कुमाऊं का सबसे प्राचीन नगर अल्मोड़ा समुद्री सतह से 5400 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। सन् 1563 में चंद्रवंशीय शासक बालो कल्याणचंद ने आलमनगर नाम से इस नगर को बसाया था जो बाद में अल्मोड़ा हो गया। अल्मोड़ा को मंदिरों की भूमि भी कहा जाता है। 600 से 1200 वर्ष प्राचीन शिव, दुर्गा एवं वैष्णव मंदिरों की एक संपूर्ण श्रृंखला है।
कुमाऊंवासी गोलू देवता को अपना इष्ट देवता मानते हैं। गोलू देवता के यूं तो संपूर्ण कुमाऊं में मंदिर हैं, किंतु इन मंदिरों में चंपावत, घोड़ाखाल एवं चितई के मंदिर प्रमुख माने जाते हैं।
श्रद्धालु गोलू देवता को उच्चतम न्यायाधीश की संज्ञा देते हैं। गोलू के जन्म की कथा भी कुछ कम रोमांचक नहीं है। चंपावत के कत्यूरी राजा झलराई की यूं तो सात रानियां थीं, लेकिन संतान एक भी नहीं थी। ज्योतिषियों ने राजा को आठवें विवाह की सलाह दी। अर्द्धरात्रि में राजा को स्वप्न हुआ कि नीलकंठ पर्वत पर कलिंका नामक सुंदरी उनकी प्रतीक्षा कर रही है। राजा लाव-लश्कर के साथ नीलकंठ पहुंचे। कलिंका के साथ वहां उनका विधिवत विवाह हो गया। कलिंका गर्भवती हुई। सातों रानियों ने ईर्ष्यावश एक षड्यंत्र के तहत प्रसव कै समय कलिंका की आंखों पर पट्टी बांध दी और जब शिशु उत्पन्न हुआ, तो शिशु के स्थान पर सिल-बट्टा रखकर यह प्रचारित कर दिया गया कि कलिंका ने सिल-बट्टे को जन्म दिया है। शिशु को मारने के लिए रानियों ने पहले उसे हिलीचुली नामक खतरनाक गायों के आगे डाल दिया, लेकिन जब एक गाय उसे दूध पिलाने लगी, तब उन्होंने उसे बिच्छू घास के ढेर पर फेंक दिया। जब वहां भी उसे कुछ नहीं हुआ, तो उसे नमक के ढेर पर रख दिया, लेकिन नमक जैसे शक्कर में बदल गया। अब रानियों ने उसे नमक से भरे संदूक में रख काली नदी में बहा दिया। सात दिन और सात रातें बीतने के बाद वह संदूक गोरीघाट में भाना नामक मछुवारे को मिला। मछुआरे पति-पत्नी ने बालक का नाम गोलू रखा और उसका पालन-पोषण किया।
थोड़ा बड़ा होने पर गोलू ने अश्व की मांग की, तो मछुआरे ने उसे एक लकड़ी का घोड़ा दिला दिया। अब गोलू प्रतिदिन अपना लकड़ी का घोड़ा लेकर उसी स्थान पर जाने लगे, जहां सातों रानियां प्रतिदिन स्नान हेतु जल लेने आती थीं। जब रानियों ने उसे टोका, तो गोलू ने कहा कि जब एक स्त्री सिल-बट्टे को जन्म दे सकती है, तो लकड़ी का घोड़ा पानी क्यों नहीं पी सकता? जब राजा कै कान में यह बात पहुंची, तब राजा ने गोलू को बुलाया और गोलू ने राजा के सम्मुख सारा भेद खोल दिया। राजा ने कहा कि यह बात कैसे सिद्ध होगी? गोलू ने कहा, ‘आठवीं रानी यदि मेरी माता है, तो उनके स्तनों से दूध निकलकर मेरे मुंह में आ जाएगा।’ राजा ने कलिंका को बुलाया, तो गोलू का कथन सत्य सिद्ध हुआ। राजा झलराई ने गोलू को गले लगाया और सातों रानियों को मृत्यु दंड देने की घोषणा की, लेकिन गोलू ने उन्हें क्षमा करने की प्रार्थना की। कुछ समय बाद वृद्ध पिता ने गोलू को गद्दी सौंप दी। गोलू के गुणों कै कारण लोग उन्हें देवतुल्य मानने लगै। सिल-बट्टे को भी ईश्वरीय चमत्कार ने मानव रूप प्रदान किया-वे हरुबा और कलुबा के रूप में गोलू के दीवान नियुक्त हुए।
अल्मोड़ा नगर से छह किमी. दूर चित्तई पुत गांव चंद शासकों केकाल में पंत जाति के लोगों ने बसाया था। गोलू देवता के मंदिर का जीर्णोद्धार सन् 1909 में किया गया। मंदिर के गर्भगृह में धनुष-बाण लिए गोलू देवता की प्रतिमा प्रतिष्ठित है। साथ ही मां कलिंका और सेवकों की प्रतिमाएं भी हैं। प्रवेश द्वार पर कलुवा की प्रतिमा है। पूरे मंदिर में घंटे-घांटयों का जाल बिछा हुआ है। सैकड़ों की संख्या में छोटी-बड़ी घांटयां तारों से लटकी हुई हैं। ये घांटयां श्रद्धालुजनों द्वारा अपनी मनोकामना पूर्ति के उपरांत भेंट की गई हैं।