Author Topic: Surkanda Devi Temple,Uttarakhand, सुरकंडा देवी मंदिर टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड  (Read 56219 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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चंबा से  20 किलोमीटर  दूर, कादुलखाल  से 1.5 किलोमीटर  पैदल
समुद्र तल से 3,030 मीटर ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर इस क्षेत्र के वास्तविक एवं लाक्षणिक दोनों रूपों में सर्वोच्च स्थलों में से एक है। 1 से 1.5 किलोमीटर पैदल यात्रा करने पर मंदिर आता है,

 यह एक ऐसी जगह है जहां से हिमालय दर्शन का अद्भुत नजारा देखा जा सकता है एवं जो विस्मयकारी विशालता तथा रंगीन धार्मिक सिंहावलोकन प्रस्तुत करता है तथा यहां आने के लिए प्रेरणा भी देता है।

मां सुरकंडा देवी को समर्पित मंदिर के अतिरिक्त भगवान शिव एवं हनुमान को समर्पित मंदिर की स्थापना भी इसी परिसर में हुई है। प्रत्येक वर्ष मई महीने के गंगा-दशहरा पर्व का आयोजन यहां होता है, जब सैकडों तीर्थयात्री यहां अपनी श्रद्धा अर्पित करने आते हैं।

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समुद्र तल से 3,030 मीटर ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर इस क्षेत्र के वास्तविक एवं लाक्षणिक दोनों रूपों में सर्वोच्च स्थलों में से एक है। 1 से 1.5 किलोमीटर पैदल यात्रा करने पर मंदिर आता है, यह एक ऐसी जगह है जहां से हिमालय दर्शन का अद्भुत नजारा देखा जा सकता है एवं जो विस्मयकारी विशालता तथा रंगीन धार्मिक सिंहावलोकन प्रस्तुत करता है तथा यहां आने के लिए प्रेरणा भी देता है।



स्कंद पुराणानुसार राजा दक्ष की पुत्री सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था। त्रेता युग में दानवों की पराजय के बाद राजा दक्ष को देवताओं का प्रजापति चुना गया। उन्होंने कंखाल में एक यज्ञ का आयोजन कर इसे मनाया। चूंकि भगवान शिव ने दक्ष को प्रजापति बनाने का विरोध किया था, इसलिए दक्ष ने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया।

अपने घर कैलाश शिखर से शिव और सती ने सभी देवताओं को जाते हुए देखा तब उन्हें मालूम हुआ कि उन दोनों को निमंत्रित नहीं किया गया था। सती अपने पति का यह अपमान देखकर यज्ञ स्थल पर गई और हवन कुंड में स्वयं को स्वाहा कर दिया। जब तक शिव वहां पहुंचे, वह जलकर सती हो चुकी थी।



क्रोध में आकर भगवान शिव ने तांडव नृत्य किया, अपने बंधन से गणों को मुक्त कर दिया और उन्हें आदेश दिया कि दक्ष का सिर काट दें तथा सभी देवताओं को डराकर भगा दें। शोकाकुल देवताओं ने क्षमा कर देने की विनती की और आग्रह किया कि दक्ष को यज्ञ पूरा करने दें। परंतु दक्ष का सिर कट चुका था इसलिए एक बकरे का सिर काटकर दक्ष के शरीर पर लगा दिया गया ताकि वह यज्ञ संपन्न कर सके।

भगवान शिव ने हवन कुंड से सती के शव को अपने कंधे पर रखकर चल पडे। वर्षों तक वे क्रोध एवं चिंतामग्न होकर घूमते रहे। इस संकटपूर्ण स्थिति पर विचार करने के लिए सभी देवताओं की एक बैठक हुई क्योंकि वे जानते थे कि भगवान शिव अपने क्रोध से संसार को नष्ट करने की क्षमता रखते हैं।

 अंत में, यह तय हुआ कि भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल करें। शिव की जानकारी के बिना ही भगवान विष्णु ने सती के शव को 52 टुकडों में सुदर्शन चक्र से काट दिया। जहां कहीं भी भूमि पर यह टुकडा गिरा वह सिद्ध पीठ या शक्ति पीठ बन गया।

 इसका एक उदाहरण सुरकंडा देवी का मंदिर है जहां सती की गर्दन गिरी। इसी प्रकार चन्दबदनी देवी जहां उनके शरीर का निचला भाग और कुंजा देवी में उनके शरीर के ऊपर का भाग गिरा। ये तीनों मंदिर इस क्षेत्र के धार्मिक त्रिकोण हैं और एक-दूसरे से अवलोकित भी हैं।

मां सुरकंडा देवी को समर्पित मंदिर के अतिरिक्त भगवान शिव एवं हनुमान को समर्पित मंदिर की स्थापना भी इसी परिसर में हुई है। प्रत्येक वर्ष मई महीने के गंगा-दशहरा पर्व का आयोजन यहां होता है, जब सैकडों तीर्थयात्री यहां अपनी श्रद्धा अर्पित करने आते हैं।

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Photos,by kiran rawat






raat main chamkata huwa surkand devi mandin

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CHAMBA SE MASOORIE OR SURKAND WALI ROAD

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The Surkanda peak lying at an altitude of 2,750 m. in the western part of tahsil Tehri, and is famous for the temple of Surkanda Devi. It is about 8 km. from Dhanolti on the motor road running from Mussoorie to Chamba and is connected with Narendra Nagar which is about 61 km. and with Tehri which is about 41 km.



 by motor roads. To reach the temple one has to leave the Mussoorie-Chamba road at Kadu Khal and climb a steep ascent of about 1.5 km. on foot. The legend is that Sati, the wife of Siva, gave up her life in the yajna  startedwpe9.jpg (15487 bytes) by her father. Siva passed through this place on his way back to Kailash with the dead body of Sati whose head fell at the spot where the temple of Surkhanda Devi stands.

 It commands a beautiful view of Dehra Dun, Rishikesh, Chandrabadni, Pratapnagar and Chakrata. Flowers of varied kinds and colours and indigenous herbs grown in abundance here and some of the beautiful birds of the western Himalayas are also found in the neighbourhood. A local fair is held on the occasion of Ganga Dasahra in Jyaistha when hundreds of devout pilgrims visit this place.

 

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