैनल का अवशेष अब भी यहां है।” आज, फिर भी कमलेश्वर मंदिर या केशोराय मठ जैसे सिर्फ पुराने मंदिरों में इसके ऐश्वर्य की कुछ झलक देखी जा सकती है। एक छत के पत्थरों से निर्मित भवन की पुरानी शैली देखी जा सकती है। दुख की बात यह है कि अधिकांश भवन आधुनिक वास्तुकला के अनुसार ही बने हैं जो करीब-करीब उत्तर-भारत जैसे ही हैं जो कंक्रीट एवं सीमेंट से बने हैं।
वाल्टन के अनुसार वर्ष 1901 की जनगणना के अनुसार यहां की जनसंख्या 2,091 है जिसमें ब्राह्मण, राजपूत, जैन, अग्रवाल, बनिया, सुनार तथा कुछ मुसलमान भी शामिल हैं। वह बताता है कि व्यापारी मुख्यतः नजीबाबाद से कार्य करते हैं जहां से वे कपड़े, गुड़ तथा अन्य व्यापारिक वस्तुएं प्राप्त करते हैं।
एटकिंस बताता है कि श्रीनगर के वासी अधिक पुराने एवं जिले के अधिक महत्वपुर्ण परिवारों के हैं जिनमें कई सरकारी कर्मचारी हैं, इर्द-गिर्द के मंदिरों के पूजारी हैं तथा बनिये हैं जो नजीबाबाद से आकर यहां बस गये। जब अजय पाल ने श्रीनगर में अपना राजदरबार बनाया तो वह सरोलाओं एवं गंगरिसों जैसे उच्च कुल के ब्रांह्मणों को भी ले आया। राजदरबार में ठाकुरों, भंडारियों, नेगियों एवं कठैतों की श्रेणी के राजपूत भी शामिल थे। वास्तव में जातियों का नामकरण दो तरीकों से हुआ, लोगों की पेशानुसार (नेगी सैनिक हुआ करते तथा भंडारी- भंडार नियंत्रक) या फिर अपने गांव के नाम से।