Author Topic: Sri Nagar: A Religious Place - श्री क्षेत्र: श्रीनगर  (Read 29413 times)

पंकज सिंह महर

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रानीहाट(किलकिलेश्वर मंदिर से तीन किलोमीटर दूर।)



रानीहाट परिसर में राजराजेश्वरी देवी को समर्पित कुछ मंदिर हैं। परिसर का नाम इस तथ्य से जुड़ा है कि यहां एक साई (सीढ़ी) थी जिसका इस्तेमाल पंवार रानियां नदी में स्नान करने नीचे जाने के लिए किया करती थी और फिर अपने कुलदेवी राजराजेश्वरी की यहां पूजा करती थी। रानीहाट से प्राप्त बर्तनों, हड्डियों एवं अवशेषों से पता चलता है कि 3,000 वर्ष पहले, श्रीनगर एक सुसभ्य आवासीय स्थल था। जहां लोगों को शिकार करने के लिए उपकरणों के निर्माण का ज्ञान था तथा वे फसलें उगाते एवं बर्तनों के पात्रों में खाना पकाते थे। यह परिसर अब भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के अधीन है और अब बंद कर दिया गया है।

पंकज सिंह महर

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अष्टावक्र महादेव
(खोला गांव के ऊपर एक पहाड़ी पर श्रीनगर से तीन किलोमीटर पैदल यात्रा एवं आठ किलोमीटर की सड़क यात्रा की दूरी पर है।)

माना जाता है कि अष्टावक्र मुनि ने यहां भगवान शिव की आराधना की थी। प्रसन्न होकर भगवान शिव, मुनि के सामने प्रकट हुए तथा वरदान के अनुसार वहां रहने का निश्चय किया। स्वयं मंदिर देखने में साधारण ही है। यह एक 15 फीट ऊंचा ढांचा है जहां गर्भ गृह में एक स्वयंभू शिवलिंग के ऊपर आठ पांवों पर टिका एक कलश है। जब मंदिर का पुनरूद्धार हो रहा था तब शिवलिंग की जड़ पता नहीं चलने के कारण खुदाई रोक दी गई। लोगों का ऐसा भी विश्वास है कि शिवलिंग की लंबाई बढ़ रही है। मंदिर में गणेश एवं नंदी की प्रतिमाएं भी हैं।

मंदिर एक सुंदर स्थान पर अवस्थित है जहां एक ओर अलकनंदा की घाटी का मनोरम दृश्य है तथा दूसरी ओर देवदार पेड़ों से भरे पौड़ी की पहाड़ियां हैं।

पंकज सिंह महर

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बैकुंठ चतुर्दशी मेला

कार्तिक महीने (अक्टूबर-नवम्बर) में बैकुंठ चतुर्दशी के दिन कमलेश्वर महादेव मंदिर एक बड़े मेले का स्थल होता है। झालरों से सज्जित श्रीनगर का बाजार एक व्यस्त समारोही स्थल बन जाता है क्योंकि आस-पास के गांवों तथा संपूर्ण भारत से लोग मंदिर में पहुंचते हैं। पूजा सुबह सवेरे शुरू हो जाती है और कीर्तन दिन-रात चलता रहता है।

इस अवसर पर संतानहीन दम्पत्ति गंगा में स्नान कर व्रत रखते हैं तथा खड़े रहकर इस विश्वास से अपनी हथेलियों पर रात-भर दीप जलाये रखते हैं कि उनकी पूजा का प्रतिफल मिलेगा। घी से जले दीप में वे 365 बत्तियां रखते हैं क्योंकि माना जाता है कि इससे वर्ष के 365 दिनों की दुर्घटनाएं दूर रहेगी। सुबह होते ही दम्पत्ति दीप को भगवान शिव को समर्पित कर देते हैं, और इसके बाद अलकनंदा में स्नान कर मंदिर के महंथ से प्रसाद ग्रहण करते हैं।

आजकल पांच-छ: दिनों तक चलने वाले इस मेले का आयोजन नगर पालिका परिषद करती है। लोकनृत्य एवं संगीत कार्यक्रमों, सांस्कृतिक वाद-विवादों, खेलकूदों, नाटकों, लोककलाओं एवं हस्तकारीगरी के प्रदर्शनों के साथ कवि सम्मेलनों, संगीत भरी शामों जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। इसमें श्रीनगर के प्रत्येक नागरिक, बच्चों से लेकर वयस्कों तक भाग लेते हैं। स्थानीय प्रशासन मेले का उपयोग स्थानीय कलाओं एवं अन्य कलाओं को बढ़ावा देमे में करते हैं।


अचला सप्तमी/ घृतकमल

कमलेश्वर मंदिर से संबद्ध अन्य प्रसिद्ध उत्सव होता है अचला सप्तम या घृतकमल। यहां बसंत ऋतु में बसंत पंचमी के ठीक बाद मनाया इसे जाता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा चांदी से की जाती है। शिवलिंग को घी से धोकर एक ऊनी कंबल से इसे ढंक कर फूल-पत्तियों से सजाया जाता है। भगवान शिव को 52 प्रकार का प्रसाद चढ़ाया जाता है जो भिन्न प्रकार से तैयार होते है। उस दिन मंदिर का महंथ उपवास करता है और मात्र एक मात्र लंगोटी पहनकर लेटकर मंदिर की परिक्रमा करता है। उसके पीछे भक्तों का समूह होता है। इसके बाद चढ़ाये गये 52 सामग्रियों का प्रसाद वितरित होता है।

पंकज सिंह महर

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श्री यंत्र

यंत्रों का आगमन 2000 वर्ष पुराने तांत्रिक परंपरा से हुआ है। यंत्र बौद्धों के मांडला का योगिक रूपांतर है। श्री यंत्र को सभी यंत्रों का जननी माना जाता है कयोंकि सभी यंत्रों का उद्भव इसी से हुआ है।

श्री यंत्र के केंद्रीय बिंदु के इर्द-गिर्द आपस में जुड़े व त्रिकोणों का एक आकार है जिसके ऊपर है पांच निम्नमुखी त्रिकोण शक्ति का परिचायक स्त्री का रूप तथा चार ऊपरमुखी त्रिकोण जो पुरूष रूप भगवान शिव का प्रतिनिधित्व करता है।

श्री यंत्र के ऊपर मनुष्य की आध्यात्मिक यात्रा वस्तुपरक अस्तित्व के चरण से अंतिम बौद्धिकता तक अंकित है। आध्यात्मिक यात्रा एक तीर्थयात्रा की तरह है जहां से प्रत्येक चरण केंद्र में अपनी सीमित अस्तित्व से बाहर की गति तथा प्रत्येक स्तर पर लक्ष्य के करीब उतरता है। बाहरी स्थान से केंद्र तक श्री यंत्र की प्रत्येक परिधि का संबंध आध्यात्मिक यात्रा के एक-एक चरण को दर्शाती है।

पंकज सिंह महर

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Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Great info Pankaj bhai +1 karma aapko.

Devbhoomi,Uttarakhand

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श्रीनगर की हसीन वादियाँ


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The modern day Srinagar was re-established by the British during 1897-99. Mr E. K. Pauw, the then Deputy Commissioner, British Garhwal, after the old capital was totally washed off and destroyed by the floods, planned a new grid-iron pattern town and relocated it to the third upper terrace to the SE of the old site. Srinagar was given the urban status in 1931. Today, with home to H N Bahuguna Garhwal University (formerly Garhwal University), Srinagar is a major economic, cultural, and educational center in the region.



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Quick Facts:of Shreenagar Garhwal

Formal Re-establishment :   1896
Longitude / Latitude :   30 o 13' N | 78 o 36' E
Region/Location :   Pauri Garhwal, Uttarakhand
Central Himalayas, India
Area/STD Code :   01346
Zip/Pin Code :   246174
Population :   19,861 (2001census)
Literacy :   83%
Area :   9.659 Sq Kilometers
Altitude :   579 Meters
Weather :   Mild in Winter and Hot in Summer
Temperatures :   Average Temperature 24o C
Maximum Temp. 42o C | Minimum Temp. 10o C
Languages :   Garhwali, Hindi, Punjabi, and English

 

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