Author Topic: Story Of Gweljyu/Golu Devta - ग्वेल्ज्यु या गोलू देवता की कथा  (Read 124917 times)

Gourav Pandey

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Idol of Golu Devta at Basulisera. It is about 40 Kms from Ranikhet Near Someshwar , Almora, Uttarakhand, India



Source : Wikipedia 

Gourav Pandey

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Golu jyu at Kumour, Pithoragarh


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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फेसबुक उत्तराखंड कृष्णअवतारी दुदाधारी
 न्याय कु दब्यता
 मेरा प्रभू मेरा गोल्जू
 मेरी विपदा भी हर ली
 इन आस ली की अयू छौ तेरा द्वार
 चिठ्ठी कतर लेखी अयु छौ तयारा थान
 यी घदुलियों माँ मेरी खुसी गूंजा दे
 मेरा परभू मेरा गोलुजू
 तेरा दरसन कु अणू जगत संगसार
 तेरा महिमा चा हापार मेरा गोल्जियु
 औत रजा झालूराइ की सुनी देली माँ तिन किलकारी गुंजाई
 मेरा विस्वास की चुनरी चढाई तेरा द्वार
 कर दे पूरी आस गोलजू महाराज
 यी घदुलियो मा मरी खुसी भी गूंजे दे आज
 रचना शैलेन्द्र जोशीLike ·  ·   

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चितई ग्वल मंदिर में अब नहीं होगी पशुबलि
Story Update : Monday, October 15, 2012    12:01 AM

अल्मोड़ा। चितई ग्वल देवता मंदिर में अब पशुबलि नहीं होगी। उच्च न्यायालय के मंदिरों में पशुबलि पर रोक लगाने के आदेश के बाद चितई मंदिर समिति ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया है। बैठक में एसडीएम अजय अरोरा ने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश का पूर्णतया पालन किया जाएगा।
मालूम हो कि प्राचीन काल से ही चितई मंदिर में मनौती पूर्ण होने पर बकरे की बलि देने की परंपरा रही है। खासकर नवरात्र में चितई ग्वल देवता मंदिर में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ उमड़ती है। नवरात्र में मंदिर में काफी संख्या में श्रद्धालु बकरे की बलि देते हैं। हाल ही में उच्च न्यायालय ने मंदिरों में पशु बलि पर रोक लगाने के आदेश दिए है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रशासन के अधिकारियों की मौजूदगी में मंदिर कमेटी की बैठक हुई।
बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि पशुबलि को लेकर हाईकोर्ट के आदेश का पूर्णतया पालन किया जाएगा। मंदिर समिति ने मंदिर परिसर में पशु बलि पूर्णतया प्रतिबंधित कर दी है।
बैठक की अध्यक्षता करते हुए एसडीएम अजय अरोरा ने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश का पूर्णतया पालन किया जाएगा। उन्होंने जनता से भी सहयोग की अपील की है। बैठक में पुलिस अधीक्षक केएस ह्यांकी, मंदिर समिति के अध्यक्ष संतोष पंत, उपाध्यक्ष ललित पंत, सचिव प्रकाश पंत, कोषाध्यक्ष हरिविनोद पंत, सह कोषाध्यक्ष सुरेश सिंह बिष्ट आदि ने भाग लिया।

Devbhoomi,Uttarakhand

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 बागेश्वर : विकास खंड के तड़ीगांव क्वैराली में श्रद्धालुओं ने गुरुवार को भगवान गोलू देवता की मूर्ति स्थापित की। इससे पूर्व श्रद्धालुओं ने सरयू तट में गोलू की मूर्ति को स्नान कराया व भव्य शोभायात्रा के साथ मूर्ति को मंदिर तक पहुंचाया।

तड़ीगांव के ग्रामीणों ने गुरुवार को तड़ीगांव में गोलू देवता की मूर्ति प्रतिष्ठापित की। इससे पूर्व श्रद्धालु बागनाथ मंदिर पहुंचे तथा मंदिर में पूजा अर्चना के साथ ही मूर्ति स्नान कराया।


इसके बाद तड़ीगांव में मूर्ति प्रतिष्ठा की गई। इस दौरान यजमान ललित जोशी व नाथ जोशी समेत पं मोहन चंद्र जोशी, गिरीश जोशी, सतीश चंद्र जोशी, गणेश चंद्र जोशी आदि उपस्थित थे !


Dainik jagran





Bhishma Kukreti

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Goril , Gwill, Golu  Deity : Justice Deity of  Kumaon-Garhwal (Uttarakhand )
Folklore, Folk Legends, Folk Myths of Kumaon-Garhwal, Uttarkahnd-5
Religious and Mythological Folklores of Garhwal, Kumaon, Uttarakhand – 5 

                                        Bhishma Kukreti
             Usually, every society has a deity for justice among Idol worshippers.  Gwill, Gwall, Golu, Goril deity is the deity for justice in Uttarakhand.
  Nepal has Mankamna goddess as goddess of justice. Adastria is Greece goddess of justice. D ike is also Greece goddess of justice. Lady Justia is Roman goddess of justice. Mayet, Mat or Maat is ancient Egyptian goddess of justice and moral. Nanshe was the Sumerian goddess for justice. Anby and Haukim were pre Islamic deities for justice in Arab region. Forseti is mythological justice deity of Norse. Honos was military Roman deity. Issitoq is Inuit mythological justice deity Shamash was justice deity in Babylonia and Asyyria and Mandanu is justice deity in modern time Babylonia. Shezmu is Egyptian mythological justice deity. Nahundi is ancient Persian mythological deity for justice.
                          Goril , Gwill, Golu  Deity : Justice Deity of Kumaon-Garhwal (Uttarakhand)

    Due to his law endeavoring character, Goril was worshipped as deity from his life time. The following folklore prose- song tells the story of justice deity Goril, Gwill, Golu or Gwal. Goril is believed to be Nathpanthi deity. Along with Goril, Kalindra devi is also worshipped and the female Paswa dance as soul of Kalindra too in Jagar of Goril/Gwill.
कुमाऊं और गढ़वाल की लोक गाथाएँ -5

  गोरिल . ग्विल्ल , गोलु , ग्वल गाथा
(सन्दर्भ  :शम्भू प्रसाद बहुगुणा  विराट हृदय )


यो हंसुला गढ़
सूरजवंशी हरू
सैम ज्यू दिवान
भानिज कैलास
xxx   xxx
द्वि मामा भानिज अब बैराठ का देश
राजा हरिचन
सैंम ज्यू दिवान
रंगीली चौरड़ी बैग्या शिलंगी का सेल
रात ब्या उज्याळो   हैग्यो
घुमंण पैग्यान बैराठा का देश
हरिचन साथ में त लडन पैग्यान
राजा हरिचन आब विभूति फुंकाला
हुंलो मैं हरिचन राजा सूरज को पूत
इथगी लिंगा तिरलोकिनाथ
छतीस रौताण तनरी बतीस पैरुणी
xxx  xxx 
गोरिया महाजन के राजा तुमारौ नाम लिनों
दुदाधारी कृष्ण अवतारी तुमारौ नाम छ
ग्वेल गोरिया भनरिया गोरिया चौरिया गोरिया
राजवंशी देव छ जसकारी नमन का भोगी
नेपाल धोली  धुमाकोट में तुमरो जनम
थात बतौनि भगवान इष्ट देवता कुल देवता
बु बु हाल राई बाबु झालराई माता कालिंका
अवतारी जसकारी भगवान तुमारो नाम च
छतीस सौ रौताण  सौ ऐड़ी चौसठ योगिनी
फैलिका भूमिया बावन बियर सोळ सौ भैरों
सोळ सौ कलुवा जो तुमार दगड़ चलनी
गुरु गोरखनाथ बटी जो तुमौल  गुरु की 
दयावान तपवान नंगा का सर ढक छा भूका का पेट भर छा
निर्धनी कै धन दि छा , अपुत्र कै पुत्र
There was rule of Jhalarai the Katyuri king in Champawat. The king had seven queens. They were childless. One day, Jhalrai went for hunting near Kali River. He reached to Dubachaur village and was hungry and tired. He saw that two buffalos were firstly fighting. The king tries to disentangle their fights. However, the king failed to disentangle the fight. The king ordered the servant to bring water from the river.
  The servant went to Kali bank and started filling water into pot. By carelessness, the drops fell down on a girl bathing into the river. The girl sarcastically said,” When the king is so weak who can’t disentangle two fighting buffalos his servant definitely would be discourteous. The servant angrily said,” If you were so strong and brave then go and disentangle the fighting buffalos.”
        The brave girl went there and disentangled two fighting buffalos. The king was stunned to see her bravery and beauty. The king asked the girl about her details. She was niece of another king, her name was Kalindra. However, she had skin disease. King Jhalarai went to her uncle and asks for marrying Kalindra. Jhalarai married to Kalindra and came to his capital. After some time Kalindra became pregnant. However, the king Jhalarai had to go outside the kingdom at the time of child delivery of Kalindra. 
  Other seven queens shifted Kalindra in dark room and told her that she had to put cloth on her eyes for auspicious purpose. Kalindra obeyed her co-sisters. When Kalindra delivered child, other queens took away the child and told to Kalindra that she delivered pumpkin. The seven queens put the child into iron box and threw the box into Ganges.
 When the box was flowing a fisher men family caught the box. The fisherman family was childless and became happy to see the male baby boy. Fisherman family adopted the boy. They took every care for the boy.
 When the boy crossed childhood he was taking a wooden horse to river and asked the wooden horse to drink water. There were seven queens of Jhalari. They asked the boy –how the wood horse would drink water. The child answered as the human mother could deliver pumpkin and same way wooden horse could take water. The queens were shocked to know that boy knew the reality.
 That boy came to Jhalarai and told the real story. King gave the death sentence for punishing his seven queens by throwing them into boiling oil.
  Later on this Goril boy became king. The king became famous for his laws, true justice. People started worshipping Goril in his time.

Curtsey and references:
Dr. Krishna Nand Joshi, Kumaon ka Lok Sahity
 Dr Trilochan Pandey, Kumaoni Bhasha aur Uska Sahity
Dr Siva Nand Nautiyal, Garhwal ke Lok Nrityageet 
Dr Govind Chatak, Garhwali Lokgathayen
Dr. Govind Chatak, Kumaoni Lokgathayen
Dr Urbi Datt Upadhyaya, Kumaon ki Lokgathaon ka Sahityik Adhyan
Dr. Prayag Joshi, Kumaon Garhwal ki Lokgathaon ka Vivechnatmak Adhyayan
Dr Dinesh Chandra Baluni, Uttarakhand ki Lokgathayen
Dr Jagdish (Jaggu) Naudiyal, Uttarakhand ki Sanskritik Dharohar, (Ravain) 
Abodh Bandhu Bahuguna, Dhunyal
Shambhu Prasad Bahuguna, Virat Hriday

Copyright (Interpretation) @ Bhishma Kukreti, 8/4/2013
Folklore, Folk Legends, Folk Myths of Kumaun-Garhwal, Uttarakhand- to be continued…6
Religious Folklores of Garhwal, Kumaon, Uttarakhand to be continued… 6 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जानिए, क्या है इन घंटियों की कथा -घोड़ाखाल में प्रसिद्घ गोलू देवता का मंदिर

गोलू देवता उत्तराखंड के न्याय के देवता हैं। नैनीताल जिले के घोड़ाखाल में प्रसिद्घ गोलू देवता का मंदिर घंटियों से सुशोभित है। जिन्हें कहीं से न्याय न मिले वह गोलू देवता की शरण में पहुंचते हैं और लोगों का मानना है कि यह देवता न्याय करते ही हैं। यहां स्टांप पेपर पर लिखकर लोग मन्नतें मांगते हैं और मन्नतें पूरी होने पर भगवान को धन्यवाद, घंटियां चढ़ाकर दी जाती है। गोलू देवता के प्रति लोगों की आस्था ये घंटियां ही बयां करती हैं। कई घंटियां तो 50-60 या उससे भी ज्यादा पुरानी हैं। लोग मंदिर में आकर 10 रुपए से लेकर 100 रुपए तक के गैर-न्यायिक स्टांप पेपर पर लिखित में अपनी-अपनी अपील करते हैं और जब उनकी अपील पर सुनवाई हो जाती है तो वे फीस के तौर पर यहां आकर घंटियां तथा घंटे बांधते हैं।
खास बात यह है कि इन घंटियों को आप बजा नहीं सकते, क्योंकि भले घंटियों से मधुर ध्वनि निकलती हो लेकिन यदि इन्हें कई लोग एकसाथ बजाएं तो इसकी ध्वनि कैसी होगी, इसका अंदाजा आप भी लगा सकते हैं। इस मंदिर में इन घंटियों को कुछ इस तरह से बांध कर रखा गया है ताकि कोई बजा न सके। गोलू देव उत्तराखंड के कुमायू के एक ऐतिहासिक देवता हैं। वह चम्पावत के चंद राजा के पुत्र थे। इन्हें न्याय का प्रतीक माना जाता है। काठगोदाम और नैनीताल से अल्मोड़ा के लिए आप निकल सकते हैं। अल्मोड़ा के इस गोलू देवता के बारे में एक मजेदार कहानी है

कहा जाता है कि गोलू चंपावत के कत्युरी वंश के राजा झालुराई के पुत्र थे। राजा झालुराई अपने राज्य के न्याय प्रिय, उदार तथा प्रजा सेवक थे। उनकी 7 रानियां थीं, लेकिन पुत्र एक भी नहीं। अब वे अपने उत्तराधिकारी को लेकर परेशान रहने लगे। ज्योतिषियों के कहने के अनुसार उन्होंने भगवान भैरव की आराधना की और उन्हें प्रसन्न करने के बाद उनसे संतान सुख का वर मांगा। जिस पर भैरव ने कहा कि तुम्हारे नसीब में संतान का सुख है ही नहीं। चूंकि तुमने मुझे प्रसन्न किया है तो मैं ही पुत्र रूप में जन्म लूंगा लेकिन अब तुम्हें आठवीं शादी करनी होगी।

एक दिन राजा शिकार करने निकले और भटक गए। उन्हें प्यास लगी और तब उन्होंने अपने सैनिकों को कहा कि वे कहीं से भी पानी ढूंढ कर लाएं। जब काफी देर तक सैनिक नहीं लौटे तो वह खुद ढूंढने निकल पड़े। आखिर उन्हें एक तालाब दिखा, लेकिन देखा तो वहां उनके सैनिक बेहोश पड़े थे। लेकिन प्यास से बेचैन राजा पानी पीने की कोशिश करने लगे और तभी एक औरत की आवाज आई। उसने रुकने के लिए कहा और कहा कि यह तालाब मेरा है, मेरी हामी के बगैर यहां से कोई पानी नहीं पी सकता। तुम्हारे सैनिकों ने यही गलती की, परिणाम देख लो।

राज उस औरत की खूबसूरती के कायल हो गए। उन्होंने अपना परिचय दिया और बताया कि ये मेरे सैनिक हैं। तुम कौन हो? और मेरे सौनिकों का यह हाल कैसे? उस औरत ने बताया कि मैं पंचदेव देवताओं की बहन कलिंगा हुं। आप यदि राजा हैं तो उन लड़ते हुए दो भैंसों को अलग कर दिखाओ तब मैं मानूंगी कि आप राजा हैं। राजा को समझ नहीं आया कि इन्हें कैसे छुड़ाया जाए। आखिरकार कलिंगा ने उन्हें अलग कर दिया। राज हैरान थे और इतने प्रभावित कि उनसे शादी का मन बना लिया। पंचदेवों ने मिल कर राजा से कलिंगा की शादी कर दिया।

जब बाकी रानियों ने उसे देखा तो सभी द्वेष करने लगीं। फिर एक दिन वह गर्भवती हुईं। सातों से यह बर्दाश्त कर पाना मुश्किल था और उसके गर्भ को खत्म करने की योजना बनाई। कलिंगा को डराया कि एक ज्योतिषी ने कहा है कि तुम्हें अपने बच्चे को पैदा होते ही देखना अच्छा नहीं है। इसलिए प्रसव के दौरान सौतों ने उसके आखों पर काली पट्टी बांध दी। जब कलिंगा का बच्चा हुआ तब उसे गायों के गौशाले में फेंक दिया, ताकि गायों के पैरों तले दब जाए और कलिंगा को बताया गया कि उसने पत्थर को जन्म दिया।
उधर गोशाले में बच्चे को खरोच तक नहीं आई और गायों ने उस बच्चे को अपना दूध पिलाकर जिंदा रखा। फिर बिच्छू से भरे घास के खेत में डाल दिया गया, नमक के ढेर में दबाया गया, लेकिन यह चीनी के ढेर में बदल गया। आखिरकार लोहे के संदुक में बच्चे को डालकर काली नदी में बहा दिया। सात दिन तथा सात रात के बाद वह संदुक गौरी घाट पर पंहुचा। जहां भाना नामक मछुआरे के जाल में वह फंस गया। उसने और उसकी पत्नी ने बच्चे को देखा तब उसके आखों में खुशी की चमक दिखी, क्योंकि उन्हें भी कोई बच्चा नहीं था। धीरे-धीरे बच्चे के अंदर अद्भुत शक्तियां विकसित होने लगीं। एक दिन बच्चे ने सपने में देखा कि उसकी मां कलिंगा रोते-बिलखते कह रही है कि तू मेरा पुत्र है। आजा मेरे पास बेटे औऱ इसी के साथ जन्म की सारी घटनाएं स्वप्न के जरिए दिखाई दे गई। एक दिन उस बालक ने अपने पिता से कहा कि मुझे एक घोड़ा चाहिए। गरीब मछुआरे के पास घोड़ा कहां से खरीद पाता, इसलिए उसने बढ़ई से काठ का घोड़ बनवाकर बच्चे को दे दिया। बच्चे ने अपने चमत्कारिक शक्ति से उस घोड़े में प्राण डाल दिए। एक दिन वह राजा झालुराई की राजधानी धूमाकोट पंहुचा, वहां एक तालाब के पास पहुंचकर अपने घोड़े को बांध कर आराम करने लगा। उसी जलाशय के पास ही सातों रानियां बात कर रही थीं कि किस तरह रानी कलिंगा के साथ षड़यंत्र कर उसके बच्चे को मारने की कोशिश की थी उन्होंने और कलिंगा को खून से लिपटा सिलबट्टा दिखाकर उसे धोखा दिया था। कुछ देर बाद वह अपने घोड़े को जलाशय के पास ले गया और रानियों को उसने किनारे हटने को कहा और कहने लगा कि मेरे घोडे़ को पानी पीना है। वे उसकी बाते सुन कर हंसने लगीं और कहने लगीं कि तू बेवकूफ है। काठ का घोड़ा भी भला पानी पी सकता है? जवाब में बच्चे ने कहा अगर कोई स्त्री सिलबट्टे को जन्म दे सकती है तो काठ का घोड़ा पानी क्यों नहीं पी सकता? यह सुनकर सभी रानियां हैरान थीं और राजा के पास जाकर उस बच्चे की शिकायतें करने लगीं। सैनिकों से उस बच्चे को पकड़वाया गया औऱ राजा के सामने लाया गया। राजा ने पूछा यह क्या बेवकूफी है। काठ का घोड़ा पानी कैसे पी सकता है? बालक ने जवाब दिया- महाराज जिस राजा के राज्य में स्त्री सिलबट्टे को जन्म दे सकती है तो यह काठ का घोड़ा भी पानी पी सकता है।तब उस बच्चे ने राजा को अपने जन्म की घटनाओं का वर्णन किया और कहा कि मेरी मां कलिंगा के साथ घोर अन्याय हुआ है और आप भी ठगे गए हैं। गुस्से से आग बबूले हुए राजा ने सातों रानियों को बंदीगृह में डाल दिया। तब सातों रानियां पश्चाताप करते हुए कलिंगा से माफी मांगने लगीं। तब उस बालक ने अपने पिता को समझा-बुझाकर उन्हें माफ कर देने का अनुरोध किया। अंत में राजा ने उन्हें दासियों के समान जीवन गुजारने के लिए छोड़ दिया। यही बालक बड़ा होकर ग्वेल, गोलजू, बाला गोरिया गौर भैरव गोलू इत्यादि नामों से प्रसिद्ध हुआ। (source navbharat times)

Hisalu

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Story of Dana Gol(KalVisht) Jyu of Gairad

Please see below link or download from attachment
http://shrikalbishtgoludevata.in/images/e-book.pdf




Hisalu

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Pawan Pathak

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पर्वतीय अंचल में न्याय के देवता हैं गोलज्यू
चंपावत में है गोलू देव का मूल मंदिर, चितई और घोड़ाखाल में भी हैं स्‍थापित
नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री कोईराला ने चढ़ाई थी 70 किलो की घंटी
भवाली (नैनीताल)। घोड़ाखाल स्थित गोलू देवता का मंदिर मुगल शासन के दौरान ही हो गया था। तब से आज तक गोलू देवता को न्याय 
के देवता के रूप में पूजा जाता है। बुजुर्गों की मानें तो गोलू देवता ने अपनी गद्दी लगाकर लोगों को न्याय दिलाया। इन्हीं गद्दियों में से एक 
घोड़ाखाल गोलू देवता का मंदिर भी है, जहां न्याय मिलने के बाद घंटी चढ़ाई जाती है।
मंदिर के वयोवृद्ध पुजारी केदार दत्त जोशी (86) बताते हैं कि मुगल शासन के दौरान स्थापित इस मंदिर में अंग्रेजी शासकों से लेकर रामपुर 
के नवाब तक गोलू देवता के दर्शन को आते थे। जोशी के मुताबिक गोलू देवता को न्याय के अलावा ग्वैल देवता और दूधाधारी के नाम से 
भी जाना जाता है। 10 अक्तूबर 1999 को नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोइराला की ओर से मंदिर में 70 किलो की सुंदर 
नक्काशी वाली घंटी चढ़ाई गई। कहा जाता है कि राजनैतिक उलझनों में फंसे कोइराला ने मंदिर में इस उलझन से निपटने के बाद यह घंटी 
चढ़ाई थी। मंदिर के पुजारी केदार दत्त जोशी बताते हैं कि इससे पूर्व वर्ष 1951 में नेमिल डेंट नामक एक अंग्रेज ने भी घोड़ाखाल मंदिर में 
घंटी चढ़ाई। बताया कि नेमिल डेंट के भाई सिरोड घोड़ाखाल के एक सेब बागान में मैनेजर थे। वर्ष 1946-47 के दौरान अंग्रेज अफसर 
नेमिल डेंट को पकड़कर ले गए। बाद में अंग्रेजों से छूटने के बाद नेमिल डेंट ने यह घंटी चढ़ाई। यह घंटी उस समय में मंदिर की सबसे बड़ी 
घंटी थी। वर्ष 1900 में घोड़ाखाल में जनरल विलर रहते थे। एक दिन मंदिर में पूजा के दौरान शंख और घंटी बज रही थी, जो जनरल 
विलर को पसंद नहीं आया और उन्होंने शंख और घंटी को बजाने पर रोक लगा दी। कहा जाता है कि उसी रात जनरल विलर का बैड कई 
जगह से टूट गया और घर का सामान भी अस्त-व्यस्त हो गया। अगले दिन जनरल विलर ने यह बात आसपास के लोगों को बताई तो 
लोगों ने उन्हें मंदिर में घंटी चढ़ाने को कहा। तब उन्होंने भी मंदिर में घंटी चढ़ाई। जोशी के मुताबिक उसके बाद जनरल विलर ने वर्ष 
1901 से लेकर वर्ष 1922 तक प्रतिमाह 22 रुपये मंदिर में दीया जलाने के लिए दिए। शरदीय नवरात्र के दौरान गोलू देवता के मंदिर में 
श्रद्धालुओं की खासी भीड़ रहती है। ब्यूरो
पत्रों के माध्यम से लगाते हैं न्याय की गुहार
चंपावत। गोलज्यू के मूल मंदिर में प्रतिदिन ढेरों अर्जियां और पत्रों के माध्यम से लोग न्याय की गुहार लगाते हैं। मूल मंदिर में हर साल 
नैनीताल और अल्मोड़ा क्षेत्र के हजारों लोग पूजा अर्चना के लिए आते हैं। गोलू देवता को न्याय का लोक देवता माना जाता है। मान्यता है 
कि अदालती इंसाफ न मिलने पर मंदिर में फरियाद करने वालों को प्राकृतिक न्याय की प्राप्ति होती है। सदियां बीत गई मगर गोलू मंदिर 
की चौखट पर न्याय की गुहार लगाने का सिलसिला जारी है। मंदिर में जमीन-जायजाद बंटवारे, फौजदारी के मामलों के साथ ही पढ़ाई, 
रोजगार में सफलता के लिए आशीर्वाद पाने संबंधी अनुरोध एवं मन्नतें पूरी करने की मांगों के पत्रों और अर्जियों की भरमार है।
घोड़ाखाल-चितई में मंदिर स्‍थापना का श्रेय महरा गांव की महिला को
चंपावत।
गोलज्यू का मूल स्थान चंपावत माना जाता है। स्थानीय जनश्रुति के अनुसार घोड़ाखाल नैनीताल और चितई अल्मोड़ा की शाखाएं चंपावत 
मूल मंदिर की ही हैं। इन्हें घोड़ाखाल और चितई में स्थापित किए जाने का श्रेय माहरा गांव की एक महिला को जाता है। माना जाता है कि 
अपने परिवार के सदस्यों द्वारा सताई जा रही इस महिला ने चंपावत में गोरल देव मंदिर में गोलज्यू से न्याय के लिए साथ चलने की 
विनती की थी। उस महिला की विनती सुनकर भगवान गोलज्यू की चितई और घोड़ाखाल में स्थापना हुई।
अमर उजाला ब्यूरो
चंपावत/अल्मोड़ा। उत्तराखंड की देवभूमि में कदम-कदम पर धार्मिक एवं आध्यात्मिक मान्यताओं से जुड़े मंदिर और देवालय लोगों की 
आस्थाओं का केंद्र हैं। अतीत में चंद और कत्यूरी राजवंशों की राजधानी रहे चंपावत को न्याय के लिए प्रसिद्ध गोरल देवता गोलज्यू के मूल 
स्थान के लिए भी जाना जाता है। जब अदालतों से इंसाफ नहीं मिलता या कोई दिए गए निर्णय से असंतुष्ट होता है तो वह गोलज्यू के 
दरबार में न्याय की गुहार लगाता है। इसके लिए डाक से शिकायती पत्र और स्टांप के जरिये अर्जियां लिखकर भेजी जाती हैं।
गोलज्यू की उत्पत्ति कत्यूर वंश के राजा झालराव से मानी जाती है, जिसकी तत्कालीन राजधानी धूमाकोट वर्तमान चंपावत थी, लेकिन शिव 
पुराण रुद्र संहिता पार्वती खंड में इस संबंध में अलग ही कहानी है। राजा झालराव की सात रानियां होने पर भी वह निसंतान थे, पुत्र रत्न 
की प्राप्ति के लिए झालराव ने तंत्र-मंत्र आदि किए। कई ब्राह्मणों को बुलाकर अनुष्ठान कराए, लेकिन काफी प्रयास के बाद भी उनकी संतान 
नहीं हुई। एक बार काशी के प्रसिद्ध सिद्ध बाबा ने राजा झालराव को भैरव यज्ञ करने का सुझाव दिया, जिसके बाद झालराव ने कालिंगी से 
आठवां विवाह किया, जब कालिंगी गर्भवती हुई तो अन्य सात रानियों को यह रास नहीं आया।
उन्होंने कालिंगी के पुत्र पैदा होते ही उसे गौशाला में फेंक दिया और उसके स्थान पर पत्थर का सिलबट्टा रख दिया। प्रसव पीड़ा से होश में 
आने के बाद रानी कालिंगी और राजा झालाराव को सिलबट्टा पैदा होने की जानकारी दी गई, लेकिन सातों रानियां कालिंगी के नवजात पुत्र 
का लाख प्रयासों के बाद भी अनिष्ट नहीं कर सकी। कालांतर में यही बालक आगे चलकर गोरल देव के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

Source- http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?
Artname=20150831a_002115005&ileft=110&itop=73&zoomRatio=130&AN=20150831a_002115005


 

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