Tourism in Uttarakhand > Religious Places Of Uttarakhand - देव भूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देव मन्दिर एवं धार्मिक कहानियां

Sun Temples in Uttarakhand-उत्तराखंड में प्रमुख सूर्य मंदिर

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Dosto,
God Sun has many temples world-wide. There are many famous temples of Sun in India also. The popular Sun Temples is in Almora. The place is called Katarmal.
In addition, to Katarmal, there are Sun Temples in Garwal region of Uttarakhand. We will provide more details about these temple here.
M S Mehta

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
अल्मोड़ा का सूर्य मंदिर अल्मोड़ा/एजेंसी . उत्तराखंड के कटारमल का सूर्य मंदिर पर्यटकों को खासा आकर्षित करता है. ये मंदिर आस्था का एक प्रमुख केंद्र माना जाता है. ये सूर्य मंदिर है. इसकी वास्तुकला बहुत पुरानी है. कस्तूरी साम्राज्य में इसे बनवाया गया था. लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ती है क्योंकि इससे जुड़ी सड़क की हालत फिलहाल बेहद ख़राब है. देवदार और सनोबर के पेड़ों से घिरे अल्मोड़ा की पहाड़ियों में स्थित कटारमल का सूर्यमंदिर 9 वीं सदी की वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है. ओड़िसा के कोणार्क का सूर्य मंदिर अपनी बेजोड़ वास्तुकला के लिए भारत ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है. जबकि दूसरा सूर्य मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के कुमांऊ मण्डल के अल्मोड़ा जिले के कटारमल गांव में है. इतिहासकार बीडीएस नेगी ने बताया कि  ”ये सूर्य मंदिर है, इसकी वास्तुकला बहुत पुरानी है. कस्तूरी साम्राज्य में इसे बनवाया गया था.” उन्होंने ये भी बताया कि -”एक सूर्य मंदिर कोर्णाक में है और दूसरा अल्मोड़ा में है. ये बहुत ही महत्वपूर्ण मंदिर हैं. आपने ज्यादा सूर्य मंदिर नहीं देखा होगा.”‘ अल्मोड़ा का यह मंदिर 800 वर्ष पुराना है. उत्तराखण्ड शैली का ये मंदिर अल्मोड़ा नगर से लगभग 17 किमी दूर पश्चिम की ओर स्थित है. नक्काशीदार दरवाजे, स्तंभ और मंदिर के अंदर की धातु की मूर्तियां लोगों के आकर्षण का केन्द्र हैं. ” अल्मोड़ा का ये मंदिर कई छोटे मंदिरों के एक समूह से घिरा हुआ है. अगर, मंदिर तक आने वाले रास्ते को दुरुस्त कर दिया जाए तो कोणार्क की तरह यहां आने वाले सैलानियों की तादाद भी बढ़ सकती है.

Source - http://hindi.lokmanch.com

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
पूर्वजों की आस्था का केन्द्र : कटारमल सूर्य मंदिर    रावत शशिमोहन 'पहाड़ी'
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि कोणार्क का सूर्य मंदिर अपनी बेजोड़ वास्तुकला के लिए भारत ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है. भारत के ओड़िसा राज्य में स्थित यह पहला सूर्य मंदिर है जिसे भगवान सूर्य की आस्था का प्रतीक माना जाता है. ऐसा ही एक दूसरा सूर्य मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के कुमांऊ मण्डल के अल्मोड़ा जिले के कटारमल गांव में है. यह मंदिर 800 वर्ष पुराना एवं अल्मोड़ा नगर से लगभग 17 किमी की दूरी पर पश्चिम की ओर स्थित उत्तराखण्ड शैली का है. अल्मोड़ा-कौसानी मोटर मार्ग पर कोसी से ऊपर की ओर कटारमल गांव में यह मंदिर स्थित है.
यह मंदिर हमारे पूर्वजों की सूर्य के प्रति आस्था का प्रमाण है, यह मंदिर बारहवीं शताब्दी में बनाया गया था, जो अपनी बनावट एवं चित्रकारी के लिए विख्यात है. मंदिर की दीवारों पर सुंदर एवं आकर्षक प्रतिमायें उकेरी गई हैं. जो मंदिर की सुंदरता में चार चांद लगा देती हैं. यह मंदिर उत्तराखण्ड के गौरवशाली इतिहास का प्रमाण है.
महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने इस मन्दिर की भूरि-भूरि प्रशंसा की. उनका मानना है कि यहाँ पर समस्त हिमालय के देवतागण एकत्र होकर पूजा-अर्चना करते रहे हैं. उन्होंने यहाँ की दीवारों पर उकेरी गई मूर्तियों एवं कला की प्रशंसा की है. इस मन्दिर में सूर्य पद्मासन लगाकर बैठे हुए हैं. सूर्य भगवान की यह मूर्ति एक मीटर से अधिक लम्बी और पौन मीटर चौड़ी भूरे रंग के पत्थर से बनाई गई है. यह मूर्ति बारहवीं शताब्दी की बतायी जाती है. कोणार्क के सूर्य मन्दिर के बाद कटारमल का यह सूर्य मन्दिर दर्शनीय है. कोणार्क के सूर्य मन्दिर के बाहर जो झलक है, वह कटारमल के सूर्य मन्दिर में आंशिक रूप में दिखाई देती है.
[size=130%]इतिहास [/size][/b]
कटारमल देव (1080-90 ई०) ने अल्मोड़ा से लगभग 7 मील की दूरी पर बड़ादित्य (महान सूर्य) के मंदिर का निर्माण कराया था. उस गांव को, जिसके निकट यह मंदिर है, अब कटारमल तथा मंदिर को कटारमल मंदिर कहा जाता है. यहां के मंदिर पुंज के मध्य में कत्यूरी शिखर वाले बड़े और भव्य मंदिर का निर्माण राजा कटारमल देव ने कराया था. इस मंदिर में मुख्य प्रतिमा सूर्य की है जो 12वीं शती में निर्मित है. इसके अलावा शिव-पार्वती, लक्ष्मी-नारायण, नृसिंह, कुबेर, महिषासुरमर्दिनी आदि की कई मूर्तियां गर्भगृह में रखी हुई हैं.
मंदिर में सूर्य की औदीच्य प्रतिमा है, जिसमें सूर्य को बूट पहने हुये खड़ा दिखाया गया है. मंदिर की दीवार पर तीन पंक्तियों वाला शिलालेख, जिसे लिपि के आधार पर राहुल सांकृत्यायन ने 10वीं-11वीं शती का माना है, जो अब अस्पष्ट हो गया है. इसमें राहुल जी ने ...मल देव... तो पढ़ा था, सम्भवतः लेख में मंदिर के निर्माण और तिथि के बारे में कुछ सूचनायें रही होंगी, जो अब स्पष्ट नहीं हैं. मन्दिर में प्रमुख मूर्ति बूटधारी आदित्य (सूर्य) की है, जिसकी आराधना शक जाति में विशेष रूप से की जाती है. इस मंदिर में सूर्य की दो मूर्तियों के अलावा विष्णु, शिव, गणेश की प्रतिमायें हैं. मंदिर के द्वार पर एक पुरुष की धातु मूर्ति भी है, राहुल सांकृत्यायन ने यहां की शिला और धातु की मूर्तियों को कत्यूरी काल का बताया है.
[size=130%]कटारमल सूर्य मंदिर[/size][/b]
इस सूर्य मंदिर का लोकप्रिय नाम बारादित्य है. पूरब की ओर रुख वाला यह मंदिर कुमाऊं क्षेत्र का सबसे बड़ा और सबसे ऊंचा मंदिर है. माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी वंश के मध्यकालीन राजा कटारमल ने किया था, जिन्होंने द्वाराहाट से इस हिमालयीय क्षेत्र पर शासन किया. यहां पर विभिन्न समूहों में बसे छोटे-छोटे मंदिरों के 50 समूह हैं. मुख्य मंदिर का निर्माण अलग-अलग समय में हुआ माना जाता है. वास्तुकला की विशेषताओं और खंभों पर लिखे शिलालेखों के आधार पर इस मंदिर का निर्माण 13वीं शदी में हुआ माना जाता है.
इस मंदिर में सूर्य पद्मासन मुद्रा में बैठे हैं, कहा जाता है कि इनके सम्मुख श्रद्धा, प्रेम व भक्तिपूर्वक मांगी गई हर इच्छा पूर्ण होती है. इसलिये श्रद्धालुओं का आवागमन वर्ष भर इस मंदिर में लगा रहता है, भक्तों का मानना है कि इस मंदिर के दर्शन मात्र से ही हृदय में छाया अंधकार स्वतः ही दूर होने लगता है और उनके दुःख, रोग, शोक आदि सब मिट जाते हैं और मनुष्य प्रफुल्लित मन से अपने घर लौटता है. कटारमल गांव के बाहर छत्र शिखर वाला मंदिर बूटधारी सूर्य के भव्य व आकर्षक प्रतिमा के कारण प्रसिद्ध है. यह भव्य मंदिर भारत के प्रसिद्ध कोणार्क के सूर्य मंदिर के पश्चात दूसरा प्रमुख मंदिर भी है. स्थानीय जनश्रुति के अनुसार कत्यूरी राजा कटारमल्ल देव ने इसका निर्माण एक ही रात में करवाया था. यहां सूर्य की बूटधारी तीन प्रतिमाओं के अतिरिक्त विष्णु, शिव और गणेश आदि देवी-देवताओं की अनेक मूर्तियां भी हैं.
ऎसा कहा जाता है कि देवी-देवता यहां भगवान सूर्य की आराधना करते थे, सुप्रसिद्ध साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन भी मानते थे कि समस्त हिमालय के देवतागण यहां एकत्र होकर सूर्य की पूजा-अर्चना करते थे. प्राचीन समय से ही सूर्य के प्रति आस्थावान लोग इस मंदिर में आयोजित होने वाले धार्मिक कार्यों में हमेशा बढ़-चढ़ कर अपनी भागीदारी दर्ज करवाते हैं, क्योंकि सूर्य सभी अंधकारों को दूर करते हैं, इसकी महत्ता के कारण इस क्षेत्र में इस मंदिर को बड़ा आदित्य मंदिर भी कहा जाता है. कलाविद हर्मेन गोयट्ज के अनुसार मंदिर की शैली प्रतिहार वास्तु के अन्तर्गत है।
इस मंदिर की स्थापना के विषय में विद्वान एकमत नहीं हैं, कई इतिहासकारों का मानना है कि समय-समय पर इसका जीर्णोद्धार होता रहा है, लेकिन वास्तुकला की दृष्टि से यह सूर्य मंदिर 21 वीं शती का प्रतीत होता है. वैसे इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी साम्राज्य के उत्कर्ष युग में 8वीं - 9वीं शताब्दी में हुआ था, तब इस मंदिर की काफी प्रतिष्ठा थी और बलि-चरु-भोग के लिये मंदिर मेम कई गांवों के निवासी लगे रहते थे.
इस ऎतिहासिक प्राचीन मंदिर को सरकार ने प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्व स्थल घोषित कर राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित कर दिया है. मंदिर में स्थापित अष्टधातु की प्राचीन प्रतिमा को मूर्ति तस्करों ने चुरा लिया था, जो इस समय राष्ट्रीय पुरातत्व संग्रहालय, नई दिल्ली में रखी गई है, साथ ही मंदिर के लकड़ी के सुन्दर दरवाजे भी वहीं पर रखे गये हैं, जो अपनी विशिष्ट काष्ठ कला के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं.
[size=130%]कैसे पहुंचे[/size][/b]
कटारमल सूर्य मन्दिर तक पहुँचने के लिए अल्मोड़ा से रानीखेत मोटरमार्ग के रास्ते से जाना होता है. अल्मोड़ा से 14 किमी जाने के बाद 3 किमी पैदल चलना पड़ता है. यह मन्दिर 1554 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है. अल्मोड़ा से कटारमल मंदिर की कुल दूरी 17 किमी के लगभग है.

(http://paharimonal.blogspot.com)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

सूर्य मंदिर एव समूह (पलेठी) - Sun Temple Palethi Terhi Garhwal


जनपद टेहरी गढ़वाल के पलेठी गाव में स्थित ७ वी शदी ई का प्रसिद्ध सूर्य देवालय है! देव प्रयाग से १८ किलो मीटर पर हिंडोलाखाल नामक एक कस्बा है यहाँ से ५ किलोमीटर की दूरी पर, बागी, देबका होते हुए पलेठी गाव पंहुचा जाता है ! खेतो के मध्य यह पुरातन सूर्य मंदिर एव सहूह दूर से अपनी अप्रितम आभा बिखेरता है ! इस मंदिर समूह में चार मंदिर क्रमश : सूर्य,शिव, दुर्गा व् गणेश के है !

उत्तराखंड में सूर्य देव के अनेक स्वत्रन्त्र देवालयों का निर्माण सातवी शदी ईसवी के पूर्व माना जाता है! पलेठी सूर्य मंदिर समूह सातवी शदी ईसवी माना गया है!


पलेठी में स्थित भगवान् भास्कर को समर्पित यहाँ का सूर्य मंदिर कलात्मक प्रवेश द्वार के कारण विशेष उल्लेख है !






एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

इस देवालय के गर्भ ग्रह में ऊँची पीठिका पर उपान्धारी भव्य सूर्य मूर्ती विराजमान है! स्थापत्य शैली तथा यहाँ उपलब्ध मंदिर पुष्प्भूति वंश के महाधिराज कल्याणवर्मन के शिलालेख की लिपि के आधार पर इन मंदिरों का काल प्राय ६५०-७०० में निर्धारित हुवा है! ]

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