Tourism in Uttarakhand > Religious Places Of Uttarakhand - देव भूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देव मन्दिर एवं धार्मिक कहानियां

Sun Temple Of Katarmal - कटारमल का सूर्य मंदिर

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पंकज सिंह महर:
इस मंदिर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने १९२० में संरक्षित किया था, मंदिर परिसर में उनके द्वारा लगाया गया सूचना पट

पंकज सिंह महर:
हमारे अनुभव दा अभी कुछ दिन पहले इस मंदिर के दर्शन के लिये गये थे, उन्होंने पुजारी और स्थानीय लोगो का साक्षात्कार भी लिया था-

http://www.youtube.com/watch?v=W9SvaIp5HAs

पंकज सिंह महर:
शिव प्रसाद डबराल जी द्वारा लिखित "उत्तराखण्ड का इतिहास" में कटारमल के मंदिर निर्माण का वर्णन किया है-

कटारमल्ल देव (१०८०-९० ई०) ने अल्मोड़ा से लगभग ७ मील की दूरी पर बड़ादित्य (महान सूर्य) के मंदिर का निर्माण किया था। उस गांव को, जिसके निकट यह मंदिर है, अब कटारमल तथा मंदिर को कटार्मल मंदिर कहा जाता है। यहां के मंदिर पुंज के मध्य में कत्यूरी शिखर वाले बड़े और भव्य मंदिर का निर्माण राजा कटारमल्ल देव ने कराया था। मंदिर में सूर्य की उदीच्य प्रतिमा है, जिसमें सूर्य को बूट पहने हुये खड़ा दिखाया गया है।
      मंदिर की दीवार पर तीन पंक्तियों वाला शिलालेख, जिसे लिपि के आधार पर राहुल सांस्कृत्यायन ने दसवीं-ग्यारहवीं शती का माना है, अस्पष्ट हो गया है। इसमें राहुल जी ने ....मल्ल देव.... तो पढ़ा था, सम्भवतः लेख में मंदिर के निर्माण और तिथि के बारे में कुछ सूचनायें थी, जो अब अपाठ्य हो गई है।
      मन्दिर में प्रमुख मूर्त बूटधारी आदित्य (सूर्य) की है, जिसकी आराधना शक जाति में विशेष रुप से की जाती है। इन मंदिरों में सूर्य की दो मूर्तियों के अलावा विष्णु, शिव, गणेश की प्रतिमायें हैं। मंदिर के द्वार पर एक पुरुष की धातु मुर्ति भी है, राहुल सांस्कृतायन ने यहां की शिला और धातु की मूर्तियों को कत्यूरी काल का बताया है।

पंकज सिंह महर:
मंदिर समूह


पंकज सिंह महर:
कटारमल सूर्य मंदिरः इस सूर्य मंदिर का लोकप्रिय नाम बारादित्य है। पूरब की ओर रुख वाला यह मंदिर कुमायूं क्षेत्र का सबसे बड़ा और सबसे ऊंचा मंदिर है।

माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी वंश के मध्यकालीन राजा कटारमल ने किया, जिन्होंने द्वाराहाट से इस हिमालयी क्षेत्र पर शासन किया।

यहां पर विभिन्न समूहों में बसे छोटे-छोटे मंदिरों के 50 समूह हैं। मुख्य मंदिर का निर्माण अलग-अलग समय में हुआ माना जाता है। वास्तुकला की विशेषताओं और खंभों पर लिखे शिलालेखों के आधार पर इस मंदिर का निर्माण 13वीं शदी में हुआ माना जाता है।

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